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पौराणिक ग्रंथों में उपलब्ध होता है, जो इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। जैन संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है एवं अहिंसा मूलक संस्कृति का सर्वोत्तम आदर्श है। इसकी सुरक्षा एवं वृद्धि दोनों ही आधुनिक युग के लिए न मात्र हितकारी हैं अपितु मार्गदर्शक भी हैं। इसके आश्रय से 





मंदिर का इतिहास



बहुत सुंदर वेदियाँ बनी हुई हैं । मूल वेदी में मूलनायक श्री १००८ महावीर भगवान की अति मनोहर प्रतिमा जी विराजित है । दूसरी वेदी पर श्री नेमिनाथ भगवान की प्रतिमा विराजित है । व तीसरी वेदी पर देवाधिदेव श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा जी के साथ भरत भगवान व बाहुबली भगवान जी की प्रतिमा 





जम्बू स्वामी ने न केवल यहाँ निवास किया अपितु कैवल्य तथा मोक्ष प्राप्त कर इस स्थान को सदा के लिए सिद्ध क्षेत्र बना दिया। दूसरा प्रमुख स्थान है कंकाली टीला जो प्राचीनता की दृष्टि से मथुरा के लिए ही नहीं,वरन् जैन धर्म के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।ब्रिटिश काल तक यह क्षेत्र एक 



अनुसार कपिश देश में १० जैनमंदिर थे । वहाँ जैन मुनि भी धर्म प्रचारार्थ विहार करते हैं।



मूर्ति की पूजा मंदिर में की जाती है।बसदी का निर्माण 1430 में स्थानीय सरदार, देवराय वोडेयार द्वारा किया गया था और इसे पूरा करने में 31 साल लगे, [5] मंदिरों में 1962 में जोड़ दिए गए। इस मंदिर में 50 फीट लंबा मोनोलिथ मनस्थंभ है।करकला भैरव रानी नगला देवी द्वारा बनवाया गया।