2/5 क्योंकि स्त्रियाँ स्वतन्त्र होने के योग्य नहीं।
टिप्पणी :
ये दो श्लोक निम्नलिखित कारण से प्रक्षिप्त है— 1. अन्तर्विरोध- इन श्लोकों की मान्यता मनु-सम्मत नही है । इनमें स्त्रियों को स्वतन्त्र न रखने की बात कही है, यह स्त्रियों के प्रति हीनभावना बहुत ही परवर्ती काल की है।
3/5 मनु ने पुरुषों की भांति ही स्त्रियों के भी समान अधिकार माने हैं । उन्होने इस शास्त्र में पति-पत्नी के समानस्तर के कर्त्तव्यों का विधान किया है । पत्नी को गृहस्वामिनी कहकर पत्नी की परतंत्रता की बात का खण्डन किया है 9/101-102 में स्त्री-पुरुष के समान धर्मों का कथन किया है
4/5 और 9/10 में स्पष्ट कहा है कि स्त्रियों को कोई बलात् परवश करके दोषों से नही बचा सकता । 9/11 में स्त्री का सब धन का अधिकार, धन का आय-व्यय का हिसाब रखना, धार्मिक कृत्यों की सब व्यवस्था और घर का सब प्रबन्ध का काम सौंपा है । और मनु ने 3/55 से 63 तक श्लोकों में
5/5 स्त्री का पूर्ण सत्कार करने और 9/26 में गृहदीप्ति कहकर स्त्रियों का सम्मान तथा स्वतन्त्रता मानी है । अतः ये (2-3) श्लोक मनु की मान्यता से विरुद्ध होने से प्रक्षिप्त हैं ।
@Profdilipmandal जी कभी अपने बौद्ध ग्रन्थ भी पढ़ लिया करो, आपके त्रिपिटक को तो क्या ही कहना
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अज्ञानी लोग द्रौपदी पर बहुपतित्व का लांछन लगाते हैं पर सत्य यह हैं द्रौपदी का विवाह सिर्फ युधिष्ठिर के साथ हुआ था।
जिस समय द्रौपदी का स्वयंवर हो रहा था। उस समय पांडव लाक्षागृह से बच कर वनो मे रह रहे थे। द्रोपदी के स्वयंवर की सूचना उन्हें मिली। पाञ्चाल देश (पंजाब)
1/23
2/23
मे ये लोग एक कुम्हार के घर में ठहरे और वहाँ से स्वयंवर की शर्त को अर्जुन ने पूर्ण किया। स्वयंवर की शर्त पूरी होने पर द्रौपदी को उसके पिता द्रुपद ने पांडवों को भारी मन से सौंप दिया। राजा द्रुपद पंडितों के भेष में छुपे हुए पांडवों को पहचान नही पाए।
3/23
पांडव द्रौपदी के साथ अपनी माता कुंती के पास पहुंच गये।
माता कुंती ने क्या कहा-
उदार हृदया कुंती माता ने द्रौपदी से कहा-’भद्रे! तुम भोजन का प्रथम भाग लेकर उससे बलिवैश्वदेवयज्ञ करो तथा ब्राहमणों को भिक्षा दो।
अपने आसपास जो दूसरे मनुष्य आश्रित भाव से रहते हैं,