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Nov 24 7 tweets 3 min read
बजरंग बाण हनुमानजी की स्तुति का एक अत्यंत शक्तिशाली पाठ है इसे साधारण ना समझें ⚠️

भारी विपदा या संकट आने पर ही इसका पाठ किया जाता है, यह रोज रोज पढ़ने की वस्तु नहीं है, क्योंकि इसमें हनुमान जी के बीज मंत्र है, और उन्हें भगवान राम की कसमें देकर बुलाया गया है👉🧵 Image ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले। वैरहिं मारू बज्र सम कीलै।।

- इन पंक्तियों में हनुमान जी का आवाहन किया गया है और शत्रुओं को मारने की बात बोली गई है, हनु एक बीज मंत्र है। Image
Oct 18 8 tweets 3 min read
कामाख्या देवी मंदिर के इन रहस्‍यों को जानकर खुली की खुली रह जाएंगी आपकी आंखें

#Thread 👇

असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर में देवी सती की योनी की पूजा होती है। साल के 3 दिन यहां पुरुषों का प्रवेश करना वर्जित है। Image माता कामाख्या देवी मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। भारतवर्ष के लोग इसे अघोरियों और तांत्रिक का गढ़ मानते हैं। असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 10 किमी दूर नीलांचल पर्वत पर स्थित है। मंदिर की खास बात यह है कि यहां न तो माता की कोई मूर्ति है और न ही कोई तस्‍वीर।Image
Oct 15 7 tweets 2 min read
हनुमान जी विवाह के बाद भी क्यों कहलाए ब्रह्मचारी?

#Thread 👇

सनातन धर्म में भगवान हनुमान जी को संकटों से उबारने वाला देवता माना गया है। रामायण ग्रंथ के अनुसार हनुमान जी को वानर के मुख वाले अधिक बलिष्ठ पुरुष के रूप में दिखाया गया है। हनुमान जी ने जीवन में सदैव ब्रह्मचर्य धर्म का पालन किया था। कुछ पौराणिक शास्त्रों में हनुमान जी के विवाहित होने का जिक्र किया गया है लेकिन फिर भी वे सदैव ब्रह्मचारी रहे।Image पराशर संहिता की एक कथा के अनुसार, हनुमान जी विवाहित माने गए हैं। सूर्यदेव की बेटी सुवर्चला के संग हनुमान जी का विवाह हुआ था। ग्रंथ के अनुसार, हनुमान जी ने 9 विद्याओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए सूर्य को अपना गुरु बनाया था।
Oct 6 17 tweets 3 min read
एक बार अयोध्या में राघवेंद्र भगवान श्रीराम ने अपने पितरों का श्राद्ध करने के लिए ब्राह्मण-भोजन का आयोजन किया। ब्राह्मण-भोजन में सम्मिलित होने के लिए दूर-दूर से ब्राह्मणों की टोलियां आने लगीं । Image भगवान शंकर को जब यह मालूम हुआ तो वे कौतुहलवश एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धर कर ब्राह्मणों की टोली में शामिल होकर वहां पहुंच गए और श्रीरामजी से बोले—‘मुझे भी भोजन करना है।
Oct 5 9 tweets 2 min read
कई बार अनजाने में कई प्रकार कि गलतिया कर बैठते है। जिसका परिणाम ठीक नहीं होता है। कृपया इन बातों का ध्यान दीजिये — Image 1. किसी निर्जन एकांत या जंगल आदि में मलमूत्र त्याग करने से पूर्व उस स्थान को भलीभांति देख लेना चाहिए कि वहां कोई ऐसा वृक्ष तो नहीं है। जिस पर प्रेत आदि निवास करते है। अथवा उस स्थान पर कोई मजार या कब्रिस्तान तो नहीं है।
Oct 4 13 tweets 3 min read
अधिकतर घरों में बच्चे यह दो प्रश्न अवश्य पूछते हैं जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है? राम और सीता की पूजा क्यों नही? Image दूसरा यह कि दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं?
इन प्रश्नों का उत्तर अधिकांशतः बच्चों को नहीं मिल पाता और जो मिलता है उससे बच्चे संतुष्ट नहीं हो पाते।
Oct 2 9 tweets 2 min read
तुलसीदास जी जब हनुमान चालीसा लिखते थे लिखे पत्रों को रात में संभाल कर रख देते थे सुबह उठकर देखते तो उन में लिखा हुआ कोई मिटा जाता था।

तुलसीदास जी बहुत परेशान हुए उन्होंने हनुमान जी की आराधना की, हनुमान जी प्रकट हुए तुलसीदास ने बताया कि मैं हनुमान चालीसा लिखता हूं तो रात में कोई मिटा जाता है।Image हनुमान जी बोले वह तो मैं ही मिटा जाता हूं।
तुलसीदास जी श्री हनुमान जी के चरणों में गिर पड़े तो हनुमान जी ने कहा अगर प्रशंसा ही लिखनी है तो मेरे प्रभु श्री राम की लिखो मेरी नहीं, तुलसीदास जी को उस समय अयोध्याकांड का प्रथम दोहा याद आया:
Sep 8 10 tweets 3 min read
10 powerful and widely recited mantras in Sanatan Dharma

1. Gayatri Mantra Image 2. Maha Mrityunjaya Mantra Image
Sep 6 10 tweets 3 min read
10 Must visit Shakti Peethas are considered vital due to their strong spiritual presence.

1.Kamakhya Devi Temple, Assam

Body Part: Yoni (Womb) Image 2. Vaishno Devi Temple, Jammu and Kashmir

Body Part: Skull Image
Sep 1 7 tweets 2 min read
7 powerful hymns from the Rigveda

1.Gayatri Mantra (Rigveda 3.62.10)

'ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्' Image 2. Purusha Sukta (Rigveda 10.90)

सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात्‌।
स भूमिं विश्वतो वृत्वाऽत्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम्‌॥ Image
Aug 26 10 tweets 3 min read
Here are 10 of Bhagwan Krishna's most famous leelas (divine pastimes) on the Krishna Janmashtami occasion ❣️

1. Makhan Chori Leela (Butter Theft) Image 2. Kaliya Mardan Leela (Defeating Kaliya the Serpent) Image
Nov 8, 2023 4 tweets 9 min read
वाल्मीकि रचित रामायण और तुलसीदास रचित रामायण में किन किन प्रसंगो में अंतर है?

वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास कृत रामचरितमानस में बहुत सारे अन्तर हैं जिन्हें दोनों ग्रन्थ पढ़ने पर सरलता से देखा जा सकता है।

सर्वप्रथम दोनों ग्रन्थों को लिखने की भावना में ही बहुत अन्तर है। ऋषि वाल्मीकि ने जहाँ मूलकथा को एक अवतार के रूप में बताने का प्रयत्न किया है, वहीं तुलसीदास ने श्रीराम की भक्ति में ग्रन्थ लिखा है। वाल्मीकि के राम देवताओं के हित के लिए विष्णु के अवतार हैं परन्तु तुलसीदास के राम स्वयं सर्वशक्तिशाली, अनादि, अनन्त ईश्वर हैं। स्वयंभुव मनु-शतरूपा तपस्या से राम को प्रसन्न कर उन्हें पुत्र रूप में पाने का वरदान माँगते हैं। यहाँ कहीं-कहीं सीता को लक्ष्मी से भी महान दर्शाया गया है। दूसरा अन्तर जो सभी जानते हैं, वह भाषा का है। रामायण कई शताब्दियों तक संस्कृत में पढ़ी-सुनी जाती रही, उसका अनुवाद दक्षिण भारत की अन्य भाषाओं में तो हुआ था परन्तु उत्तर भारत में नहीं। ऐसे में जब सम्पूर्ण भारत में इस्लाम का प्रचार-प्रसार हो रहा था, धर्मांतरण का बोलबाला था, तुलसीदास ने श्रीराम के सुराज्य के अर्थ को समझाने हेतु रामकथा को जनमानस की भाषा में बताने का बीड़ा उठाया। उन्होंने इसके लिए अवधी भाषा को चुना। वह अयोध्या में रहते थे और उन्होंने अयोध्या में ही इस ग्रन्थ को रामनवमी के दिन लिखना प्रारम्भ किया। रामायण (उत्तरकाण्ड) के अनुसार वाल्मीकि प्रचेता के दसवें पुत्र थे जो धर्मात्मा थे परन्तु तुलसीदास उन्हें मूढ़ (राम को मरा-मरा कहने वाले) बताते हैं। कदाचित वाल्मीकि एक से अधिक रहे हों। पहले वाल्मीकि रामायण के रचयिता और बाद में उन्हीं की परम्परा निभाने वाले अन्य। उन्हीं अन्य वाल्मीकियों में रत्नाकर डाकू रहा होगा जिसे तुलसीदास ने प्रथम वाल्मीकि समझा हो। तुलसीदास ने अपने ग्रन्थ में कई विरोधाभास दिखाए हैं। उदाहरणार्थ, बालकाण्ड में सती-शिव को सीताहरण के समय दिखाया गया है जबकि सती सतयुग में ही दक्षयज्ञ में भस्म हो चुकीं थीं। बाद में शिव-पार्वती के विवाह में उन्हें गणेश की पूजा करते हुए बताया गया है। सीता विवाह से पूर्व पार्वती की पूजा करतीं हैं और उन्हें कार्तिकेय व गणेश की माता कह कर उनकी स्तुति करतीं हैं। राम-सीता विवाह में भी पार्वती के सम्मिलित होने का कई बार वर्णन है। रामचरितमानस में दशरथ-कौशल्या को कश्यप-अदिति एवं मनु-शतरूपा का अवतार बताया गया है जबकि रामायण में नहीं। रामायण में दशरथ की 350 स्त्रियाँ हैं जिनमें तीन मुख्य हैं। राजा की प्रत्येक वर्ण (क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) से रानी होती थी। इस प्रकार राजा प्रजा का पिता होता था। रामचरितमानस में केवल तीन रानियों का वर्णन है।Image रामायण में अहिल्या को अदृश्य होकर रहने का श्राप दिया जाता है जिनका उद्धार राम के दर्शन से होता है और राम-लक्ष्मण उनके पाँव छूते हैं जबकि रामचरितमानस में अहिल्या को पत्थर की देह धारण करने का श्राप मिलता है एवं राम की चरणधूल से उनका उद्धार होता है।
रामायण में राम सीता के स्वयंवर में नहीं जाते हैं, वह जनक के यज्ञ में शिवधनुष देखने मिथिला जाते हैं और उसकी कथा सुनकर उसे उठा कर प्रत्यंचा चढ़ाते हैं, जिससे धनुष टूट गया। पूर्वकाल में कई योद्धा शिवधनुष उठाने में असफल हो चुके थे। रामचरितमानस में सीता के स्वयंवर में रावण एवं बाणासुर के धनुष को छूए बिना भाग जाने और राम द्वारा धनुर्भंग का वर्णन है। पुष्पवाटिका में राम-सीता के एक दूसरे को देखने का भी वर्णन है।
रामभक्ति में तुलसीदास ने अन्य चरित्रों में दोष लगा दिये हैं। लक्ष्मण को बहुत अधिक क्रोधी दिखाया है जो स्वयंवर के समय जनक पर क्रोध दिखाते हैं और धनुर्भंग के बाद परशुराम से परिहास करते हैं। सेतुबंध से पहले भी लक्ष्मण समुद्र पर क्रोध करते हैं। रामायण में जनक एवं परशुराम से लक्ष्मण की कोई वार्ता नहीं होती है। समुद्र पर भी राम ने स्वयं क्रोध करके बाण छोड़ दिया था, लक्ष्मण ने ही दूसरा बाण छोड़ने से राम को रोका था। रामायण में लक्ष्मण को दो बार क्रोध करते हुए दर्शाया गया है - पहला राम के वनवास की सूचना पर और दूसरा भरत के चित्रकूट आगमन पर।
इसी प्रकार देवताओं और विशेषतः इन्द्र को तुलसीदास ने बहुत ही अशोभनीय शब्द कह दिए हैं जबकि रामायण में उनकी महिमा कई बार बताई गई है। कई महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के मरने के बाद इन्द्रलोक प्राप्त करने का वर्णन है जैसे - श्रवणकुमार, शरभंग ऋषि, दशरथ आदि। सीता को अशोकवाटिका में इन्द्र दिव्य खीर खिलाने जाते हैं जिससे सीता को कई वर्षों तक भूख न लगे। हनुमान को इन्द्र ने इच्छामृत्यु का वरदान दिया था।
रामायण में परशुराम जी धनुर्भंग के तुरन्त बाद नहीं आते हैं, वह बारात अयोध्या वापस लौटते समय रास्ते में मिलते हैं और दशरथ तथा राम से बात करते हैं। राम क्रुद्ध होकर उनसे वैष्णव धनुष लेकर उनके पुण्य नष्ट कर देते हैं जबकि रामचरितमानस में परशुराम स्वयंवरसभा में ही पहुँच जाते हैं और लक्ष्मण-विश्वामित्र सम्वाद होता है। राम परशुराम से विनयपूर्वक बात करते हैं और परशुराम वापस लौट जाते हैं।
रामायण में राम एवं सीता की आयु का वर्णन किया गया है जिससे पता चलता है कि विवाह के समय राम की आयु 15 वर्ष और सीता की आयु 6 वर्ष थी। उसके उपरान्त वह 12 वर्ष अयोध्या में रहे अर्थात वनवास के समय राम 27 वर्ष और सीता 18 वर्ष की थीं (यह तथ्य कुछ पाठकों को आपत्तिजनक लग सकता है परन्तु ग्रन्थ में ऐसा ही है। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि आज-कल का उपलब्ध ग्रन्थ मूल ग्रन्थ नहीं है। उसमें कई क्षेपक हैं)। रामचरितमानस में पात्रों की आयु गणना नहीं मिलती है।
Nov 8, 2023 4 tweets 5 min read
महेश्वर शिव नारद संवाद

महेश्वर शिव कहते हैं -- हे नारद ! मनुष्य की ऐसी कोई कामना नही जो पार्थिव लिंगार्चन से फलीभूत न हो सके। मनुष्य पार्थिव पूजन द्वारा अपनी समस्त मनोकामना को प्राप्त कर सकता है।

कामनानुसार लिंगों की संख्या का विधान है जिसको जानकर विधिक संख्यानुसार निर्माण करना चाहिए और विधिविधान सहित अर्चन करना चाहिए। लिंग की आकृति पके हुए जामुन के फल के तुल्य हो तो उत्तम बताया गया है।

1.विद्यार्थी एक हजार लिंग बना कर अपनी विद्या को सिद्धिप्रद कर सकते है।
2.धनार्थी को पांच सौ लिंग बना कर अर्चना करनी चाहिए।
पुत्रार्थी पंद्रह सौ पचपन लिंग का निर्माण करे।
3.मोक्षार्थी एक करोड़ लिंग बनाए।
4.भूमि के अभिलाषी को एक सहस्र लिंग बनाना चाहिए।
5.सुंदर रूप चाहने वाले को तीन हजार लिंग का निर्माण सहित पूजन करना चाहिए।
6.तीर्थ समागम की अभिलाषा वाले को दो हजार लिंगार्चन करना चाहिए।
7.अपने संबधी जन के उन्नति-प्रगति की कामना वाले को तीन हजार लिङ्ग का निर्माण करना चाहिए।
8.उत्तम वस्त्र की अभिलाषा वाले को १०८ लिङ्ग निर्माण करना चाहिये।
9.शत्रु के दमन हेतु ७०० लिंग निर्माण का विधान है।
10.मोहन कर्म हेतु ८०० लिंगार्चन का आदेश है।
11.स्तंभन हेतु १००० लिंग निर्माण होना चाहिए।
12.बन्धन मुक्ति ( ऋण आदि से मुक्ति हेतु) १५०० लिंग निर्माण सहित पूजन का विधान है।
13.राजदण्ड भय उपस्थित होने पर ५०० लिंग का पूजन करें।
14.चौरभय होने पर २०० और कारागृह से मुक्ति हेतु दस हजार लिंग बनाकर पूजन करना चाहिये।
15.डाकिनी आदि अदृश्य दैवी शक्तियों के भय निवारण के लिए ७००० लिङ्ग निर्माण करके पूजन करना चाहिये।
16.मनोभिलषित सफलता प्राप्त करने के लिए दस हजार लिंगार्चन करना चाहिये।
17.एक लक्ष लिंगार्चन करने वाला शिव सानिध्य प्राप्त करता है।
Image महेश्वर कहते हैं कि हे नारद ! पार्थिव लिंगपूजन से कोटियज्ञ के फल प्राप्त होते हैं। पुरुषार्थ चतुष्ट्य सहज सुलभ हो जाता है।

ब्रह्मदोष निवृत्ति हेतु स्वर्णलिंग की पूजा करें।
लवण लिंग के पूजन से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
बालुका निर्मित लिङ्ग से अनेक गुणों की प्राप्ति होती है।
तिल-पिष्ट (तिल के आटे से) से निर्मित लिंग के पूजन से ग्राम प्राप्त होता है।
भूसा के लिंग का पूजन मारण कर्म में सफलता देता है।
अभिलषित अन्न से निर्मित लिंग अभिलषित अन्न की प्रचुरता देता है।
गुड़ निर्मित लिंग प्रीति वृद्धि कारक होता है।
चन्दन आदि गंध निर्मित लिंगार्चन से भोग प्राप्त होता है।
सर्करा निर्मित लिंग के पूजन से सुख प्राप्ति होती है।
यवपिष्ट (जौ का आटा) द्वारा निर्मित लिंग के पूजन से संतान सुख की प्राप्ति होती है।
चावल के आटे से निर्मित लिंग की अर्चना बहुपुत्र प्रदान कराती है।
सभी प्रकार के रोगों के नाश के लिए गाय के गोबर से लिंग का निर्माण करके उसका विधिवत पूजन करना चाहिए।
शत्रुनाश हेतु केश-अस्थि के लिंग का पूजन करना चाहिए।
हरिद्रा चूर्ण से निर्मित लिंग स्तम्भन शक्ति प्रदान करता है।
लवण निर्मित लिंग वशीकरण शक्ति प्रदाता है।
तंदुलचूर्ण से निर्मित लिंग के अर्चना से विद्या प्राप्त होती है।
दही-दुग्ध से निर्मित लिंग का विधिवत पूजन कीर्ति, लक्ष्मी एवं सुख प्रदाता होता है।
धान्य निर्मित लिंग धान्य देने वाला और फल निर्मित लिंग फल देने वाला होता है।
मुक्ताफल (कोहड़ा) या आंवला फल से निर्मित लिंग समस्त सौभाग्य, एवं पूण्य देने वाला होता है।
मक्खन से निर्मित लिंग कीर्ति एवं राज्य देने वाला होता है।
दूर्वा एवं गिलोय से निर्मित लिंग अपमृत्यु अर्थात् अकालमृत्यु का निवारक होता है।
ईंख से निर्मित लिंग का पूजन उच्चाटन कारक होता है।
इंद्रनीलमणि (नीलम) का लिंग का पूजन ऐश्वर्य प्रदाता होता है।
स्फटिक लिंग का पूजन जन स्वामित्व देता है।
रजत निर्मित लिंग के पूजन से पितर दोष की शांति होती है, पितरों की मुक्ति हो जाती है।
स्वर्गिक भोग के लिए स्वर्ण निर्मित लिंग का पूजन करना चाहिए।
ताम्र लिंग के पूजन से पुष्टि प्राप्त होती है।
पीतल निर्मित लिंग से कृषिकार्य में सफलता मिलती है।
कांसे के लिंग की आराधना से कीर्ति प्राप्त होती है।
शत्रुनाश चाहने वाले को लौह लिंग की तांत्रिक उपासना करनी चाहिए।
Aug 13, 2023 5 tweets 2 min read
।।रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद।।

रामकृष्ण परमहंस को शास्त्रों के अध्ययन में प्रवृति नहीं थी, वहीँ विवेकानंद हिन्दू शास्त्रों में गहरे डूबे रहते थे।

रामकृष्ण परमहंस के प्रबोधन में शास्त्रोक्त बातों की जगह श्रद्धा, निष्ठा और भक्ति की बातें होती थी। Image वहीँ विवेकानंद के प्रबोधन का हर हिस्सा किसी न किसी शास्त्र को उद्धृत कर पूरी होती थी।

रामकृष्ण 'भक्ति मार्ग' के पथिक थे वहीं विवेकानंद ज्ञान मार्ग के यात्री ।

रामकृष्ण को तर्क की जगह प्रेम और समर्पण में विश्वास था वहीँ विवेकानंद को तर्क बुद्धि में महारत हासिल थी।
Aug 10, 2023 7 tweets 2 min read
नरान्तक रावण का पुत्र था। जिस दिन उसका जन्म हुआ वह दिन मूल नक्षत्र का था। पंडितों ने कहा की यह पुत्र अशुभ घड़ी में पैदा हुआ है।

अतः यह तुम्हारे लिए हानिकारक रहेगा। इसके साथ जिन शिशुओं ने आज के दिन जन्म लिया है, वे भी अनिष्टकारी रहेंगे। Image इन शिशुओं का जीवित रहना किसी भी हाल ही आपके लिए ठीक नहीं है।तब रावण ने आदेश दिया कि नरान्तक के जन्म के दिन जितने भी बच्चे लंका में जन्में उनको एक जगह लाकर समुद्र में फेंक दिया जाए। कहते हैं उस समय यह बच्चे मरे नहीं बल्कि वट वृक्ष के पत्तों से चिपक कर दूध पीते रहे।
Aug 9, 2023 8 tweets 2 min read
।।संत कदम्खंडी।।

एक बार वृन्दावन में एक संत हुए कदम्खंडी जी महाराज। उनकी बड़ी बड़ी जटाएं थी। वो वृन्दावन के सघन वन में जाके भजन करते थे। एक दिन जा रहे थे तो रास्ते में उनकी बड़ी बड़ी जटाए झाडियो में उलझ गई। उन्होंने खूब प्रयत्न किया किन्तु सफल नहीं हो पाए। Image और थक के वही बैठ गए और बैठे बैठे गुनगुनाने लगे।
हे मुरलीधर छलिया मोहन

हम भी तुमको दिल दे बैठे,

गम पहले से ही कम तो ना थे,

एक और मुसीबत ले बैठे
Jul 25, 2023 4 tweets 1 min read
The names of some of the most important Gopis mentioned in the Vedic scriptures are: Rādhā, Chandrāvalī, Viśakhā, Lalitā, Śyāmā, Padmā, Śaibyā, Bhadrā, Vicitrā, Gopālī, Dhanisthā, and Palikā. Image • Chandrāvalī is also known as Sōmabhā, Rādhā is known as Gandharvā, and Lalitā is known as Anurādhā. Sōmabhā, Gandharvā, and Anurādhā are non-different Gopis.

• In addition to the gopis mentioned in the scriptures, there are other gopis,
Jul 9, 2023 8 tweets 2 min read
KNOW YOUR ANCESTORS AND THEIR INVENTIONS.

1. Father of Astronomy: Aryabhatta ; work - Aryabhattiyam.

2. Father of Astrology: Varahamihira , works; Panchasiddhantika, Bruhat Hora Shastra.

3. Fathers of Surgery : Charaka and Sushruta , works : Samhitas. 4. Father of Anatomy: Patanjali , work: Yogasutra.

5. Father of Yoga : Patanjali , work : Yogasutra.

6. Father of Economics : Chanakya , work: Arthashshtra.

7. Father of Atomic theory : Rishi Kanada , Work : Kanada sutras.

8. Father of Architecture : Vishwakarma.
Jul 5, 2023 7 tweets 2 min read
कृष्ण की बांसुरी की विभिन्न धुनें क्या हैं?

कहा जाता है कि कृष्ण अलग-अलग धुन बजाते हैं:

१) पहली धुन भगवान ब्रह्मा और भगवान शिव के ध्यान को तोड़ सकती है और वे विस्मय में सब कुछ भूल जाते हैं और भगवान अनंतदेव सम्मोहन में अपना सिर हिलाते हैं २) दूसरी धुन यमुना नदी को पीछे की ओर प्रवाहित करती है

३) तीसरी धुन चंद्रमा को हिलना बंद कर देती है

४) चौथी धुन गायों को कृष्ण की ओर दौड़ाती है और बांसुरी सुनकर दंग रह जाती है

५) ५वीं धुन गोपियों को आकर्षित करती है और उन्हें दौड़ कर अपने पास लाती है
Jul 2, 2023 6 tweets 2 min read
।।कुंडलिनी।।

जिस प्रकार भूमण्डल का आधार मेरु पर्वत वर्णित है उसी प्रकार इस मनुष्य शरीर का आधार मेरुदण्ड अथवा रीढ़ की हड्डी है। मेरुदण्ड तैंतीस अस्थि-खण्डों के जुड़ने से बना हुआ है (सम्भव है, इस तैंतीस की संख्या का सम्बन्ध तैंतीस कोटि देवताओं अथवा प्रजापति

@Eternaldharma_ अष्ट यसु, द्वादश आदित्य और एकादश रुद्र से हो )। भीतर से यह खोखला है। इसका नीचे का भाग नुकीला और छोटा होता है। इस नुकीले स्थान के आसपास का भाग कन्द कहा जाता है और इसी कन्द में जगदाधार महाशक्ति की प्रतिमूर्ति कुण्डलिनी का निवास माना गया है।
Jun 30, 2023 20 tweets 4 min read
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )

■ क्रति = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट )

@Eternaldharma_ ■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार)
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,