काला जादू-तंत्र बाधा के प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं🧵
जिसपर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो वह आसमान्य तरीके से हरदम बीमार रहता है और डॉक्टर वैद्य को दिखाने पर भी रोग पता नहीं चलता।असमान्य तरीके से उसके चेहरे की रौनक चली जाती है।आंख के नीचे काले घेरे पड़ जाते हैं और काया जर्जर होती जाती है।
जिसपर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो उसे बेवजह का ही तनाव बना रहता तथा आत्महत्या की इच्छा बनती रहती है ।वह हरदम घर परिवार को छोड़ कर दूर चले जाने की सोच रखता है ।उसे मित्र बांधव की अच्छी बातें भी कटु वचन लगने लगती हैं ,वह सबसे अलग थलग रहने लगता है।
जिस पर तांत्रिक प्रयोग हुआ हो उसका स्व गृह नहीं बन पाता ,या तो वह जमीन ही नहीं खरीदता या उसका निर्माणकार्य कभी पूर्णता तक नहीं पहुँच पाता ।हरदम कोई न कोई विघ्न पड़ते रहते । निर्माण कार्य आरंभ करते ही घर के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है या बहुत बड़ा आर्थिक घाटा लग जाता है।
जिसपर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो उसके बच्चे भी हरदम बीमार पड़ते रहते है ,पढ़ाई मे कमजोर हो जाते है ,उनका शारीरिक - मानसिक विकास अवरुद्ध सा हो जाता है। बच्चों में आपराधिक प्रवृति बढ़ने लगती है ,अचानक से वो नशे की तरफ झुकाव करने लगते हैं । हरवक्त हिंसात्मक रवैया बनाए रहते हैं और बड़ों की बात नहीं मानते हैं।
परिवार में कोई न कोई हरदम बीमार रहता है जिससे कि बीमारी में धन की बर्बादी होती है ,डॉक्टर भी रोग की सही वजह नहीं बता पाते । एक सदस्य स्वस्थ्य हो तो दूसरा बीमार पड़ जाता है ।बीमारी का चक्र ही खत्म नहीं होता।
विवाह के कई वर्ष बीत जाने पर और हर प्रकार से मेडिकली फिट होने पर भी संतानसुख नहीं मिलता या बार बार गर्भपात हो जाता है या जन्म लेते ही संतान की मृत्यु हो जाती है ।तब यह मान लेना चाहिए कि तांत्रिक प्रयोग द्वारा कोख बांध दी गयी है।
यदि घर के सबसे छोटे सदस्य की अचानक ही बिना कारण मौत हो जाए तो मुठ विद्या का प्रयोग मानना चाहिए।
जिसपर काली शक्तियों का प्रयोग किया जाता है उसके हितैषी भी उससे मुंह फेरने लग जाते हैं और शत्रुवत व्यवहार करने लगते है । जिनकी कभी मदद की हो वह भी नजर फेर लेते है और उसे अकेला छोड़ देते है।
जिसपर तांत्रिक प्रयोग किया गया हो वह कहीं भी चैन नही पाता है ।वह नया घर भी ले तो उसे समस्याओं का ही सामना करना पड़ता है।परेशानी जैसे उसका पीछा ही नहीं छोड़ती है।
जिसपर तांत्रिक प्रयोग हो उसके अंदर व्यर्थ की चिड़चिड़ाहत भर जाती है ,वह अवसाद ग्रस्त हो जाता है और सफलता की उम्मीद छोड़ देता है । उसका आत्मबल क्षीण हो जाता है और किसी की प्रेरक बातें भी उसे जहर समान प्रतीत होती है।
भैरव अपने भक्तों को भयानक शत्रुओं, लालच, वासना और क्रोध से बचाता है…..🧵
भैरव शब्द की उत्पत्ति भैरु से हुई है, जिसका अर्थ है "भयभीत"।
भैरव का अर्थ है "बहुत भयावह रूप"। इसे भय को नष्ट करने वाले या भय से परे रहने वाले के रूप में भी जाना जाता है। सही व्याख्या यह है कि वह अपने भक्तों को भयानक शत्रुओं, लालच, वासना और क्रोध से बचाता है।
भैरव अपने भक्तों को इन दुश्मनों से बचाता है। ये दुश्मन खतरनाक हैं क्योंकि ये इंसानों को कभी भी भगवान की तलाश नहीं करने देते। इसलिए वह परम या परम हो जाता है।
एक विचारधारा है जो कहती है कि शिव ने स्वयं भैरव की रचना की। दहुरासुर नाम से एक राक्षस था जिसे एक वरदान मिला था कि उसे केवल एक महिला द्वारा ही मारा जा सकता है। पार्वती द्वारा उन्हें मारने के लिए काली का आह्वान किया गया था। काली के क्रोध ने राक्षस को मार डाला।
दानव को मारने के बाद, उसका क्रोध एक बच्चे के रूप में बदल गया। काली ने बच्चे को अपना दूध पिलाया। शिव ने काली और बच्चे दोनों को अपने साथ मिला लिया। शिव के इस विलीन रूप से, भैरव अपने आठ रूपों (अष्टांग भैरव) में प्रकट हुए। चूँकि भैरव को शिव ने बनाया था, इसलिए उन्हें शिव के पुत्रों में से एक कहा जाता है।
पुराण भी भैरव के विभिन्न संस्करण देते हैं। इस संस्करण में, देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध हुआ। राक्षसों को मिटाने के लिए, शिव ने काल भैरव की रचना की, जिनसे अष्टांग भैरव बनाए गए। इन अष्ट भैरवों का विवाह अष्ट मातृकाओं से हुआ। इन अष्ट भैरवों और अष्ट मातृकाओं के भयानक रूप हैं। इन अष्ट भैरवों और अष्ट मातृकाओं में से, 52 भैरव और 64 योगिनियाँ बनाई गईं।
आमतौर पर शिव मंदिरों में, भैरव की मूर्तियाँ उत्तर दिशा में, दक्षिणी दिशा की ओर स्थित होती हैं। उन्हें कृष्णपाल भी कहा जाता है। वह चार हाथों के साथ एक स्थायी स्थिति में दिखाई देता है। उनके हथियार एक ड्रम, पाशा, त्रिशूल और खोपड़ी हैं। भैरव के कुछ रूपों में, चार से अधिक हाथ हैं। वह बिना ड्रेस और डॉग के दिखाई देता है। उसके हथियार, कुत्ते, उभरे हुए दाँत, भयानक रूप और लाल फूलों वाली एक माला सभी उसे भयावह रूप देते हैं।
प्रश्न है कि राम का कुल इतिहास बावन वर्ष का ही तो है। राम ने ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य किया, वह इतिहास कहाँ गया?
सत्ताईस वर्ष के थे तब उनका विवाह हुआ। घर लौटे तो उनका वनवास हो गया। चौदह वर्ष वे वन में रहे। सत्ताईस और चौदह मिलकर इकतालीस हुआ। लंका से लौटते ही सीता अयोध्या की जनता में चर्चा का विषय बन गयीं। राम ने उन्हें वन भेज दिया, जहाँ लव कुश का जन्म हुआ। लव कुश ग्यारह वर्ष के थे कि राम के अश्वमेध का घोड़ा पकड़ लिया। अश्वमेध राम का अन्तिम कृत्य था। इकतालीस और ग्यारह कुल बावन वर्ष ही तो हुए। जैसा आप लोग कहते हैं, राम ने ग्यारह हजार वर्षों तक राज्य किया, वह इतिहास कहाँ गया?
वाल्मीकीय ‘रामायण’ के अनुसार उनका इतिहास तो मात्र पचास बावन वर्ष का है। लोग कहते हैं कि राम ने लंका में बहुत से निशाचरों को मार डाला, तो क्या हो गया! हिटलर ने भी तो साठ लाख को मौत के घाट उतार दिया था। इतने से तो राम की कोई विशेषता समझ में नहीं आती।
हिटलर ने इतने लोगों को मारा तो उसका अस्तित्व भी नहीं रह गया; किन्तु राम की उपलब्धियों की एक लम्बी शृंखला है। रावण वध के पश्चात् राम ने कभी अस्त्र नहीं उठाया। आरम्भ में कहीं साधारण सी आवश्यकता भी पड़ी, तो कहीं लक्ष्मण को भेज दिया, कहीं भरत या शत्रुघ्न को। संसार चाहता है कि सामान्य जनजीवन को सम्पन्न बना दें लेकिन आज तक ऐसा कोई कर न सका।
आज समृद्ध देशों में आत्महत्याएँ अधिक हो रही हैं, वृद्धावस्था वहाँ अभिशाप बन गयी है। दम्पतियों ने बच्चे तो अनेक पैदा किये; किन्तु वृद्धावस्था में सहायता के लिये कोई नहीं। अस्पताल में बुजुर्ग की मौत होती है, वहाँ से फोन आता है कि तुम्हारे पिताजी अब नहीं रहे, तो बच्चे दो मिनट का मौन धारण कर लेते हैं। वहीं से सीखा हमने दो मिनट मौन! यह वहाँ की संस्कृति है।
दुःख अपनी जगह है। जीवन की अन्तिम साँसें गिन रहा है अस्पताल में, अपने स्वजनों से अलग थलग, आस पास अपना कोई नहीं! दुःख नहीं तो क्या है?
भगवान् राम के राज्य में किसी प्रकार का दुःख नहीं था। संसार के लोग जो सुख देखना चाहते हैं वह सब राम के राज्य में था। लाखों वर्षां से जो आततायी समाज को दुःख दे रहा था, राम ने पहले तो उसका समूल अन्त किया, तत्पश्चात् रावण के जो अनुचर अनुयायी बच रहे थे, उनका हृदय परिवर्तन किया और संसार में शान्ति की एक ऐसी लहर पैदा कर दी कि
‘राम राज बैठें त्रैलोका। हरषित भये गये सब सोका।।’
केवल अयोध्या ही नहीं, तीनों लोकों में हर्ष छा गया, शोक सन्ताप सदा सदा के लिए मिट गये।
‘अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा।
सब सुन्दर सब बिरुज सरीरा।।’
स्वास्थ्य विभाग उत्तम! सबके शरीर रोगमुक्त!
‘बरनाश्रम निज निज धरम, निरत वेदपथ लोग।’
चारों वर्णों के लोग अपनी अवस्था के अनुसार आचरण में निरत अर्थात् अनासक्त भाव से तल्लीन!
‘वेदपथ’: शूद्र थे अवश्य लेकिन वेद के अनुसार चलते थे, ‘चलहिं सदा’: निरन्तर चलते थे, ‘पावहिं सुखहि’: सुख प्राप्त करते थे। ‘नहिं भय सोक न रोग।।’