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गरुड़ पुराण में कहा गया है कि संसार में दान से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। दान वही श्रेष्ठ माना गया है जो श्रद्धा, सही पात्र और सही समय पर दिया जाए। न्यायपूर्ण तरीके से कमाया हुआ धन जब सुयोग्य ब्राह्मण, गौ, ऋषि, देव या जरूरतमंद को दिया जाता है, तो वह इस जन्म और अगले जन्म – दोनों में महान फल देता है।
कभी-कभी तो लगता है कि कल ही तो नया साल शुरू हुआ था, और देखते-देखते महीनों कैसे निकल गए? ऐसा क्यों लग रहा है कि समय पहले से कहीं ज़्यादा तेज़ चल रहा है?
जिसको साइटिका का तेज दर्द होता है कई बार डॉक्टर उनको उनके कान में हेलिक्स के पास एक छोटा-सा छेद करने को कहते है और आश्चर्यजनक रूप से वह दर्द अगले ही दिन पूरी तरह खत्म हो जाता है क्या डॉक्टर को नसों का एक अलग तरह का ज्ञान था, जो उन्होंने किसी मेडिकल किताब में नहीं पढ़ा था।
जिस आसनपर बैठकर ध्यान आदि किया जाय, वह आसन अपना होना चाहिये, दूसरेका नहीं; क्योंकि दूसरेका आसन काममें लिया जाय तो उसमें वैसे ही परमाणु रहते हैं। इसी तरहसे गोमुखी, माला, सन्ध्याके पञ्चपात्र, आचमनी आदि भी अपने अलग रखने चाहिये। शास्त्रोंमें तो यहाँतक विधान आया है कि दूसरोंके बैठनेका आसन, पहननेकी जूती, खड़ाऊँ, कुर्ता आदिको अपने काममें लेनेसे अपनेको दूसरेके पाप-पुण्यका भागी होना पड़ता है।
शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव ने ब्रह्मा जी के अहंकार को दूर करने और संसार से अधर्म का नाश करने के लिए काल भैरव रूप धारण किया था। जो भक्त इस दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक भैरव बाबा की पूजा करता है, उसके जीवन से भय, रोग, शत्रु और नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। इस दिन किए जाने वाले कुछ सरल उपायों से भगवान काल भैरव की कृपा सदा आपके ऊपर बनी रहती है
सूर्य ग्रह
स्थूल रूप में जिसमें प्राणों के ढाँचे पर देह का कोश बना हुआ है। सूक्ष्म रूप जिसमें पंच शक्तियाँ प्राणों को चलाती है और कारण रुप जो अनुभव का लक्ष्य है। स्थूल का अधिष्ठान चिग्रंथी है। सूक्ष्म का अधिष्ठान चिदाभास है और कारण का अधिष्ठान चिदाकाश है। चिदग्रंथी में देह का अभिमान रहता है। चिदाभास में लिंग शरीर का ज्ञाता बसता है। चिदाकाश में स्वरूप का साक्षी चैतन्य निवास कर्ता है।
यह यात्रा केवल शरीर की नहीं, बल्कि मन, भावना और आत्मा के बीच की एक महायात्रा है जहाँ मनुष्य “जैविक अस्तित्व” से ऊपर उठकर “आध्यात्मिक अस्तित्व” बनता है। यही वह क्षण होता है जब मनुष्य में “Self” यानी स्वयं का जन्म होता है।
हनुमान चालीसा जैसी साधारण दिखने वाली चीज नहीं है इसमें कितना गहरा रहस्य और अनोखी शक्ति छुपी हो सकती है जब पूजा के समय मंद-मंद स्वर में चालीसा पढ़ी जाती है। असल में क्या चल रहा है? आमतौर पर लोग इसे भगवान हनुमान की स्तुति, भक्ति और रक्षा का गीत मानते हैं। परंतु लाहिड़ी महाशय ने इसका एक अनोखा और गहरा रूप दिखाया है। ऐसा जो ना केवल मन को बल्कि जीवन के हर स्तर को झकझोर सकता है। अगर इसका अर्थ समझा जाए। लाहिड़ी महाशय का जीवन स्वयं एक उदाहरण या साधना, प्रेम और अद्भुत गहराई का।
सूक्ष्म वेद मात्र अनुभव ज्ञान है। अतः वह किताबों (ग्रंथ में) व्यक्त नहीं किया जा सकता, अतः व्यक्त होते ही वह स्थूल रूप में परिनित (परिवर्तित) हो जाता है।
तब बाणशय्या पर स्थित भीष्म ने कहा –
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दशपलमितं तैलं प्रत्यहं सप्तवासरे।