साल था 1952। बिहार की स्वतंत्रता सेनानी तारकेश्वरी सिन्हा पटना से लोकसभा सांसद चुनकर दिल्ली पहुंची। भारत बेहद पिछड़ा लेकिन तारकेश्वरी जी एकदम आधुनिक। बला की खूबसूरत। चेहरे पर एक चार्म। बॉब कट बाल, साड़ी और स्लिवलेस ब्लाउज। वह (1/11)
जहां खड़ी हो जाती थीं, वहां का माहौल ही बदल जाता था। सांसद क्या और मंत्री क्या? सभी के बीच उन्हें लेकर खास दीवानगी थी। उन्हें ग्लैमरस गर्ल ऑफ पार्लियामेंट कहा जाता था। चटकीले नेहरू की वे खास पसंद थी।
प्रधानमंत्री आवास में तारकेश्वरी जी का नियमित आना जाना था। नेहरू जी के (2/11)
उस जमाने मे 2 खास आदमी हुआ करते थे। एक मोहम्मद यूसुफ, दूसरे मथाई। दोनों ही परले दर्जे के आशिकमिजाज।
कुछ लोग संजय गांधी में यूसुफ DNA होने का दावा भी करते हैं लेकिन वो चर्चा फिर कभी। लेकिन जिस बात को मैं गारंटी के साथ बता रहा हूं वह तारकेश्वरी सिन्हा की स्वीकारोक्ति पर (3/11)
टिकी है।
तारकेश्वरी सिन्हा के अनुसार एक बार प्रधानमंत्री आवास की सीढ़ीयां चढ़ रही थी कि मोहम्मद युसुफ ने उन्हें झटके से अपने कमरे में खींच लिया। इस बात की शिकायत जब तारकेश्वरी जी ने नेहरू से की तो नेहरू जी मुस्कुरा कर रह गए। असल मे तारकेश्वरी जी की नजदीकियां नेहरू के (4/11)
दामाद फिरोज खान गांधी से भी थी। यानी ससुर और दामाद दोनों की 'नजदीकी' थी वो। अतः यूसुफ और मथाई जैसे चंगु मंगू को क्यों मुंह लगाती? यही बात उन दोनों को बुरी लगती। वे तारकेश्वरी जी को मोलेस्ट करने का कोई मौका नही चूकते थे।
दिल्ली में रायसीना रोड पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की (5/11)
भव्य बिल्डिंग है। एक जमाने में वह फिरोज़ गांधी का सरकारी आवास था। तारकेश्वरी को अक्सर वहां भी देखा जाता था। एक बार रात नौ बजे के करीब इंदिरा वहां आईं और उन्होंने कमरे में किसी महिला के कपड़े देखे। इंदिरा गुस्से में तमतमा के वंहा से निकल गयी। इंदिरा का अंदाज़ा था कि ये (6/11)
कपड़े तारकेश्वरी के हैं। इसके बाद ताजिंदगी इंदिरा, तारकेश्वरी से नफरत करती रही।
खैर बाद में तारकेश्वरी जी नेहरू कैबिनेट में डिप्टी वित्त मंत्री भी बनीं। कहा जाता है मोरारजी देसाई, नेहरू और सिन्हा जी का त्रिकोणीय संबंध तारकेश्वरी को अवसाद और नींद की गोलियां खाकर बेसुध (7/11)
होने तक पहुंच गया। जब तारकेश्वरी नींद की गोलियां खाने के बाद अस्पताल में भर्ती हुई थी तो मोरारजी देसाई पूरी रात बेचैनी में अस्पताल में टहलते रहे।
नेहरू, तारकेश्वरी, मोरारजी, युसुफ, इंदिरा, फिरोज और हम्मी के संबंध आपस में इस तरह अंतरंग और उलझे थे कि उसका असर कांग्रेस के (8/11)
विभाजन तक का कारण बन गया था। अतः लोग यह कहते है कि कांग्रेस के बुनियादी ढांचे में एक ईंट "सेक्स" का भी रहा है।
ए ओ ह्यूम उसके अंग्रेज सहकर्मी और मोतीलाल नेहरू के बीच संबंधों में रासरंग के अहम योगदान से शुरू होकर वर्तमान में रेणुका चौधरी की बलात्कार की स्वीकारोक्ति तक (9/11)
कांग्रेस की बुनावट सेक्स के चरखे से हुई है, इस बात को नकार नहीं सकते। कांग्रेसी ब्रह्मचर्य की संपुष्टि से लेकर जज बनाने तक के लिए वात्स्यायन सूत्र का प्रयोग करते हैं, यह जगजाहिर ही है। तो कांग्रेस की नेत्री रेणुका चौधरी ने 2 दिन पूर्व जो बयान दिया कि संसद में भी कास्टिंग (10/11)
काऊच होता है वह सही है। कांग्रेस के इतिहास की स्वीकारोक्ति है।
गले का कैंसर था। पानी भी भीतर जाना मुश्किल हो गया, भोजन भी जाना मुश्किल हो गया। तो विवेकानंद ने एक दिन अपने गुरुदेव रामकृष्ण परमहंस से कहा कि "आप माँ काली से अपने लिए प्रार्थना क्यों नही करते? क्षणभर की बात है, आप कह दें, और गला ठीक हो जाएगा! तो (1/8)
रामकृष्ण हंसते रहते, कुछ बोलते नहीं।
एक दिन बहुत आग्रह किया तो रामकृष्ण परमहंस ने कहा, "तू समझता नहीं है रे नरेन्द्र। जो अपना किया है, उसका निपटारा कर लेना जरूरी है। नहीं तो उसके निपटारे के लिए फिर से आना पड़ेगा। तो जो हो रहा है, उसे हो जाने देना उचित है। उसमें कोई भी (2/8)
बाधा डालनी उचित नहीं है।" तो विवेकानंद बोले, "इतना ना सही, इतना ही कह दें कम से कम कि गला इस योग्य तो रहे कि जीते जी पानी जा सके, भोजन किया जा सके! हमें बड़ा असह्य कष्ट होता है, आपकी यह दशा देखकर।" तो रामकृष्ण परमहंस बोले, "आज मैं कहूंगा।"
श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका महाभारत युद्ध के 36 वर्ष पश्चात समुद्र में डूब जाती है। द्वारिका के समुद्र में डूबने से पूर्व श्री कृष्ण सहित सारे यदुवंशी भी मारे जाते है। समस्त यदुवंशियों के मारे जाने और द्वारिका के समुद्र में विलीन होने के (1/27)
पीछे मुख्य रूप से दो घटनाएं जिम्मेदार है। एक माता गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिया गया श्राप और दूसरा ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण पुत्र सांब को दिया गया श्राप।
महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब युधिष्ठिर का राजतिलक हो रहा था तब कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के (2/27)
लिए श्रीकृष्ण को दोषी ठहराते हुए श्राप दिया की जिस प्रकार कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार यदुवंश का भी नाश होगा।
महाभारत युद्ध के बाद जब छत्तीसवां वर्ष आरंभ हुआ तो तरह तरह के अपशकुन होने लगे। एक दिन महर्षि विश्वामित्र, कण्व, देवर्षि नारद आदि द्वारका गए। वहां (3/27)
जहां पूरा देश आजादी की 77वीं वर्षगांठ मना रहा है! ऐसे में आवश्यक भी है कि देशवासियों के समक्ष यह सत्य आना ही चाहिए!!
कि कैसा था आजादी का तथाकथित महात्मा?
एक नजर... अंतिम सत्य...
मोहनदास करमचंद गांधी की कथित सेक्स लाइफ़ पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई है। लंदन के प्रतिष्ठित (1/28)
अख़बार “द टाइम्स” के एक 2012 के लेख के मुताबिक गांधी को कभी भगवान की तरह पूजने वाली 82 वर्षीया गांधीवादी इतिहासकार कुसुम वदगामा ने कहा है कि गांधी को सेक्स की बुरी लत थी, वह आश्रम की कई महिलाओं के साथ निर्वस्त्र सोते थे, वह इतने ज़्यादा कामुक थे कि ब्रम्हचर्य के प्रयोग और (2/28)
संयम परखने के बहाने चाचा अमृतलाल तुलसीदास गांधी की पोती और जयसुखलाल की बेटी मनुबेन गांधी के साथ सोने लगे थे। ये आरोप बेहद सनसनीख़ेज़ हैं क्योंकि किशोरावस्था में कुसुम खुद भी गांधी की अनुयायी रही हैं। कुसुम, दरअसल, लंदन में पार्लियामेंट स्क्वॉयर पर गांधी की प्रतिमा लगाने (3/28)
चित्तौड़गढ की रानी द्वारा हुमायूं को राखी भेजने की कथा का तथ्यात्मक विश्लेषण, गर्म रक्त चमड़ी की गन्ध याद रखना हिंदुओं।
राखी का ऐतिहासिक झूठ, सन 1535 दिल्ली का शासक है बाबर का बेटा हुमायूँ
उसके सामने देश में दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं, पहला अफगान शेर खाँ और दूसरा गुजरात (1/18)
का शासक बहादुरशाह... पर तीन वर्ष पूर्व सन 1532 में चुनार दुर्ग पर घेरा डालने के समय शेर खाँ ने हुमायूँ का अधिपत्य स्वीकार कर लिया है और अपने बेटे को एक सेना के साथ उसकी सेवा में दे चुका है।
अफीम का नशेड़ी हुमायूँ शेर खाँ की ओर से निश्चिन्त है, हाँ पश्चिम से बहादुर शाह का (2/18)
बढ़ता दबाव उसे कभी कभी विचलित करता है।
हुमायूँ के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दोष है कि वह घोर नशेड़ी है। इसी नशे के कारण ही वह पिछले तीन वर्षों से दिल्ली में ही पड़ा हुआ है, और उधर बहादुर शाह अपनी शक्ति बढ़ाता जा रहा है। वह मालवा को जीत चुका है और मेवाड़ भी उसके अधीन है। पर (3/18)
मुसलमानों को अभी तक तो यही लग रहा था कि वे भारत जीत लेंगे।
उन्हें लगता है कि उन्होंने 600 साल राज किया, बीच में अंग्रेज टपक पड़े वरना सबकुछ उनका ही था। अलीगढिया इतिहासकारों के अनुसार आजादी की लड़ाई मुस्लिम अपना खोया राज वापस प्राप्त करने के लिए (1/15)
लड़े, खून बहाया लेकिन 1947 में दो छोटे भूमि के टुकड़ों से ही उन्हें संतोष करना पड़ा। जब तक यहूदी और हिन्दू फतेह नहीं कर लिए जाते, कयामत सम्भव नहीं और उसके बिना हिसाब लटका हुआ है और अभी हूरें भी काफी दूर है।
भारत विजय का उनका सपना अब भी अधूरा है। आज जब वे भारत (2/15)
में अपनी स्थिति देखते हैं तो कहीं से भी विजेता जैसा अहसास या सम्मान उन्हें नहीं मिल पा रहा, उल्टा उन्हें पता है, सम्मान तो दूर हिन्दू मन अतिशय घृणा के साथ सामने खड़ा दिखाई देता है।
गंगा जमुनी तहजीब और सेक्युलरों द्वारा खड़े किए गए कृत्रिम टिन टप्पर उड़ चुके हैं, खुला (3/15)
जब चंद्रशेखर आजाद की शव यात्रा निकली... देश की जनता नंगे पैर... नंगे सिर चल रही थी... लेकिन कांग्रेसियों ने शव यात्रा में शामिल होने से इनकार कर दिया था।
एक अंग्रेज सुप्रीटेंडेंट ने चंद्रशेखर आजाद की मौत के बाद उनकी वीरता की प्रशंसा करते हुए कहा था कि चंद्रशेखर आजाद पर (1/14)
तीन तरफ से गोलियां चल रही थीं... लेकिन इसके बाद भी उन्होंने जिस तरह मोर्चा संभाला और 5 अंग्रेज सिपाहियों को हताहत कर दिया था... वो अत्यंत उच्च कोटि के निशाने बाज थे... अगर मुठभेड़ की शुरुआत में ही चंद्रशेखर आजाद की जांघ में गोली नहीं लगी होती तो शायद एक भी अंग्रेज सिपाही (2/14)
उस दिन जिंदा नहीं बचता।
शत्रु भी जिसके शौर्य की प्रशंसा कर रहे थे... मातृभूमि के प्रति जिसके समर्पण की चर्चा पूरे देश में होती थी.. जिसकी बहादुरी के किस्से हिंदुस्तान के बच्चे बच्चे की जुबान पर थे... उन महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की शव यात्रा में शामिल होने से (3/14)