यह है वह #मेज़#कुर्सी,जिसपर दशकों पहले बैठे एक #इंसान से आज भी उनके #विरोधी#ख़ौफ़ खाते हैं । वह आज भी डरते हैं कि कहीं इनका विचार,उनके झूठ के आडंबर पर खड़े ताश की पत्तों के महल को उड़ा न दें । वह इस कुर्सी,इस कमरे,इसमें रखी किताबों, इस घर से ख़ौफ़ खाते हैं
और चाहते हैं कि हर वह चीज़ बदल दी जाए,जिससे उनका नाम जुड़ा है मगर क्या यह सम्भव है ।
जब भी देश के पहले #आईआईएम का नाम आएगा,तो उनका ज़िक्र आएगा । #आईआईटी का ज़िक्र आएगा,तो उनका नाम आएगा,#यूनिवर्सिटी,#स्कूल,#कॉलेज की बात होगी,तो उनका नाम आएगा,
जो उन्हें आम कर रहा,वही है, जिससे यह डरते हैं । अरे अगर दीवारों से खुरच खुरच कर भी उनका नाम मिटाना चाहोगे,तो तुम्हारी कितनी ही नस्लों के नाखून गायब हो जाएंगे मगर उनके किये कामों को मिटा नही पाओगे । तुम्हारी नस्लें बिन नाखून के पैदा होने लगेंगी मगर उनकी
पहचान ख़त्म नही कर पाओगे ।
एक बार फिर अपने छोटे से दिल और संकुचित कुंठित मानसिकता का परिचय देते हुए,#नेहरू_मेमोरियल_लाइब्रेरी और संग्रहालय का नाम बदला गया है । क्या यह बदलने से पण्डित जी को छिपा ले जाओगे । अरे मुझे वाक़ई हंसी आती है कि करीब दस साल पूरे होने को हैं
और तुम्हारे पास उस सालों पहले गुज़र चुके इंसान की परछाई से लड़ने के सिवा कुछ नही है ।कुंठा दिखती है कि तुम इस कुर्सी पर बैठे इंसान की छांव तक से डरते हो,वरना करीब दस साल के शासन के बाद,तुम्हे अपना कुछ कहने को होता, मगर तुम आज भी एक एक दीवार,कमरे,सड़क,गली,नहर,डैम,
इंस्टिट्यूट, संस्थाओं के नाम बदल रहे हो और तुम्हे आज भी सुक़ून नही ।
तुमने इस कुर्सी पर बैठे इंसान की छांव की ताकत भी देख ली और उसके रक्तवंश के उत्तराधिकारी से घर और सांसदी भी छीन कर देख लिया । न वह विचलित हुआ और न व्याकुल, वह भी अपने पुरखों की तरह आम लोगों के दिलों पर
अपनी मोहर लगाने निकल पड़ा । अब सोचो कि नाम बदलने से क्या इस देश के लोगों के दिलों में बसे पण्डित जी को निकाल पाओगे,तुम्हारी हैसियत नही है ।
#नेहरू सिर्फ़ एक नाम नही हैं । यह हमारी पहचान हैं और हमारा विचार हैं । देखते हैं कि कब तक नाम बदलने का खेल चलता है ।
अभी तो हजारों जगह वह दर्ज हैं नेहरू इस देश की जिस जिस गली,कूचे,गांव में हो आए हैं तुम सब मिलकर वहाँ वहाँ नही पहुँच सकते,इसलिए मुझे यक़ीन है कि तुम सिर्फ़ थोड़े वक़्त के लिए नाम बदल सकते हो और कुछ भी नही,हाँ प्रचंड बहुमत के बाद भी यह सादी सी कुर्सी मेज़ तुम्हे डराती रहेगी । 😜🤣
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"गीता प्रेस" को ख़ुद "गांधी शांति पुरस्कार" लेने से मना' कर देना चाहिए..यही तथाकथित सनातनी रिवायत भी है..
गीता प्रेस के संस्थापक हनुमान पोद्दार और जयदयाल गोयनका गांधी हत्या में गिरिफ़्तार हुए थे बात यहाँ ख़त्म नही होती
जब ये दोनों गिरिफ़्तार हुए तब स्वर्गीय जी डी बिड़लाजी से मदद मांगी गई..बिड़लाजी ने कहा था कि ये दोनों "सनातन धर्म" के नही बल्कि "शैतानी धर्म" वाले है..बिड़लाजी से बेहतर इनदोनों को कौन जानता था..
गीता प्रेस ने कभी गांधी हत्या की मुख़ालिफ़त नहीं की, कभी किसी दंगे के ख़िलाफ़ नही बोला..गीता प्रेस का डीएनए गांधी के ख़िलाफ़ नफ़रत है..
"कल्याण पत्रिका" में मुसलमान, 'ईसाई और दलितों के ख़िलाफ़ लगातार लिखा गया..वो सारे प्रकाशन/शा'ए आज भी आप पढ़ सकते है..
'पप्पू अस्त्र' के बूमरैंग से धराशाई होता गुंडाराज का किला
झूठ-कपट और छल-प्रपंच का मायाजाल फैलाकर लोगों को मूर्ख बनाने वाले नाजियों के देसी मानसपुत्रों ने देश की सत्ता पर कब्जा कर इसे अपनी जागीर बना लेने में सबसे बड़ी बाधा राहुल गांधी को पप्पू साबित करने में अरबों रुपए
पानी की तरह बहाये। अपने प्रखर बौद्धिकों को काम पर जुटाया। अकूत संसाधन तथा ऊर्जा झोंक दी।
लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि राख में दबी आग का एक छोटा-सा हिस्सा भी समय आने पर भड़ककर कहर बरपा देता है।
इस देश की आजादी से लेकर इसके निर्माण और समृद्धि में जिन्होंने अपना सर्वस्व समर्पित
कर दिया, उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हो सकता क्योंकि उसके डीएनए में लोकतंत्र, समाजवाद, सर्वधर्म समभाव, अहिंसा, प्रेम, साहस आदि मानवीय सद्गुण कूट-कूटकर भरे हैं।
इसीलिए वह फीनिक्स पक्षी की तरह कांग्रेस को पुनर्जीवित करने निकल पड़ा और देखते ही देखते
"अम्मा!.आपके बेटे ने मनीआर्डर भेजा है।"
डाकिया बाबू ने अम्मा को देखते अपनी साईकिल रोक दी। अपने आंखों पर चढ़े चश्मे को उतार आंचल से साफ कर वापस पहनती अम्मा की बूढ़ी आंखों में अचानक एक चमक सी आ गई..
"बेटा!.पहले जरा बात करवा दो।"
अम्मा ने उम्मीद भरी निगाहों से उसकी ओर देखा लेकिन
उसने अम्मा को टालना चाहा.
"अम्मा!.इतना टाइम नहीं रहता है मेरे पास कि,. हर बार आपके बेटे से आपकी बात करवा सकूं।"
डाकिए ने अम्मा को अपनी जल्दबाजी बताना चाहा लेकिन अम्मा उससे चिरौरी करने लगी.
"बेटा!.बस थोड़ी देर की ही तो बात है।
"अम्मा आप मुझसे हर बार बात करवाने की जिद ना किया करो!
यह कहते हुए वह डाकिया रुपए अम्मा के हाथ में रखने से पहले अपने मोबाइल पर कोई नंबर डायल करने लगा..
"लो अम्मा!.बात कर लो लेकिन ज्यादा बात मत करना,.पैसे कटते हैं।"
उसने अपना मोबाइल अम्मा के हाथ में थमा दिया उसके हाथ से मोबाइल ले फोन पर बेटे से हाल-चाल लेती अम्मा मिनट भर बात कर ही
तो पहले बताइये कि सिंधु घाटी के अवशेषों को जब आपने बचपन मे पढ़ा, तो क्या समझा था? आपने सवाल भी परीक्षा में हल किया होगा- सिंधु घाटी के शहरों के प्रमुख गुण बताइये।
उत्तर लिखा- यहां अन्न के गोदाम थे, बंदरगाह थे, समकोण पर काटती सड़कें, उनके किनारे दोनों तरफ जल निकासी की नाली, स्नानागार थे, बाजार थे, प्रशासनिक शहर अलग था, सीलें थी, नर्तकियां थी, बैलगाड़ी थी।
तो क्या सिंधु घाटी सभ्यता बड़े बड़े गांव की सभ्यता थी??
शहरीकरण एक सभ्यता का पिनाकल है-
सबसे उत्कृष्ट फल।
शहर का मलतब आसपास के गांवों का एक केंद्र। जो आसपास के गांव, बस्तियो, दस्तकारों और खेतों की उपज का एक्सचेंज करने वाला इंटरफेस।
शहर में खेत नही होते। तब फैक्ट्री नही होती थी। सब कुछ आसपास के गांवों से आता।
शहर के सबसे बड़े बैंक में एक बार एक बुढ़िया आई ।
उसने मैनेजर से कहा :- “मुझे इस बैंक में कुछ रुपये जमा करने हैं”
मैनेजर ने पूछा :- कितने हैं ?
वृद्धा बोली :- होंगे कोई दस लाख ।
मैनेजर बोला :- वाह क्या बात है, आपके पास तो काफ़ी पैसा है, आप करती क्या हैं ?
वृद्धा बोली :- कुछ खास नहीं, बस शर्तें लगाती हूँ ।
मैनेजर बोला :- शर्त लगा-लगा कर आपने इतना सारा पैसा कमाया है ? कमाल है…
वृद्धा बोली :- कमाल कुछ नहीं है, बेटा, मैं अभी एक लाख रुपये की शर्त लगा सकती हूँ कि तुमने अपने सिर पर विग लगा रखा है ।
मैनेजर हँसते हुए बोला :- नहीं माताजी, मैं तो अभी जवान हूँ और विग नहीं लगाता ।
तो शर्त क्यों नहीं लगाते ? वृद्धा बोली ।
मैनेजर ने सोचा यह पागल बुढ़िया खामख्वाह ही एक लाख रुपये गँवाने पर तुली है, तो क्यों न मैं इसका फ़ायदा उठाऊँ… मुझे तो मालूम ही है कि मैं विग नहीं लगाता ।
सावडकर : कॉपी पेस्ट करने के बाद माफी माँग लेनी चाहिए
निंदानाथ : कॉपी पेस्ट करने वाले की कड़ी निंदा करनी चाहिए
जोगी : कॉपी पेस्ट कर के मूल लेखक का नाम ही बदल देना चाहिए
लोटा बिहारी : कॉपी पेस्ट, ये अच्छी बात नहीं है
पोदी : यदि कॉपी पेस्ट में पकड़ा जाऊँ तो चौराहे पे लटका देना
साधी प्रज्ञा : कॉपी पेस्ट करने वाले को शाप दे देना चाहिए
मीश ढुगन : कॉपी करने वालों, थोड़ी तो मर्यादा रखो
मित शा : मूल लेखक को पैसे दे के पोस्ट अपने नाम करा लेना चाणक्य नीति है
टंगना रआनऔत: सिर्फ हिन्दू लेखक की पोस्ट ही चोरी क्यूँ होती है?
निम्मों ताई : मैं लिखती नहीं तो मुझे कॉपी पेस्ट से क्या लेना देना
सुधीर तिहाडी : कॉपी पेस्ट से रोकने के लिए मोदी जी हर पोस्ट में चिप लगवा रहे हैं