subhash sharma, Profile picture
Jun 20 21 tweets 5 min read Twitter logo Read on Twitter
उन तीन खूबसूरत छात्राओ की तस्वीर देखी है आपने??

काबुल यूनिवर्सिटी की वो लड़कियां साठ के दशक में अफगानिस्तान की प्रतिनिधि तस्वीर है। तब भी अफ़ग़ानिस्तान इस्लाम बहुल देश था। अफगानी भी दीगर दुनिया की तरह हंसते, खेलते, मस्तमौला लोग हुआ करते थे।
दुनिया रूस और अमेरिकी खानों में बंटी थी। एशिया भर में रूस से कम्युनिज्म का निर्यात हो रहा था। पश्चिम दहला हुआ था।अफगान राजा जहीर शाह को हटाकर दाऊद खान ने सत्ता हथियाई, उनसे तराकी ने, उनसे अमीन ने। रशियन आये और अमीन को उठाकर बरबक करमाल को बिठा दिया।
पपेट सरकारों का दौर शुरू हुआ।

ये सारे ग्रुप, टाई सूट वाले .. कम कम्युनिस्ट और ज्यादा कम्युनिस्ट थे। इस्लाम कोई मुद्दा नही था। लेकिन रूसीयों के कदम रखने के बाद, उनसे लड़ने के लिए अफगानो ने हथियार उठाये।
सवाल आया कि रूसियों को हटाकर आखिर कैसी व्यवस्था लाई जाएगी?? रशियन इफेक्ट, याने कम्युनिस्ट व्यवस्था तो नही चाहिए थी। ऐसे में अपने यहां "राम राज्य' की तरह "आदर्श इस्लामी शासन" लाने का संकल्प हुआ।

पर अभी तक ये नार्मल वाला इस्लाम था।
इंजीनियर और सुशिक्षित, अहमद शाह मसूद जैसे लोग इस सपने के साथ मुजाहिद बने।

वियतनामियों के कंधे पर बन्दूक रखकर, अमेरिका को जो शिकस्त रूस ने दी थी, अब वही मौका अमेरिका को मिला। भर भर के पैसे और हथियार दिये। पाकिस्तान दलाल बना।
खूब कमीशन भी काटा, और इलाके का दादा भी बना। आखिर अफगानों ने रूस को थका कर भगा दिया।

लेकिन अब तक देश मे गवर्नेस का ढांचा ध्वस्त हो चुका था। जिसकी लाठी उसकी भैस। थोड़े थोड़े इलाके अलग अलग गुट के कब्जे में थे। मिलकर सरकार तो बनाई, लेकिन आपस मे लड़ते भी रहे।
इस बीच अचानक से तालिबान उभरा, और पुराने मुजाहिदीनों को रौंदते हुए ज्यादातर अफगानिस्तान जीत लिया। तालिबान, पाक में रह रहे अफगानी शरणार्थियों को ब्रेनवाश करने, इस्लाम के अतिवादी वर्जन को सिखाने, और हथियार देकर लड़ने भेजने का प्रोजेक्ट था।
याने अफगानिस्तान में पाकिस्तान का पिट्ठू शासन। "अखण्ड पाकिस्तान" समझ लीजिए। पाकिस्तान अपनी औकात से ज्यादा बड़ा टुकड़ा चाबने चला था।

और उधर तालिबान लीडर मुल्ला उमर और लादेन ने भी अपनी औकात से ज्यादा चाब लिया। ट्विन टावर पर हमला किया। इसके बाद 9/11, अमरीका का आना,
तालिबान के जाना आपने देखा है।

बीस साल बाद अमेरिका घर वापसी कर चुका है। तालिबान राज भी अब काबुल वापसी की राह में है। सवाल यह है कि आगे क्या होगा??
--
रिलिजियस फेनेटिक्स, किसी के नही होते। वे सिर्फ अपना फायदा देखते हैं, और रिलीजन की आड़ में मनमर्जी करते हैं।
तालिबान को कंट्रोल करने की ताकत पाकिस्तान में नही है।

दरअसल भारत से सम्भावित मुकाबले में, अफगानिस्तान को "स्ट्रेटेजिक पिछवाड़ा" बनाने के लिए आईएसआई ने तालिबान खड़ा किया, और सत्ता दिलवाई। पर सचाई ये है कि अफगान और तालिबान ने बीस सालों से पाकिस्तान को
ही अपना स्ट्रेटेजिक पिछवाड़ा बनाये रखा हैं।

तालिबान, या अफगानिस्तान में किसी भी सरकार को जरा सेटल होने दीजिए। दुआ कीजिए कि चीन सहित दुनिया के ज्यादातर देशों से उसके सम्पर्क ठीक रहें। इससे पाकिस्तान पर अफगानी निर्भरता घटेगी।
और जैसे जैसे घटेगी, अफगानी डूरंड लाइन पर उसी तरह पाकिस्तान का गला दबाएंगे, जैसे मोदीराज में मोदीजी के दोस्त झिनपिंग, भारत की जमीन पर दबाए पड़े हैं।

याद रहे कि अंग्रेजो की डूरंड लाइन को किसी अफगान सरकार ने आधिकारिक सीमा नही माना। यहां तक कि तालिबान ने भी अपने
पिछले शासन में इसे मान्यता नही दी। आम अफगानी में पाकिस्तान के प्रति नफरत, तब के रूसियों के प्रति नफरत से कम नही।

देर सवेर पाकिस्तान, अफगानिस्तान में लूजर ही निकलेगा।
--
रही अफगानिस्तान के अंदरूनी हालात की। दुनिया की ताकते अब उनके फटे में टांग अड़ाना नही चाहेंगी।
अफगानों को अपनी सरकार मिलेगी। लेकिन लड़ाकों को जोड़ने वाला सूत्र " फॉरेन इन्वेजन" खत्म होगा।

अब किसी धर्म मे इतनी ताकत नही की पोलिटीकल फैक्शन्स को एक रख सके। पावर स्ट्रगल होनी तय है, देर सवेर तालिबान के अंदर भी मारकाट मचेगी। प्रो पाक- एंटी पाक फैक्शन्स लड़ेंगे।
एंटी तालिबान खत्म नही हुए, वे भी लौटेंगे।

तालिब कुरान के दौर में जीना चाहते थे। कुरान में इलेक्शन का जिक्र नही। गवरनेंस का जिक्र नही। बजट, मिनिस्ट्री, फॉरेन रिलेशन डेवलपमेंट, शिक्षा, हस्पताल, रेडियो सिनेमा का जिक्र नही। मंत्री जी मंत्रालय में कम, किसी शहर को जीतने
या कंट्रोल करने के लिए पहाड़ों पर बम गोली चलाते अधिक दिख सकते है।

पिछली बार इस सरकार का कोई स्ट्रक्चर नही था। कमाई का साधन अफीम की खेती, लूट एक्सटॉर्शन, अरब और ओसामा का दान था। सारा पैसा युद्ध मे खर्च होता था। सेना को तनख्वाह नही, खाना कपड़े और हथियार दिए जाते थे।
मुल्ला उमर कोई बुक्स ऑफ एकॉउंट नही रखते थे, खुद ही जरूरत का कैश अपने मुबारक हाथों से बांटा करते थे
अब तालिबान में नई लीडरशिप है, पर लड़ाको की फिलॉसफी पुरानी है।अफगानी विदेशियों से खूब लड़ चुके। सुपर पावर्स का ग्रेवयार्ड बन चुके। ग्रेवयार्ड में रहने वालों को मौत का डर नही होता।
तालिबान को मोडर्नाइज, पीसफुल, एडजस्टिंग होना पड़ेगा। वे कोशिश भी करेंगे। लेकिन उनकी सोच की सीमाएं हैं, और हथियारबंद मूढमति मिलिशिया को पाबंद रखना कठिन।

उनका विरोध खड़ा होगा।
--
तीसरा पक्ष जनता है। अफगानिस्तान में जीतना आसान है, टिकना कठिन। तालिबान को उस जनता का सामना करना है,
जो हाल ही में नार्मल जीवन देख चुकी है। उसने सड़कें, बिजली, पानी, हस्पताल और शिक्षा की झलक देखी है। इसके लिए वो जूझेगी।

जिहाद का असल मतलब बाहर किसी से नही, खुद से जूझना होता है। तो अफगानियों का असल जिहाद अब शुरू होगा। अपने देश के भीतर, अपनो से जूझेंगे।
देर सवेर, तालिब हारेंगे। अफगानी इस जिहाद को जीतेंगे, खुदमुख्तार और समझदार बनेंगे। और दुनिया मे इस्लाम की बदनामी का किला ढहेगा।

पर अंधेरे का दौर अभी बाकी है। यह मानिये की अंततः स्कर्ट या हिजाब में, काबुल यूनिवर्सिटी से निकलती वो छात्राएं जिस दिन दोबारा दिखेंगी,
उसी दिन अफगानिस्तान में सूरज उगेगा।
~~
(पोस्ट तालिबान की विजय और अमेरिका की वापसी के दौर मे लिखी गई थी। )
#स्वतंत्र
@RebornManish Image

• • •

Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh
 

Keep Current with subhash sharma,

subhash sharma, Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

PDF

Twitter may remove this content at anytime! Save it as PDF for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video
  1. Follow @ThreadReaderApp to mention us!

  2. From a Twitter thread mention us with a keyword "unroll"
@threadreaderapp unroll

Practice here first or read more on our help page!

More from @sharmass27

Jun 21
गोलचा सिनेमा पर पांच आना क्लास की टिकट हासिल करने का तरीका था कि दर्शक वहां पर साइकलपर पहुंचता और बुकिंग आफिस की जगह सीधा सिनेमा के साइकल स्टैण्ड पर पहुंचता और साइकल के बदले में पांच आना क्लास का टिकट हासिल करता । यानी साइकल स्टैण्ड के कान्ट्रेक्टर का हर शो की पांच आना
क्लास की टिकट कर एक कोटा निर्धारित था जिस का इस्तेमाल वो अपना धन्धा चमकाने के लिये करता था ।

रिट्ज़ पर ब्लैक छुप कर नहीं होती थी, शरेआम होती थी । सिनेमा के ऐन बाहर ही मुट्ठी में टिकटें और नोट सम्भाले ब्लैकिया खड़ा होता था और खुल्ली ब्लैक करता था ।
वहां सब से ज्यादा डिमांड बाक्स की टिकट की होती थी क्योंकि रिट्ज़ राजधानी के दुर्लभ सिनेमाओं में था जिन में कि बॉक्स थे । करीब ही दिल्ली यूनीवर्सिटी होने की वजह से नून और मौटिनी शो में विद्यार्थीगण उमड़ के पड़ते थे और तनहाई तलाशते सब को बॉक्स की टिकट दरकार होती थी ।
Read 4 tweets
Jun 21
एक अंधा लड़का एक इमारत की सीढ़ियों पर बैठा था। उसके पैरों के पास एक टोपी रखी थी। पास ही एक बोर्ड रखा था, जिस पर लिखा था, "मैं अंधा हूँ कृप्या मेरी मदद करें" टोपी में केवल कुछ सिक्के थे।

वहां से गुजरता एक आदमी यह देख कर रुका, उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकाले और
टोपी में गिरा दिये। फिर उसने उस बोर्ड को पलट कर कुछ शब्द लिखे और वहां से चला गया। उसने बोर्ड को पलट दिया था जिससे कि लोग वह पढ़ें जो उसने लिखा था।

जल्द ही टोपी को भरनी शुरू हो गई। अधिक से अधिक लोग अब उस अंधे लड़के को पैसे दे रहे थे। दोपहर को बोर्ड बदलने वाला आदमी फिर वहां आया।
वह यह देखने के लिए आया था उसके शब्दों का लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा ? अंधे लड़के ने उसके क़दमों की आहट पहचान ली और पूछा, "आप सुबह मेरे बोर्ड को बदल कर गए थे ? आपने बोर्ड पर क्या लिखा था?"

उस आदमी ने कहा मैंने केवल सत्य लिखा था, मैंने तुम्हारी बात को एक अलग तरीके से लिखा,
Read 5 tweets
Jun 21
योगा दिवस...

आपने किसी जानवर, चिड़िया को कभी योगा करते देखा है? कभी किसी रिक्शा चालक, खेत मजदूर को योगा करते देखा है? हमने तो नही देखा है. तब ये भरे पेट , ए.सी. गाड़ी में चलने वाले , हवाई जहाज मे सफ़र करने वाले लोग क्यूं योगा करते हैं और अनपढ़ जो कभी बिना चप्पल के सायकिल पर
गांव गांव सामान ढोता था रामदेव आज योगा गुरू बन गया है ?मेरी बात यहां बहुतों को बुरी लग सकती है क्यूंकि यहां उनकी संख्या ज्यादा है जो श्रम विहिन संपत्ति पर राज भोग रहे हैं, रामदेव जैसा लंपट योगा का ब्रांड एंबेस्डर बनकर पतंजलि के नाम को बेंच कर शहद में चीनी, घी में चर्बी मिलाकर ,
आयुर्वेद के नाम पर दवा में मिलावट करके पूरे देश को लूट रहा है, सत्ता की चेरी बनकर व्यापार कर रहा है. योगा ऐर जिम हर खाते पीते घरों के नवजवानो का फैशन बन गया है, कारपोरेट इसको धंधा बनाकर मशीने लांच कर प्रचार करके लूट रहे हैं .....योगा दिवस का मतलब सिर्फ लूटना है,
Read 6 tweets
Jun 21
यह न भूलें कि मणिपुर में 60 हजार लोग (भारतीय) बेघर, जंगलों में छिपे हैं।

135 लोग मार दिए गए। 250 से ज्यादा चर्च जला दिए गए। 4500 सरकारी हथियार लूटे गए।

भारत के प्रधानमंत्री अमेरिका भाग गए।
उधर, अदानी के खरीदे हुए एनडीटीवी ने दावा किया है कि सुप्रीम कोर्ट ने मोडानी को क्लीन चिट दे दी है। यह झूठ है।

मोडानी रिपोर्ट का चौथा अध्याय कहता है–2020 के बाद अदानी सेठ की कंपनियों में बेहिसाब पैसा लगा।
सेबी ने 2018 और 2019 में एफपीआई और LODR नियमों में बदलाव कर इसके लिए रास्ता खोला। 2018 से 2022 तक संदिग्ध खातों से अदानी को पैसा मिलने के 849 अलर्ट किए गए। सेबी धृतराष्ट्र बना रहा।
Read 4 tweets
Jun 21
"बयालीस से बत्तीस"

जनाब खाकी राम बड़े बूटों का पद्यात्मक आदेश लाया है जी, समझ नहीं आता कविता में आदेश है की हमारी आराम-तलबी से विद्वेष, तो आदेश कुछ यूँ है जी, और पता नहीं क्यों है जी,

सभी थानाध्यक्षों, प्रभारियों और उनके मातहत, जवानों और कर्मचारियों को, सूचित किया जाता है,
आगामी पदोन्नतियों में, किसी भी प्रकार की उन्नतियों में, कमर के आकार को विशेषाधिकार होगा, आतंरिक सर्वे में , हर चौक,चौराहे और दड़बे में, अधिकांश पुलिस बल की, उन्नतांश या नाभि तल की, "परिधि" या यूँ कहिये कमर की "समृद्धि", बयालीस पाई गई है, जिसे जैसे भी और कैसे भी,
ज़रा जल्द से जल्द हो जी, फिर चाहे किसी के भी वल्द हों जी, बत्तीस पर लाना होगा,
तो ही कमाई वाला थाना होगा, तो ही फागुन में गाना होगा, तो ही गाड़ियों में तेल होगा, तो ही लॉकअप में खुल्ला खेल होगा, तो ही बुलाकियों पर धौंस होगी, तो ही जेबों में खौंस होगी, तो ही सांसी संग सांस होगी,
Read 7 tweets
Jun 21
मणिपुर जल चुका है , जो बचा है , वह सुलग रहा है , उसके राख की चिनगारी कहाँ तक उड़ कर जायगी , जो थोड़े से भी सजग और सचेत हैं , वे इसे जानते हैं । मणिपुर पूर्वोत्तर के आठ राज्यों में एक प्रमुख राज्य है । हम अपने देश को कितना जानते हैं इसे अरुणांचल प्रदेश की दो
महिला प्रोफ़ेसर अपने अलग अलग बयानों में व्यक्त कर रही हैं । क्या “ हम “ इनकी बेदना , तकलीफ़ और कसक को समझेंगे ?
एक दिन अचानक हमे जमुना बिनी Jamuna Bini ( प्रोफ़ेसर राजीव गाँधी यूनिवर्सिटी , अरुणाचल प्रदेश ) की एक कविता मिली । बिनी जी ने सीधे “ हिन्दी “ से सवाल पूछा है -
कितना जानते हो , हमे ? हमारी संस्कृति को , भाषा को , रवायत को , हमारे इतिहास को ? नहीं जानते , लेकिन हम सब जानते हैं , भगत सिंह , गाँधी , नेहरू सब को । ( ये भाव बिनी जी के हैं और भाषा हमारी थोड़ी बदली है । ) लगा कि सार्वजनिक जगह पर बेइज्जत हो रहा हूँ ।
Read 13 tweets

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3/month or $30/year) and get exclusive features!

Become Premium

Don't want to be a Premium member but still want to support us?

Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal

Or Donate anonymously using crypto!

Ethereum

0xfe58350B80634f60Fa6Dc149a72b4DFbc17D341E copy

Bitcoin

3ATGMxNzCUFzxpMCHL5sWSt4DVtS8UqXpi copy

Thank you for your support!

Follow Us on Twitter!

:(