करोड़ों सनातनियों के हृदयस्थल में विराजने वाले राम व उनके उदात्त जीवनचरित्र से जुड़े प्रसंगों व विभूतियों का चित्रण करते समय भक्तिभाव-सहजबुद्धि-आत्मविवेक का अभाव होने पर इस फिल्म सरीखा कुफल उपजता है
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जब मूढ़ता-सतहीपना-बाजारूपन हावी होता है मनुज पर तो किसी मनोज मुंतशिर का रुप धर लेता है. कला के नाम पर स्तरहीन -ओछी भाषाशैली का इस्तेमाल वैसे भी निंदनीय कृत्य है पर जब असंख्यों के आराध्य के चरित्र चित्रण में भाषायी मर्यादा व शालीनता का उल्लंघन हो तब यह अक्षम्य अपराध बन जाता है
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