कुरान में #ऊंट व #बकरी का ज़िक्र है क्योंकि इसे रेगिस्तानी परिवेश में लिखा गया।
और
वेदों में #गाय व #घोड़े का ज़िक्र है क्योंकि इसे भारतीय परिवेश में लिखा गया।
पूरी दुनिया में 7 महाद्वीप हैं और 250 देश हैं लेकिन इनके लेखकों को सिर्फ अपने देश के
#क्षेत्रीय_परिवेश(Local Atmosphere) की ही भौगोलिक एवं सांस्कृतिक जानकारी थी। यदि पूरे विश्व की जानकारी होती तो इनके ग्रंथों में #जेब्रा (Zebra) भी होता, #शुतुरमुर्ग (Ostrich) भी होता और #कंगारू(Kangaroo) भी जरूर होता।
यदि ये धर्म ग्रंथ करोड़ों साल पहले लिखे गए होते तो इनमें धरती से लुप्त हो गये #विशालकाय_डायनासोर (Dianasour) भी होते और #विशालकाय_हाथी (Mammoth) भी जरूर होते।
अपने-अपने क्षेत्र सीमा के सीमित भौगोलिक ज्ञान की वज़ह से इसकी पुष्टि होती हैं कि सभी धार्मिक ग्रंथ मानव निर्मित ही हैं
और कोई भी धर्म ग्रंथ कहीं आसमान से नहीं आये या किसी के मुँह से निकले।
इनमें लिखी गयी भाषा या लिपि केवल इंसानों द्वारा बोली, लिखी व पढ़े जाने वाली भाषा हैं जो उस क्षेत्र विशेष की भाषा लिपि को प्रदर्शित करती हैं,
अन्य देशों के लोगों की भाषाओं से ये लोग अनजान थे, इसलिए अपनी किताबों में कभी उनका वर्णन नहीं कर पाए।
तुष्टिकरण का प्रश्न कांग्रेस के गले मे मरे सांप की तरह हमेशा लटका पाया जाता है। सबसे पहले यह माला कब और कैसे गले पड़ी, जानना जरूरी है।
और ये किस्सा शुरू होता है, गांधी के दक्षिण अफ्रीका से लौटने के साथ। यह इतिहास का वाटरशेड मोमेंट है।
पहला विश्वयुद्ध शुरू हो चुका था, जो यूरोप के बड़े राजतंत्रों और कलोनियल पावर्स का आपसी दंगा था।
ब्रिटेन की ओर से खून बहाया उन भारतीय सिपाहियों ने,जिनके नाम आज इंडिया गेट पर खुदे हैं।
यूरोप में तुर्की हारे हुए ग्रुप में था। वर्साइ की ट्रीटी में जर्मनी की ऐसी तैसी की गई तो सेवर में टर्की की। विशाल ऑटोमन साम्राज्य, इस्तम्बूल के गिर्द बस एक छोटा सा राज्य भर रह गया।
यहां एक लोचा था।ऑटोमन राजा सिर्फ रूलर न थे, वो मोहम्मद साहब के वंशज माने जाते, धार्मिक लीडर भी।
वैसे ही है जैसे किसी अपराधी , बलात्कारी को समाज में शांति सद्भावना कायम करने वाले समिति का अध्यक्छ नियुक्त कर दिया जाये .
वैसे ही गीता प्रेस संघ का एक टूल मात्र है। जो धर्म के नकाब लगाकर पाखंड का महिमा मंडन करता रहता है।
गीता प्रेस गोरखपुर और उसकी मुखपत्र मासिक 'कल्याण' , 1920के दशक से ही,शूद्र द्रोही और अस्पृश्यता समर्थक, सनातनी वर्णव्यवस्था पर आधारित साहित्य के प्रचार प्रसार का काम कर रही है। गीता प्रेस गोरखपुर'की मासिक पत्रिका, कल्याण’ का कहना था कि 'मंदिर में प्रवेश ‘अछूतों’ के लिए नहीं है
और अगर आप पैदा ही ‘नीची जाति’ में हुए हैं तो ये आपके पिछले जन्म के कर्मों का फल है.'
गीता प्रेस के संस्थापक हनुमान प्रसाद पोद्दार और जय दयाल गोयनका को महात्मा गांधी की हत्या में गिरफ्तार किया गया था और दोनो ने तब गांधी के सबसे प्रिय अनुयायी घनश्याम दास बिड़ला से मदद मांगी थी
आजादी की लड़ाई का इतिहास उठाकर देखो , सबसे ज्यादा गद्दारी राजपूत राजाओं ने ही किया है, किसी दलित पिछड़े मुसलमानों ने नहीं किया.इन राजाओं के उपर ब्राह्मणों का आशीर्वाद रहता था, वे राजाओं का भगवान का दर्जा देकर लूट की कमाई में शामिल रहते थे. मुगल काल से उठाकर देखो मुगलों के दरबार
में , उनके हरमों में किसकी संख्या ज्यादा रहती थी. बीरबल कौन था ? राणा प्रताप का सेनापति हकीम खान सूर था, अकबर का सेनापति कौन था? मान सिंह. ये संघी भंड........वे, राणा प्रताप के तलवार का वजन तो बताते हैं लेकिन राणा प्रताप के सेनापति का नाम लेने में इनको शर्म आती है.
अब गांधी शांति पुरस्कार गांधी के हत्या के अभियुक्तों को दे रहे हैं. आज भी ये संघी अपनी बेटियों को तो मुसलमानों को बडी धूमधाम से पंचसितारा होटलों में व्याहते हैं,
राम और लक्ष्मण, सीता की तलाश में भटक रहे थे, जब वे ऋष्यमूक पर्वत के नजदीक पहुँचे तभी सामने से एक मुल्ला जी प्रकट हुए।
' आदाब अर्ज करता हूँ' मुल्ला जी ने कहा।
' नमस्कार' राम ने भी अभिवादन किया।
' क्या मैं आपका तआरुफ़ जानने की गुस्ताखी कर सकता हूँ' मुल्ला जी ने कहा
' जी मैं अयोध्या का राजकुमार राम हूँ'
' माशा अल्लाह!'
' ये मेरा भाई लक्ष्मण है'
' सुभान अल्लाह!'
' मेरी पत्नी का हरण हो गया है, मुझे जटायु ने बताया कि रावण ने ऐसा किया '
' अल्लाह!..हम कोशिश करेंगे कि आपकी शरीके हयात आपको वापस मिलें'
' क्या आप ऐसा कर सकते हैं?'
' इंशा अल्लाह!'
' आपने परिचय नहीं दिया अपना'
' खाक दर खाक आपके कदमों की खाक, खाकसार को हनुमान कहते हैं।' कहते हुए मुल्लाजी अपने वास्तविक रूप में आ गए।
' ओह! तो तुम हो.. मगर त्रेता में तो तुम ब्राह्मण रूप में आये थे'
' अल्हम्दुलिल्लाह! मैंने पार्टी बदल ली है जहाँपनाह! '
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल देर रात जलते हुए मणिपुर के सवालों से भागकर अमेरिका पहुंच गए।
वे मणिपुर के लोगों से पूरे अहंकार के साथ आज कह सकते हैं, थैंक्यू। मैं आपसे सुरक्षित बचकर 12000 किमी दूर भाग आया।
10 विपक्षी पार्टियां पीएम की तरफ हाथ जोड़े हिंसा रुकवाने के लिए दयादृष्टि की अपील के साथ खड़ी हैं। पीएम को उन्हें भी थैंक्यू बोलना चाहिए और आरएसएस को भी, जिसने शांति बहाली की तब अपील की, जब खेला हो चुका था।
मणिपुर दो टुकड़ों में बंट चुका है। बीजेपी यही चाहती थी और इसीलिए उसने रणनीतिक चुप्पी साध रखी है।
वहां सेना से भी कहा गया है कि वे सशस्त्र कुकी समुदाय के लोगों को निहत्था न करें। बस, बफर जोन यानी बंटवारे पर ध्यान दें।
सन 1781, कुलीन ब्राह्मण वंश का एक 9 साल का बच्चा मदरसे में अरबी सीखने भेजा गया। अरबी, फ़ारसी में विद्वान बन कर वह बच्चा काशी पहुंचा संस्कृत सीखने। उस बालक की प्रतिभा देखकर काशी के पंडित भी अचंभित रह गए।
बच्चे ने कुरान और गीता को कंठस्थ कर लिया था। अब उसे अंग्रेजी सीखने की इच्छा हुई। बालक ने एक पादरी को अपना गुरु बनाया और अंग्रेजी सीखने के साथ बाइबिल भी कंठस्थ कर डाली। उसके साथ ही लैटिन, ग्रीक भी पढ़ना-बोलना सीख लिया। वह अब बड़ा हो चुका था।
1803 में उस युवक ने पर्शियन में हिन्दू धर्म पर एक किताब लिखी—'तोहफ़ात उल मुवाहिदीन' यानी एकेश्वरवादियों के लिए उपहार। 219 साल पहले लिखी इस किताब में हिन्दू धर्म की मूर्ति पूजा को नकार दिया। बोला मूर्ति में भगवान नहीं है, पाखंड है।