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Dharm ॥ History || Politics ॥ Posting Threads🧵Everyday ॥ नमश्चण्डिकायै
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Dec 11 11 tweets 3 min read
यदि आप मंत्र जाप कर रहे है तो , आपके मंत्र में कोई दोष नहीं होना चाहिए , जानिये मंत्र दोष कौनसे होते है 🧵 Image Image
Dec 9 5 tweets 2 min read
भीषण विपत्ति ⚠️ से बचने के लिए रक्षा मंत्र, जानिये 🧵 Image Image
Dec 7 10 tweets 3 min read
माला को अभिमंत्रित करने की विधि जानिये 🧵 Image Image
Dec 6 12 tweets 3 min read
माँ काली के 108 नाम एवं उनके 108 मंत्र- Thread 🧵 Image Image
Dec 5 15 tweets 4 min read
माँ बगलामुखी के 108 नाम एवं उनके 108 मंत्र- Thread 🧵 Image Image
Dec 5 9 tweets 2 min read
8 संकेत, काल भैरव अब आपके रक्षक है 🧵 Image Image
Dec 3 6 tweets 2 min read
How to use Maa Kamakhaya sindoor 🧵 Image Image
Nov 26 9 tweets 2 min read
माँ की तांत्रिक स्तुति—— रात्रिसूक्त का पाठ 🧵 Image Image
Nov 25 13 tweets 6 min read
🕉️ गरुड़ पुराण के अनुसार दान धर्म कैसा होना चाहिए 🧵

🔻जिस देवता का फल चाहिए, उसका पूजन करो
🔻कौन सा दान किस फल को देता है?
🔻कौन-सा दान कौन-सा पुण्य देता है?
🔻इन विशेष समयों में दान का महा-फल

🔻सबसे अच्छा दान वही है जो श्रद्धा से, सही पात्र को, सही जगह पर दिया जाए। जो चीज दूसरों के उपयोग में आए, उसे उचित जगह देना ही दान है।
ऐसा दान इस जीवन में सुख और अगले जीवन में मोक्ष का फल देता है।Image गरुड़ पुराण में कहा गया है कि संसार में दान से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। दान वही श्रेष्ठ माना गया है जो श्रद्धा, सही पात्र और सही समय पर दिया जाए। न्यायपूर्ण तरीके से कमाया हुआ धन जब सुयोग्य ब्राह्मण, गौ, ऋषि, देव या जरूरतमंद को दिया जाता है, तो वह इस जन्म और अगले जन्म – दोनों में महान फल देता है।

दान के अनेक प्रकार बताए गए हैं और हर दान का अपना विशिष्ट फल है। भूमिदान को सबसे बड़ा दान माना गया है—जो व्यक्ति उपजाऊ भूमि ब्राह्मण को देता है, वह पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है। वेदादान, वेद का अध्ययन-अध्यापन और विद्वानों को ज्ञान देना ब्रह्मलोक की प्राप्ति तक ले जाता है। गाय को घास देना पापों को नष्ट करता है, और रोगियों को भोजन, औषधि, तेल आदि देने वाला दीर्घायु तथा स्वस्थ रहता है। अग्नि के लिए लकड़ी दान करने वाला तेजस्वी बनता है। छत्र और जूते का दान परलोक के भयानक मार्गों से रक्षा करता है।

दान करने का सही समय भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। उत्तरायण, दक्षिणायन, सूर्य-चन्द्र ग्रहण, संक्रांतियाँ, महाविषुव, तथा तीर्थों—विशेषकर प्रयाग और गया में किया गया दान अक्षय फल देता है। इन समयों में दिया गया दान प्रायश्चित्त का कार्य करता है और पापों को तुरंत नष्ट कर देता है।
Nov 22 8 tweets 8 min read
क्या आपको भी कभी कभी ऐसा लगता है कि समय बहुत तेज़ी से भाग रहा है ! ?

क्या ऐसा सच है चेतना का स्थिर जितना ऊँचा होता है समय उस के लिए उतना धीमा है ?

आइए जानते है इसका सत्य क्या है … 🧵 Image कभी-कभी तो लगता है कि कल ही तो नया साल शुरू हुआ था, और देखते-देखते महीनों कैसे निकल गए? ऐसा क्यों लग रहा है कि समय पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ चल रहा है?

क्या ये केवल हमारी फीलिंग है, या वाकई कुछ ऐसा हो रहा है जो आम समझ से परे है?

दरअसल प्रकृति के गहरे नियमों में से एक ये है
जितनी चेतना सिकुड़ती है, उतना ही समय तेज़ हो जाता है। जब चेतना सीमित होती है, तो समय संकुचित (कंप्रेस) हो जाता है। क्यूँ कि चेतना के नज़रिए से देखें तो समय अपने आप में एक धारणा मात्र है – यानी ये चेतना की ही रचना है।

श्रीमद् भागवत गीता में कहा गया है

“कालोऽस्मि लोकक्षयकृत् प्रवृद्धो…”

और भागवत पुराण में स्पष्ट लिखा है –

“कालो येन परमेश्वरस्य नाभ्यामभ्युदितो महान्”

अर्थात यह काल (समय) भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न हुआ है और वही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की गति को संचालित करता है।
Nov 21 9 tweets 10 min read
हिंदुओं के 16 संस्कार होते है , किंतु इसमें केवल कर्ण भेदन संस्कार की बात करूँगी, ये विज्ञान इतना गहन है जिसको भारत के ऋषियों ने सहस्त्र वर्ष पहले जान लिया था ,

गोरखनाथ जी के नाथ संप्रदाय में कनफटा योगी बहुत प्रसिद्ध हैं। आपने भी “कनफटा” शब्द सुना होगा , कान में छेद करने के पीछे बहुत गहरा विज्ञान है और इसमें कई ऐसे रहस्य छिपे हुए हैं, जिन्हें शायद आपने आज से पहले कभी नहीं सुना होगा।Image जिसको साइटिका का तेज दर्द होता है कई बार डॉक्टर उनको उनके कान में हेलिक्स के पास एक छोटा-सा छेद करने को कहते है और आश्चर्यजनक रूप से वह दर्द अगले ही दिन पूरी तरह खत्म हो जाता है क्या डॉक्टर को नसों का एक अलग तरह का ज्ञान था, जो उन्होंने किसी मेडिकल किताब में नहीं पढ़ा था।

लेकिन उससे पहले आपको 1950 में फ्रांस के डॉक्टर पॉल नोजियर (Paul Nogier) की कही एक अनोखी बात बताता हूँ। उन्होंने पाया कि मानव कान का आकार उल्टे भ्रूण (गर्भस्थ शिशु) जैसा होता है – जैसे गर्भ में बच्चा सिर नीचे करके मुड़ा हुआ बैठा हो। इसी आधार पर उन्होंने एक पूरा सिस्टम विकसित किया, जिसे आज “ऑरिकुलर एक्यूपंक्चर” या “इयर रिफ्लेक्सोलॉजी” कहा जाता है।Image
Nov 20 9 tweets 2 min read
चंडीपाठ का पूर्ण फल प्राप्ति के लिए , शापोद्वार करने वाले मंत्र , अर्थात उत्कीलन विधि जानिये 🧵 Image Image
Nov 18 12 tweets 3 min read
108 Powerful Names & 108 Powerful Mantras of Sri Vishnu - 🧵 Image Image
Nov 17 9 tweets 3 min read
Lucky Colours According to Your Mulank - 🧵

Mulank 1 – Birth date 1, 10, 19, 28 Image Mulank 2 – Birth date 2, 11, 20, 29 Image
Nov 16 13 tweets 4 min read
जिस घर में पूजा होती है , वह अवश्य पढ़े #Thread

भगवत्सम्बन्धी कार्य

1. एक ही सिद्धान्त, एक ही इष्ट, एक ही मन्त्र, एक ही माला, एक ही समय, एक ही आसन तथा एक ही स्थान हो तो जल्दी सिद्धि होती है। Image जिस आसनपर बैठकर ध्यान आदि किया जाय, वह आसन अपना होना चाहिये, दूसरेका नहीं; क्योंकि दूसरेका आसन काममें लिया जाय तो उसमें वैसे ही परमाणु रहते हैं। इसी तरहसे गोमुखी, माला, सन्ध्याके पञ्चपात्र, आचमनी आदि भी अपने अलग रखने चाहिये। शास्त्रोंमें तो यहाँतक विधान आया है कि दूसरोंके बैठनेका आसन, पहननेकी जूती, खड़ाऊँ, कुर्ता आदिको अपने काममें लेनेसे अपनेको दूसरेके पाप-पुण्यका भागी होना पड़ता है।Image
Nov 15 8 tweets 2 min read
Age and Time of Brahma, Vishnu & Mahesh - Thread 🧵 Image Image
Nov 14 19 tweets 4 min read
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Nov 12 14 tweets 3 min read
52 शक्ति के 52 भैरव जानिये …. 🧵 #Thread Image Image
Nov 11 10 tweets 2 min read
भैरव जयंती पर अपनाएं 8 उपाय, जीवन से दूर होंगी नकारात्मक शक्तियां और शत्रु बाधाएं

भगवान काल भैरव का प्राकट्य दिवस मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को मनाया जाता है Image शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के अहंकार को दूर करने और संसार से अधर्म का नाश करने के लिए काल भैरव रूप धारण किया था। जो भक्त इस दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक भैरव बाबा की पूजा करता है, उसके जीवन से भय, रोग, शत्रु और नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। इस दिन किए जाने वाले कुछ सरल उपायों से भगवान काल भैरव की कृपा सदा आपके ऊपर बनी रहती है
Nov 10 10 tweets 4 min read
कौन-सा ग्रह किस कार्य से नाराज़ होता है जानें

जिन लोगों को ज्योतिषिये पद्धति कुंडली फलित पर विश्वास हो वे सब भलीभांति जानते हैं कि ग्रहों के शुभ-अशुभ परिणाम जीवन में बहुत कुछ ला सकते हैं , दुःख सुख या नदी के दो किनारे हैं व्यक्ति को अपने कर्म पर भी निर्भर होना चाहिए ग्रह क्या करेगा बस ये जाने और उनके अनुसार कर्म निर्धारित करे यह ज़रूर साथ देना बस समझ के साथ भाग्य पर भी विश्वास बनाए रखें, मनुष्य जिस तरह के कर्म करते हैं उनके अनुसार यह अपना परिणाम दिखाते हैं ये उनके अनुकूल है या नहीं ये भाग्य निर्धारण एवं सफलता है ये जानकारी हमारे ऋषि - महर्षियों ने जानकारी दिया था कि कब कौन-सा ग्रह आपसे रुष्ट सकता है और कब प्रसन्न होकर आपको मनोकुल परिणाम दे सकता है। यदि आपने ग्रहों को रुष्ट करने वाले कार्य किए हैं तो निश्चित रूप से आप संकटों से घिर जाएंगे। आज बताया जा रहा है कि कौन सा ग्रह किस कार्य से नाराज़ हो सकता है.....Image सूर्य ग्रह

सूर्य का संबंध आत्मा से होता है। यदि आपकी आत्मा, आपका मन पवित्र है और आप किसी का दिल दुखाने वाले कार्य नहीं करते हैं तो सूर्यदेव आपसे प्रसन्न रहेंगे। लेकिन किसी का दिल दुखाने (कष्ट देने), किसी भी प्रकार का टैक्स चोरी करने और किसी भी जीव की आत्मा को ठेस पहुंचाने पर सूर्य अशुभ फल देता है। कुंडली में सूर्य चाहे जितनी मज़बूत स्थिति में हो लेकिन यदि ऐसा कोई कार्य किया है, तो वह अपना शुभ प्रभाव नहीं दे पाता। सूर्य और पितृ की प्रतिकुलता के कारण व्यक्ति की मान-प्रतिष्ठा में भी कमी आती है और उसे पिता की संपत्ति से बेदखल होना पड़ सकता है।
Nov 9 12 tweets 15 min read
काया अर्थात, आपके पिंड में ब्रह्मांड का दर्शन आप भी कर सकते है , जान सकते है कैसे करते थे ऋषि मुनि इस विद्या से ब्रह्मांड का दर्शन जिसे पिण्डे सो ब्रह्माण्डे कहा जाता है

बहुत ही अमूल्य Thread जो एक साबर मंत्रों के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ जी द्वारा दिया गया साबरी ज्ञान है

(काया अन्दर-पंचवायु दर्शन)

पंचवायु के उपप्राण

१. नाग = डकार में

२. देवदत्त = जिंबाई में

३. कुर्म = पलक झपकने में

४. कृकल = भूख लगती है

५. धनंजय = मृत्यु उपरान्त काया को फुलाता है।Image स्थूल रूप में जिसमें प्राणों के ढाँचे पर देह का कोश बना हुआ है। सूक्ष्म रूप जिसमें पंच शक्तियाँ प्राणों को चलाती है और कारण रुप जो अनुभव का लक्ष्य है। स्थूल का अधिष्ठान चिग्रंथी है। सूक्ष्म का अधिष्ठान चिदाभास है और कारण का अधिष्ठान चिदाकाश है। चिदग्रंथी में देह का अभिमान रहता है। चिदाभास में लिंग शरीर का ज्ञाता बसता है। चिदाकाश में स्वरूप का साक्षी चैतन्य निवास कर्ता है।

१. चिदग्रंथी – यह प्रतिबिम्ब जैसे चमकते हुए धातु के टुकड़ों में मुख को देखे, तो जो जैसे टुकड़ों का रंग है। वैसे ही प्रतिबिंब है।

२. चिदाभास – यह प्रतिबिम्ब जैसे जल में मुख देखते है, जो हिलता हुआ प्रतीत होता है।

३. चिदाकाश – यह प्रतिबिम्ब निश्चल स्पष्ट होता है, जैसे दर्पण में मुख को जैसे कि वैसे ही दिख जाता है।

१. स्थूल क्रिया स्पन्दरूप है जो मरूत देवता के आधीन है।

२. सूक्ष्म क्रिया प्राणशक्ति है जो निस्पन्द रूप इन्द्र के आधीन है।

३. कारण समाधिस्थ गति, जिसके स्वामी रुद्र है और इन स्थूल सूक्ष्म कारण

की पांच-पांच शक्तियाँ को ही समान प्राण अपान व्यान उदान कहते है। अब इन पांच वायु का स्थूल रूप देखे जो एक वायु श्वास होकर चलती है तो इनके क्रिया-स्थान के पांच भाग होते है। अर्थात्

१. समान वायु – यह निश्चल होकर आकाश का रूप धारण करके सब में सर्वत्र गमन करती है स्थान नाभि है और यह आकर्षण शक्ति उत्पन्न करती है।

२. प्राणवायु – यह अपेक्षानुसार बाहर की पवन अन्दर खींचते है जिसका

स्थान हृदय है।

३. अपानवायु – क्रिया-उत्तेपण है रूप अग्नि स्थान गुदा स्थान है यह देह

के अन्दर की पवन ऊपर को निकालती है।

४. व्यान वायु - क्रिया-प्रसारण है देह के सर्व अंगों में प्रवेश करता रूप = जल और स्थान = ललाट है।

५. उदानवायु – क्रिया-आंकुचन देह के सभी अंग में सिकुड़ना, रूप-पृथ्वी और स्थान कण्ठ है।