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ये भी अहम बात है कि भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंका तो ख़ुद ही सरेंडर किया. वो जानते थे कि सज़ा होगी. उनका ये कृत्य AUGUST VAILLANT नाम के फ्रैंच क्रांतिकारी से प्रेरित था. उसने भी 1893 में चेंबर ऑफ डेप्युटीज़ में धमाके किए और अगले साल फाँसी का फंदा चूमा.1929 में यही कारनामा दोहराते हुए भगत जानते थे कि अब लौटना नहीं है. वो चाहते भी यही थे कि मुक़दमा लंबा खिंचे ताकि वो क्रांतिकारियों की बात अदालत में कहते रहें, मीडिया रिपोर्ट करता रहे, जनता अख़बार पढ़कर जान सके कि क्रांतिकारी क्यों लड़ रहे हैं. केस में उन्होंने वकील लेने से साफ़ इनकार कर दिया जबकि उनके साथी बीके दत्त का मुक़दमा कांग्रेस नेता आसफ़ अली ने लड़ा. दोनों में से कोई सज़ा से मुक्ति नहीं चाहता था. नतीजतन उम्र क़ैद मिली. उस वक़्त क्रांतिकारियों के सामने भारी चैलेंज रहता था कि लोगों तक अपनी बात कैसे पहुँचाई जाए. भगत को उनके संगठन HSRA की तरफ़ से प्रचार का ज़िम्मा मिला था सो उन्होंने वो ऐसे निभाया. यदि भगत माफ़ी माँगते तो जनता में संगठन और उनकी छवि क्या बनती ये आप सोच सकते हैं इसलिए वो ख़ुद भी चाहते थे कि केस पूरे चले और सज़ा हो.
गांधी थे।गांधी जी ने देसी व्यापार पर अंग्रेज़ी शिकंजा कसता देख विदेशी माल के बहिष्कार का आह्वान किया था।उसी आह्वान का असर था कि इंग्लैंड में बन रहे कपड़े की खपत भारत में अचानक घटती चली गई और देखते ही देखते नुकसान उठा रहे कपड़ा मिलों ने मज़दूरों की छंटनी शुरू कर दी।डेविस घराना
पागलपन में उन्मत्त सम्राट ने कहा कि तुम कुछ नहीं जानते,मैं ही कुछ ऐसा करूंगा कि सब खुश हो जाएंगे और मैं भी प्रसिद्धि पाऊंगा। इसके साथ ही उसने सीनेट को खत्म कर डालने के संकेत दे दिए क्योंकि वो नया रोम खड़ा करना चाहता था और सीनेट उसकी निरंकुशता में बाधक थी।
महात्मा गांधी थे।गांधी जी ने देसी व्यापार पर अंग्रेज़ी शिकंजा कसता देख विदेशी माल के बहिष्कार का आह्वान किया था।उसी आह्वान का असर था कि इंग्लैंड में बन रहे कपड़े की खपत भारत में अचानक घटती चली गई और देखते ही देखते नुकसान उठा रहे कपड़ा मिलों ने मज़दूरों की छंटनी शुरू कर दी।डेविस
नंबर वन का रोज़ एक तौला पिया जाए तो बदन बड़ा चुस्त-दुरुस्त मज़बूत हो जाता है.अब ये तो थी ब्रांडी यानि विशुद्ध शराब लेकिन भगवानदास कहते हैं कि उनको तब ये बात समझ में आई नहीं. बस फिर क्या था. चंद्रशेखर आज़ाद जो दल के प्रमुख थे भागे भागे भगवान दास उनके पास पहुंचे और शक्तिवर्धक दवा
सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग, जापान और ऑस्ट्रेलिया तक दौड़ाया।खुद वो सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, ऑस्ट्रिया गई। इन सबमें अमेरिकी दौरा सबसे ज़्यादा कड़वा था जहां राष्ट्रपति निक्सन भारत की इस मामले में भूमिका को नापसंद करते थे।वो चाहते थे कि इंदिरा गांधी
हार गए सुभाष को 1580 वोट मिले थे जबकि सीतारमैया को महज़ 1377 वोट मिल सके। गांधी जी ने इसके बाद एक बड़ी गलती की। अपनी हताशा नहीं छिपा सके और इस हार को अपनी हार बताते हुए कह दिया कि जो भी कार्यकारिणी छोड़ना चाहें वो छोड़ सकते हैं। 14 में से 12 सदस्यों ने तुरंत इस्तीफा दे दिया
युद्ध में भेज दिया।ये तस्वीर 16 साल के हैन्स जॉर्ज हेंक की है जिसे हथियार देकर लड़ने को कहा गया।वो अपने देश के ही हेसन में जंग करता हुआ पकड़ लिया गया था।जब पकड़ा गया तो ज़ार ज़ार रोने लगा।बच्चा ही तो था,रोना बनता भी था। तभी ये तस्वीर ले ली गई।बेचारे के पिता 1938 में मर गए थे।
तस्वीर के साथ साहिर लुधियानवी साहब की मशहूर कविता 'खून फिर खून है' की चंद पंक्तियां साझा कर रहा हूं।युद्ध की हुंकार भरते दिमागों में कोई बात बैठाना यूं तो मुश्किल है,लेकिन इंसान का जीवन बदलावों की किताब है सो कोशिश अपनी मुसलसल जारी है।उम्मीद है कि तस्वीर और कविता आपको ठंडक
उन्होंने कहा था- ' हमें याद रखना है कि हम में से किसी को गुस्से में कोई कार्रवाई नहीं करनी है।हमें सशक्त और संकल्पवान लोगों की तरह व्यवहार करना चाहिए।सभी खतरों का सामना करने के संकल्प के साथ,हमारे महान गुरू और महान नेता द्वारा दिए गए आदेश को पूरा करने के संकल्प के साथ और हमेशा यह
धीरे धीरे खुदाई करने लगे पर बात कहां दबती. खुल गई.शोर मच गया.अखबारों तक में खबर छपी.आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को अंदाज़ा हो गया कि हो न हो फिर से सिंधु घाटी सभ्यता की एक साइट मिली है.2005 में विद्वानों का एक दल उस खेत में जा पहुंचा. महीनों खोदता रहा. कब्र मिलीं. बर्तन मिले.
बाहर के बहुत से भटके युवा जो मुझे आदर्श मानते हैं वो भी इसी विचारधारा पर लौट आएंगे.
गूंजती ये धुन बीन जैसा काम करती थी जिसे सुनकर हम बच्चे सांप की तरह लपककर टीवी के सामने कुंडली मार कर बैठ जाते थे। उसके बाद होश कहां रहता था...
बच्चे का सिर पीछे की तरफ लुढ़का था मानो गहरी नींद में हो।लड़का उस जगह पर पांच से दस मिनट तक खड़ा रहा।इसके बाद सफेद मास्क पहने कुछ आदमी उसकी तरफ बढ़े और चुपचाप उस रस्सी को खोल दिया जिसके सहारे बच्चा लड़के की पीठ से टिका था।मैंने तभी ध्यान दिया कि बच्चा पहले से ही मरा हुआ था।उन
पर घुंघराले बाल बिखरे हुए हैं। मैं तुम्हारे कमरे में चुपके से दाखिल हुआ हूं, अकेला। अभी कुछ मिनट पहले जब मैं लाइब्रेरी में अखबार पढ़ रहा था, तो मुझे बहुत पश्चाताप हुआ। इसीलिए तो आधी रात को मैं तुम्हारे पास खड़ा हूं किसी अपराधी की तरह।
दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों के बीच नेतृत्व जमा लिया था।सरकार से बातें मनवाने का वो तरीका भी खोज लिया था जिसे पूरा भारत महज़ एक दशक बाद अपनाने वाला था।