आपको “दक्षिणपंथ” पता नहीं था, लेकिन उन्होंने कहा तुम दक्षिणपंथी हो, इसलिए आपने मान लिया कि आप दक्षिणपंथी हैं। वो कहने लगे तुम फासिस्ट हो, आप फासीवाद भी नहीं जानते लेकिन आपने मान लिया कि आप फासीवादी हैं। जब पोलैंड पर नाजी हमला कर रहे थे, तब कॉमरेड स्टालिन ही हिटलर के टैंको (1/13)
में तेल भरवा रहा था। लेकिन जब वो कहने लगे कि तुम नाज़ी गोएबेल्स के उपासक हो तो आपने उनके मित्रों को आपना दोस्त भी मान लिया।
अब उनका मित्र आपके घर आकर तो गुप्तचरों वाले काम ही करेगा न? इसमें आश्चर्य कैसा! सनातन की विचारधारा में गलत क्या होता है और सही क्या होता है ये आपने (2/13)
सचमुच कभी अपने ग्रंथों से खुद पढ़कर नहीं देखा है। अपने घर रखी रामचरितमानस या भगवद्गीता को भी पहले पन्ने से आखरी पन्ने तक खुद नहीं पढ़ा तो गलती तो आपकी ही हुई। कोई और उसका जो भी अर्थ समझा जाए वो मानने को ही नहीं, उसमें जो नहीं लिखा वो आपको पढ़ा देने की क्षमता तो आपने ही उठा (3/13)
कर उन्हें दी है।
सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण तीनों ही सनातनी सिद्धांतों में गुण के रूप में लिखे जाते हैं। रजोगुण होगा तो पैसे, सफलता, मकान जैसी चीज़ों की चाहत होगी। सतोगुण ज्यादा हो जाए तो अपना नुकसान करके भी दूसरों का भला करते रहेंगे। तमोगुण आपको मांसाहार, क्रोध, हिंसा जैसी (4/13)
प्रेरणाएँ देता है। इनमें से कोई भी सौ प्रतिशत प्रतिबंधित कभी नहीं था, न है। ये तीनों गुण हैं और कम ज्यादा मात्रा में हर मनुष्य में होंगे ही। सनातन सिद्धांत आपको सिर्फ अति से रोकते हैं।
किसी की जान बचाने के लिए झूठ बोलना पड़े तो तमोगुण इस्तेमाल होगा ही, लेकिन सतोगुण इतना (5/13)
बढ़ जाए कि किसी की रक्षा के लिए भी आप असत्य न कह पायें, तो सतोगुण भी नुकसान ही करेगा। इससे सम्बंधित एक कौशिक नाम के सन्यासी की कहानी महाभारत के कर्ण पर्व में श्री कृष्ण ही सुनाते हुए पाए जाते हैं। तमोगुण इतना बुरा होता तो महाभारत में व्याध गीता भी नहीं होती। रजोगुण की अति (6/13)
में आप पड़ोसी का मकान हड़पने की सोचने लगेंगे। सनातन ऐसी अतियों को प्रतिबंधित करता है।
यहाँ किसी चीज़ को सीधा वर्जित नहीं कहा जाता, अति से रोका जाता है। यहाँ काम प्रतिबंधित नहीं है, लेकिन उसकी अति करते हुए समलैंगिता पर बढ़ जायेंगे तो हिन्दुओं की रीति से विवाह तो प्रतिबंधित (7/13)
रहेगा। हाँ संपत्ति और दूसरे विवादों के लिए आप मौजूदा कानूनों का सहारा लें तो दूसरे मजहबों या रिलिजन जैसा आपका गला रेता नहीं जाना चाहिए। मांसाहार भी खाने वाले का निजी निर्णय है, लेकिन अति करते हुए कोई कुत्ता या ऐसे जीव खाने लगे तो उसके घर, या उस व्यक्ति के बर्तनों में खाने (8/13)
से मना करने का मेरा अधिकार तो मेरे पास सुरक्षित है।
विचारधारा जैसे मामलों में भी यही सनातनी सिद्धांत चलता है। तमोगुण या रजोगुण की अति आपको राक्षस बना देगी। हमारे पास कोई ईसाइयों जैसा अलग से शैतान नहीं होता। क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसी चीज़ों के बढ़ने पर कोई भी राक्षस हो (9/13)
सकता है। हिटलर का एक मजदूर समाजवादी पार्टी बनाना और तथाकथित समाजवादी या साम्यवादी सिद्धांतों के तहत अपने लिए यहूदियों को “वर्गशत्रु” मान लेना ऐसी ही अति थी। उसकी पार्टी का पूरा नाम लेने के बदले उसे सिर्फ “नाज़ी” कहने के पीछे वो स्वयं ही कारण है। हिटलर के दुष्प्रचार (10/13)
तंत्र के कर्ता-धर्ता गोएबेल्स के पुराने मित्रों ने गोएबेल्स से काफी कुछ सीखा।
“नेमकॉल्लिंग” उनमें से एक है। किसी का नामकरण “भक्त” कर देना, किसी को “ट्रोल” कहना, नित नयी गालियाँ इजाद करते जाना ही नेमकॉल्लिंग नहीं है। इसमें असली मकसद को छुपाने के लिए किसी के राजनैतिक दल (11/13)
से “समाजवादी” गायब करके उसे “नाज़ी” कहने लगना भी शामिल होगा। नेमकॉल्लिंग के एक प्रयोग से जहाँ बेइज्जती होती है, दूसरे से भी चरित्र पर आवरण चढ़ जाता है। ऐसा करने के लिए बरसों नकाब में छुपे रहने के गुण चाहिए, लगातार एक ही शब्द दोहराने की, एक ही दिशा से लम्बे समय तक हमला (12/13)
करने की क्षमता भी चाहिए।
बाकी अति प्रतिबंधित है ये ज्यादातर भारतीय लोगों ने पढ़ा ही नहीं, क्योंकि उन्हें पढ़ना नहीं आता था। थोड़ी अलंकृत भाषा में उन्हें हिटलर हो जाने कहिये तो भी क्या? वो आरोप को सम्मान समझ ही लेंगे!
अम्बेडकर के बारे में फैलाये गये मिथक और उनकी सच्चाई?
1 मिथक: अंबेडकर बहुत मेधावी थे।
सच्चाई: अंबेडकर ने अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रीयाँ तीसरी श्रेणी में पास की।
2 मिथक: अंबेडकर बहुत गरीब थे!
सच्चाई: जिस जमानें में लोग फोटो नहीं खींचा पाते थे उस जमानें में अंबेडकर की (1/13)
बचपन की बहुत सी फोटो है, वह भी कोट पैंट और टाई में!
3 मिथक: अंबेडकर ने शूद्रों को पढ़ने का अधिकार दिया!
सच्चाई: अंबेडकर के पिता जी खुद उस ज़माने में आर्मी में सूबेदार मेजर थे! इसके अलावा संविधान बनाने वाली संविधान सभा में 26SC और 33ST के सदस्य शामिल थे!
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4 मिथक: अंबेडकर को पढ़नें नहीं दिया गया।
सच्चाई: उस जमानें में अंबेडकर को गुजरात बडोदरा के क्षत्रिय राजा सियाजी गायकवाड़ नें स्कॉलरशिप दी और विदेश पढ़ने तक भेजा और ब्राह्मण गुरु जी ने अपना नाम अंबेडकर दिया।
5 मिथक: अंबेडकर नें नारियों को पढ़ने का अधिकार दिया!
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वाराणसी की गलियों में एक दिगम्बर योगी घूमता रहता है। गृहस्थ लोग उसके नग्न वेश पर आपत्ति करते हैं फिर भी पुलिस उसे पकड़ती नहीं। वाराणसी पुलिस की इस तरह की तीव्र आलोचनाएं हो रही थीं। आखिर वारंट निकालकर उस नंगे घूमने वाले साधू को जेल में (1/23)
बंद करने का आदेश दिया गया।
पुलिस के आठ दस जवानों ने पता लगाया, मालूम हुआ वह योगी इस समय मणिकर्णिका घाट पर बैठा हुआ है। जेष्ठ की चिलचिलाती दोपहरी जब कि घर से बाहर निकलना भी कठिन होता है एक योगी को मणिकर्णिका घाट के एक जलते तवे की भाँति गर्म पत्थर पर बैठे देख पुलिस पहले तो (2/23)
सकपकायी पर आखिर पकड़ना तो था ही वे आगे बढ़े। योगी पुलिस वालों को देखकर ऐसे मुस्करा रहा था मानों वह उनकी सारी चाल समझ रहा हो। साथ ही वह कुछ इस प्रकार निश्चिन्त बैठे हुये थे मानों वह वाराणसी के ब्रह्मा हों किसी से भी उन्हें भय न हो। मामूली कानूनी अधिकार पाकर पुलिस का दरोगा (3/23)
झांसी के अंतिम संघर्ष में महारानी की पीठ पर बंधा उनका बेटा दामोदर राव (असली नाम आनंद राव) सबको याद है। रानी की चिता जल जाने के बाद उस बेटे का क्या हुआ, वो कोई कहानी का किरदार भर नहीं था, 1857 के विद्रोह की सबसे महत्वपूर्ण कहानी को जीने वाला राजकुमार था, जिसने उसी गुलाम (1/23)
भारत में जिंदगी काटी, जहां उसे भुला कर उसकी मां के नाम की कसमें खाई जा रही थी।
अंग्रेजों ने दामोदर राव को कभी झांसी का वारिस नहीं माना था, सो उसे सरकारी दस्तावेजों में कोई जगह नहीं मिली थी। ज्यादातर हिंदुस्तानियों ने सुभद्रा कुमारी चौहान के कुछ सही, कुछ गलत आलंकारिक वर्णन (2/23)
को ही इतिहास मानकर इतिश्री कर ली।
1959 में छपी वाई एन केलकर की मराठी किताब ‘इतिहासाच्य सहली’ (इतिहास की सैर) में दामोदर राव का इकलौता वर्णन छपा। महारानी की मृत्यु के बाद दामोदार राव ने एक तरह से अभिशप्त जीवन जिया। उनकी इस बदहाली के जिम्मेदार सिर्फ फिरंगी ही नहीं (3/23)
यह रथ-यात्रा की यह प्रथा सत्ययुग से चली आ रही है। रथ यात्रा का प्रसङ्ग स्कन्दपुराण, पद्मपुराण, पुरुषोत्तम माहात्म्य, जगन्नाथजीकी डायरी और श्रीसनातन गोस्वामी द्वारा रचित श्रीबृहद्भागवतामृत तथा हमारे अन्य गोस्वामियों के ग्रन्थों में (1/6)
वर्णित हुआ है।
इस रथ यात्रा का उद्देश्य यह है कि वे लोग जो सम्पूर्ण वर्ष भर में मन्दिर में प्रवेश नहीं पा सकते हैं उन्हें भगवान् के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो। यह तो रथ यात्रा का बाह्य कारण है किन्तु इसके गूढ़ रहस्य को श्रीचैतन्य महाप्रभु ने प्रकटित किया है।
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श्रीजगन्नाथ मन्दिर द्वार का सदृश है और गुण्डिचा मन्दिर वृन्दावन का प्रतीक है। श्रीकृष्ण जन्म से लेकर ग्यारह वर्ष तक व्रज में रहे और वहाँ उन्होंने अपनी मधुरातिमधुर लीलाओं के द्वारा व्रजवासियों को आनन्द प्रदान किया। इसके पश्चात् वे अक्रूरजी के साथ मथुरा चले गये और वहाँ (3/6)
को रट रट कर कुछ अतिवादी हिंदू मोदी को पानी पी पीकर कोसते रहते थे। अब जब मिनिस्ट्री ने इसके बारे में भारतीयों की राय जानने के लिए ईमेल करने को कहा तो इन भाई साहिब को इसके बारे में कुछ पता ही नहीं था। अभी हाल ही में मेरी (1/5)
मोदी की प्रशंसा में लिखी गई किसी पोस्ट पर कमेंट बॉक्स में इन्होंने लिखा था कि मोदी जी यूनिफॉर्म सिविल कोड क्यों नहीं ला रहे? इसको लाने में इतनी देर क्यों कर रहे हैं? अब जब सरकार आम जनता को अपनी राय देने के लिए कह रही है तो इन साहिब को पता ही नहीं कि सरकार इस तरह का कोई (2/5)
प्रयास भी कर रही है। मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने अपनी राय ईमेल कर दी तो बोले अरे यार मुझे तो पता ही नहीं था। मुझे किसी ने बताया थोड़ी ना था मुझे कैसे पता चलता कि ईमेल करनी है और फिर मुझको तो ईमेल करनी भी नहीं आती।
मैंने कहा अपने बच्चों को कह दो। तो बोले अरे यार वह (3/5)