कहते हैं कि जल से उनका जन्म हुआ था। कहा जाता है कि वे महाभारत काल में भी विद्यमान थे। उन्होंने हजारों वर्षों तक हिमालय में गुप्त रूप से रह कर तपस्या की थी। वे खाली हाथ में ना जाने कहां से मेवे और बताशे लाकर भक्तों को खिलाते (1/11)
थे। कहते हैं कि उन्होंने मां के गर्भ से नहीं, जल से जन्म लिया था। वे नहीं चाहते थे तो तस्वीरें नहीं खिंचाती थीं, पिस्तौल से गोली नहीं निकलती थी। वे कौन थे, कहां से आए यह कोई नहीं जानता। लोगों ने उनका नाम देवराहा बाबा रख दिया। कारण, वे उत्तर प्रदेश के देवरिया में सरयू नदी (2/11)
के किनारे एक मचान पर काफी दिनों तक रहे थे।
देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है। यहां तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है। वह यूपी के देवरिया जिले के रहने वाले थे। मंगलवार, 19 जून सन 1990 को योगिनी एकादशी के दिन उन्होंने अपने प्राण त्यागे थे। पूरे जीवन निर्वस्त्र रहने वाले (3/11)
बाबा हमेशा अपने मचान में रहते थे। नीचे वे सिर्फ स्नान करने आते थे। वे भगवान राम का अनन्य भक्त थे। भक्तों को वे हमेशा राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे। कहते थे...
एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम पहिचानो
राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो।
देवरहा बाबा (4/11)
जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि धर्म मानते थे तथा प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तों को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे।
(5/11)
पूज्य बाबा ने योग विद्या के जिज्ञासुओं को हठयोग की दसों मुद्राओं का प्रशिक्षण दिया। वे ध्यान योग, नाद योग, लय योग, प्राणायाम, त्राटक, ध्यान, धारणा, समाधि आदि की साधन पद्धतियों का जब विवेचन करते (6/11)
तो बड़े बड़े धर्माचार्य उनके योग सम्बंधी ज्ञान के समक्ष नतमस्तक हो जाते थे। बाबा ने भगवान श्रीकृष्ण की लीला भूमि वृन्दावन में यमुना तट पर स्थित मचान पर चार वर्ष तक साधना की। उन्होंने पूरे जीवन कुछ नहीं खाया। सिर्फ दूध और शहद पीकर जीते थे। श्रीफल का रस उन्हें बहुत पसंद (7/11)
था। श्रद्धालुओं के अुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे। प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे जबकि मचान पर (8/11)
ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी। श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहाँ से और कैसे आता है। खेचरी मुद्रा की सिद्धि के कारण वे कहीं भी चले जाते। कई लोगों ने उन्हें पानी पर चलते हुए भी देखा था। उनकी मचान के पास उगने वाले बबूल के पेड़ों में कांटे (9/11)
नहीं होते थे। चारों तरफ सुंगध ही सुंगध होती थी। उन्होंने कभी कोई सवारी नहीं ली।
लोगों का मानना है कि बाबा को सब पता रहता था कि कब, कौन, कहाँ उनके बारे में चर्चा हुई। वह अवतारी व्यक्ति थे। उनका जीवन बहुत सरल और सौम्य था। वह फोटो, कैमरे और टीवी जैसी चीजों को देख अचंभित रह (10/11)
जाते थे। वह उनसे अपनी फोटो लेने के लिए कहते थे, लेकिन आश्चर्य की बात यह थी कि उनका फोटो नहीं बनता था। वह नहीं चाहते तो रिवाल्वर से गोली नहीं चलती थी। उनका निर्जीव वस्तुओं पर नियंत्रण था।
मनोज मुंतशिर पर मेरा पक्ष आज भी वही है जो पहले था। आदिपुरुष टीजर रिलीज होते ही मनोज मुंतशिर का विरोध आरंभ हो गया था। यह कह कर कि मनोज मुंतशिर छूपे हुए वामपंथी हैं। मैंने अपना पक्ष लिखा था कि मनोज मुंतशिर वामपंथी ही पैदा हुए थे। मनोज अपनी कहानी (1/12)
बताते हैं कि पहली बार उन्होंने रेडियो पर मुंतशिर शब्द से कोई नाम सुना था। मुन्तशिर जैसे उर्दू शब्द केवल कर्णप्रिय लगने के कारण उन्होंने अपने शुक्ला आस्पद से प्रतिस्थापित कर दिया। वामपंथ को लेकर मनोज की प्रवृत्ति को समझना बस इतना भर से पर्याप्त है।
फिल्म जगत में मनोज का (2/12)
विकास उनके श्रम के बदौलत बिना किसी गॉडफादर के हुआ। मनोज अपनी प्रवृत्ति का वामपंथी विचारधारा को लेकर आगे बढ़ते तो ऐसा नहीं था कि उन्हें मंच नहीं मिलते। बल्कि वैसे मंच उनकी काबिलियत का इस्तेमाल और भी कहीं ज्यादा कर पाते। मनोज के डायलॉग्स ही मनोज की पहचान बनी। मनोज मुगल के (3/12)
आपको “दक्षिणपंथ” पता नहीं था, लेकिन उन्होंने कहा तुम दक्षिणपंथी हो, इसलिए आपने मान लिया कि आप दक्षिणपंथी हैं। वो कहने लगे तुम फासिस्ट हो, आप फासीवाद भी नहीं जानते लेकिन आपने मान लिया कि आप फासीवादी हैं। जब पोलैंड पर नाजी हमला कर रहे थे, तब कॉमरेड स्टालिन ही हिटलर के टैंको (1/13)
में तेल भरवा रहा था। लेकिन जब वो कहने लगे कि तुम नाज़ी गोएबेल्स के उपासक हो तो आपने उनके मित्रों को आपना दोस्त भी मान लिया।
अब उनका मित्र आपके घर आकर तो गुप्तचरों वाले काम ही करेगा न? इसमें आश्चर्य कैसा! सनातन की विचारधारा में गलत क्या होता है और सही क्या होता है ये आपने (2/13)
सचमुच कभी अपने ग्रंथों से खुद पढ़कर नहीं देखा है। अपने घर रखी रामचरितमानस या भगवद्गीता को भी पहले पन्ने से आखरी पन्ने तक खुद नहीं पढ़ा तो गलती तो आपकी ही हुई। कोई और उसका जो भी अर्थ समझा जाए वो मानने को ही नहीं, उसमें जो नहीं लिखा वो आपको पढ़ा देने की क्षमता तो आपने ही उठा (3/13)
हरि सिंह नलवा, आज भी सिखों के डर से पठान सलवार पहनते हैं जिसे पठानी सूट कहा जाता है, वास्तव में महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला सलवार कमीज है।
यह दिल्ली के हिंदी भवन में आचार्य धर्मेंद्र जी महाराज का भाषण था। (1/18)
बूढ़े सरदार जी का एक भाषण बिजली की तरह आवाज के साथ रोया, “हमारे पूर्वज हरि सिंह नलवा ने पठानों को सलवार पहना था। आज भी पठान सिखों के डर से सलवार पहनते हैं।” इस मामले पर मंच से खूब तालियां बटोरीं। भाषण बहुत अच्छा था, लेकिन मेरा मन इस कथन के ऐतिहासिक सत्य और प्रमाण की तलाश (2/18)
में गया।
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी वायरल हुआ था जिसमें बताया गया था कि हरि सिंह नलवा के डर से पठानों ने पंजाबी महिलाओं की सलवार पहननी शुरू कर दी थी। लेकिन इस पोस्ट में भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं दिया गया है। आखिरकार मैंने अपना शोध शुरू किया जिसमें (3/18)
इतिहास का महत्वपूर्ण पृष्ठ! अर्जुन का राजभवन है, भगवान श्रीकृष्ण पधारे हुए हैं, स्वागत के लिए सुभद्रा उपस्थित है, हाथों में जल पात्र लिए वासुदेव श्रीकृष्ण का पद प्रक्षालन करने के लिए। पूर्ण श्रद्धा एवं आदर से सुभद्रा भगवान श्रीकृष्ण को भोजन (1/36)
कराती है, और सेवा सुश्रुषा करती है। भगवान श्रीकृष्ण उसके निर्मल हृदय से प्रसन्न होकर कहते हैं, “सुभद्रा! तुम एक अत्यन्त तेजस्वी बालक की माता होने का गौरव प्राप्त करोगी। तुम्हारे गर्भ से जन्म लेने वाला बालक इतिहास में अपना नाम अंकित कर कुलगौरव को बढ़ाएगा।”
ऐसा कहकर भगवान (2/36)
श्रीकृष्ण ने अपना वरद हस्त सुभद्रा के सिर पर रख कर उसे आशीर्वाद दिया और प्रस्थान कर गए। समय बीता, बालक ने जन्म लिया, जन्म से ही वह शस्त्र विद्या एवं वेदादि ऋचाओं में पारंगत था, उसे कुछ भी सीखने में थोड़ा ही समय लगता था। उसके कौशल से सभी मुग्ध थे। काल का चक्र घूमा और (3/36)
इस देश को गांधी और नेहरू का रास्ता छोड़कर अंबेडकर के रास्ते पर लौटना ही होगा। लद्दाख में बैठा एक बौद्ध अध्यापक सोनम वांगचुक पूरे देश को एकजुटता का संदेश दे रहा है, लेकिन वहीं पर बैठा एक कांग्रेसी ज़ाकिर हुसैन अपनी ही मातृभूमि के 100 टुकड़े होने के सपने देख रहा है। बाबा (1/5)
साहेब अंबेडकर ने अपनी किताब 'Pakistan or partition of India' में लिखा है "भारत का बंटवारा हिंदू भारत और मुस्लिम पाकिस्तान के रूप में होना चाहिए।" उन्होंने पूछा है कि खतरा अगर पश्चिमी तरफ से आएगा तब क्या हमारे सरहदी पहरेदार उसे रोकेंगे? या पीछे हटकर उन्हें भारत तक आने की (2/5)
छूट देंगे? अंबेडकर की ये बातें भविष्यवाणी की तरह हैं जो 80 साल बाद सच हो रही हैं।
हज़ारों साल पुरानी एक बची-खुची सभ्यता के तौर पर यह सवाल हमारे अस्तित्व से जुड़ा है। इस सवाल का जवाब ढूँढा जाना ज़रूरी है। भारत में मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए बनाए गए सारे क़ानून ख़त्म (3/5)