वाराणसी की गलियों में एक दिगम्बर योगी घूमता रहता है। गृहस्थ लोग उसके नग्न वेश पर आपत्ति करते हैं फिर भी पुलिस उसे पकड़ती नहीं। वाराणसी पुलिस की इस तरह की तीव्र आलोचनाएं हो रही थीं। आखिर वारंट निकालकर उस नंगे घूमने वाले साधू को जेल में (1/23)
बंद करने का आदेश दिया गया।
पुलिस के आठ दस जवानों ने पता लगाया, मालूम हुआ वह योगी इस समय मणिकर्णिका घाट पर बैठा हुआ है। जेष्ठ की चिलचिलाती दोपहरी जब कि घर से बाहर निकलना भी कठिन होता है एक योगी को मणिकर्णिका घाट के एक जलते तवे की भाँति गर्म पत्थर पर बैठे देख पुलिस पहले तो (2/23)
सकपकायी पर आखिर पकड़ना तो था ही वे आगे बढ़े। योगी पुलिस वालों को देखकर ऐसे मुस्करा रहा था मानों वह उनकी सारी चाल समझ रहा हो। साथ ही वह कुछ इस प्रकार निश्चिन्त बैठे हुये थे मानों वह वाराणसी के ब्रह्मा हों किसी से भी उन्हें भय न हो। मामूली कानूनी अधिकार पाकर पुलिस का दरोगा (3/23)
जब किसी से नहीं डरता तो अनेक सिद्धियों सामर्थ्यों का स्वामी योगी भला किसी से भय क्यों खाने लगा तो भी उन्हें बालकों जैसी क्रीड़ा का आनन्द लेने का मन तो करता ही है यों कहिए आनंद की प्राप्ति जीवन का लक्ष्य है बाल सुलभ सरलता और क्रीड़ा द्वारा ऐसे ही आनंद के लिए “श्री तैलंग (4/23)
स्वामी” नामक योगी भी इच्छुक रहे हों तो क्या आश्चर्य?
पुलिस मुश्किल से दो गज पर थी कि तैलंग स्वामी उठ खड़े हुए ओर वहाँ से गंगा जी की तरफ भागे। पुलिस वालों ने पीछा किया। स्वामी जी गंगा में कूद गये पुलिस के जवान बेचारे वर्दी भीगने के डर से कूदे तो नहीं, हाँ चारों तरफ से (5/23)
घेरा डाल दिया कभी तो निकलेगा साधु का बच्चा, लेकिन एक घंटा, दो घंटा, तीन घंटा, सूर्य भगवान् सिर के ऊपर थे, अब अस्ताचलगामी हो चले, किन्तु स्वामी जी प्रकट न हुए कहते हैं उन्होंने जल के अंदर ही समाधि ले ली। उसके लिये उन्होंने एक बहुत बड़ी शिला पानी के अंदर फेंक रखी थी और यह (6/23)
जन श्रुति थी कि तैलंग स्वामी पानी में डुबकी लगा जाने के बाद उसी शिला पर घंटों समाधि लगायें जल के भीतर ही बैठे रहते हैं।
उनको किसी ने कुछ खाते पीते नहीं देखा तथापि उनकी आयु 300 वर्ष की बताई जाती है। वाराणसी में घर घर में तैलंग स्वामी की अद्भुत कहानियां आज भी प्रचलित हैं। (7/23)
निराहार रहने पर भी प्रतिवर्ष उनका वजन एक पौण्ड बढ़ जाता था। 300 पौंड वजन था उनका जिस समय पुलिस उन्हें पकड़ने गई इतना स्थूल शरीर होने पर भी पुलिस उन्हें पकड़ न सकी। आखिर जब रात हो चली तो सिपाहियों ने सोचा डूब गया इसीलिये वे दूसरा प्रबन्ध करने के लिए थाने लौट गये इस बीच (8/23)
अन्य लोग बराबर तमाशा देखते रहे पर तैलंग स्वामी पानी के बाहर नहीं निकले।
प्रातः काल पुलिस फिर वहाँ पहुँची। स्वामी जी इस तरह मुस्करा रहे थे मानों उनके जीवन में सिवाय मुस्कान और आनंद के और कुछ हो ही नहीं, शक्ति तो आखिर शक्ति ही है संसार में उसी का ही तो आनंद है। योग द्वारा (9/23)
सम्पादित शक्तियों का स्वामी जी रसास्वादन कर रहे हैं तो आश्चर्य क्या। इस बार भी जैसे ही पुलिस पास पहुँची स्वामी फिर गंगा जी की ओर भागे और उस पार जा रही नाव के मल्ला को पुकारते हुए पानी में कूद पड़े। लोगों को आशा थी कि स्वामी जी कल की तरह आज भी पानी के अंदर छुपेंगे और जिस (10/23)
प्रकार मेढ़क मिट्टी के अंदर और उत्तराखण्ड के रीछ बर्फ के नीचे दबे बिना श्वाँस के पड़े रहते हैं, उसी प्रकार स्वामी जी भी पानी के अंदर समाधि ले लेंगे। किन्तु यह क्या जिस प्रकार से वायुयान दोनों पंखों की मदद से इतने सारे भार को हवा में संतुलित कर तैरता चला जाता है उसी प्रकार (11/23)
तैलंग स्वामी पानी में इस प्रकार दौड़ते हुए भागे मानों वह जमीन पर दौड़ रहे हों। नाव उस पार नहीं पहुँच पाई स्वामी जी पहुँच गये। पुलिस खड़ी देखती रह गई।
स्वामी जी ने सोचा होगा कि पुलिस बहुत परेशान हो गई तब तो वह एक दिन पुनः मणिकर्णिका घाट पर प्रकट हुए और अपने आपको पुलिस के (12/23)
हवाले कर दिया। हनुमान जी ने मेघनाथ के सारे अस्त्र काट डाले किन्तु जब उसने ब्रह्म पाश फेंका तो वे प्रसन्नता पूर्वक बँध गये। लगता है श्री तैलंग स्वामी भी सामाजिक नियमोपनियमों की अवहेलना नहीं करना चाहते थे पर यह प्रदर्शित करना आवश्यक भी था कि योग और अध्यात्म की शक्ति भौतिक (13/23)
शक्तियों से बहुत आगे चढ़-बढ़ कर है तभी तो वे दो बार पुलिस को छकाने के बाद इस प्रकार चुपचाप ऐसे बैठे रहे मानों उनको कुछ पता ही न हो। हथकड़ी डालकर पुलिस तैलंग स्वामी को पकड़ ले गई और हवालात में बंद कर दिया। इन्सपेक्टर पूरी रात गहरी नींद सोया क्योंकि उसे स्वामी जी की (14/23)
गिरफ्तारी की सफलता लग रही थी।
प्रस्तुत घटना “मिस्ट्रीज आँ इंडिया इट्स योगीज” नामक लुई-द-कार्टा लिखित पुस्तक से अधिकृत की जा रही है। कार्टा नामक फ्राँसीसी पर्यटक ने भारत में ऐसी विलक्षण बातों की सारे देश में घूम-घूम कर खोज की। प्रसिद्ध योगी स्वामी योगानंद ने भी उक्त घटना (15/23)
का वर्णन अपनी पुस्तक “आटो बाई ग्राफी आँ योगी” के 31 वे परिच्छेद में किया है।
प्रातः काल ठंडी हवा बह रही थी थानेदार जी हवालात की तरफ आगे बढ़े तो पसीने में डूब गया, जब उन्होंने योगी तैलंग को हवालात की छत पर मजे से टहलते और वायु सेवन करते देखा। हवालात के दरवाजे बंद थे, ताला (16/23)
भी लग रखा था। फिर यह योगी छत पर कैसे पहुँच गया? अवश्य ही संतरी की बदमाशी होगी। उन बेचारे संतरियों ने बहुतेरा कहा कि हवालात का दरवाजा एक क्षण को खुला नहीं फिर पता नहीं साधु महोदय छत पर कैसे पहुँच गये। वे इसे योग की महिमा मान रहे थे पर इन्सपेक्टर उसके लिए बिलकुल तैयार नहीं (17/23)
था आखिर योगी को फिर हवालात में बंद किया गया। रात दरवाजे में लगे ताले को सील किया गया चारों तरफ गहरा पहरा लगा और ताला लगाकर थानेदार थाने में ही सोया। सवेरे बड़ी जल्दी कैदी की हालत देखने उठे तो फिर शरीर में काटो तो खून नहीं। सील बंद ताला बाकायदा बंद। सन्तरी पहरा भी दे रहे (18/23)
उस पर भी तैलंग स्वामी छत पर बैठे प्राणायाम का अभ्यास कर रहे। थानेदार की आँखें खुली की खुली रह गईं उसने तैलंग स्वामी को आखिर छोड़ ही दिया।
श्री तैलंग स्वामी के बारे में कहा जाता है कि जिस प्रकार जलते हुये तेज कड़ाहे में खौल रहे तेल में पानी के छींटे डाले जाएं तो तेल की (19/23)
ऊष्मा बनाकर पलक मारते दूर उड़ा देती है। उसी प्रकार विष खाते समय एक बार आँखें जैसी झपकती पर न जाने कैसी आग उनके भीतर थी कि विष का प्रभाव कुछ ही देर में पता नहीं चलता कहाँ चला गया। एक बार एक आदमी को शैतानी सूझी चूने के पानी को ले जाकर स्वामी जी के सम्मुख रख दिया और कहा (20/23)
महात्मन्! आपके लिए बढ़िया दूध लाया हूँ स्वामी जी उठाकर पी गये उस चूने के पानी को, और अभी कुछ ही क्षण हुये थे कि वो कराहने और चिल्लाने लगा वह आदमी जिसने चूने का पानी पिलाया था। स्वामी जी के पैरों में गिरा, क्षमा याचना की तब कहीं जाकर पेट की जलन समाप्त हुई। उन्होंने कहा (21/23)
भाई मेरा कसूर नहीं है यह तो न्यूटन का नियम है कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया अवश्य होती है। उसकी दिशा उलटी और ठीक क्रिया की ताकत कितनी होती है।
मनुष्य शरीर एक यंत्र, प्राण उसकी ऊर्जा, ईंधन आदि शक्ति, मन इंजन और ड्राइवर चाहे जिस प्रकार के अद्भुत कार्य लिए जा सकते हैं इस (22/23)
शरीर से भौतिक विज्ञान से भी अद्भुत पर यह सब शक्तियाँ और सामर्थ्य योग विद्या, योग साधना में सन्निहित हैं जिन्हें अधिकारी पात्र ही पाते है और आनन्द लाभ प्राप्त करते हैं।
अम्बेडकर के बारे में फैलाये गये मिथक और उनकी सच्चाई?
1 मिथक: अंबेडकर बहुत मेधावी थे।
सच्चाई: अंबेडकर ने अपनी सारी शैक्षणिक डिग्रीयाँ तीसरी श्रेणी में पास की।
2 मिथक: अंबेडकर बहुत गरीब थे!
सच्चाई: जिस जमानें में लोग फोटो नहीं खींचा पाते थे उस जमानें में अंबेडकर की (1/13)
बचपन की बहुत सी फोटो है, वह भी कोट पैंट और टाई में!
3 मिथक: अंबेडकर ने शूद्रों को पढ़ने का अधिकार दिया!
सच्चाई: अंबेडकर के पिता जी खुद उस ज़माने में आर्मी में सूबेदार मेजर थे! इसके अलावा संविधान बनाने वाली संविधान सभा में 26SC और 33ST के सदस्य शामिल थे!
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4 मिथक: अंबेडकर को पढ़नें नहीं दिया गया।
सच्चाई: उस जमानें में अंबेडकर को गुजरात बडोदरा के क्षत्रिय राजा सियाजी गायकवाड़ नें स्कॉलरशिप दी और विदेश पढ़ने तक भेजा और ब्राह्मण गुरु जी ने अपना नाम अंबेडकर दिया।
5 मिथक: अंबेडकर नें नारियों को पढ़ने का अधिकार दिया!
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झांसी के अंतिम संघर्ष में महारानी की पीठ पर बंधा उनका बेटा दामोदर राव (असली नाम आनंद राव) सबको याद है। रानी की चिता जल जाने के बाद उस बेटे का क्या हुआ, वो कोई कहानी का किरदार भर नहीं था, 1857 के विद्रोह की सबसे महत्वपूर्ण कहानी को जीने वाला राजकुमार था, जिसने उसी गुलाम (1/23)
भारत में जिंदगी काटी, जहां उसे भुला कर उसकी मां के नाम की कसमें खाई जा रही थी।
अंग्रेजों ने दामोदर राव को कभी झांसी का वारिस नहीं माना था, सो उसे सरकारी दस्तावेजों में कोई जगह नहीं मिली थी। ज्यादातर हिंदुस्तानियों ने सुभद्रा कुमारी चौहान के कुछ सही, कुछ गलत आलंकारिक वर्णन (2/23)
को ही इतिहास मानकर इतिश्री कर ली।
1959 में छपी वाई एन केलकर की मराठी किताब ‘इतिहासाच्य सहली’ (इतिहास की सैर) में दामोदर राव का इकलौता वर्णन छपा। महारानी की मृत्यु के बाद दामोदार राव ने एक तरह से अभिशप्त जीवन जिया। उनकी इस बदहाली के जिम्मेदार सिर्फ फिरंगी ही नहीं (3/23)
यह रथ-यात्रा की यह प्रथा सत्ययुग से चली आ रही है। रथ यात्रा का प्रसङ्ग स्कन्दपुराण, पद्मपुराण, पुरुषोत्तम माहात्म्य, जगन्नाथजीकी डायरी और श्रीसनातन गोस्वामी द्वारा रचित श्रीबृहद्भागवतामृत तथा हमारे अन्य गोस्वामियों के ग्रन्थों में (1/6)
वर्णित हुआ है।
इस रथ यात्रा का उद्देश्य यह है कि वे लोग जो सम्पूर्ण वर्ष भर में मन्दिर में प्रवेश नहीं पा सकते हैं उन्हें भगवान् के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हो। यह तो रथ यात्रा का बाह्य कारण है किन्तु इसके गूढ़ रहस्य को श्रीचैतन्य महाप्रभु ने प्रकटित किया है।
(2/6)
श्रीजगन्नाथ मन्दिर द्वार का सदृश है और गुण्डिचा मन्दिर वृन्दावन का प्रतीक है। श्रीकृष्ण जन्म से लेकर ग्यारह वर्ष तक व्रज में रहे और वहाँ उन्होंने अपनी मधुरातिमधुर लीलाओं के द्वारा व्रजवासियों को आनन्द प्रदान किया। इसके पश्चात् वे अक्रूरजी के साथ मथुरा चले गये और वहाँ (3/6)
को रट रट कर कुछ अतिवादी हिंदू मोदी को पानी पी पीकर कोसते रहते थे। अब जब मिनिस्ट्री ने इसके बारे में भारतीयों की राय जानने के लिए ईमेल करने को कहा तो इन भाई साहिब को इसके बारे में कुछ पता ही नहीं था। अभी हाल ही में मेरी (1/5)
मोदी की प्रशंसा में लिखी गई किसी पोस्ट पर कमेंट बॉक्स में इन्होंने लिखा था कि मोदी जी यूनिफॉर्म सिविल कोड क्यों नहीं ला रहे? इसको लाने में इतनी देर क्यों कर रहे हैं? अब जब सरकार आम जनता को अपनी राय देने के लिए कह रही है तो इन साहिब को पता ही नहीं कि सरकार इस तरह का कोई (2/5)
प्रयास भी कर रही है। मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने अपनी राय ईमेल कर दी तो बोले अरे यार मुझे तो पता ही नहीं था। मुझे किसी ने बताया थोड़ी ना था मुझे कैसे पता चलता कि ईमेल करनी है और फिर मुझको तो ईमेल करनी भी नहीं आती।
मैंने कहा अपने बच्चों को कह दो। तो बोले अरे यार वह (3/5)
गीता प्रेस को लेकर जयराम रमेश का बयान देखा, तभी लगा कि कांग्रेस के पास कम से कम उत्तर भारत की समझ रखने वाले राजनेता नहीं हैं। इसके पहले वे 'हिंदी इंपीरियलिज्म' शब्द का इस्तेमाल करके यह गलती कर चुके हैं। कांग्रेस को तय करना है कि वह किसकी और किस इलाके की पार्टी है?
लोकसभा (1/6)
चुनाव आने के पहले देश में जाति के आधार पर आरक्षण की बहस एकबार फिर से छिड़ने की संभावना है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी ने दावा किया था कि हम आरक्षण का प्रतिशत 50 फीसदी से ज्यादा करेंगे। कोलार की एक रैली में राहुल गांधी ने नारा लगाया, ‘जितनी आबादी, उतना (2/6)
हक।’ वस्तुतः यह बसपा के संस्थापक कांशी राम के नारे का ही एक रूप है, ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी।’ राहुल गांधी ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जातीय आधार पर आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तक रखी है, उसे खत्म करना चाहिए।