हिंदुस्तान के मान के लिए पाकिस्तान की जमीन पर दौड़े नहीं, उड़े थे मिल्खा सिंह।
साल था 1960. भारत के महान धावक मिल्खा सिंह के पास पाकिस्तान से न्योता आया कि वह भारत पाकिस्तान एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भाग लें। टोक्यो एशियन गेम्स में उन्होंने वहां के सर्वश्रेष्ठ धावक (1/7)
अब्दुल ख़ालिक को फ़ोटो फ़िनिश में 200 मीटर की दौड़ में हराया था।
पाकिस्तानी चाहते थे कि अब दोनों का मुक़ाबला पाकिस्तान की ज़मीन पर हो। पाकिस्तान चाहता था कि अब्दुल खालिक अपने लोगों के बीच मिल्खा सिंह को हराएं। टोक्यो एशियाड की हार का बदला पाकिस्तान अपनी जमीन पर लेना (2/7)
चाहता था।
लेकिन मिल्खा ने पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया क्योंकि विभाजन के समय की कई कड़वी यादें उनके ज़हन में थीं। तब उनकी आंखों के सामने उनके पिता को क़त्ल कर दिया गया था। पाकिस्तान के शासक अयूब खान ने भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को फोन कर दबाव बनाया कि मिल्खा (3/7)
सिंह को दौड़ के लिए पाकिस्तान भेजा जाए। जवाहरलाल नेहरू ने हाँ भर दी। मिल्खा उनकी बात टाल न सके और पाकिस्तान जाने की हामी भर दी। मिल्खा ये ठानकर पाकिस्तान पहुंचे थे कि हिंदुस्तान के मान को ठेस नहीं पहुंचने देंगे।
लाहौर के स्टेडियम में जैसे ही स्टार्टर ने पिस्टल दागी, (4/7)
मिल्खा ने दौड़ना शुरू किया। दर्शक चिल्लाने लगे, पाकिस्तान ज़िंदाबाद... अब्दुल ख़ालिक ज़िंदाबाद...
ख़ालिक, मिल्खा से आगे था लेकिन 100 मीटर पूरा होने से पहले मिल्खा ने उन्हें पकड़ लिया था।
इसके बाद ख़ालिक धीमे पड़ते गए। मिल्खा ने जब टेप को छुआ तो वह ख़ालिक से करीब दस गज (5/7)
आगे थे और उनका समय था 20.7 सेकेंड। ये तब के विश्व रिकॉर्ड की बराबरी थी। जब दौड़ ख़त्म हुई तो ख़ालिक मैदान पर ही लेटकर रोने लगे।
मिल्खा उनके पास गए। उनकी पीठ थपथपाई और बोले, ''हार-जीत तो खेल का हिस्सा है। इसे दिल से नहीं लगाना चाहिए।''
दौड़ के बाद मिल्खा ने विक्ट्री लैप (6/7)
लगाया। मिल्खा को पदक देते समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति फ़ील्ड मार्शल अय्यूब खां ने कहा, ''मिल्खा आज तुम दौड़े नहीं, उड़े हो। मैं तुम्हें फ़्लाइंग सिख का ख़िताब देता हूं।''
उनकी पुनीत आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि। शत शत नमन।
मनोज मुंतशिर पर मेरा पक्ष आज भी वही है जो पहले था। आदिपुरुष टीजर रिलीज होते ही मनोज मुंतशिर का विरोध आरंभ हो गया था। यह कह कर कि मनोज मुंतशिर छूपे हुए वामपंथी हैं। मैंने अपना पक्ष लिखा था कि मनोज मुंतशिर वामपंथी ही पैदा हुए थे। मनोज अपनी कहानी (1/12)
बताते हैं कि पहली बार उन्होंने रेडियो पर मुंतशिर शब्द से कोई नाम सुना था। मुन्तशिर जैसे उर्दू शब्द केवल कर्णप्रिय लगने के कारण उन्होंने अपने शुक्ला आस्पद से प्रतिस्थापित कर दिया। वामपंथ को लेकर मनोज की प्रवृत्ति को समझना बस इतना भर से पर्याप्त है।
फिल्म जगत में मनोज का (2/12)
विकास उनके श्रम के बदौलत बिना किसी गॉडफादर के हुआ। मनोज अपनी प्रवृत्ति का वामपंथी विचारधारा को लेकर आगे बढ़ते तो ऐसा नहीं था कि उन्हें मंच नहीं मिलते। बल्कि वैसे मंच उनकी काबिलियत का इस्तेमाल और भी कहीं ज्यादा कर पाते। मनोज के डायलॉग्स ही मनोज की पहचान बनी। मनोज मुगल के (3/12)
आपको “दक्षिणपंथ” पता नहीं था, लेकिन उन्होंने कहा तुम दक्षिणपंथी हो, इसलिए आपने मान लिया कि आप दक्षिणपंथी हैं। वो कहने लगे तुम फासिस्ट हो, आप फासीवाद भी नहीं जानते लेकिन आपने मान लिया कि आप फासीवादी हैं। जब पोलैंड पर नाजी हमला कर रहे थे, तब कॉमरेड स्टालिन ही हिटलर के टैंको (1/13)
में तेल भरवा रहा था। लेकिन जब वो कहने लगे कि तुम नाज़ी गोएबेल्स के उपासक हो तो आपने उनके मित्रों को आपना दोस्त भी मान लिया।
अब उनका मित्र आपके घर आकर तो गुप्तचरों वाले काम ही करेगा न? इसमें आश्चर्य कैसा! सनातन की विचारधारा में गलत क्या होता है और सही क्या होता है ये आपने (2/13)
सचमुच कभी अपने ग्रंथों से खुद पढ़कर नहीं देखा है। अपने घर रखी रामचरितमानस या भगवद्गीता को भी पहले पन्ने से आखरी पन्ने तक खुद नहीं पढ़ा तो गलती तो आपकी ही हुई। कोई और उसका जो भी अर्थ समझा जाए वो मानने को ही नहीं, उसमें जो नहीं लिखा वो आपको पढ़ा देने की क्षमता तो आपने ही उठा (3/13)
हरि सिंह नलवा, आज भी सिखों के डर से पठान सलवार पहनते हैं जिसे पठानी सूट कहा जाता है, वास्तव में महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला सलवार कमीज है।
यह दिल्ली के हिंदी भवन में आचार्य धर्मेंद्र जी महाराज का भाषण था। (1/18)
बूढ़े सरदार जी का एक भाषण बिजली की तरह आवाज के साथ रोया, “हमारे पूर्वज हरि सिंह नलवा ने पठानों को सलवार पहना था। आज भी पठान सिखों के डर से सलवार पहनते हैं।” इस मामले पर मंच से खूब तालियां बटोरीं। भाषण बहुत अच्छा था, लेकिन मेरा मन इस कथन के ऐतिहासिक सत्य और प्रमाण की तलाश (2/18)
में गया।
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी वायरल हुआ था जिसमें बताया गया था कि हरि सिंह नलवा के डर से पठानों ने पंजाबी महिलाओं की सलवार पहननी शुरू कर दी थी। लेकिन इस पोस्ट में भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं दिया गया है। आखिरकार मैंने अपना शोध शुरू किया जिसमें (3/18)
इतिहास का महत्वपूर्ण पृष्ठ! अर्जुन का राजभवन है, भगवान श्रीकृष्ण पधारे हुए हैं, स्वागत के लिए सुभद्रा उपस्थित है, हाथों में जल पात्र लिए वासुदेव श्रीकृष्ण का पद प्रक्षालन करने के लिए। पूर्ण श्रद्धा एवं आदर से सुभद्रा भगवान श्रीकृष्ण को भोजन (1/36)
कराती है, और सेवा सुश्रुषा करती है। भगवान श्रीकृष्ण उसके निर्मल हृदय से प्रसन्न होकर कहते हैं, “सुभद्रा! तुम एक अत्यन्त तेजस्वी बालक की माता होने का गौरव प्राप्त करोगी। तुम्हारे गर्भ से जन्म लेने वाला बालक इतिहास में अपना नाम अंकित कर कुलगौरव को बढ़ाएगा।”
ऐसा कहकर भगवान (2/36)
श्रीकृष्ण ने अपना वरद हस्त सुभद्रा के सिर पर रख कर उसे आशीर्वाद दिया और प्रस्थान कर गए। समय बीता, बालक ने जन्म लिया, जन्म से ही वह शस्त्र विद्या एवं वेदादि ऋचाओं में पारंगत था, उसे कुछ भी सीखने में थोड़ा ही समय लगता था। उसके कौशल से सभी मुग्ध थे। काल का चक्र घूमा और (3/36)
इस देश को गांधी और नेहरू का रास्ता छोड़कर अंबेडकर के रास्ते पर लौटना ही होगा। लद्दाख में बैठा एक बौद्ध अध्यापक सोनम वांगचुक पूरे देश को एकजुटता का संदेश दे रहा है, लेकिन वहीं पर बैठा एक कांग्रेसी ज़ाकिर हुसैन अपनी ही मातृभूमि के 100 टुकड़े होने के सपने देख रहा है। बाबा (1/5)
साहेब अंबेडकर ने अपनी किताब 'Pakistan or partition of India' में लिखा है "भारत का बंटवारा हिंदू भारत और मुस्लिम पाकिस्तान के रूप में होना चाहिए।" उन्होंने पूछा है कि खतरा अगर पश्चिमी तरफ से आएगा तब क्या हमारे सरहदी पहरेदार उसे रोकेंगे? या पीछे हटकर उन्हें भारत तक आने की (2/5)
छूट देंगे? अंबेडकर की ये बातें भविष्यवाणी की तरह हैं जो 80 साल बाद सच हो रही हैं।
हज़ारों साल पुरानी एक बची-खुची सभ्यता के तौर पर यह सवाल हमारे अस्तित्व से जुड़ा है। इस सवाल का जवाब ढूँढा जाना ज़रूरी है। भारत में मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए बनाए गए सारे क़ानून ख़त्म (3/5)