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भारतीय हूं, हिंदू हूं। #जय_श्रीराम 🚩 #हर_हर_महादेव 🚩
Oct 15, 2022 23 tweets 4 min read
An open letter, questioning @RahulGandhi, is going viral on social media. The letter asks Rahul Gandhi himself to decide whether he can be compared with PM Modi Ji or not.

Dear Mr. Rahul Gandhi!
Millions of people follow Narendra Modi as their leader. They accept him as their role model.
How many people in our Country consider you, Rahul Gandhi, as their role model?
The Country which doesn’t want to be recognised as dynastic followers, elected Narendra Modi, but you represent the same dynasty which was rejected by the people.
Jan 26, 2022 81 tweets 25 min read
ॐ श्रीपरमात्मने नमः | अथ द्वितीयोऽध्यायः

सञ्जय उवाच
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ।१।

सञ्जय बोले – उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान् मधुसूदन ने यह वचन कहा। ॥१॥ श्रीभगवान उवाच
कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्।
अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ।२।

श्रीभगवान् बोले – अर्जुन! तुझे इस असमय में यह मोह किस हेतु से प्राप्त हुआ? क्योंकि न तो यह श्रेष्ठ पुरुषों द्वारा आचरित है, न स्वर्ग को देने वाला है और न कीर्ति को करने वाला ही है। ॥२॥
Jan 23, 2022 5 tweets 3 min read
मस्तक पर तिलक अथवा कुमकुम क्यों लगाते हैं?

हिंदू सनातन विज्ञान के अनुसार इंसान के माथे पर, दो भौहों के बीच, एक ऐसा स्थान है जो प्राचीन काल से मानव शरीर में एक प्रमुख तंत्रिका बिंदु माना जाता है।
माना जाता है कि तिलक मानव शरीर में "ऊर्जा" के ह्रास को रोकता है। + Image ऐसा कहा जाता है कि मस्तक पर भौहों के बीच वाले स्थान पर लाल ‘कुमकुम’ मानव शरीर में ऊर्जा को बनाए रखता है, मानव मस्तिष्क में एकाग्रता के विभिन्न स्तरों को नियंत्रित करता है और व्यक्ति की समझ को भी बढ़ाता है।
कुमकुम लगाते समय मध्य भौंह क्षेत्र पर ‘आज्ञा-चक्र’ स्वतः दब जाते हैं। + Image
Jan 9, 2022 46 tweets 15 min read
#श्रीमद्भगवद्गीता
‘सञ्जय उवाच’

दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा ।
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत् ।२।

पश्यैतां पाण्डुपुत्राणामाचार्य महतीं चमूम् ।
व्यूढां द्रुपदपुत्रेण तव शिष्येण धीमता ।३। #श्रीमद्भगवद्गीता

संजय बोले — उस समय राजा दुर्योधन ने व्यूहरचनायुक्त पाण्डवों की सेना को देखकर और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा, “हे आचार्य! आपके बुद्धिमान् शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डु पुत्रों की इस बड़ी भारी सेना को देखिये।” ॥२-३॥