जैसे जैसे विपक्षी दलों की पटना बैठक की तारीख नजदीक आ रही है, बात साफ होने के बजाय काफी कुछ उलझता जा रहा है। संयोजक नीतीश कुमार के सामने कईं समस्याएं आकर खड़ी हो गई हैं।
केजरीवाल ने कह दिया है कि कांग्रेस यदि दिल्ली और पंजाब में चुनाव न लड़े तो उनकी पार्टी राजस्थान और (1/9)
मध्य प्रदेश में लड़ने नहीं जाएगी। ममता बनर्जी ने कहा है कि चुनावी तालमेल करना है तो कांग्रेस बंगाल छोड़े और वामपंथी भी बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में साथ आएं। शरद पवार और उद्धव का कहना है कि कांग्रेस यदि अन्य राज्यों में समर्थन चाहती है तो उसे महाराष्ट्र में एनसीपी और उद्धव (2/9)
शिवसेना के साथ खड़ा होना चाहिए। मायावती ने साफ साफ कहा है कि बसपा कोई गठबंधन नहीं करेगी, अकेले चुनाव लडेगी।
मतलब सबकी निगाहें कांग्रेस पर लगी हैं, सबका निशाना कांग्रेस पर है। यह तब है जब कांग्रेस लंबे समय से राहुल गांधी के नेतृत्व में मोदी को चुनौती देने की तैयारियों में (3/9)
जुटी है। केजरीवाल और ममता के मंसूबे जानकर भड़क तो पड़े होंगे राहुल। अधीर रंजन बाबू ने तो साफ साफ कह भी दिया कि ममता में ऐसे कौन से रत्न जड़े हैं कि कांग्रेस उनके लिए बंगाल छोड़ दे।
अब केजरीवाल के प्रस्ताव पर खड़गे का जवाब आना बाकी है। हालांकि यह असंभव है कि कांग्रेस (4/9)
जैसी पार्टी क्षेत्रीय दलों के लिए चार राज्य खुल्ला खेल खेलने को छोड़ दे। न जानें क्यों नीतीश यह भूल जाते हैं कि कांग्रेस की देशव्यापी ताकत के मुकाबले उनकी अपनी छवि काफी कमजोर हो गई है और उन्हें पीएम पद का ख्वाब छोड़ देना चाहिए। उनके अपने प्रदेश में उनके वोटों की ताक़त (5/9)
बीजेपी और आरजेडी के बाद नंबर 3 की है।
वैसे विपक्ष की एकता ऐसा जुमला है जो इंदिरा गांधी के समय से चला आ रहा है। वास्तव में जिस विपक्षी एकता का सवाल है, वह एकता तो केवल एक बार 1977 में जनता पार्टी बनाकर हुई थी। दो ही सालों में जनता पार्टी टूट गई, बाद में जनता दल का प्रयोग (6/9)
भी ढेर हो गया। तब सभी राज्यों में सीटों का तालमेल वन सीट वन कैंडिडेट के आधार पर हुआ और कांग्रेस का सफाया हो गया। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था, उसके बाद भी कभी नहीं हुआ। यूपीए 1, यूपीए 2 या एनडीए 1 और एनडीए 2 तो बने परंतु वन अपोजिट वन का गणित कभी नहीं बन पाया।
महागठबंधन तभी (7/9)
बन सकता है जब राज्यों में सीटों का बटवारा चुनाव पूर्व एक एक सीट पर हो जाए। पटना बैठक बताएगी कि राजनैतिक दलों के मिलने की हद क्या है। यह संभव है मोदी को हराना भी संभव है। शर्त यही है कि सभी 25 विपक्षी दल राहुल गांधी के नेतृत्व में चुनाव लडना स्वीकार कर लें। कांग्रेस को (8/9)
अपना लीडर मान लें। ऐसा न हुआ तो याद रखिए सामने मोदी हैं जिनसे जनता अपार प्यार करती है। राधा को नचाना है तो पटना में नौ मण तेल तो जुटाइए?
मनोज मुंतशिर पर मेरा पक्ष आज भी वही है जो पहले था। आदिपुरुष टीजर रिलीज होते ही मनोज मुंतशिर का विरोध आरंभ हो गया था। यह कह कर कि मनोज मुंतशिर छूपे हुए वामपंथी हैं। मैंने अपना पक्ष लिखा था कि मनोज मुंतशिर वामपंथी ही पैदा हुए थे। मनोज अपनी कहानी (1/12)
बताते हैं कि पहली बार उन्होंने रेडियो पर मुंतशिर शब्द से कोई नाम सुना था। मुन्तशिर जैसे उर्दू शब्द केवल कर्णप्रिय लगने के कारण उन्होंने अपने शुक्ला आस्पद से प्रतिस्थापित कर दिया। वामपंथ को लेकर मनोज की प्रवृत्ति को समझना बस इतना भर से पर्याप्त है।
फिल्म जगत में मनोज का (2/12)
विकास उनके श्रम के बदौलत बिना किसी गॉडफादर के हुआ। मनोज अपनी प्रवृत्ति का वामपंथी विचारधारा को लेकर आगे बढ़ते तो ऐसा नहीं था कि उन्हें मंच नहीं मिलते। बल्कि वैसे मंच उनकी काबिलियत का इस्तेमाल और भी कहीं ज्यादा कर पाते। मनोज के डायलॉग्स ही मनोज की पहचान बनी। मनोज मुगल के (3/12)
आपको “दक्षिणपंथ” पता नहीं था, लेकिन उन्होंने कहा तुम दक्षिणपंथी हो, इसलिए आपने मान लिया कि आप दक्षिणपंथी हैं। वो कहने लगे तुम फासिस्ट हो, आप फासीवाद भी नहीं जानते लेकिन आपने मान लिया कि आप फासीवादी हैं। जब पोलैंड पर नाजी हमला कर रहे थे, तब कॉमरेड स्टालिन ही हिटलर के टैंको (1/13)
में तेल भरवा रहा था। लेकिन जब वो कहने लगे कि तुम नाज़ी गोएबेल्स के उपासक हो तो आपने उनके मित्रों को आपना दोस्त भी मान लिया।
अब उनका मित्र आपके घर आकर तो गुप्तचरों वाले काम ही करेगा न? इसमें आश्चर्य कैसा! सनातन की विचारधारा में गलत क्या होता है और सही क्या होता है ये आपने (2/13)
सचमुच कभी अपने ग्रंथों से खुद पढ़कर नहीं देखा है। अपने घर रखी रामचरितमानस या भगवद्गीता को भी पहले पन्ने से आखरी पन्ने तक खुद नहीं पढ़ा तो गलती तो आपकी ही हुई। कोई और उसका जो भी अर्थ समझा जाए वो मानने को ही नहीं, उसमें जो नहीं लिखा वो आपको पढ़ा देने की क्षमता तो आपने ही उठा (3/13)
हरि सिंह नलवा, आज भी सिखों के डर से पठान सलवार पहनते हैं जिसे पठानी सूट कहा जाता है, वास्तव में महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला सलवार कमीज है।
यह दिल्ली के हिंदी भवन में आचार्य धर्मेंद्र जी महाराज का भाषण था। (1/18)
बूढ़े सरदार जी का एक भाषण बिजली की तरह आवाज के साथ रोया, “हमारे पूर्वज हरि सिंह नलवा ने पठानों को सलवार पहना था। आज भी पठान सिखों के डर से सलवार पहनते हैं।” इस मामले पर मंच से खूब तालियां बटोरीं। भाषण बहुत अच्छा था, लेकिन मेरा मन इस कथन के ऐतिहासिक सत्य और प्रमाण की तलाश (2/18)
में गया।
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी वायरल हुआ था जिसमें बताया गया था कि हरि सिंह नलवा के डर से पठानों ने पंजाबी महिलाओं की सलवार पहननी शुरू कर दी थी। लेकिन इस पोस्ट में भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं दिया गया है। आखिरकार मैंने अपना शोध शुरू किया जिसमें (3/18)
इतिहास का महत्वपूर्ण पृष्ठ! अर्जुन का राजभवन है, भगवान श्रीकृष्ण पधारे हुए हैं, स्वागत के लिए सुभद्रा उपस्थित है, हाथों में जल पात्र लिए वासुदेव श्रीकृष्ण का पद प्रक्षालन करने के लिए। पूर्ण श्रद्धा एवं आदर से सुभद्रा भगवान श्रीकृष्ण को भोजन (1/36)
कराती है, और सेवा सुश्रुषा करती है। भगवान श्रीकृष्ण उसके निर्मल हृदय से प्रसन्न होकर कहते हैं, “सुभद्रा! तुम एक अत्यन्त तेजस्वी बालक की माता होने का गौरव प्राप्त करोगी। तुम्हारे गर्भ से जन्म लेने वाला बालक इतिहास में अपना नाम अंकित कर कुलगौरव को बढ़ाएगा।”
ऐसा कहकर भगवान (2/36)
श्रीकृष्ण ने अपना वरद हस्त सुभद्रा के सिर पर रख कर उसे आशीर्वाद दिया और प्रस्थान कर गए। समय बीता, बालक ने जन्म लिया, जन्म से ही वह शस्त्र विद्या एवं वेदादि ऋचाओं में पारंगत था, उसे कुछ भी सीखने में थोड़ा ही समय लगता था। उसके कौशल से सभी मुग्ध थे। काल का चक्र घूमा और (3/36)
इस देश को गांधी और नेहरू का रास्ता छोड़कर अंबेडकर के रास्ते पर लौटना ही होगा। लद्दाख में बैठा एक बौद्ध अध्यापक सोनम वांगचुक पूरे देश को एकजुटता का संदेश दे रहा है, लेकिन वहीं पर बैठा एक कांग्रेसी ज़ाकिर हुसैन अपनी ही मातृभूमि के 100 टुकड़े होने के सपने देख रहा है। बाबा (1/5)
साहेब अंबेडकर ने अपनी किताब 'Pakistan or partition of India' में लिखा है "भारत का बंटवारा हिंदू भारत और मुस्लिम पाकिस्तान के रूप में होना चाहिए।" उन्होंने पूछा है कि खतरा अगर पश्चिमी तरफ से आएगा तब क्या हमारे सरहदी पहरेदार उसे रोकेंगे? या पीछे हटकर उन्हें भारत तक आने की (2/5)
छूट देंगे? अंबेडकर की ये बातें भविष्यवाणी की तरह हैं जो 80 साल बाद सच हो रही हैं।
हज़ारों साल पुरानी एक बची-खुची सभ्यता के तौर पर यह सवाल हमारे अस्तित्व से जुड़ा है। इस सवाल का जवाब ढूँढा जाना ज़रूरी है। भारत में मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए बनाए गए सारे क़ानून ख़त्म (3/5)