सनातन धर्म | सनातन विचार | सनातन विज्ञान | भाषा | राजनीति
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Dec 30, 2023 • 5 tweets • 2 min read
सन्त नामदेवजी महाराज :
सन्त नामदेवजी महाराज सन्त ज्ञानेश्वर के समकालीन थे और आयु में उनसे कुछ बड़े थे किन्तु इनके सही काल निर्णय में विद्वानों में मतभेद है।
कहा जाता है दोनों सन्तों ने साथ में पूरे महाराष्ट्र का भ्रमण करते हुए प्रभु-भक्ति का बड़ा प्रसार किया था।
इसके बाद सन्त नामदेवजी ने पूरे भारत का भ्रमण किया, मराठी के साथ हिन्दी भाषा में भी अनेक रचनाएँ कीं।
उनके जीवन की एक सुनी हुई कथा यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं, आशा है आप सबको भी पसन्द आयेगी।
एक बार नामदेवजी अपनी कुटिया के बाहर सोये हुए थे तभी अचानक उनकी कुटिया में आग लग गयी।
Dec 24, 2023 • 4 tweets • 1 min read
ओषधि :
ओषधि वैदिक शब्द है। स्थूल रूप से वनस्पति जगत् को वैदिक साहित्य ऋग्वेद आदि ने ओषधि (=वीरुध्) और वन (=वृक्ष) - इन दो में बाँटा है। अथर्ववेद में ओषधि को ‘वीरुध्’ के विरोध में ‘भैषज्य’ गुण वाली बताया गया है, जबकि ‘वीरुध्’ शब्द से सामान्य वनस्पति-वर्ग का बोध होता है।
जहाँ ओषधि के साथ वीरुध् का प्रयोग मिलता है (जैसे तैत्तरीय संहिता २.५.३.२) वहाँ उससे तत्पर्य उन पौधों से लिया गया है जिनमें भैषज्य अर्थात् दवा के गुण नहीं होते।
संहिताओं में जैसे तैत्तिरीय ७.३.१९.१; वजासनीय २२.२८ में पौधे के अङ्गों का जो वर्णन मिलता है,
Nov 20, 2023 • 4 tweets • 1 min read
एक नई बीमारी यह फैलती जा रही है जिसमें यह कहा जाता है कि “हमारे पूर्वज मात्र ‘मिलेट्स’ पर ही फलते फूलते थे, गेहूं, चावल आदि हरित क्रान्ति के बाद के अनाज हैं।”
वास्तव में यह वक्तव्य केवल प्रचार और बाज़ार बनाने के लिए है। गेहूं, चावल पहले भी थे और लोग खाते थे,
वैज्ञानिकों ने प्रयोग कर-कर के उनका व्यवसायीकरण किया या यूँ कहें कि अधिक पैदावार के लिए पौष्टिकता को बर्बाद कर दिया, तब यह कहा जाता था कि ये मोटे अनाज (मिलेट्स) सेहत के लिए ठीक नहीं हैं।
और अब जब अधिक की गुंजाइश नहीं रही तब इनकी दृष्टि मोटे अनाजों पर गड़ चुकी है।
Nov 11, 2023 • 5 tweets • 1 min read
मित्र अचानक एक दिन कहने लगे कि किसी काम में मन लगाने में कठिनाई हो रही है। एक अलग तरह की उत्तेजना बनी रहती है।
हमारा पहला प्रश्न यही था कि कोई मंत्र जप आदि प्रारम्भ किया है क्या?
हां, कहीं पढ़े कि अमुख मंत्र से यह लाभ होता है और कुछ पुस्तकीय ज्ञान लेने के बाद प्रारम्भ किये।
गुरु आदि किसी योग्य से परामर्श नहीं किया?
नहीं, उसकी आवश्यकता नहीं थी। ग्रंथों में पढ़ और समझ लिए थे।
हमने कहा कुछ दिन बंद करके देखिए, फिर बताइये।
कुछ दिनों बाद कहने लगे - आपने बिल्कुल ठीक कहा था, बंद करते ही ठीक लगता है।
प्रायः देखते हैं कि ट्विटर आदि सामाजिक मंचों पर
Nov 10, 2023 • 14 tweets • 3 min read
दीपावली पर्व की प्रचलित मान्यताएँ :
यूँ तो दीपावली एक प्राचीन शास्त्रीय त्योहार है जिसका उल्लेख पुराणों से ही मिलने लगता है। किन्तु दीपावली के मूल स्वरूप में देश और काल के अनुसार सबसे अधिक बदलाव देखने को मिला है। शास्त्रों में दीपावली का जो स्वरूप मिलता है उसके अनुसार
- कार्तिक कृष्ण अमावस्या (दीपावली) में तुला का सूर्य रहता है, तुलाराशिभुक्त सूर्य नीच का सूर्य कहलाता है, इस दिन सौर प्राण मलीमस रहता है। अमावस्या के कारण चान्द्रज्योति का भी अभाव रहता है, चार माह के जलवर्षण के कारण पार्थिव अग्नि भी निर्बल रहती है।
Nov 9, 2023 • 25 tweets • 5 min read
दीपावली, दीपाली अथवा दीवाली (भाग-२)
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को यदि अमावस्या भी हो और उसमें स्वाती नक्षत्र का योग हो, तो उसी दिन दीपावली होती है। उस दिन से आरंभ करके तीन दिनों तक दीपोत्सव करना चाहिए। अमा रात्रि में कृत्रिम ज्योति, कृत्रिम प्रकाश एवं कृत्रिम ताप-अग्नि का समावेश
किया गया है, ‘दीपक’ सौर इंद्रप्रकाश का प्रतिनिधित्व करता है जबकि ‘अग्निक्रीड़ा’ अग्निज्योति का। वातावरण में व्याप्त आसुरप्राण के निरोध के लिए ही कार्तिक मास में ‘आकाशदीप’ प्रज्ज्वलित किया जाता है।
Nov 3, 2023 • 11 tweets • 3 min read
प्राचीन काल से ही प्रतिदिन के भोजन के रूप में पुराने गेहूँ या जौ का आटा, उड़द की दाल, इक्षुरस, गुड़ और गुड़ से बने पदार्थ, दूध द्वारा निर्मित पदार्थ (दही, मट्ठा, मलाई, रबड़ी आदि) नये चावलों का भात, घी, तेल में भुने पदार्थ आदि खाने का वर्णन आयुर्वेदिक शास्त्रों में मिलता है।
यथा “गोधूमपिष्टमाषेक्षुक्षीरोत्थविकृति शुभाः, नवमन्नं वसां तैलं…” अथवा “पुराणयवगोधूमक्षौद्रजांगलशूल्यभुक्” आदि। (अष्टांगहृदयम, सुश्रुतसंहिता, चरकसंहिता आदि)
जिस गेहूँ को आज नहीं खाने की सलाह दी जा रही है, आयुर्वेद के अनुसार वह वीर्यवर्धक, शीतवीर्य, पाचन में गुरु, स्निग्ध,
Nov 2, 2023 • 7 tweets • 2 min read
अराजकता क्यों बढ़ती जा रही है?
(शास्त्रीय दृष्टिकोण)
आजकल देखा-देखी पाप और देखा-देखी पुण्य का चलन बहुत बढ़ा है। अधिकांश लोग इसलिए पाप करने में संकोच नहीं करते क्योंकि आसपास सभी कर रहे हैं।
शास्त्र कहते हैं कि अधर्म का बढ़ना कलियुग की महिमा है। कलियुग असत्-प्रधान होता है
(“कलौ तु धर्महेतुनां तुर्यांशोऽधर्महेतुभिः” अर्थात् कलियुग में अधर्म के चारों चरण अत्यन्त बढ़ जाते हैं), इसका कारण यह है कि जब द्वापर का अन्त और कलियुग का प्रारम्भ होता है, तब नरक के सभी पापी भी पृथ्वी पर मनुष्य के रूप में उत्पन्न होते हैं।
Oct 30, 2023 • 9 tweets • 3 min read
रामचरितमानस और वाल्मीकि रामायण में क्या अन्तर है?
वाल्मीकि रामायण एक 'तथ्यप्रधान' ग्रंथ है और रामचरितमानस एक 'भक्ति प्रधान' ग्रंथ, जिसने वास्तव में राम चरित को घर-घर में पहुँचाने का कार्य किया है।
वाल्मीकिजी के लिए 'रामायण' लिखने का मूल उद्देश्य था "सीता के विशुद्ध चरित्र का
प्रख्यापन हो"। परन्तु क्योंकि एक पतिव्रता का चरित्र उसके पति के चरित्र से ही सांगोपांग सम्पन्न होता है, अतः इसे 'रामायण' कहा गया।
आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये।
स कालो विजयो नाम सर्वकामार्थसाधकः॥ (चिन्तामणि)
अर्थात् आश्विन मास की शुक्ल पक्ष दशमी के दिन नक्षत्रों के उदय होने पर विजय नामक काल होता है और वह सब कामनाओं को देने वाला है।
दशहरा शब्द की व्युत्पत्ति दो प्रकार से प्रचलित है :
१. दशहरा शब्द ‘दशरा’ शब्द से बना है और दशरा भी ‘दश’ शब्द से बना है। क्योंकि प्राचीन समय में देवी नवरात्र बीतने पर दशवें दिन ही सीमोलंघन होता था।
मृत्यु के अनंतर इस लोक से पितृलोक में मनुष्य किस प्रकार जाते हैं फिर किस प्रकार वहाँ से लौटते हैं – यह आवागमन प्रक्रिया वेदों से लेकर उपनिषद, स्मृति व पुराणों में विस्तार से वर्णित है।
मृत्यु के अनंतर चार प्रकार का मार्ग है – कैवलव्य, अर्चिमार्ग, धूममार्ग और उत्पत्ति-विनाश मार्ग। इसमें से अर्चिमार्ग और धूममार्ग में आत्मा की गति होती है जबकि उत्पत्ति-विनाश मार्ग और कैवलव्य (मुक्ति अथवा मोक्ष) यह दोनों अगति के मार्ग हैं, इनमें आत्मा की गति नहीं होती।
Sep 19, 2023 • 6 tweets • 2 min read
श्रद्धेय स्वामीरामसुखदासजी महाराज के दो शब्द :
हिन्दू (सनातन), बौद्ध, ईसाई और मुस्लिम – ये चार धर्म वर्तमान समय में संसार में मुख्य माने जाते हैं। इन चारों में से एक-एक धर्म को मानने वालों की संख्या करोड़ों की है। इनमें बौद्ध, ईसाई और मुस्लिम धर्म को चलाने वाले क्रमशः बुद्ध, ईसा
और मोहम्मद माने जाते हैं। ये तीनों ही धर्म अर्वाचीन हैं। परन्तु हिन्दू धर्म किसी मनुष्य के द्वारा चलाया हुआ नहीं है अर्थात् यह किसी मानवीय बुद्धि की उपज नहीं है। यह तो विभिन्न ऋषियों द्वारा किया गया अन्वेषण है, खोज है। खोज उसी की होती है, जो पहले से ही मौजूद हो।
Mar 9, 2023 • 5 tweets • 1 min read
राक्षस कौन?
सनातन धर्म में हमारे अधिकतर त्योहारों की कथा ‘राक्षस’ के रूप में बुराई को परास्त करने और धर्मनिष्ठ हो आगे बढ़ने से जुड़ी है। धर्मरक्षार्थ अमुक राक्षस का वध हुआ था, ऐसी कथाएँ हम पढ़ते हैं।
मन में विचार आता है कि ‘राक्षस’ कौन थे?
शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि मनुष्यों की भाँति ही पूर्व में यक्ष, वानर, राक्षस आदि जातियाँ रही हैं। कौन थे ये राक्षस, कैसे दिखाई देते थे अथवा कैसा व्यवहार करते थे?
मातासीता की खोज में निकले हनुमानजी ने जब लंका में रहने वाले राक्षसों को देखा तो बड़े आश्चर्य में पड़े।
Dec 28, 2022 • 16 tweets • 3 min read
उपनिषदों का ज्ञान – २ (तैत्तिरीयोपनिषद् – ब्रह्मसूत्र का आधार)
ब्रह्मसूत्र उपनिषदों का सार है। वेदव्यासजी ने उपनिषदों के आधार पर जो सूत्रमयी रचना की उसी का नाम ब्रह्मसूत्र है, जिसे ‘उत्तरमीमांसा’, ‘वेदान्त सूत्र’ अथवा ‘भिक्षुसूत्र’ आदि के नाम से भी हम जानते हैं।
गीता की रचना से पूर्व ब्रह्मसूत्र का निर्माण हो चुका था। (“ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्चितै:” – गीता १३.४)
यदि विचार पूर्वक देखें तो पता चलता है कि वेदव्यास जी ने एक ही उपनिषद् को आधाररूप स्वीकार कर, उसी के आधार पर ब्रह्मसूत्र का निर्माण किया है।
Dec 27, 2022 • 5 tweets • 1 min read
सत्संग समाप्त होने को था। कथा श्रवण का लाभ ले कर भक्तजन अभी भाव विभोर ही थे तभी बीच से आवाज आयी “महाराज जी! मन में एक प्रश्न उमड़ रहा है, यदि आज्ञा दें तो अपनी जिज्ञासा शांत करूँ।”
गुरु जी ने हाँ के भाव में हल्की सी मुस्कुराहट के साथ अपना हाथ उठाया।
भक्त ने अभी प्रश्न पूछा ही था इतने में पीछे से आवाज आयी “गुरु जी! इसका उत्तर मैं दे सकता हूँ?”
गुरु जी ने पुनः सहमति में हाथ हिला दिया।
अभी दूसरे भक्त ने उत्तर दिया ही था कि तीसरे ने उसमें सुधार बताना आरंभ कर दिया।
Dec 26, 2022 • 18 tweets • 4 min read
उपनिषदों का ज्ञान - १ (अक्षर - ओम्)
राजा जनक ने यज्ञ के उपरांत वहाँ उपस्थित ब्राह्मणों से कहा - पूज्य ब्राह्मणगण! आपमें जो ब्रह्मनिष्ठ हो, वह इन (रोकी गईं) एक सहस्र गौएँ जिनके प्रत्येक सीगों में दस-दस पद सुवर्ण बँधे हुए हैं, ले जायें।
(राजा जनक ने ब्रह्मविद्या में सर्वाधिक पारंगत विद्वान का पता लगाने की इच्छा से ऐसा कहा।)
किन्तु किसी को ऐसा करने का साहस न हुआ। तब याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्य से उन्हें ले चलने की आज्ञा दी।
यह देख उपस्थित ब्राह्मण इसे अपना अपमान समझ कर क्रुद्ध हो गये।
Dec 8, 2022 • 7 tweets • 2 min read
जब लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो गईं और अनुभव कुछ अच्छा रहा तब मित्र के मन में उत्साह कुछ ‘अति’ की ओर बढ़ा और कहने लगे कि कोई धर्मग्रंथों के विषय में समझना चाहे तो सरलता से समझ सकता है।
हमारा कहना था कि पढ़ना अलग बात है किन्तु समझने में एक जीवन भी कम ही होगा।
नहीं मान रहे थे, प्रायः कोई प्रश्न भेजते और साथ ही उसका उत्तर भी।
एक दिन हमने पूछा कि सृष्टि सृजन के क्रम में पृथ्वी पहले बनी या सूर्य?
बोले - निस्संदेह सूर्य! ( आधुनिक विज्ञान से भी सिद्ध है)
हमने निम्नलिखित तथ्य रखे और आशय पूछा :
Dec 7, 2022 • 4 tweets • 2 min read
श्रीदत्तजयन्ती :
अत्रेरपत्यमभिकाङ्क्षत आह तुष्टो
दत्तो मयाहमिति यद् भगवान् स दत्तः ।
यत्पादपङ्कजपरागपवित्रदेहा
योगर्द्धिमापुरुभयीं यदुहैहयाद्याः ॥
- श्रीमद्भागवत महापुराण २.७.४
महर्षि अत्रि भगवान् को पुत्ररूप में प्राप्त करना चाहते थे।
उन पर प्रसन्न होकर भगवान् ने उनसे एक दिन कहा कि ‘मैंने अपने को तुम्हें दे दिया।’ इसीसे अवतार लेने पर भगवान् का नाम ‘दत्त’ पड़ा (अत्रि का पुत्र होने से ‘आत्रेय’। दत्त + आत्रेय = दत्तात्रेय)।
विहित कर्म न करने से, निन्दित कर्म करने से तथा इंद्रियों के विषय में अति आसक्त होने से मनुष्य का पतन होता है।
प्रत्येक युग की अपनी महिमा होती है,
उसी के अनुसार उस युग के विहित और निषिद्ध कर्म भी नियत किए गए हैं। इस प्रकार एक युग में जो नियत कर्म है; वही दूसरे युग में निषिद्ध या निन्दित भी हो सकता है। अतः इसे जानना और समझना धर्मपरायण व्यक्ति के लिए आवश्यक हो जाता है।
Nov 20, 2022 • 15 tweets • 4 min read
जाति शब्द की उत्पत्ति :
‘जाति’ शब्द वैदिक नहीं है, अर्थात् यह शब्द वेदों में नहीं मिलता। श्रौतसूत्रों (यथा कात्यायन १५.४.१४) में जहां यह प्रथम मिलता है वहाँ एक ही गोत्र, कुल अथवा परिवार में जन्म लेने के अर्थ को प्रकट करता है। मनु आदि स्मृति ग्रंथों में भी यह इसी प्रकार के अर्थ
को प्रकट करता है और ‘वर्ण’ शब्द के आधुनिक पर्याय के रूप में समझा और जाना जाता है।
अब प्रश्न है कि ‘जाति’ शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
आज बुद्धिजीवियों को जाने कौन सी बीमारी लगी हुई है जो फल, सब्जी, अनाज यहाँ तक कि आर्यों को भी विदेशों से आया सिद्ध करते हैं।