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मनुवादी, जिज्ञासु, सनातनी, मनुस्मृति प्रचारक
Jul 20, 2023 5 tweets 2 min read
पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने ।
रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्र्यं अर्हति ।।9/3

यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है

कुमारावस्था (बालापन) में पिता, यौवनावस्था में पति, और वृद्धावस्था में पुत्र को रक्षा करनी चाहिये।
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क्योंकि स्त्रियाँ स्वतन्त्र होने के योग्य नहीं।

टिप्पणी :
ये दो श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त है— 1. अन्तर्विरोध- इन श्लोकों की मान्यता मनु-सम्मत नही है । इनमें स्त्रियों को स्वतन्त्र न रखने की बात कही है, यह स्त्रियों के प्रति हीनभावना बहुत ही परवर्ती काल की है।
Jun 10, 2023 23 tweets 6 min read
अज्ञानी लोग द्रौपदी पर बहुपतित्व का लांछन लगाते हैं पर सत्य यह हैं द्रौपदी का विवाह सिर्फ युधिष्ठिर के साथ हुआ था।

जिस समय द्रौपदी का स्वयंवर हो रहा था। उस समय पांडव लाक्षागृह से बच कर वनो मे रह रहे थे। द्रोपदी के स्वयंवर की सूचना उन्हें मिली। पाञ्चाल देश (पंजाब)
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मे ये लोग एक कुम्हार के घर में ठहरे और वहाँ से स्वयंवर की शर्त को अर्जुन ने पूर्ण किया। स्वयंवर की शर्त पूरी होने पर द्रौपदी को उसके पिता द्रुपद ने पांडवों को भारी मन से सौंप दिया। राजा द्रुपद पंडितों के भेष में छुपे हुए पांडवों को पहचान नही पाए।