"गीता प्रेस" को ख़ुद "गांधी शांति पुरस्कार" लेने से मना' कर देना चाहिए..यही तथाकथित सनातनी रिवायत भी है..
गीता प्रेस के संस्थापक हनुमान पोद्दार और जयदयाल गोयनका गांधी हत्या में गिरिफ़्तार हुए थे बात यहाँ ख़त्म नही होती
जब ये दोनों गिरिफ़्तार हुए तब स्वर्गीय जी डी बिड़लाजी से मदद मांगी गई..बिड़लाजी ने कहा था कि ये दोनों "सनातन धर्म" के नही बल्कि "शैतानी धर्म" वाले है..बिड़लाजी से बेहतर इनदोनों को कौन जानता था..
गीता प्रेस ने कभी गांधी हत्या की मुख़ालिफ़त नहीं की, कभी किसी दंगे के ख़िलाफ़ नही बोला..गीता प्रेस का डीएनए गांधी के ख़िलाफ़ नफ़रत है..
"कल्याण पत्रिका" में मुसलमान, 'ईसाई और दलितों के ख़िलाफ़ लगातार लिखा गया..वो सारे प्रकाशन/शा'ए आज भी आप पढ़ सकते है..
किसी भी मज़हबी किताब को छापने से कोई शांति/अम्न के हक़ में नही बन जाता..किताब छापना और शांति दोनों अलग मुद्द'ए है..और गीता प्रेस को शांति से कोई मतलब नहीं है..
एक आख़िरी बात : गांधी हत्या में शामिल हर शख़्स को गांधी से वैधता/जवाज़ की क्या ज़रुरत है? गांधी से नफ़रत कीजिए, आलोचना/तनक़ीद कीजिए, गाली दीजिए..अपने अस्ल चेहरे के साथ रहिए..अब तो समझ आ गया होगा कि गांधी को मारना नामुमकिन है.. #कृष्णनअय्यर कृष्णन अय्यर काँग्रेस पेज
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गोलचा सिनेमा पर पांच आना क्लास की टिकट हासिल करने का तरीका था कि दर्शक वहां पर साइकलपर पहुंचता और बुकिंग आफिस की जगह सीधा सिनेमा के साइकल स्टैण्ड पर पहुंचता और साइकल के बदले में पांच आना क्लास का टिकट हासिल करता । यानी साइकल स्टैण्ड के कान्ट्रेक्टर का हर शो की पांच आना
क्लास की टिकट कर एक कोटा निर्धारित था जिस का इस्तेमाल वो अपना धन्धा चमकाने के लिये करता था ।
रिट्ज़ पर ब्लैक छुप कर नहीं होती थी, शरेआम होती थी । सिनेमा के ऐन बाहर ही मुट्ठी में टिकटें और नोट सम्भाले ब्लैकिया खड़ा होता था और खुल्ली ब्लैक करता था ।
वहां सब से ज्यादा डिमांड बाक्स की टिकट की होती थी क्योंकि रिट्ज़ राजधानी के दुर्लभ सिनेमाओं में था जिन में कि बॉक्स थे । करीब ही दिल्ली यूनीवर्सिटी होने की वजह से नून और मौटिनी शो में विद्यार्थीगण उमड़ के पड़ते थे और तनहाई तलाशते सब को बॉक्स की टिकट दरकार होती थी ।
एक अंधा लड़का एक इमारत की सीढ़ियों पर बैठा था। उसके पैरों के पास एक टोपी रखी थी। पास ही एक बोर्ड रखा था, जिस पर लिखा था, "मैं अंधा हूँ कृप्या मेरी मदद करें" टोपी में केवल कुछ सिक्के थे।
वहां से गुजरता एक आदमी यह देख कर रुका, उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाले और
टोपी में गिरा दिये। फिर उसने उस बोर्ड को पलट कर कुछ शब्द लिखे और वहां से चला गया। उसने बोर्ड को पलट दिया था जिससे कि लोग वह पढ़ें जो उसने लिखा था।
जल्द ही टोपी को भरनी शुरू हो गई। अधिक से अधिक लोग अब उस अंधे लड़के को पैसे दे रहे थे। दोपहर को बोर्ड बदलने वाला आदमी फिर वहां आया।
वह यह देखने के लिए आया था उसके शब्दों का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा ? अंधे लड़के ने उसके क़दमों की आहट पहचान ली और पूछा, "आप सुबह मेरे बोर्ड को बदल कर गए थे ? आपने बोर्ड पर क्या लिखा था?"
उस आदमी ने कहा मैंने केवल सत्य लिखा था, मैंने तुम्हारी बात को एक अलग तरीके से लिखा,
आपने किसी जानवर, चिड़िया को कभी योगा करते देखा है? कभी किसी रिक्शा चालक, खेत मजदूर को योगा करते देखा है? हमने तो नही देखा है. तब ये भरे पेट , ए.सी. गाड़ी में चलने वाले , हवाई जहाज मे सफ़र करने वाले लोग क्यूं योगा करते हैं और अनपढ़ जो कभी बिना चप्पल के सायकिल पर
गांव गांव सामान ढोता था रामदेव आज योगा गुरू बन गया है ?मेरी बात यहां बहुतों को बुरी लग सकती है क्यूंकि यहां उनकी संख्या ज्यादा है जो श्रम विहिन संपत्ति पर राज भोग रहे हैं, रामदेव जैसा लंपट योगा का ब्रांड एंबेस्डर बनकर पतंजलि के नाम को बेंच कर शहद में चीनी, घी में चर्बी मिलाकर ,
आयुर्वेद के नाम पर दवा में मिलावट करके पूरे देश को लूट रहा है, सत्ता की चेरी बनकर व्यापार कर रहा है. योगा ऐर जिम हर खाते पीते घरों के नवजवानो का फैशन बन गया है, कारपोरेट इसको धंधा बनाकर मशीने लांच कर प्रचार करके लूट रहे हैं .....योगा दिवस का मतलब सिर्फ लूटना है,
यह न भूलें कि मणिपुर में 60 हजार लोग (भारतीय) बेघर, जंगलों में छिपे हैं।
135 लोग मार दिए गए। 250 से ज्यादा चर्च जला दिए गए। 4500 सरकारी हथियार लूटे गए।
भारत के प्रधानमंत्री अमेरिका भाग गए।
उधर, अदानी के खरीदे हुए एनडीटीवी ने दावा किया है कि सुप्रीम कोर्ट ने मोडानी को क्लीन चिट दे दी है। यह झूठ है।
मोडानी रिपोर्ट का चौथा अध्याय कहता है–2020 के बाद अदानी सेठ की कंपनियों में बेहिसाब पैसा लगा।
सेबी ने 2018 और 2019 में एफपीआई और LODR नियमों में बदलाव कर इसके लिए रास्ता खोला। 2018 से 2022 तक संदिग्ध खातों से अदानी को पैसा मिलने के 849 अलर्ट किए गए। सेबी धृतराष्ट्र बना रहा।
जनाब खाकी राम बड़े बूटों का पद्यात्मक आदेश लाया है जी, समझ नहीं आता कविता में आदेश है की हमारी आराम-तलबी से विद्वेष, तो आदेश कुछ यूँ है जी, और पता नहीं क्यों है जी,
सभी थानाध्यक्षों, प्रभारियों और उनके मातहत, जवानों और कर्मचारियों को, सूचित किया जाता है,
आगामी पदोन्नतियों में, किसी भी प्रकार की उन्नतियों में, कमर के आकार को विशेषाधिकार होगा, आतंरिक सर्वे में , हर चौक,चौराहे और दड़बे में, अधिकांश पुलिस बल की, उन्नतांश या नाभि तल की, "परिधि" या यूँ कहिये कमर की "समृद्धि", बयालीस पाई गई है, जिसे जैसे भी और कैसे भी,
ज़रा जल्द से जल्द हो जी, फिर चाहे किसी के भी वल्द हों जी, बत्तीस पर लाना होगा,
तो ही कमाई वाला थाना होगा, तो ही फागुन में गाना होगा, तो ही गाड़ियों में तेल होगा, तो ही लॉकअप में खुल्ला खेल होगा, तो ही बुलाकियों पर धौंस होगी, तो ही जेबों में खौंस होगी, तो ही सांसी संग सांस होगी,
मणिपुर जल चुका है , जो बचा है , वह सुलग रहा है , उसके राख की चिनगारी कहाँ तक उड़ कर जायगी , जो थोड़े से भी सजग और सचेत हैं , वे इसे जानते हैं । मणिपुर पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में एक प्रमुख राज्य है । हम अपने देश को कितना जानते हैं इसे अरुणांचल प्रदेश की दो
महिला प्रोफ़ेसर अपने अलग अलग बयानों में व्यक्त कर रही हैं । क्या “ हम “ इनकी बेदना , तकलीफ़ और कसक को समझेंगे ?
एक दिन अचानक हमे जमुना बिनी Jamuna Bini ( प्रोफ़ेसर राजीव गाँधी यूनिवर्सिटी , अरुणाचल प्रदेश ) की एक कविता मिली । बिनी जी ने सीधे “ हिन्दी “ से सवाल पूछा है -
कितना जानते हो , हमे ? हमारी संस्कृति को , भाषा को , रवायत को , हमारे इतिहास को ? नहीं जानते , लेकिन हम सब जानते हैं , भगत सिंह , गाँधी , नेहरू सब को । ( ये भाव बिनी जी के हैं और भाषा हमारी थोड़ी बदली है । ) लगा कि सार्वजनिक जगह पर बेइज्जत हो रहा हूँ ।