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यह आगे कहते हैं,"यहां की शब्दावली ही सामंतवादी है।यहां का टूरिज्म 'रजवाड़ा कल्चर' & स्थापत्य का ही प्रचार करता रहा। यहां कोई सुधार आंदोलन सिर नहीं उठा पाया। दलित-पिछड़ों में उभरती हुई चेतना के बावजूद वे प्रतीक अपने शोषकों के(मूंछ/घोड़ी चढ़ना/सेहरा/तलवार/शेरवानी) ही अपना रहे हैं।"
महाराणा कभी चित्तौड़गढ़ वापिस हासिल नहीं कर सके पर उनके काफिले के साथ चलते इन गाड़िया लोहारों ने भी प्रतिज्ञा ली कि महाराणा के बिना वापिस चित्तौड़गढ़ नहीं लौटेंगे।तब से आज तक बैलगाड़ियों पर घुमंतू की तरह एक से दूसरे राज्य भटकने वाले ये गाड़िया लोहार अपनी प्रतिज्ञा पर डटे हुए हैं।
कई साल बाद इस social phenomenon का असल शब्द मिला, 'RAJPUTISATION'. Hermann Kulke, Christophe Jaffrelot, Clarinda Still, Lucia Michelutti जैसे कई विख्यात लेखकों ने इसे राजपूत जीवनशैली के प्रतीकों-टाइटलों का समाजार्थिक तौर पर कथित निचले पायदान के समुदायों द्वारा अपनाया जाना कहा है 


एक तरफ जहां करतारपुर कॉरिडोर खोकर श्रद्धालुओं के मेलमिलाप के लिए रास्ते बनाए जा रहे हैं, वहीं पाक में बसे इन चुनिंदा सोढ़ा राजपूतों को 'ब्लैकलिस्ट' कर इन्हें भारतीय वीज़ा नहीं दिया जा रहा। तकरीबन 900 सोढ़ा राजपूत अब तक 'ब्लैकलिस्ट' किए जा चुके हैं।