प्रवक्ता हिंदी, शिक्षा निदेशालय दिल्ली व शिक्षक (दि न नि) / विषय-विशेषज्ञ, कोर अकेडमिक यूनिट, असेसमेंट यूनिट व मेंटर-टीचर / संसाधक व साहित्यकार।
Aug 6, 2022 • 20 tweets • 4 min read
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग+त्रेतायुग+ द्वापरयुग+कलियुग=1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )
Aug 3, 2022 • 15 tweets • 3 min read
उपभोक्तावाद की हकीकत
1.सर में भयंकर दर्द था सो अपने परिचित केमिस्ट की दुकान से सर दर्द की गोली लेने रुका।
दुकान पर नौकर था, उसने मुझे गोली का पत्ता दिया,
तो उससे मैंने पूछा गोयल साहब कहाँ गए हैं,
तो उसने कहा साहब के सर में दर्द था,
*सो सामने वाली दुकान में कॉफी पीने गये हैं।*
अभी आते होंगे!
मैं अपने हाथ मे लिए उस दवाई के पत्ते को देखने लगा.?
🤔🤔
Sep 29, 2020 • 5 tweets • 1 min read
प्रेम रस में उलाहना या रूठ जाना जायज सी बात है।पर प्रेम में उलाहना एक गहन अवस्था है,इसमें आंतरिक पीड़ा है जिससे अपने प्राणों से प्रिय वह प्रियतम,जिनके लिये किसी अन्य के द्वारा कुछ सुनते ना बने,उनसे ही मान करना कुछ उलाहना देना भी सहज भाव नही,प्रेम है तो सहज नही,
वैसे तो हम सब किसी न किसी की निंदा स्तुति करते ही है न, पर प्रियतम की निंदा स्तुति दोनों ही असहज है । फिर भी उलाहना का यह अर्थ नही कि रोष में प्रकट दोष उनमें है ही , उलाहना इसलिये प्रेमी देते है क्योंकि उसमें पीड़ा है , मिलन तो हो गया अब इसमें गाढ़ता हेतु रस विच्छेद हो ,
Sep 26, 2020 • 10 tweets • 2 min read
में अपने बचपन का
ढूँढ रहा गाँव।।
माटी का घर,
गाँव का शहर
कच्ची पगडंडी,
नाला नहर
खपड़ा की छत,
छप्पर दालान
बैंठक में बाबूजी,
बाँट रहे ज्ञान
स्वागत में आगत के,
थिरक रहे पाँव।।1
बौर लगे आम,
आँधी की रात
भोर भये चुनना,
फूल की बारात(भर परात)
बांसों के झुरमुट,
बबूलों के वन
निर्गन्ध सेमर,
महकाये मन
तन मन में मौज भरे,
कागज की नाव।।2
Sep 23, 2020 • 11 tweets • 2 min read
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है.!
जन्मदिन / रामधारी सिंह 'दिनकर' (23 सितंबर)
दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को सिमरिया, मुंगेर में हुआ ।इनके पिता रवि सिंह किसान थे । दिनकर जब दो बर्ष के थे तो इनके पिता का देहवसान हो गया ।
गाँव के प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिकशिक्षा व मोकामाघाट से हाई स्कूल करके 1928 में उन्होने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में बी. ए. ऑनर्स किया।अगले ही वर्ष एक स्कूल में यह 'प्रधानाध्यापक' नियुक्त हुए,1934 में बिहार सरकार के अधीन इन्होंने 'सब-रजिस्ट्रार' का पद स्वीकार कर लिया।
Sep 12, 2020 • 8 tweets • 2 min read
जिस जगत में हम रहा करते है उसे हम लौकिक जगत के नाम से संबोधन देते है..
इसी प्रकार भाव से ओत प्रोत भावी (भक्त) का भी अपना एक विलक्षण (बहुत ही अलग) भाव जगत है..
वह भाव जगत जिस में वह अपने प्रेमास्पद (जिसके प्रति वह भाव रखता है) जो की श्री कृष्ण या अन्य भगवान् है..
उन अविनाशी से वह कुछ चरणों (स्टेज) में प्रेम करने लगता है..
जो है..
1-प्रेम..
2-आसक्ति..
3-व्यसन..
वस्तुतः प्रेम, प्रेमी और प्रेमास्पद यह तीनों एक ही रस के तीन खंड है..
1-प्रेम--
इस चरण में प्रेमी प्रेमास्पद से प्रेम के आनंद का अनुभव करते हुए संसार से भी जुड़ा हुआ रहता है..
Sep 11, 2020 • 7 tweets • 2 min read
सिद्धों की संख्या ८४ मानी गई है । अधिकांश सिद्धों के नाम के पीछे पा जुड़ा हुआ है । इनकी भाषा मगही है । भक्ति काल की कई प्रवृत्तियों का जन्म सिद्ध साहित्य में ही हुआ है । रुढ़ियों का विरोध और अक्खड़पन सिद्धों की ही देन है । योग साधना के क्षेत्र में भी इनका प्रभाव है ।
कृष्ण भक्ति की मूल प्रवृत्तियों का जन्म भी यहीं से दिखाई देता है
सिद्ध सरहपा (सरहपाद, सरोजवज्र, राहुल भ्रद्र) से सिद्ध सम्प्रदाय की शुरुआत मानी जाती है। यह पहले सिद्ध योगी थे। जाति से यह ब्राह्मण थे। राहुल सांकृत्यायन ने इनका जन्मकाल 769 ई. का माना, जिससे सभी विद्वान सहमत हैं।
Sep 8, 2020 • 12 tweets • 3 min read
देश भर के तीन दर्जन से भी अधिक कहानिकारों की कहानियों में से सर्वश्रेष्ठ तीन का चुनाव बेहद मुश्किल और जिम्मेदारी का कार्य था। सम्मानीय निर्णायक मंडल ने बड़ी ही कुशलता व निष्पक्षता से इन कहानियों को चुना है।
हम निर्णायक मंडल के सदस्यों का हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं। विजेताओं को बधाई तथा सभी प्रतिभागी कहानिकारों को 'सृजन से' परिवार की ओर से उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं। रचनात्मक बने रहें।
धन्यवाद
Sep 5, 2020 • 4 tweets • 1 min read
परमपिता से मेरी प्रार्थना है कि हमारे शैक्षिक गुणों का निरंतर विकास करते हुए हमारे आत्मसम्मान और सामाजिक सम्मान में निरंतर वृद्धि प्रदान करने की कृपा करें,जिस से की हम और ज्यादा उत्साहपूर्वक श्रेष्ठ और उन्नत भारत के निर्माण में अपना अभीष्ट योगदान दे सकें ❤🙏
सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
Jul 28, 2020 • 6 tweets • 2 min read
यदि प्रेमचंद की रचनाओं का कोई महत्व नहीं है तो उनके निधन के चौरासी साल बाद उन्हें याद करने और ऐसा कहने की जरूरत क्यों पड़ रही है? क्या कोई उन हजरत से यह पूछने गया था कि आप कृपया प्रेमचंद की प्रासंगिकता की उम्र तय कीजिए?
प्रेमचंद के इन तथाकथित आलोचकों की कृपा से पाठकों के द्वारा खूब पढ़ी जाने वाली कहानियाँ गुमशुदा की तरह हो गयी हैं। वे अपने एजेण्डा के हिसाब से 'कफन' और ज्यादा से ज्यादा 'पूस की रात' का जिक्र करते हैं। 'ईदगाह' का उल्लेख भी सुविधानुसार होता है।
Jul 24, 2020 • 5 tweets • 1 min read
नदी में जलधारा न हो तो उसे नदी की परिभाषा में शामिल करना कठिन है उसी तरह अगर कहानी में कहानीपना नदारत है तो उसे कहानी मानने में कठिनाई आती है। हमें प्रेमचंद की अधिकांश कहानियाँ, गुलेरी जी की 'उसने कहा था', सुदर्शन की 'हार की जीत', विशंभरनाथ शर्मा 'कौशिक' की 'ताई',
अमरकांत की 'दोपहर का भोजन', 'जिन्दगी और जोक' इसलिए पसंद है क्योंकि ये अत्यंत पठनीय हैं। इनका वृहद फलक, कालजयी होना वगैरह अलग बात है। बच्चे भी दादी-नानी से कहानियाँ सुनने की जिद्द उसके आस्वाद को ग्रहण करने के लिए करते हैं। सपाट बयानी, कृत्रिम कथोपकथन इत्यादि
Jun 14, 2020 • 19 tweets • 4 min read
*प्रेमी और प्रियतम*
वास्तविक साधक को यही मार्ग और मार्ग में यही आश्रय-विषय मिलते है ।प्रेमी और प्रियतम ।
प्रेमी को छुए को प्रियतम मिलने आ रहे हो यह प्रियतम रूपी सारँग रसवर्षा ही भावसाधना है । अथवा प्रियतम को छूने को जा रहे भावुक को प्रेमी ले जाने आ रहे हो ।
दोनोंमें एककी भी माँग होनेपर द्वितीय वृति सहज प्रकट है।कोई प्रेमतुलाके एक पलडेपर भारवत बाट होकर गिर जावें तो प्रेमतुलाको झुलाने हेतु दूसरे पलड़ेपर खेल रहे होतेहै प्रेमी व प्रियतम।श्रीप्रभुको कोईप्रेमी पावें या प्रियतम मानलें तब जीवनमें वह प्रेमी रूपमें प्रकट ना हो यह सम्भवही नही
Jun 13, 2020 • 9 tweets • 2 min read
भाव अभिव्यक्ति को अनर्थ माना जाता है,क्यों ?
क्योंकि वह संसार चाहने लगती है।अभिव्यक्ति,घूँघट में से हो उसमें अभिव्यक्त संवाद नव वधु के संवाद सा नित्य हृदय में द्रवीभूत स्थिति देता हो अपनी ही अभिव्यक्ति से अपने ही व्रत खंडन सा आभास रहें, अभिव्यक्ति अपने प्रभु के प्रति संवाद हो
सबसे गहरी बात अभिव्यक्ति से रचनाकार को प्रेम होता है परन्तु रस पथिक अभिव्यक्ति से नहीँ अनुभूति जो कि अव्यक्त स्थिति है ... अनुभूति से सम्बन्ध रखें तो अभिव्यक्ति कुछ हद तक भाव पथिक का अनर्थ नहीँ होने देती ।
वरन अभिव्यक्ति एक आर्ट गैलरी मात्र रह जाती है ...
Jun 6, 2020 • 6 tweets • 1 min read
दुनिया में हर युग में और वर्तमान में भी हर देश-समाज में मनुष्य दूसरे मनुष्य पर तथा समाज का एक वर्ग दूसरे वर्ग पर मजहब, जाति, नस्ल, आर्थिक हैसियत एवं लैंगिक स्थिति के नाम पर अत्याचार करता रहा है।हालाँकि सहयोग के उदाहरण भी कम नहीं हैं।
लेकिन हम इस अन्याय का विरोध जाति,मजहब, सरकार किसकी है और विचारधारा के आधार पर ठोक बजाकर करेंगे। यह हमारे ऊपर है कि थियानमेन चौक में छात्रों के नरसंहार का जिक्र तक न करे परंतु किसी और घटना के लाठीचार्ज पर लोकतंत्र के अवसान की घोषणा कर दे।
May 28, 2020 • 9 tweets • 2 min read
*प्रथम 'सृजन से' सम्मान, 2020 के अन्तर्गत प्रवृष्ठियां आमंत्रित*
अत्यंत हर्ष के साथ 'सृजन से' प्रकाशन परिवार साहित्य जगत में सक्रिय हिन्दी कहानीकारों से उनकी अप्रकाशित/अप्रसारित कहानी इस प्रतियोगिता में भेजने के लिए आग्रह करता है।
प्रतियोगिता के नियम-
1-प्रतियोगितामें भेजी जाने वाली कहानी पूर्णतया मौलिक, नवीन,अप्रकाशित एवं अप्रसारितहै,इस बातकी घोषणा लिखित रूपसे लेखक द्वारा की जानी आवश्यकहै।
2-कहानीकी भाषा मर्यादित होनी चाहिए एवं किसीभी तरहकी अश्लीलता व अवांछनीयता प्रतियोगिताके नियमोंके विरुद्ध मानी जाएगी
May 23, 2020 • 4 tweets • 1 min read
कोरोना जनित लॉकडाउनमें पढ़ने-लिखनेका पर्याप्त समय मिल गयाहै।पुस्तक हमारे सबसे अच्छे मित्रहैं या अच्छी किताब का साथ मिलनेसे बढ़कर बढ़िया बात कुछ नहीं हो सकतीहै,वगैरह खूब सुने जातेहैं।लेकिन किताबें इतनी पवित्र वस्तु भी नहीं होतीहैं.इन्हें लिखने वालों ने कच्ची गोलियाँ नहीं खेलीं हैं
से ज्ञान और अनुभव लेने में कोई बुराई नहीं है क्योंकि किसी का जीवन इतना लंबा नहीं होता है कि वह स्वयं सब कुछ अकेले सीखे। परंतु किताबें हमें कतिपय अवसरों पर विवेकसम्मत बनाने की जगह कोरे सिद्धांतों का अनुगामी बनाकर छोड़ती हैं।
May 18, 2020 • 7 tweets • 2 min read
कविताएँ लिखने को कौन मना कर रहा है? आपत्ति तो आपकी निहायत चयनात्मक कविताई को लेकर है। जो कविता एजेण्डा प्रेरित हो एवं अर्धसत्य जिसका चरित्र तथा चुने हुए नुक्ते पेश करना जिसका स्थायी भाव हो वह कविता कैसी।
यदि कविता व्यवस्था की हर विसंगति की पोल खोलने, अन्याय का प्रतिकार करने तथा मानवता के पक्ष में खड़ी हो तो वह कविता होती है। जो कविता वारदात या घटना किस राज्य में घटित हुई है, सरकार किसकी है और मृतक एवं हत्यारे का जाति-मजहब देखकर लिखी जाती है, वह कैसी कविता है?
भाव पथिक को भावदेह चाहिये.परन्तु वह स्वार्थ की परिधि को विस्तृत नहीं कर पाता.भजन या साधन किया जा रहा स्वयं को कुछ देने हेतु ही.स्वयं को कुछ न मिले अथवा संचित में तनिक छुटे तो वह सँग नहीं हो सकता है। जैसा कि पूर्व निवेदन हुआ कि देना वह है जो लेने की माँग हो ।
लोक का धर्म भी वही दान कराता है , मंदिरों की गुल्लक में सिक्का इसलिये डाला जाता है कि बढ़कर मिल सकें । यह देना तो लेने हेतु है सो यह देना है ही नहीं । भावदेह एक परिधि गत भाव नहीं है , वह व्यापक भावों का एकत्र अनुभव है इसी को सजीव पाने हेतु सन्त-रसिकों ने परमार्थ को उदय किया ।
May 2, 2020 • 7 tweets • 2 min read
मजदूर दिवस के अवसर पर दुनिया के मजदूरों की दशा का सिंहावलोकन होना चाहिए। मानव सभ्यता की धुरी श्रमिक वर्ग चींटियों और मधुमक्खियों में भी निर्माता के रुप में जाने जाते हैं। 'दुनिया के मजदूरों एक हो। तुम्हारे पास खोने के लिए अपनी जंजीरों के सिवा कुछ नहीं है।'
ऐसी गंभीर घोषणा और हर राजनीतिक दल के अतिशयोक्तिपूर्ण घोषणापत्रों के पश्चात भी लॉकडाउन के दौरान मजदूरों का असहाय अवस्था में पलायन दुर्भाग्यपूर्ण है।
Apr 29, 2020 • 5 tweets • 1 min read
प्रेम की एक स्थिति है ... विचित्र ।
सत्य में प्रेमी से हम मिले तो हमें एक निश्चित्र अनुभूति होगी वह ... विचित्र !!
प्रेमी अगर किसी को समझ आ गया तो वह प्रेमी ही नही ।
प्रेम रूपी उसके हृदय की पोखर की छिपी छुअन कभी बाहर आती ही नहीँ । वह भरा होता है अपने प्रियतम को भरे हुए । ..
संसार किसी को समझ गया तो वह तो अनित्य हुआ प्रेम की कोई छोर नहीँ प्रेमी को नही समझ सकते।वह क्या कर रहा है इससे उसे कोई सम्बन्ध न हो कर भी सब कुछ प्रियतमार्थ ही जीना और पीना होता है ..प्रेमी के हृदय में उत्सव का वास है ..बाह्य वह अखंड व्याकुल हो उसके हृदय में एक आनन्द छिपा ही है ।