मनोज मुंतशिर पर मेरा पक्ष आज भी वही है जो पहले था। आदिपुरुष टीजर रिलीज होते ही मनोज मुंतशिर का विरोध आरंभ हो गया था। यह कह कर कि मनोज मुंतशिर छूपे हुए वामपंथी हैं। मैंने अपना पक्ष लिखा था कि मनोज मुंतशिर वामपंथी ही पैदा हुए थे। मनोज अपनी कहानी (1/12)
बताते हैं कि पहली बार उन्होंने रेडियो पर मुंतशिर शब्द से कोई नाम सुना था। मुन्तशिर जैसे उर्दू शब्द केवल कर्णप्रिय लगने के कारण उन्होंने अपने शुक्ला आस्पद से प्रतिस्थापित कर दिया। वामपंथ को लेकर मनोज की प्रवृत्ति को समझना बस इतना भर से पर्याप्त है।
फिल्म जगत में मनोज का (2/12)
विकास उनके श्रम के बदौलत बिना किसी गॉडफादर के हुआ। मनोज अपनी प्रवृत्ति का वामपंथी विचारधारा को लेकर आगे बढ़ते तो ऐसा नहीं था कि उन्हें मंच नहीं मिलते। बल्कि वैसे मंच उनकी काबिलियत का इस्तेमाल और भी कहीं ज्यादा कर पाते। मनोज के डायलॉग्स ही मनोज की पहचान बनी। मनोज मुगल के (3/12)
खिलाफ मुखर हुए। माता पद्मावती का दृष्टांत लेकर भारतीय संस्कृति को अपने डायलॉग्स में पिरोया। और मनोज के डायलॉग्स की तीव्रता इतनी अधिक थी कि कमर्शियल फैक्टर के दबाव में वामपंथी मंच भी उन्हें बड़े सम्मान से आमंत्रित करने लगे। सोनी एंटरटेनमेंट चैनल की मंचों पर मनोज मुंतशिर (4/12)
के डायलॉग्स ने तो टीवी की दुनिया में उन्हें एक अलग ही पहचान दे दी।
समस्या तब आई मनोज मुंतशिर महज इतना भर समझ ना सके कि रियालिटी मंच पर बोले गए डायलॉग्स और फिल्म के लिए बनाए गए डायलॉग्स दोनों निहायत ही अलग अलग चीजें हैं। जो डायलॉग्स रियलिटी मंच पर मनोज अपने मुंह से बोलकर (5/12)
ऑडियंस से ताली बटोर सकते हैं, आवश्यक नहीं वही डायलॉग्स फिल्मों में डाल कर भी ऐसी ही प्रशंसा बटोर सकें। क्योंकि यहां पर दो फर्क हो जाता है। पहला, कि फिल्म में जो डायलॉग्स बोले जाएंगे, बहुत जरूरी मांग है कि उसकी प्रकृति कालजई होनी चाहिए। दूसरा, कि कोई भी डायलॉग्स एक (6/12)
व्यक्ति द्वारा जिस प्रकार बोला जाए, वही डायलॉग्स दूसरा व्यक्ति बोले तो दोनों डिलीवरी में जमीन आसमान का फर्क हो सकता है। अर्थ अनर्थ का भी फर्क हो सकता है। क्योंकि दोनों ही प्रकार की डिलीवरी में बॉडी लैंग्वेज का अंतर हो जाता है।
मैंने इस बात की आशंका जताई थी कि मनोज मुंतशिर (7/12)
का आदिपुरुष के माध्यम से शिकार किया जा सकता है। क्योंकि बॉलीवुड जिस मेधा का इस्तेमाल पसंद नहीं करता, उसको नष्ट कर देना उसका शगल है। क्योंकि बॉलीवुड इतनी बड़ी मेधा को अपने खिलाफ फलने नहीं दे सकता। सो मनोज मुंतशिर अब ऐसे मुकाम पर हैं कि या तो अपनी बुद्धिमता से आदिपुरुष (8/12)
फ़िल्म और फिल्म दर्शकों के बीच एक कड़ी का काम करें और फिल्म की कॉमर्स हिट कराएं। अथवा मनोज मुंतशिर के डायलॉग्स राइटिंग फिल्म जगत के लिए यह अंतिम सिद्ध हो जाएगा। इसके बावजूद मनोज मुंतशिर मुझे निराश नहीं दिख रहे हैं। मैं इसके लिए उनकी प्रशंसा करूंगा।
एबीपी न्यूज़ के दिबांग (9/12)
ने जब उनसे पूछा कि आपके हिसाब से कौन सी राजनीतिक पार्टी अच्छी है, कांग्रेस या भाजपा? और आप किस पार्टी को आगे चलकर ज्वाइन करना चाहेंगे? इस पर मनोज मुंतशिर ने बड़ी तटस्थता से जवाब दिया। लेकिन जब दिबांग ने मनोज की विचारधारा पर प्रश्न किया तो उन्होंने खुलकर कहा कि वे आने (10/12)
वाले समय में सनातन के कार्य को और आगे बढ़ाएंगे। दिबांग ने पूछा सनातन से निकटता यदि भाजपा की हो तो क्या आप भाजपा ज्वाइन करेंगे? इस पर मनोज मुंतशिर ने खुलकर बिना आगे पीछे सोचे हां हमें उत्तर दिया। मुगल और वामपंथ के खिलाफ तथा सनातन और राष्ट्रवाद के समर्थन में मनोज का खुल कर (11/12)
बोलना उनकी बुलंद छवि का कारण है। फिर भी मनोज मुंतशिर यदि वामपंथ को आज भी वापस हो जाते हैं, तो वोक वर्ल्ड उन्हें हमसे बढ़िया सम्मान करेगी। मनोज की निष्ठा इसके बावजूद स्थिर दिखती है।
अम्बेडकर के बारे में फैलाये गये मिथक और उनकी सच्चाई?
1 मिथक: अंबेडकर बहुत मेधावी थे।
सच्चाई: अंबेडकर ने अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रीयाँ तीसरी श्रेणी में पास की।
2 मिथक: अंबेडकर बहुत गरीब थे!
सच्चाई: जिस जमानें में लोग फोटो नहीं खींचा पाते थे उस जमानें में अंबेडकर की (1/13)
बचपन की बहुत सी फोटो है, वह भी कोट पैंट और टाई में!
3 मिथक: अंबेडकर ने शूद्रों को पढ़ने का अधिकार दिया!
सच्चाई: अंबेडकर के पिता जी खुद उस ज़माने में आर्मी में सूबेदार मेजर थे! इसके अलावा संविधान बनाने वाली संविधान सभा में 26SC और 33ST के सदस्य शामिल थे!
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4 मिथक: अंबेडकर को पढ़नें नहीं दिया गया।
सच्चाई: उस जमानें में अंबेडकर को गुजरात बडोदरा के क्षत्रिय राजा सियाजी गायकवाड़ नें स्कॉलरशिप दी और विदेश पढ़ने तक भेजा और ब्राह्मण गुरु जी ने अपना नाम अंबेडकर दिया।
5 मिथक: अंबेडकर नें नारियों को पढ़ने का अधिकार दिया!
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वाराणसी की गलियों में एक दिगम्बर योगी घूमता रहता है। गृहस्थ लोग उसके नग्न वेश पर आपत्ति करते हैं फिर भी पुलिस उसे पकड़ती नहीं। वाराणसी पुलिस की इस तरह की तीव्र आलोचनाएं हो रही थीं। आखिर वारंट निकालकर उस नंगे घूमने वाले साधू को जेल में (1/23)
बंद करने का आदेश दिया गया।
पुलिस के आठ दस जवानों ने पता लगाया, मालूम हुआ वह योगी इस समय मणिकर्णिका घाट पर बैठा हुआ है। जेष्ठ की चिलचिलाती दोपहरी जब कि घर से बाहर निकलना भी कठिन होता है एक योगी को मणिकर्णिका घाट के एक जलते तवे की भाँति गर्म पत्थर पर बैठे देख पुलिस पहले तो (2/23)
सकपकायी पर आखिर पकड़ना तो था ही वे आगे बढ़े। योगी पुलिस वालों को देखकर ऐसे मुस्करा रहा था मानों वह उनकी सारी चाल समझ रहा हो। साथ ही वह कुछ इस प्रकार निश्चिन्त बैठे हुये थे मानों वह वाराणसी के ब्रह्मा हों किसी से भी उन्हें भय न हो। मामूली कानूनी अधिकार पाकर पुलिस का दरोगा (3/23)
झांसी के अंतिम संघर्ष में महारानी की पीठ पर बंधा उनका बेटा दामोदर राव (असली नाम आनंद राव) सबको याद है। रानी की चिता जल जाने के बाद उस बेटे का क्या हुआ, वो कोई कहानी का किरदार भर नहीं था, 1857 के विद्रोह की सबसे महत्वपूर्ण कहानी को जीने वाला राजकुमार था, जिसने उसी गुलाम (1/23)
भारत में जिंदगी काटी, जहां उसे भुला कर उसकी मां के नाम की कसमें खाई जा रही थी।
अंग्रेजों ने दामोदर राव को कभी झांसी का वारिस नहीं माना था, सो उसे सरकारी दस्तावेजों में कोई जगह नहीं मिली थी। ज्यादातर हिंदुस्तानियों ने सुभद्रा कुमारी चौहान के कुछ सही, कुछ गलत आलंकारिक वर्णन (2/23)
को ही इतिहास मानकर इतिश्री कर ली।
1959 में छपी वाई एन केलकर की मराठी किताब ‘इतिहासाच्य सहली’ (इतिहास की सैर) में दामोदर राव का इकलौता वर्णन छपा। महारानी की मृत्यु के बाद दामोदार राव ने एक तरह से अभिशप्त जीवन जिया। उनकी इस बदहाली के जिम्मेदार सिर्फ फिरंगी ही नहीं (3/23)
यह रथ-यात्रा की यह प्रथा सत्ययुग से चली आ रही है। रथ यात्रा का प्रसङ्ग स्कन्दपुराण, पद्मपुराण, पुरुषोत्तम माहात्म्य, जगन्नाथजीकी डायरी और श्रीसनातन गोस्वामी द्वारा रचित श्रीबृहद्भागवतामृत तथा हमारे अन्य गोस्वामियों के ग्रन्थों में (1/6)
वर्णित हुआ है।
इस रथ यात्रा का उद्देश्य यह है कि वे लोग जो सम्पूर्ण वर्ष भर में मन्दिर में प्रवेश नहीं पा सकते हैं उन्हें भगवान् के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो। यह तो रथ यात्रा का बाह्य कारण है किन्तु इसके गूढ़ रहस्य को श्रीचैतन्य महाप्रभु ने प्रकटित किया है।
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श्रीजगन्नाथ मन्दिर द्वार का सदृश है और गुण्डिचा मन्दिर वृन्दावन का प्रतीक है। श्रीकृष्ण जन्म से लेकर ग्यारह वर्ष तक व्रज में रहे और वहाँ उन्होंने अपनी मधुरातिमधुर लीलाओं के द्वारा व्रजवासियों को आनन्द प्रदान किया। इसके पश्चात् वे अक्रूरजी के साथ मथुरा चले गये और वहाँ (3/6)
को रट रट कर कुछ अतिवादी हिंदू मोदी को पानी पी पीकर कोसते रहते थे। अब जब मिनिस्ट्री ने इसके बारे में भारतीयों की राय जानने के लिए ईमेल करने को कहा तो इन भाई साहिब को इसके बारे में कुछ पता ही नहीं था। अभी हाल ही में मेरी (1/5)
मोदी की प्रशंसा में लिखी गई किसी पोस्ट पर कमेंट बॉक्स में इन्होंने लिखा था कि मोदी जी यूनिफॉर्म सिविल कोड क्यों नहीं ला रहे? इसको लाने में इतनी देर क्यों कर रहे हैं? अब जब सरकार आम जनता को अपनी राय देने के लिए कह रही है तो इन साहिब को पता ही नहीं कि सरकार इस तरह का कोई (2/5)
प्रयास भी कर रही है। मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने अपनी राय ईमेल कर दी तो बोले अरे यार मुझे तो पता ही नहीं था। मुझे किसी ने बताया थोड़ी ना था मुझे कैसे पता चलता कि ईमेल करनी है और फिर मुझको तो ईमेल करनी भी नहीं आती।
मैंने कहा अपने बच्चों को कह दो। तो बोले अरे यार वह (3/5)