कांग्रेस ने गीता प्रेस गोरखपुर को भारत सरकार द्वारा दिए गए गांधी शांति सम्मान का विरोध किया है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि गीता प्रेस को गांधी के नाम पर दिया गया शांति सम्मान ऐसा है मानों गोडसे और सावरकर को सम्मानित किया गया हो। इसके बाद कांग्रेस के नेताओं के (1/9)
बयान एक के बाद एक सामने आने शुरू हो गए।
सभी गीता प्रेस को सम्मान का कड़ा विरोध करते नजर आए। आश्चर्य की बात है कि सोनिया राहुल और प्रियंका के नजदीकी जयराम रमेश के ट्वीट का समर्थन कुछ अन्य विपक्षी दल भी करने लगे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने अभी तक भी पार्टी (2/9)
का पक्ष प्रस्तुत नहीं किया है।
सौ वर्ष पुराने महान प्रतिष्ठान गीता प्रेस के बारे में अधिक बताने की आवश्यकता नहीं है। इस संस्थान ने बगैर मुनाफे वाला सच्चा आध्यात्मिक और नैतिक ज्ञान उसी परंपरागत रूप में उपलब्ध कराया जैसा प्राचीनकाल से हम सुनते और लीलाओं में देखते आए हैं। (3/9)
जयदयाल गोयनका, हनुमान प्रसाद पोद्दार, राधेश्याम खेमका आदि महापुरुषों ने गीता प्रेस को अपने तप से सिंचित किया। नाथूराम गोडसे जैसे हत्यारे को गीता प्रेस के समकक्ष रखकर कांग्रेस ने जो पाप किया है, निःसंदेह वह पाप कांग्रेस के लिए ही अभिशाप बनेगा।
यह कैसा कुटिल संयोग है कि (4/9)
राहुल की भारत जोड़ो यात्रा के सूत्रधार जयराम रमेश ने एक तरफ तो सम्मान और गोडसे को जोड़ा तो दूसरी ओर से महान देशभक्त सावरकर को गोडसे के साथ बीच में घसीटा? न जाने क्यों कांग्रेस के नेता बार बार अपने बौद्धिक दिवालियेपन का परिचय देते हैं? मानों आवे का आवा ही गया गुदार हो चुका (5/9)
हो।
या फिर पार्टी के कईं नेता बुद्धिहरण विश्वविद्यालय से पढ़कर आए हों? दुर्भाग्य से पार्टी के शीर्ष नेताओं का सांस्कृतिक मूल्यों से इस कदर कटते जाना अफसोसनाक है। आश्चर्य की बात यह है कि मतलब न रखते हुए भी अन्य दलों के कईं नेता कांग्रेस के विवादित बयानों का समर्थन करने (6/9)
लगे हैं।
संयोग देखिए। एक तरफ तो आदिपुरुष 📽️ फिल्म ने माथा गरम कर रखा है, दूसरी तरफ गीता प्रेस को बेवजह घसीटा जा रहा है। गीता प्रेस विशुद्ध धार्मिक साहित्य छापती है उसका गोडसे या सावरकर से क्या लेना देना? गांधी जी की हत्या के बाद यदि हनुमान प्रसाद पोद्दार का नाम चर्चा में (7/9)
आया था, तो उन्हें पुलिस से क्लीन चिट भी मिल गई था।
विशुद्ध रूप से नो लॉस नो प्रॉफिट के आधार पर देश में आध्यात्मिक क्रांति लाने वाले पोद्दार जी पर कांग्रेस की यह तौहमत बेहद चिंताजनक है। चुनाव में कांग्रेस यदि अपनी ऐसी बचकानी हरकतों से बहुमत पाना चाहती है तो खुदा खैर करे। (8/9)
सस्ता आध्यात्मिक साहित्य कल भी देश के लिए जरूरी था, आज तो और भी अधिक है, कल भी रहेगा। अच्छा हो यदि कांग्रेस इस सब से बाहर निकले। अन्यथा प्रमोद कृष्णम जैसे संत नेताओं से भी हाथ धो बैठेगी?
अम्बेडकर के बारे में फैलाये गये मिथक और उनकी सच्चाई?
1 मिथक: अंबेडकर बहुत मेधावी थे।
सच्चाई: अंबेडकर ने अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रीयाँ तीसरी श्रेणी में पास की।
2 मिथक: अंबेडकर बहुत गरीब थे!
सच्चाई: जिस जमानें में लोग फोटो नहीं खींचा पाते थे उस जमानें में अंबेडकर की (1/13)
बचपन की बहुत सी फोटो है, वह भी कोट पैंट और टाई में!
3 मिथक: अंबेडकर ने शूद्रों को पढ़ने का अधिकार दिया!
सच्चाई: अंबेडकर के पिता जी खुद उस ज़माने में आर्मी में सूबेदार मेजर थे! इसके अलावा संविधान बनाने वाली संविधान सभा में 26SC और 33ST के सदस्य शामिल थे!
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4 मिथक: अंबेडकर को पढ़नें नहीं दिया गया।
सच्चाई: उस जमानें में अंबेडकर को गुजरात बडोदरा के क्षत्रिय राजा सियाजी गायकवाड़ नें स्कॉलरशिप दी और विदेश पढ़ने तक भेजा और ब्राह्मण गुरु जी ने अपना नाम अंबेडकर दिया।
5 मिथक: अंबेडकर नें नारियों को पढ़ने का अधिकार दिया!
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वाराणसी की गलियों में एक दिगम्बर योगी घूमता रहता है। गृहस्थ लोग उसके नग्न वेश पर आपत्ति करते हैं फिर भी पुलिस उसे पकड़ती नहीं। वाराणसी पुलिस की इस तरह की तीव्र आलोचनाएं हो रही थीं। आखिर वारंट निकालकर उस नंगे घूमने वाले साधू को जेल में (1/23)
बंद करने का आदेश दिया गया।
पुलिस के आठ दस जवानों ने पता लगाया, मालूम हुआ वह योगी इस समय मणिकर्णिका घाट पर बैठा हुआ है। जेष्ठ की चिलचिलाती दोपहरी जब कि घर से बाहर निकलना भी कठिन होता है एक योगी को मणिकर्णिका घाट के एक जलते तवे की भाँति गर्म पत्थर पर बैठे देख पुलिस पहले तो (2/23)
सकपकायी पर आखिर पकड़ना तो था ही वे आगे बढ़े। योगी पुलिस वालों को देखकर ऐसे मुस्करा रहा था मानों वह उनकी सारी चाल समझ रहा हो। साथ ही वह कुछ इस प्रकार निश्चिन्त बैठे हुये थे मानों वह वाराणसी के ब्रह्मा हों किसी से भी उन्हें भय न हो। मामूली कानूनी अधिकार पाकर पुलिस का दरोगा (3/23)
झांसी के अंतिम संघर्ष में महारानी की पीठ पर बंधा उनका बेटा दामोदर राव (असली नाम आनंद राव) सबको याद है। रानी की चिता जल जाने के बाद उस बेटे का क्या हुआ, वो कोई कहानी का किरदार भर नहीं था, 1857 के विद्रोह की सबसे महत्वपूर्ण कहानी को जीने वाला राजकुमार था, जिसने उसी गुलाम (1/23)
भारत में जिंदगी काटी, जहां उसे भुला कर उसकी मां के नाम की कसमें खाई जा रही थी।
अंग्रेजों ने दामोदर राव को कभी झांसी का वारिस नहीं माना था, सो उसे सरकारी दस्तावेजों में कोई जगह नहीं मिली थी। ज्यादातर हिंदुस्तानियों ने सुभद्रा कुमारी चौहान के कुछ सही, कुछ गलत आलंकारिक वर्णन (2/23)
को ही इतिहास मानकर इतिश्री कर ली।
1959 में छपी वाई एन केलकर की मराठी किताब ‘इतिहासाच्य सहली’ (इतिहास की सैर) में दामोदर राव का इकलौता वर्णन छपा। महारानी की मृत्यु के बाद दामोदार राव ने एक तरह से अभिशप्त जीवन जिया। उनकी इस बदहाली के जिम्मेदार सिर्फ फिरंगी ही नहीं (3/23)
यह रथ-यात्रा की यह प्रथा सत्ययुग से चली आ रही है। रथ यात्रा का प्रसङ्ग स्कन्दपुराण, पद्मपुराण, पुरुषोत्तम माहात्म्य, जगन्नाथजीकी डायरी और श्रीसनातन गोस्वामी द्वारा रचित श्रीबृहद्भागवतामृत तथा हमारे अन्य गोस्वामियों के ग्रन्थों में (1/6)
वर्णित हुआ है।
इस रथ यात्रा का उद्देश्य यह है कि वे लोग जो सम्पूर्ण वर्ष भर में मन्दिर में प्रवेश नहीं पा सकते हैं उन्हें भगवान् के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो। यह तो रथ यात्रा का बाह्य कारण है किन्तु इसके गूढ़ रहस्य को श्रीचैतन्य महाप्रभु ने प्रकटित किया है।
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श्रीजगन्नाथ मन्दिर द्वार का सदृश है और गुण्डिचा मन्दिर वृन्दावन का प्रतीक है। श्रीकृष्ण जन्म से लेकर ग्यारह वर्ष तक व्रज में रहे और वहाँ उन्होंने अपनी मधुरातिमधुर लीलाओं के द्वारा व्रजवासियों को आनन्द प्रदान किया। इसके पश्चात् वे अक्रूरजी के साथ मथुरा चले गये और वहाँ (3/6)
को रट रट कर कुछ अतिवादी हिंदू मोदी को पानी पी पीकर कोसते रहते थे। अब जब मिनिस्ट्री ने इसके बारे में भारतीयों की राय जानने के लिए ईमेल करने को कहा तो इन भाई साहिब को इसके बारे में कुछ पता ही नहीं था। अभी हाल ही में मेरी (1/5)
मोदी की प्रशंसा में लिखी गई किसी पोस्ट पर कमेंट बॉक्स में इन्होंने लिखा था कि मोदी जी यूनिफॉर्म सिविल कोड क्यों नहीं ला रहे? इसको लाने में इतनी देर क्यों कर रहे हैं? अब जब सरकार आम जनता को अपनी राय देने के लिए कह रही है तो इन साहिब को पता ही नहीं कि सरकार इस तरह का कोई (2/5)
प्रयास भी कर रही है। मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने अपनी राय ईमेल कर दी तो बोले अरे यार मुझे तो पता ही नहीं था। मुझे किसी ने बताया थोड़ी ना था मुझे कैसे पता चलता कि ईमेल करनी है और फिर मुझको तो ईमेल करनी भी नहीं आती।
मैंने कहा अपने बच्चों को कह दो। तो बोले अरे यार वह (3/5)