हंसते क्यो नही आदिपुरुष..??
नवयुग की रामायण आई है। नए भारत के राम, मजबूत शरीर, भावहीन चेहरा। अधुनातन राम, भुजाओं की मांसपेशियां फुलाने में इतने मग्न रहे, कि मुस्कान लाने वाली पेशियां, अवशेषी छूट गयी।
अपेंडिक्स का अवशेषी होना, मानव विकास क्रम की पहचान थी।
वैसे मुस्कुराने वाली पेशियों का अवशेषी होना, अमृतकाल की पहचान। यहां देवता, नेता, कार्यकर्ता और नागरिक में क्रुद्धता जरूरी है।
दरअसल, खुशहाल व्यक्ति शौर्य प्रदर्शन नही कर सकता। क्या आप प्रसन्नचित्त होकर पड़ोसी को काट डालने, फाड़ देने, या माओं बहनों के साथ
विद्रूप यौनकर्म की धमकी दे सकते हैं। छीन लेने, दबा देने, सबक सिखा देने का उद्घोष कर सकते है??
नहीं न!!
हंसी और खुशी से अलगाव पहली जरूरत है। प्रसन्नता मन से कुंठा निकाल फेंकती है। भीतर से मजबूत बनाती है, असुरक्षा निकाल फेंकती है। आंखे खोल, सवाल करने की ताकत देती है।
मगर ऐसी जनता नफरत को नकार देती है। नेता को वैसा दिखना चाहिए जैसी जनता वो बनाना चाहता है। इसलिए हमारा नेता कभी हंसता नही। सदा क्रोधित है, चिंतित हैं, शिकायती है, डरा हुआ है।
नतीजतन उसके कार्यकर्ता और पूरा सामाजिक आधार भी क्रोधित है। भयभीत है। जाहिर है,
कि फिल्मकार भी क्रोधित है। वह भय को भयानक रंगों से सजा रहा है।
जानता है, कि राम का राम होना उसके लिए पर्याप्त नहीं। इसलिए नया राम, थोड़ा थोर है, थोड़ा सुपरमैन, थोड़ा बैटमैन.. और ज्यादातर 56 इंच का सीना लेकर घूमने वाला क्रुद्ध महामानव है।
जिनकी खास मुहूर्त में ही हंसी दिखाई देती है। जैसे जब काला धन वाले मजदूर के घर शादी हो, पैसे न हों। दिव्यांग बालक की तुलना विपक्ष का नेता से हो। जब उसका कोई झूठ दूर तक सफल हो, वो मुंह टेढ़ा करके हंसता है।
समर्थक भी हंसते है। कोई हंसाने वाला कलाकार जेल जाये,कोई नापसन्द हस्ती मर
जाये, किसी जाति धर्म विशेष के घर, शहर, प्रदेश में सरकारी अथवा प्राकृतिक आपदा टूट पड़े।
तब कहकहे गूंजते हैं।
जिससे एतराज नही। ये अट्टहास इंसान को खोखला बनाते है।भीतर गूंजती हंसी, आपके पाप का अहसास और भविष्य में रिटाइलेशन का भय भीतर सींचती हैं।आपकी असुरक्षा को और गहरा करती है।
तो नेता का इच्छित समाज बनता है। अब ये क्रुद्ध समाज अपनी कल्पना में बर्बरता और अँधियार से लड़ता है।
अपने डर को बुराई के प्रतीकों से सजाता है। अगर दुश्मन प्रकांड विद्वान और ब्राह्मण भी हो तो अब, मुसलमान बन जाता है। काले कपड़े में, चमगादड़ पर चढ़कर लड़ने आता है।
हमें अगर सत्य के अनुयायी है, तो उसका स्वागत गालियों और सस्ते व्याकरण से करना चाहिए, यह शिक्षा आदिपुरुष से मिलती है।
तो यह फ़िल्म का विषय आदिपुरुष नही। एक आम मोदिपुरुष का हैलुसिनेशन है। समाज मे घूम रहे लाखों मोदिपुरुषों की दिमागी बीमारी का चित्रण है।
जो नफरत के स्टेरॉयड से अपने सीने की मांसपेशियां फुलाने में इतना मग्न रहा, कि मुस्कुराने वाली पेशियां अवशेषी छूट गयी।
तो आप पूछ रहे थे..
हंसते क्यो नही मोदिपुरुष..?? #स्वतंत्र
अमेरिका के प्रेसिडेंट बाइडेन कल रात से एयरपोर्ट पर बैठे हुए है..एक भी अमेरिकन अपने घर पर नहीं है..सारे अमेरिकन ढोकला, फाफड़ा पैक करवा कर रास्तों के दोनों ओर खड़े हो कर पिछले 24 घन्टे से "अखंड डांडिया" खेल रहे है..
25 करोड़ पाकिस्तानी बागा बॉर्डर पर खड़े है और CAA के तहत भारतीय नागरिकता मांग रहे है..पाकिस्तानियों ने लिख कर दिया है कि बीफ़ नही खाएंगे..
चीन का जी शीन पिंग "अंडमान वाले मा'फ़ीनामे" पढ़ रहा है ताकि सही मा'फ़ीनामा लिख कर भारत भेज कर मा'फ़ी मांग ले..
चीन के सारे उद्योगपति उत्तरप्रदेश की ओर रवाना हो चुके है..
अगले 4 दिनों में चीन, पाकिस्तान का भारत मे विलय हो जाएगा..अमेरिका की संसद भारत मे बनेगी..और इजिप्ट में "घर वापसी" का बड़ा प्रोग्राम होगा..
इतना गुस्सा था कि जल्दबाजी में पापा के ही जूते पहन कर निकल गया ।
वो सोच रहा था.... आज बस घर छोड़ दूंगा और तभी लौटूंगा जब बहुत बड़ा आदमी बन जाऊंगा ...।
जब मोटर साइकिल नहीं दिलवा सकते थे, तो क्यूँ मुझें इंजीनियर बनाने के सपने देखतें हैं .....आख़िर क्या जरूरत थी मुझसे झूठा वादा करने का ....!
अपने साथ आज वो पापा का बटुआ भी उठा लाया था .... जिसे किसी को उसके पिताजी हाथ तक नही लगाने देते थे ...।
पिंटू सोच रहा था कि इस बटुए में जरुर पैसों के हिसाब की डायरी होगी ....पता तो चले अबतक कहाँ कितना माल छुपाया है .....माँ से भी ...इसीलिए बटुए को क़भी हाथ नहीं लगाने देते किसी को..।
लेकिन जैसे ही वो कच्चे रास्ते से सड़क पर आया, उसे लगा कि जूतों में कुछ चुभ रहा है ....।
अजीत डोभाल : भाई अपना काम संभाल
ASSOCHAM भारतीय व्यापारियों और उद्यमियों का एक संगठन है । पता नहीं क्यों उसने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की याद में एक वार्ता का आयोजन किया ? उस आयोजन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित करना भी समझ से बाहर है
और वहां जो डोभाल जी ने कहा वो तो सबसे अधिक समझ से बाहर है ।
' सुभाष चन्द्र बोस होते तो देश का विभाजन ना होता ' यह दावा किया डोभाल जी ने ! कारण बताया कि जिन्ना को केवल बोस पर ही भरोसा था । जिन्ना ने कब ऐसा कहा ये नहीं बताया । वैसे भी क्या एक आदमी के सहारे ही मुस्लिम
लीग अपनी मांग छोड़ देती ?
सुभाष बोस कांग्रेस से अलग हुए थे केवल द्वितीय विश्वयुद्ध में कांग्रेस की ब्रिटिश सरकार के प्रति रूख के कारण। यदि उनके दिल में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से नफ़रत होती तो आज़ाद हिन्द फौज में गांधी ब्रिगेड, नेहरू ब्रिगेड और आज़ाद ( मौलाना आज़ाद )
मणिपुर में कुकी कुकियों की सुरक्षा कर रहे हैं और मैथीस को मार रहे हैं और मैथीस कुकियों को मार रहे हैं और मैथीस की सुरक्षा कर रहे हैं।
यानी हम अपनों के ही दुश्मन बन गये हैं और यही घर घर दंगे का संघी एजेंडा है।
ये दक्षिणपंथी आज वही कर रहे हैं जो १९४७-४८ में काम पूरा नहीं कर पाये
और मात्र गांधी जी की हत्या करके रह गये और यही कांग्रेस मुक्त भारत था जो देश की जनता समझ नहीं पाती तथा जलती मोदी नाम की चिंता में कूदकर सती हो गई।
ये कोई नयी बात नहीं है,अभी सालभर पहले तक अपने अपने लगातार किसान आंदोलन में मरते सिख भाइयों की की मौत पर उन्हें आतंकवादी खालिस्तानी
कहकर अट्टहास किया था।
उपरोक्त बातें मर्डर हैं आइडिया आप इंडिया का जो गांधी जी केवल नेहरू के हाथों सुरक्षित समझते थे और उन्होंने इसीलिए बल देकर कहा था कि आजादी के बाद जवाहर मेरी भाषा बोलेगा।
नेहरू जानते थे कि ब्रिटिश संसद में इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट १९४७ पास होने के समय चर्चा
"गीता प्रेस" को ख़ुद "गांधी शांति पुरस्कार" लेने से मना' कर देना चाहिए..यही तथाकथित सनातनी रिवायत भी है..
गीता प्रेस के संस्थापक हनुमान पोद्दार और जयदयाल गोयनका गांधी हत्या में गिरिफ़्तार हुए थे बात यहाँ ख़त्म नही होती
जब ये दोनों गिरिफ़्तार हुए तब स्वर्गीय जी डी बिड़लाजी से मदद मांगी गई..बिड़लाजी ने कहा था कि ये दोनों "सनातन धर्म" के नही बल्कि "शैतानी धर्म" वाले है..बिड़लाजी से बेहतर इनदोनों को कौन जानता था..
गीता प्रेस ने कभी गांधी हत्या की मुख़ालिफ़त नहीं की, कभी किसी दंगे के ख़िलाफ़ नही बोला..गीता प्रेस का डीएनए गांधी के ख़िलाफ़ नफ़रत है..
"कल्याण पत्रिका" में मुसलमान, 'ईसाई और दलितों के ख़िलाफ़ लगातार लिखा गया..वो सारे प्रकाशन/शा'ए आज भी आप पढ़ सकते है..
'पप्पू अस्त्र' के बूमरैंग से धराशाई होता गुंडाराज का किला
झूठ-कपट और छल-प्रपंच का मायाजाल फैलाकर लोगों को मूर्ख बनाने वाले नाजियों के देसी मानसपुत्रों ने देश की सत्ता पर कब्जा कर इसे अपनी जागीर बना लेने में सबसे बड़ी बाधा राहुल गांधी को पप्पू साबित करने में अरबों रुपए
पानी की तरह बहाये। अपने प्रखर बौद्धिकों को काम पर जुटाया। अकूत संसाधन तथा ऊर्जा झोंक दी।
लेकिन वे यह नहीं जानते हैं कि राख में दबी आग का एक छोटा-सा हिस्सा भी समय आने पर भड़ककर कहर बरपा देता है।
इस देश की आजादी से लेकर इसके निर्माण और समृद्धि में जिन्होंने अपना सर्वस्व समर्पित
कर दिया, उनकी विरासत को आगे बढ़ाने वाला कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हो सकता क्योंकि उसके डीएनए में लोकतंत्र, समाजवाद, सर्वधर्म समभाव, अहिंसा, प्रेम, साहस आदि मानवीय सद्गुण कूट-कूटकर भरे हैं।
इसीलिए वह फीनिक्स पक्षी की तरह कांग्रेस को पुनर्जीवित करने निकल पड़ा और देखते ही देखते