हरि सिंह नलवा, आज भी सिखों के डर से पठान सलवार पहनते हैं जिसे पठानी सूट कहा जाता है, वास्तव में महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला सलवार कमीज है।
यह दिल्ली के हिंदी भवन में आचार्य धर्मेंद्र जी महाराज का भाषण था। (1/18)
बूढ़े सरदार जी का एक भाषण बिजली की तरह आवाज के साथ रोया, “हमारे पूर्वज हरि सिंह नलवा ने पठानों को सलवार पहना था। आज भी पठान सिखों के डर से सलवार पहनते हैं।” इस मामले पर मंच से खूब तालियां बटोरीं। भाषण बहुत अच्छा था, लेकिन मेरा मन इस कथन के ऐतिहासिक सत्य और प्रमाण की तलाश (2/18)
में गया।
पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी वायरल हुआ था जिसमें बताया गया था कि हरि सिंह नलवा के डर से पठानों ने पंजाबी महिलाओं की सलवार पहननी शुरू कर दी थी। लेकिन इस पोस्ट में भी कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं दिया गया है। आखिरकार मैंने अपना शोध शुरू किया जिसमें (3/18)
मुझे इस संबंध में कई महत्वपूर्ण तथ्य मिले हैं।
आज से दस साल पहले, तहरीके तालिबान पाकिस्तान, पठानों के प्रभाव से एक आतंकवादी संगठन, ने खैबर पख्तूनवान, पेशावर, फाटा के पाकिस्तानी क्षेत्रों में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। तब इस आतंकी संगठन ने सभी पठानों के लिए एक (4/18)
ड्रेस कोड लागू किया था... और वह ड्रेस कोड था कि सभी पठानों को पठानी सूट पहनना होता है... यानी सलवार कमीज... उस समय पाकिस्तान की स्वात रियासत का ताज। प्रिंस... पूर्व पाकिस्तानी तानाशाह अयूब खान के दामाद... पाकिस्तान के पूर्व सांसद और बलूचिस्तान के पूर्व गवर्नर मियांगुल (5/18)
औरंगजेब ने एक बहुत ही मशहूर बयान दिया था।
मियांगुल औरंगजेब ने तालिबानी ड्रेस कोड की निंदा की थी और कहा था कि तालिबान को अपने इतिहास के बारे में कोई जानकारी नहीं है, वास्तव में तालिबान जो ड्रेस कोड लागू कर रहा है वह पठानों का सही ड्रेस कोड नहीं है... यह ड्रेस कोड सलवार (6/18)
है। कमीज हरि सिंह नलवा की तलवार के डर से पठान पुरुषों ने पहनी थी... और स्वेच्छा से नहीं। उस समय मियांगुल औरंगजेब के बयान ने पाकिस्तान के कथित मर्दे मोमिन की भावनाओं को गहरा ठेस पहुंचाई थी क्योंकि मियांगुल औरंगजेब ने ऐतिहासिक सच्चाई बताई थी।
दरअसल, मियांगुल औरंगजेब तालिबान (7/18)
को आईना दिखाना चाहता था, लेकिन इस आईने को दिखाने के चक्कर में पाकिस्तान का पूरा इस्लामिक देश नंगा हो गया और यह सार्वजनिक हो गया कि मुसलमान पठानी सूट के रूप में क्या पहनते हैं, वास्तव में वे इससे डरते हैं हरि सिंह नलवा की तलवार। सलवार कमीज पहनी जाती है... जो पंजाबी (8/18)
महिलाओं द्वारा पहली बार पहनी जाती है। हरि सिंह नलवा से भयभीत होने से पहले, पठान मुसलमान धोती या लुंगी पहनते थे जिसे विशेष रूप से बांधा जाता था।
पश्तून नेता मियांगुल औरंगजेब ने क्या दिया था सटीक बयान...
“महाराजा रणजीत सिंह की सेना 1820 में हरि सिंह नलवा के नेतृत्व में (9/18)
सीमा पर आ गई... हरि सिंह नलवा की सेना ने हमारे पूर्वजों को बहुत आसानी से जीत लिया। पूरे लिखित इतिहास में यह एकमात्र समय है जब हम पर विदेशियों का शासन लागू हुआ और हम गुलाम हो गए। सिख सेना से पठान इतने भयभीत थे कि बाजार में सिखों को देखकर छिप जाते थे, जो कोई भी सिखों का (10/18)
विरोध करता था, उसे बेरहमी से कुचल दिया जाता था। उस समय यह बहुत लोकप्रिय हो गया था कि सिख नहीं करते थे तीन लोगों की जान ले लो... पहली महिला... दूसरे बच्चे और तीसरे बड़े। इसके बाद पठानों ने पंजाबी महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली सलवार कमीज पहनना शुरू कर दिया यानि एक ऐसा समय (11/18)
आया जब महिला और पुरुष एक जैसे कपड़े पहनने लगे। इसके बाद सिखों ने उन पठानों को मारने से भी परहेज किया जिन्होंने महिलाओं की सलवार पहनी थी। दरअसल, पठानों की सलवार पहनना सिख सेना के सामने पठानों का आत्मसमर्पण था। और आत्मसमर्पण करने वाले पारसी कभी भी हमला नहीं करते।”
मियां (12/18)
गुल औरंगजेब का बयान शाब्दिक रूप से (मियां गुल पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और तानाशाह अयूब खान के दामाद और बलूचिस्तान के पूर्व गवर्नर थे।
मुझे जो बयान मिला वह मियांगुल औरंगजेब का बयान था... यह बयान पाकिस्तान की कई वेबसाइटों पर भी प्रकाशित हुआ था। आज भी यह बयान (13/18)
Defence. pk नाम की वेबसाइट पर मौजूद है... (अब मुझसे मत पूछो भाई लोग… आप खुद इंटरनेट पर सर्च कर पाएंगे)। पाकिस्तान की जनता के विरोध के बावजूद इस वेबसाइट ने मियां गुल औरंगजेब का यह बयान दिया है। बयान नहीं हटाया गया। क्योंकि इस पाकिस्तानी वेबसाइट का मानना है कि जब तक (14/18)
पाकिस्तानी मुसलमानों को अपनी कायरता का पता नहीं चलेगा, वे झूठी डींगें मारते रहेंगे और हमेशा भारत से हारेंगे।
इसके अलावा इस घटना के प्रमाण दो पुस्तकों में भी मिलते हैं। उल्लेखित है। इस पुस्तक के पृष्ठ संख्या 264 पर यह भी लिखा है कि हरि सिंह नलवा ने पठानों से कर मांगा था। (15/18)
फिर पठानों ने देखा कि हरि सिंह नलवा क्या करेंगे? टैक्स देने से मना कर दिया। गुस्से में हरि सिंह नलवा ने म्यान से अपनी तलवार निकाल ली... तब पठान घुटनों के बल बैठ गए और माफी मांगते हुए कहा कि वे कर देंगे। लेकिन हरि सिंह नलवा ने अपनी तलवार म्यान में नहीं रखी और कहा कि मेरी (16/18)
तलवार म्यान से निकली है, अब मैं अपना काम किए बिना नहीं लौटूंगा... मुझे पांच पठानों के सिर चाहिए। तब पठानों ने हरि सिंह नलवा को पांच बकरे काटने और तलवार से उनकी खून की प्यास बुझाने के लिए काफी मिन्नतें करने के बाद उन्हें दे दिया। यह थे हरि सिंह नलवा के रौला... हरि सिंह (17/18)
नलवा ने उन पठानों को याद दिलाया, जिन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ सेनानियों में से एक माना जाता है।
अम्बेडकर के बारे में फैलाये गये मिथक और उनकी सच्चाई?
1 मिथक: अंबेडकर बहुत मेधावी थे।
सच्चाई: अंबेडकर ने अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रीयाँ तीसरी श्रेणी में पास की।
2 मिथक: अंबेडकर बहुत गरीब थे!
सच्चाई: जिस जमानें में लोग फोटो नहीं खींचा पाते थे उस जमानें में अंबेडकर की (1/13)
बचपन की बहुत सी फोटो है, वह भी कोट पैंट और टाई में!
3 मिथक: अंबेडकर ने शूद्रों को पढ़ने का अधिकार दिया!
सच्चाई: अंबेडकर के पिता जी खुद उस ज़माने में आर्मी में सूबेदार मेजर थे! इसके अलावा संविधान बनाने वाली संविधान सभा में 26SC और 33ST के सदस्य शामिल थे!
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4 मिथक: अंबेडकर को पढ़नें नहीं दिया गया।
सच्चाई: उस जमानें में अंबेडकर को गुजरात बडोदरा के क्षत्रिय राजा सियाजी गायकवाड़ नें स्कॉलरशिप दी और विदेश पढ़ने तक भेजा और ब्राह्मण गुरु जी ने अपना नाम अंबेडकर दिया।
5 मिथक: अंबेडकर नें नारियों को पढ़ने का अधिकार दिया!
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वाराणसी की गलियों में एक दिगम्बर योगी घूमता रहता है। गृहस्थ लोग उसके नग्न वेश पर आपत्ति करते हैं फिर भी पुलिस उसे पकड़ती नहीं। वाराणसी पुलिस की इस तरह की तीव्र आलोचनाएं हो रही थीं। आखिर वारंट निकालकर उस नंगे घूमने वाले साधू को जेल में (1/23)
बंद करने का आदेश दिया गया।
पुलिस के आठ दस जवानों ने पता लगाया, मालूम हुआ वह योगी इस समय मणिकर्णिका घाट पर बैठा हुआ है। जेष्ठ की चिलचिलाती दोपहरी जब कि घर से बाहर निकलना भी कठिन होता है एक योगी को मणिकर्णिका घाट के एक जलते तवे की भाँति गर्म पत्थर पर बैठे देख पुलिस पहले तो (2/23)
सकपकायी पर आखिर पकड़ना तो था ही वे आगे बढ़े। योगी पुलिस वालों को देखकर ऐसे मुस्करा रहा था मानों वह उनकी सारी चाल समझ रहा हो। साथ ही वह कुछ इस प्रकार निश्चिन्त बैठे हुये थे मानों वह वाराणसी के ब्रह्मा हों किसी से भी उन्हें भय न हो। मामूली कानूनी अधिकार पाकर पुलिस का दरोगा (3/23)
झांसी के अंतिम संघर्ष में महारानी की पीठ पर बंधा उनका बेटा दामोदर राव (असली नाम आनंद राव) सबको याद है। रानी की चिता जल जाने के बाद उस बेटे का क्या हुआ, वो कोई कहानी का किरदार भर नहीं था, 1857 के विद्रोह की सबसे महत्वपूर्ण कहानी को जीने वाला राजकुमार था, जिसने उसी गुलाम (1/23)
भारत में जिंदगी काटी, जहां उसे भुला कर उसकी मां के नाम की कसमें खाई जा रही थी।
अंग्रेजों ने दामोदर राव को कभी झांसी का वारिस नहीं माना था, सो उसे सरकारी दस्तावेजों में कोई जगह नहीं मिली थी। ज्यादातर हिंदुस्तानियों ने सुभद्रा कुमारी चौहान के कुछ सही, कुछ गलत आलंकारिक वर्णन (2/23)
को ही इतिहास मानकर इतिश्री कर ली।
1959 में छपी वाई एन केलकर की मराठी किताब ‘इतिहासाच्य सहली’ (इतिहास की सैर) में दामोदर राव का इकलौता वर्णन छपा। महारानी की मृत्यु के बाद दामोदार राव ने एक तरह से अभिशप्त जीवन जिया। उनकी इस बदहाली के जिम्मेदार सिर्फ फिरंगी ही नहीं (3/23)
यह रथ-यात्रा की यह प्रथा सत्ययुग से चली आ रही है। रथ यात्रा का प्रसङ्ग स्कन्दपुराण, पद्मपुराण, पुरुषोत्तम माहात्म्य, जगन्नाथजीकी डायरी और श्रीसनातन गोस्वामी द्वारा रचित श्रीबृहद्भागवतामृत तथा हमारे अन्य गोस्वामियों के ग्रन्थों में (1/6)
वर्णित हुआ है।
इस रथ यात्रा का उद्देश्य यह है कि वे लोग जो सम्पूर्ण वर्ष भर में मन्दिर में प्रवेश नहीं पा सकते हैं उन्हें भगवान् के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो। यह तो रथ यात्रा का बाह्य कारण है किन्तु इसके गूढ़ रहस्य को श्रीचैतन्य महाप्रभु ने प्रकटित किया है।
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श्रीजगन्नाथ मन्दिर द्वार का सदृश है और गुण्डिचा मन्दिर वृन्दावन का प्रतीक है। श्रीकृष्ण जन्म से लेकर ग्यारह वर्ष तक व्रज में रहे और वहाँ उन्होंने अपनी मधुरातिमधुर लीलाओं के द्वारा व्रजवासियों को आनन्द प्रदान किया। इसके पश्चात् वे अक्रूरजी के साथ मथुरा चले गये और वहाँ (3/6)
को रट रट कर कुछ अतिवादी हिंदू मोदी को पानी पी पीकर कोसते रहते थे। अब जब मिनिस्ट्री ने इसके बारे में भारतीयों की राय जानने के लिए ईमेल करने को कहा तो इन भाई साहिब को इसके बारे में कुछ पता ही नहीं था। अभी हाल ही में मेरी (1/5)
मोदी की प्रशंसा में लिखी गई किसी पोस्ट पर कमेंट बॉक्स में इन्होंने लिखा था कि मोदी जी यूनिफॉर्म सिविल कोड क्यों नहीं ला रहे? इसको लाने में इतनी देर क्यों कर रहे हैं? अब जब सरकार आम जनता को अपनी राय देने के लिए कह रही है तो इन साहिब को पता ही नहीं कि सरकार इस तरह का कोई (2/5)
प्रयास भी कर रही है। मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने अपनी राय ईमेल कर दी तो बोले अरे यार मुझे तो पता ही नहीं था। मुझे किसी ने बताया थोड़ी ना था मुझे कैसे पता चलता कि ईमेल करनी है और फिर मुझको तो ईमेल करनी भी नहीं आती।
मैंने कहा अपने बच्चों को कह दो। तो बोले अरे यार वह (3/5)