पित्रा भर्त्रा सुतैर्वापि नेच्छेद्विरहं आत्मनः ।
एषां हि विरहेण स्त्री गर्ह्ये कुर्यादुभे कुले ।।
- मनुस्मृति 5/149
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार :
कन्या या स्त्री को चाहिए कि वह पिता, पति व पुत्रों से पृथक् रहने की इच्छा न करे। क्योंकि इन से पृथक् रहने से स्त्री पितृकुल व 1/3
2/3 पतिकुल, दोनों कुलों को कलङ्कित कर सकती है।
पण्डित राजवीर शास्त्री जी :
कोई भी स्त्री पिता, पति अथवा पुत्रों से अपना बिछोह - अलग रहने की इच्छा न करे क्यों कि इनसे अलग रहने से यह आशंका रहती है कि कभी कोई ऐसी बात न हो जाये जिससे दोनों - पिता तथा पति के कुलों की निन्दा या
3/3 बदनामी हो जाये । अभिप्राय यह है कि स्त्री को सर्वदा पुरूष की सहायता अपेक्षित रखनी चाहिए, उसके बिना उसकी असुरक्षा की आशंका बनी रहती है ।
अज्ञानी लोग द्रौपदी पर बहुपतित्व का लांछन लगाते हैं पर सत्य यह हैं द्रौपदी का विवाह सिर्फ युधिष्ठिर के साथ हुआ था।
जिस समय द्रौपदी का स्वयंवर हो रहा था। उस समय पांडव लाक्षागृह से बच कर वनो मे रह रहे थे। द्रोपदी के स्वयंवर की सूचना उन्हें मिली। पाञ्चाल देश (पंजाब)
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मे ये लोग एक कुम्हार के घर में ठहरे और वहाँ से स्वयंवर की शर्त को अर्जुन ने पूर्ण किया। स्वयंवर की शर्त पूरी होने पर द्रौपदी को उसके पिता द्रुपद ने पांडवों को भारी मन से सौंप दिया। राजा द्रुपद पंडितों के भेष में छुपे हुए पांडवों को पहचान नही पाए।
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पांडव द्रौपदी के साथ अपनी माता कुंती के पास पहुंच गये।
माता कुंती ने क्या कहा-
उदार हृदया कुंती माता ने द्रौपदी से कहा-’भद्रे! तुम भोजन का प्रथम भाग लेकर उससे बलिवैश्वदेवयज्ञ करो तथा ब्राहमणों को भिक्षा दो।
अपने आसपास जो दूसरे मनुष्य आश्रित भाव से रहते हैं,