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Dharm ॥ History || Jyotish || Politics ॥ Posting Threads🧵Everyday ॥ नमश्चण्डिकायै【࿗】 https://t.co/JqmXNBlI5G
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Jul 21 7 tweets 8 min read
कैसे एक तोते ने व्यास जी के पुत्र के रूप में जन्म लिया श्रीमद्भागवत का प्राकट्य 🧵

आइए जानते हैं मुनि कुमार शुकदेव जी के जन्म की ये अद्भुत कथा Image समस्त संसार में आर्यवर्त एक पवित्र धरा है। स्वर्ग लोक के देवता भी इस धरा पर जन्म लेने के लिए लालायित रहते हैं । समय-समय पर अनेक दिव्य विभूतियों ने इस धरा पर जन्म लिया है और इस पवित्र भूमि को और भी पवित्र किया है । इसी भारत भूमि पर द्वापर युग और कलियुग के संधि के समय में एक दिव्य विभूति महात्मा शुकदेव जी ने जन्म लिया था और अपनी दिव्य वाणी के द्वारा पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भागवत महापुराण को प्रकट किया था ।

◆शुकदेव जी के जन्म की कथा:-

भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त भगवान शुकदेव जी की जन्म की कथा अत्यंत दिव्य है, इस कथा का श्रवण और पाठन मात्र से व्यक्ति के समस्त कष्टों का नाश होता है और प्रभु के प्रति भक्ति का भाव जागृत होता है । ईश्वर इच्छा से एक बार माता पार्वती के गुरु वामदेव जी कैलाश पधारे । उन्होंने भोलेनाथ के दर्शन किए और उनकी चरण वंदना की । देवी पार्वती ने उनका अत्यंत आदर सत्कार किया । कैलाश से प्रस्थान करते हुए उन्होंने देवी पार्वती को कहा कि आप भोलेनाथ के अवश्य पूछे कि वह नरमुंडो की माला क्यों धारण करते हैं? उनके जाने के उपरांत देवी पार्वती ने महादेव से वह प्रश्न किया । उस समय महादेव ने देवी पार्वती के प्रश्न को टाल दिया परंतु उनके अनेक बार आग्रह करने पर महादेव बोले, हे पार्वती, यह आप ही के नरमुंडो की माला है जिसे मैं धारण करता हूँ। हे पार्वती! समय के प्रभाव से आप बार - बार जन्म लेती हो और मृत्यु को प्राप्त करती हो और फिर मैं आपके ही मुंड की माला बना कर उसे धारण करता हूँ। तब देवी पार्वती ने महादेव से हंसकर प्रश्न किया कि हे प्रभु आपने ऐसा कौन सा कार्य किया हुआ है जिससे आप मृत्यु को प्राप्त नहीं होते? महादेव बोले, मैंने परम दिव्य अमृतमयी अमर कथा का रसपान किया हुआ है और इसी के प्रभाव से मैं अमर हूँ। देवी पार्वती बोली हे प्रभु! मैं आपके मुखारविंद से उस परम दिव्य अमृत कथा को सुनने की इच्छा रखती हूँ । महादेव बोले हे देवी! जिस कथा को सुनने मात्र से ही प्राणी अमर हो जाता है उसे सुनाने के लिए किसी विशेष स्थान की आवश्यकता है अतः मैं शीघ्र ही आपके समक्ष उस दिव्य कथा का वर्णन करूंगा ।
Jul 20 12 tweets 9 min read
चीन की सभ्यता 5000 साल पुरानी मानी जाती है, लगभग महाभारत काल का समय, तो चीन का उल्लेख महाभारत में क्यों नहीं है? 🧵

🔹 महाभारत काल में भारतीयों का विदेशों से संपर्क, प्रमाण जानकर चौंक जाएंगे

🔹 महाभारत काल में अखंड भारत के मुख्यत 16 महाजनपदों Image युद्ध तिथि : महाभारत का युद्ध और महाभारत ग्रंथ की रचना का काल अलग अलग रहा है। इससे भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने की जरूरत नहीं। यह सभी और से स्थापित सत्य है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व को हुआ हुआ। भारतीय खगोल वैज्ञानिक आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ और कलियुग का आरम्भ कृष्ण के निधन के 35 वर्ष पश्चात हुआ। महाभारत काल वह काल है जब सिंधुघाटी की सभ्यता अपने चरम पर थी।
Jul 16 11 tweets 15 min read
क्या आप किसी रोग से ग्रस्त होकर परेशान है? 🧵
#thread अवश्य पढ़े कोई ना कोई निवारण मिलेगा

🔹हस्त रेखा एवं रोग
🔹जन्म कुंडली में नीच लग्नेश में रोग और उपाय
🔹 रोग निवारण के सरल उपाय (लाल किताब से)
🔹रोग होने में संकेत
🔹उत्तम स्वास्थ्य लाभ के लिए शयन और वास्तु Image व्यक्ति कि हथेली में विभिन्न प्रकार कि रेखाएँ, पर्वत एवं उन पर उभर कर आने वाले तरह तरह के चिह्न के बदलाव से व्यक्ति को होने वाली बीमारियों का अंदाजा लगाया जासकता हैं। हर ग्रह के कुछ निश्चित चिह्न होते हैं।

इन चिह्नो का प्रभाव हथेली में ग्रह के पर्वत पर होंने के अनुरुप शुभ-अशुभ फल कि प्राप्ति होती हैं।

🔹 जानिए हस्त रेखा से विभिन्न रोग के संकेत

हमे शक्ति प्रदान करने वाली सूर्य रेखा एवं स्वास्थ्य रेखा सूर्य पवर्त के समीप पाई जाती हैं।

यदि हथेली में शनि एवं सूर्य का संबंध हो जाए तो व्यक्ति कब्ज से पीडा होती हैं।

जिस व्यक्ति के हाथ में हृदय रेखा कमजोर होती हैं एवं भाग्य रेखा एकदम स्पष्ट हो, आयु रेखा से जुडी हुई कोई रेखा कनिष्ठिका के तीसरे पर्व तक जाती हो, या मंगल पर्वत पर क्रॉस का चिह्न हो, या उभरे हुए चंद्र पर्वत पर झंडे का चिह्न हो तो व्यक्ति बदहजमी, अपच, गैस इत्यादि रोग से पीड़ित होता हैं।

जिस व्यक्ति के हाथ में गोल घेरे का ग्रहों के पर्वतों पर होना शुभ माना गया है, लेकिन गोल घेरे का रेखाओं पर होना अत्यंत अशुभ माना गया है। यदि गोल घेरे का हृदय रेखा पर होने से व्यक्ति को आंखो कि समस्या हो सकती हैं। मंगल पर्वत पर गोल घेरा होने से भी नेत्र संबंधित पीडा होती देखी गई हैं।

जिस व्यक्ति के हाथ में शनि पर्वत पर या आयु रेखा के अंत में क्रॉस या जालीदार रेखा का होना व्यक्ति को असाध्य रोग होने का संकेत देती हैं।

जिस व्यक्ति के हाथ में स्वास्थ्य रेखा टूटी फूटी हो, या हृदय रेखा और मस्तक रेखा एक दूसरे समीप आ गई हो तो व्यक्ति को श्वास रोग होने की आशंका अधिक रहती हैं।

जिस व्यक्ति के हाथ में आयु रेखा, हृदय रेखा और मस्तक रेखा के अंत में जालीदार रेखाएं हों या पर्वतों पर जालीदार रेखाएं हों, क्रॉस का चिह्न हो, हथेली पर काले या नीले रंग के धब्बे या बिंदु हो, नाखून गहरे नीले रंग के हों. नाखून टूटने वाले हों या अस्वाभाविक आकर के हों. या अंगुलियां मुड़ी हुई हो, या हथेली कि त्वचा नरम हो, हाथ हमेशा भीगा हुआ सा रहता हों, तो व्यक्ति जीवन भर किसी न किसी रोग से पीडित होकर अस्वस्थ रहता है। जिस व्यक्ति के हाथ में आयु रेखा, हृदय रेखा और मस्तक रेखा तीनों एक जगह मिली हुई हो, या अंगुलियों के नाखूनों में खड़ी रेखाए हो, या नखून किनारों से टूटे हुए हों. नाखूनों के मूल पर चन्द्रमा काले रंगके हो या विलुप्त होगये हो, या शनि पर्वत पर जालीदार चिह्न का होना, व्यक्ति को गठिया रोग होने का संकेत देता है।

जिस व्यक्ति के हाथ में आयु रेखा पर क्रॉस होना किसी दुर्घटना ग्रस्त होने का संकेत होता है।

आयु रेखा के अंत में काला धब्बा होना गंभीर चोट लगने का सूचक हैं।

जिस व्यक्ति के हाथ में आयु रेखा पर काला बिंदु हो तो यह किसी बड़े रोग की सूचना देता है।

जिस व्यक्ति के हाथ में आयु रेखा अंत में दो मुखी हो जाए तो, व्यक्ति को मधुमेह होने का संकेत होता हैं।

जिस व्यक्ति के हाथ में आयु रेखा चौड़ी हो. या उसका रंग पीला हो, या जंजीरनुमा हो तो व्यक्ति का स्वास्थ्य हर समय शुभ नहीं रहता है।
Jul 15 12 tweets 3 min read
वास्तु शास्त्र: समृद्धि और सुख का रहस्य 🧵

(संस्करण - पारंपरिक शास्त्रीय सूत्रों पर आधारित)

1. दिशाएँ और उनके अधिपति
2. भूमि का ढलान कैसा हो?
3. दिशाओं में ऊँचाई का प्रभाव (अशुभ/शुभ)
4. भवन निर्माण दिशा अनुसार
5: भूमि के आकार का फल
6. वास्तु दोष हो तो किस दिशा में कौनसा मंत्र उच्चारण करे ?Image 1. दिशाएँ और उनके अधिपति

हर दिशा का एक अधिपति देवता होता है। यह जानना जरूरी है कि कौन सी दिशा किस ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है:
🔹 पूर्व - इंद्र
🔹 ईशान - शिव
🔹 उत्तर - कुबेर
🔹 वायव्य - वायु
🔹 पश्चिम - वरुण
🔹 नैऋत्य - राक्षस
🔹 दक्षिण - यम
🔹 आग्नेय - अग्नि Image
Jul 14 8 tweets 11 min read
बहुत ही उपयोगी #thread आपकी जानकारी हेतु 🧵

कृपया आप बुकमार्क 🔖 अवश्य कीजिए

🔹आपकी राशि और शिव पूजा
🔹 शिवलिंग के विभिन्न प्रकार व लाभ
🔹क्यों शिव को प्रिय हैं बेल पत्र?
🔹शिव पूजन में कोन से फूल चढाएं?
🔹शिववास विचार
🔹रुद्राभिषेक से कामनापूर्ति Image 🔹आपकी राशि और शिव पूजा

शिव पुराण में उल्लेख हैं की महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग की उत्पत्ति हुई थी, शिववरात्रि के दिन शिव पूजन, व्रत और उपवास से व्यक्ति को अनंत फल की प्राप्ति होती हैं।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्ति अपनी राशि के अनुसार भगवान शिव की आराधना और पूजन कर विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं। जिसे अपनी जन्म राशि या नाम राशि पता हो वह व्यक्ति निम्न सामग्री से शिवलिंग पर अभिषेक करें तो विशेष लाभ प्राप्त होते देखा गया है।

मेष: जल या दूध के साथ में गुड़, शहद (मधु, महु, मध) लाल चंदन, लाल कनेर के फूल सब मिला कर या किसी भी एक वस्तु को जल / दूध के साथ मिला कर अभिषेक करने से विशेष लाभ मिलता हैं।

वृषभ: जल या दही के साथ में शक्कर (मिश्री), अक्षत (चांवल), सफेद तिल, सफेद चंदन, श्वेत आक फूल सब मिला कर या किसी भी एक वस्तु को जल या दही के साथ मिला कर अभिषेक करने से विशेष लाभ मिलता हैं।

मिथुनः गंगा जल या दूध के साथ में दूब, जौ, बेल पत्र सब मिला कर या किसी भी एक वस्तु को गंगा जल या दूध के साथ मिला कर अभिषेक करने से विशेष लाभ मिलता हैं।

कर्क: दूध या जल के साथ में शुद्ध घी, सफेद तिल, सफेद चंदन, सफेद आक सब मिला कर या किसी भी एक वस्तु को दूध या जल के साथ मिला कर अभिषेक करने से विशेष लाभ प्राप्त होता हैं।

सिंहः जल या दूध के साथ में शुद्ध घी, गुड़, शहद (मधु, महू, मध) लाल चंदन सब मिला कर या किसी भी एक वस्तु को जल या दूध के साथ मिला कर अभिषेक करने से विशेष लाभ प्राप्त होता हैं।

कन्या: गंगा जल या दूध के साथ में दूब, जौ, बेल पत्र सब मिला कर या किसी भी एक वस्तु को गंगा जल या दूध के साथ मिला कर अभिषेक करने से विशेष लाभ मिलता हैं।

तुला : गंगा जल या दही के साथ में शक्कर (मिश्री), अक्षत (चांवल), सफेद तिल, सफेद चंदन, श्वेत आक फूल, सुगंधित इत्र सब मिला कर या किसी भी एक वस्तु को जल या दही के साथ मिला कर अभिषेक करने से विशेष लाभ मिलता है।

वृश्चिक : जल या दूध के साथ में घी, गुड़, शहद (मधु, महु, मध) लाल चंदन, लाल रंग के फूल सब मिला कर या किसी भी एक वस्तु को जल / दूध के साथ मिला कर अभिषेक करने से विशेष लाभ मिलता है।

धनुः जल या दूध के साथ में हल्दी, केसर, चावल, घी, शहद, पीले फुल, पीली सरसों, नागकेसर सब मिला कर या किसी भी एक वस्तु को जल / दूध के साथ मिला कर अभिषेक करने से विशेष लाभ प्राप्त होता हैं।

मकर: गंगा जल या दही के साथ में काले तिल, सफेद चंदन, शक्कर (मिश्री), अक्षत (चावल), सब मिला कर या किसी भी एक वस्तु को अभिषेक गंगा जल या दही के साथ मिला कर अभिषेक करने से विशेष लाभ प्राप्त होता हैं।

कुंभ : गंगा जल या दही के साथ में काले तिल, सफेद चंदन, शक्कर (मिश्री), अक्षत (चांवल), सब मिला कर या किसी भी एक वस्तु को अभिषेक गंगा जल या दही के साथ मिला कर अभिषेक करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।

मीन : जल या दूध के साथ में हल्दी, केसर, चावल, घी, शहद, पीले फुल, पीली सरसों, नागकेसर सब मिला कर या किसी भी एक वस्तु को जल / दूध के साथ मिला कर अभिषेक करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
Jul 13 13 tweets 5 min read
Shani Dev Sade Sati Mantras Seeking Relief and Protection during Challenging Times🧵

specific remedies based on rashi Image Understanding Shani Dev Sade Sati

The Sade Sati period is considered one of the most important astrological phases. It occurs when Saturn transits through the 12th, 1st, and 2nd houses from your natal moon. The effects of Sade Sati can vary based on the position of Saturn in your birth chart, and it can bring both challenges and rewards.

Shani's influence during this time is believed to test an individual's patience, discipline, and perseverance. It can result in hardships, financial struggles, health issues, or emotional turmoil. However, it is also said to be a time of introspection, where individuals are pushed to confront their inner fears, work on personal development, and evolve spiritually.
Jul 13 11 tweets 14 min read
३३ कोटि देवी देवता तो आपने सुना होगा, किंतु हम बात उस पर करेंगे जो आपने ना सुना ना पढ़ा होगा 🧵

🔹देवों के सरूप
🔹देवों के भेद
🔹देवों के निवास स्थान
🔹देवों की संख्या

कृपया #thread अवश्य पूरा पढ़े Image 🔹 देवों का स्वरूप

देवता क्या हैं ?

देवो दानाद् वा, दीपनाद् वा, द्योतनाद् वा, द्युस्थानो भवतीति वा।

निरुक्त ७.१५

इन चार गुणों में से कोई एक या अधिक गुण वाले को देव कहते हैं-

१. दान- किसी प्रकार का कोई लोकोपकारी कार्य करना या दान देना ।

२. दीपन- प्रकाश देना, प्रकाशित करना या ज्योति देना ।

३. द्योतन - स्वयं प्रकाशयुक्त होना और गूढ रहस्यों या तत्त्वों को प्रकाशित

४. द्युस्थान - द्युलोक में स्थित होना ।

यजुर्वेद के एक मन्त्र में कुछ देवों के ये नाम दिए हैं अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्रमा, वसुगण, रुद्र, आदित्य, मरुत्, विश्वेदेव, बृहस्पति, इन्द्र और वरुण ।।

उपर्युक्त चार गुणों के आधार पर कुछ देवों को इस प्रकार रख सकते हैं।

१. दान, दाता - लोकोपकारी देव। जैसे अग्नि ऊष्मा देता है। वायु श्वास और प्राणशक्ति देता है। वरुण जल का देवता है। यह जीवनी शक्ति देता है। इन्द्र आत्मा है। यह चेतना देता है, आत्मिक बल देता है। वसु पृथिवी आदि ८ वसु आश्रय और स्थिति देते हैं। ११ रुद्र प्राण आदि शक्ति के स्रोत हैं।

१२ आदित्य प्रकाश देते हैं।Image
Jul 12 4 tweets 7 min read
वैदिक ज्योतिष में पित्रादि-दोष (ऋण) या श्राप की सही पहचान और निदान।🧵

आओ समझें ज्योतिष व तंत्र हस्त रेखा आदि से Image पित्र-श्राप का सही पता सिर्फ जन्म कुण्डली देखकर ही नहीं लगाया जा सकता है, अपितु कुंडली ना होने पर इसके अलावा प्रश्न कुंडली, हस्त-रेखा (सामुद्रिक विज्ञान), अपराविज्ञान और शकुन शास्त्र के माध्यम से भी "पित्र दोष" का सही पता लगाया जा सकता है, परन्तु प्राय ये विधिंयाँ प्रचलन में नहीं है लुप्तप्राय सी हो गयी हैं।

मुख्य रूप से जन्म कुण्डली से ही पित्र दोष का निर्णय किया जाता है।

🔹चार प्रकार के प्रवल पित्र-दोष :-

सूर्य.... आत्मा एवं पिता का कारक गृह है पित्र पक्ष का विचार सूर्य से होता है।

"चन्द्रमा" मन एवं माता पक्ष का कारक ग्रह है।

मंगल... हमारे रक्त , जीन्स, परम्परा, पौरुष और बंधुत्व पक्ष का कारक ग्रह है।

शुक्र.... भी हमारे भोग, ऐश्वर्य और स्त्री पक्ष का कारक ग्रह है।

सूर्य जब राहु- की युति में हो तो ग्रहण योग बनता है, सूर्य का ग्रहण अतः पिता या आत्मा का ग्रहण हुआ यानि पित्र-श्राप या श्रापित आत्मा। और चंद्र केतु की युति, अमावस्या दोष या चंद्र ग्रहण दोष भी एक प्रकार का पित्र दोष ही होता है क्यों कि चंद्र हमारी भोंतिक देह का कारक है।

चार अत्यंत कष्टकर पित्र-दोष :-

"सूर्य"---- सूर्य राहू सूर्य शनी या सूर्य केतु की युति पित्र दोष का निर्माण करती है।

"चन्द्र"--- अगर राहू, केतु, शनी या सूर्य की युति में हो तो पित्र दोष (मात्र पक्ष) होता है।

"मंगल"--- भी यदि पूर्णास्त है या इन क्रूर ग्रहों से युक्त है तो भी वंशानुगत पित्र दोष होता है।

"शुक्र "--- या सप्तम भाव यदि सूर्य, मंगल, शनी या राहु से युक्त हो तो भी स्त्री पक्ष से पित्र श्राप बनता है।

वैसे समस्त ग्रहों के दूषित होने से कुंडली में विभिन्न प्रकार के अन्य पित्रादि श्राप भी बन सकते हैं.... परंतु अभी हम कुछ प्रमुख पित्र दोषों (श्रापों) को समझते हैं :-

शनि सूर्य पुत्र है, यह सूर्य का नैसर्गिक शत्रु भी है, अतः शनि की सूर्य पर दर्ष्टि भी पित्र दोष उत्पन करती है। इसी पित्र दोष से जातक आदि-व्याधि-उपाधि तीनो प्रकार की पीड़ाओं से कष्ट उठाता है, उसके प्रत्येक कार्ये में अड़चनें आती रहती हैं, कोई भी कार्य सामान्य रूप से निर्विघ्न सम्पन्न नहीं होते है, दूसरे की दृष्टि में जातक सुखी-सम्पंन दिखाई तो पड़ता है, परन्तु जातक आंतरिक रूप से दुखी होता रहता है, जीवन में अनेक प्रकार के कष्ट उठाता है, कष्ट किस प्रकार के होते है इसका विचार व निर्णय सूर्य राहु की युति अथवा सूर्य शनि की दृष्टि सम्बन्ध या युति जिस भाव में हो उसी पर निर्भर करता है, कुंडली में चतुर्थ भाव नवम भाव, तथा दशम भाव में सूर्य राहु अथवा चन्द्र राहु की युति से जो पित्र दोष उतपन्न होता उसे श्रापित पितृ दोष कहते है, इसी प्रकार पंचम भाव में राहु गुरु की युति से बना गुरु चांडाल योग भी प्रबल पितृ दोष कारक होता होता है, संतान भाव में इस दोष के कारण प्रसव कष्टकारक होते हैं, आठवे या बारहवे भाव में स्थित गुरु प्रेतात्मा से पित्र दोष करता है, यदि इन भावो में राहु बुध की युति में हो तथा सप्तम, अष्टम भाव में राहु और शुक्र की युति में हो तब भी पूर्वजो के दोष से पित्र दोष होता है, यदि राहु शुक्र की युति द्वादश भाव में हो तो पित्र दोष स्त्री जातक से होता है इसका कारण भी स्पष्ट कर दें क्योंकि बारहवाँ भाव भोग एव शैया सुख का स्थान है, अतः इस भावके दूषित होने से स्त्री जातक से दोष (श्राप) होना स्वभाविक है ये अनैतिक संबंधों का कारण भी हो सकता है।

अन्य श्रापित योग :-

1⃣ यदि कुण्डली में अष्टमेश राहु के नक्षत्र में तथा राहु अष्टमेश के नक्षत्र में स्थित हो तथा लग्नेश निर्वल एवं पीड़ित हो तो जातक पित्र दोष एव भूत प्रेतादि आदि से शीघ्र प्रभावित होते हैं।।

2⃣ यदि जातक का जन्म सूर्य चन्द्र ग्रहण में हो तथा घटित होने वाले ग्रहण का सम्बन्ध जातक के लग्न, षष्ट एव अष्टम भाव से बन रहा हो तो ऐसे जातक पित्र दोष,भूत प्रेत, एव आत्माओं के प्रभाव से पीड़ित रहते हैं।।

3⃣ यदि लग्नेश जन्म कुण्डली में अथवा नवमांश कुण्डली में अपनी नीच राशि में स्थित हो तथा राहु , शनि, मंगल के प्रभाव से युक्त हो तो जातक पित्र दोष, प्रेत्माओं का शिकार होता है।

4⃣ यदि जन्म कुण्डली में अष्टमेश पंचम भाव तथा पंचमेश अष्टम भाव में स्थित हो तथा चतुर्थेश षष्ठ भाव में स्थित हो और लग्न या लग्नेश पापकर्तरी (प्रतिबंधक) योग में स्थित हो तो जातक मातृ श्राप एवं अतृप्त मात्र आत्माओं से प्रभावित होता है।।
Jul 11 7 tweets 4 min read
ऐसे होते है गुरुमहाराज जी के ज्ञानी सिख

कहानी है, हृदय राम भल्ला की, जो हनुमान भक्त थे , और अकबर के “नवरत्नों” में भी शामिल थे, एक सत्य के बोलने पर उनको कारावास दिया 🧵

“स्वयं गुरु गोबिंद सिंह जी “हनुमान नाटक”ग्रंथ से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने इसे गुरमुखी लिपि में लिखवाया Image हृदय राम भल्ला जी का जीवन जितना रहस्यमयी है, उतना ही प्रेरणादायक भी। चूंकि वे 17वीं सदी में हुए थे, उनके जीवन के बारे में सीमित और बिखरी हुई जानकारियाँ ही मिलती हैं। फिर भी, जो कुछ ऐतिहासिक प्रमाण और पारंपरिक स्रोतों से जाना गया है,

🔹 हृदय राम भल्ला की जीवन-कथा

हृदय राम भल्ला जी का जन्म पंजाब क्षेत्र में हुआ था, एक ऐसे समय में जब भारत में मुगल साम्राज्य का प्रभुत्व था और धार्मिक व सांस्कृतिक आंदोलन बहुत तेज़ी से चल रहे थे।

वे बचपन से ही अत्यंत मेधावी और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। उन्हें संस्कृत, ब्रजभाषा और फारसी का गहरा ज्ञान था। उनकी भाषा में भक्ति, वीरता और गूढ़ आध्यात्मिकता तीनों का अद्भुत मेल था।

हृदय राम जी के मन में हनुमान जी के प्रति अत्यंत श्रद्धा थी। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने पूरा हनुमान नाटक न केवल लिखा, बल्कि कंठस्थ भी कर लिया था। वह इसे बार-बार सुनाते और नाटकीय रूप में प्रस्तुत करते।Image
Jul 11 6 tweets 2 min read
वात, पित्त, कफ़ से संबंधित सब रोगों की ऊपज शरीर में होती है, इसको कैसे रोके, योग एवं भोजन जानिये 🧵 Image 1. Image
Jul 10 6 tweets 6 min read
आपका जन्म किस नक्षत्र में हुआ है… आप अपने जन्म नक्षत्र से जान सकते हैं अपने बारे में ..! 🧵

#thread पूरा अंत तक पढ़े Image वैदिक ज्योतिष में 27 नक्षत्रों का महत्व खगोलीय और ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रत्येक नक्षत्र का स्वभाव, प्रभाव, और विशेषताएँ ग्रहों, राशियों, और मानव जीवन पर अलग-अलग प्रभाव डालती हैं। नक्षत्र चंद्रमा की गति पर आधारित हैं और प्रत्येक नक्षत्र लगभग 13 डिग्री 20 मिनट का हिस्सा कवर करता है, जो राशि चक्र के 360 डिग्री को 27 भागों में विभाजित करता है। अभिजीत नक्षत्र को विशेष परिस्थितियों में 28वें नक्षत्र के रूप में गिना जाता है, हालांकि यह सामान्य गणना में शामिल नहीं होता। नीचे 27 नक्षत्रों (अभिजीत सहित) का क्रमबद्ध विवरण उनके खगोलीय और वैदिक ज्योतिषीय प्रभाव के आधार पर दिया गया है:

1. अश्विनी (Ashwini)

खगोलीय स्थिति: मेष राशि (0° - 13°20')
स्वामी: केतु
प्रभाव: अश्विनी नक्षत्र गति, ऊर्जा, और उपचार से संबंधित है। यह नवीन शुरुआत, नेतृत्व, और उत्साह का प्रतीक है। इस नक्षत्र में जन्मे लोग तेज, साहसी, और स्वतंत्र स्वभाव के होते हैं।
वैदिक महत्व: यह चिकित्सा, यात्रा, और नई शुरुआत के लिए शुभ माना जाता है।

2. भरणी (Bharani)

खगोलीय स्थिति: मेष राशि (13°20' - 26°40')
स्वामी: शुक्र
प्रभाव: यह नक्षत्र परिवर्तन, सृजन, और बलिदान से जुड़ा है। इसमें जन्मे लोग अनुशासित, रचनात्मक, और दृढ़ संकल्पी होते हैं।
वैदिक महत्व: यह नक्षत्र कठिन परिश्रम और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक है।

3. कृत्तिका (Krittika)
खगोलीय स्थिति: मेष-वृषभ (26°40' मेष - 10° वृषभ)
स्वामी: सूर्य
प्रभाव: कृत्तिका अग्नि तत्व से संबंधित है और शुद्धिकरण, नेतृत्व, और तीक्ष्ण बुद्धि का प्रतीक है। इस नक्षत्र में जन्मे लोग महत्वाकांक्षी और तेजस्वी होते हैं।
वैदिक महत्व: यह युद्ध, नेतृत्व, और आध्यात्मिक शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण है।

4. रोहिणी (Rohini)
खगोलीय स्थिति: वृषभ (10° - 23°20')
स्वामी: चंद्रमा
प्रभाव: यह नक्षत्र सौंदर्य, रचनात्मकता, और समृद्धि से जुड़ा है। रोहिणी में जन्मे लोग आकर्षक, रचनात्मक, और सौम्य स्वभाव के होते हैं।
वैदिक महत्व: यह विवाह, कला, और धन संचय के लिए शुभ है।

5. मृगशिरा (Mrigashira)
खगोलीय स्थिति: वृषभ-मिथुन (23°20' वृषभ - 6°40' मिथुन)
स्वामी: मंगल
प्रभाव: खोज, जिज्ञासा, और संचार से संबंधित। इस नक्षत्र में जन्मे लोग बुद्धिमान, जिज्ञासु, और अन्वेषक होते हैं।
वैदिक महत्व: यह शिक्षा, यात्रा, और अनुसंधान के लिए अनुकूल है।

6. आर्द्रा (Ardra)
खगोलीय स्थिति: मिथुन (6°40' - 20°)
स्वामी: राहु
प्रभाव: आर्द्रा परिवर्तन, तूफान, और मानसिक उथल-पुथल का प्रतीक है। इस नक्षत्र में जन्मे लोग गहरी सोच वाले और भावनात्मक होते हैं।
वैदिक महत्व: यह परिवर्तन और आध्यात्मिक जागृति के लिए महत्वपूर्ण है।

7. पुनर्वसु (Punarvasu)
खगोलीय स्थिति: मिथुन-कर्क (20° मिथुन - 3°20' कर्क)
स्वामी: बृहस्पति
प्रभाव: यह नक्षत्र पुनर्जनन, समृद्धि, और आध्यात्मिक विकास से जुड़ा है। इस नक्षत्र में जन्मे लोग दयालु और आशावादी होते हैं।
वैदिक महत्व: यह घरेलू सुख और नई शुरुआत के लिए शुभ है।

8. पुष्य (Pushya)
खगोलीय स्थिति: कर्क (3°20' - 16°40')
स्वामी: शनि
प्रभाव: पुष्य पोषण, देखभाल, और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। इस नक्षत्र में जन्मे लोग जिम्मेदार और स्थिर होते हैं।
वैदिक महत्व: यह धार्मिक कार्यों और शिक्षा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।

9. आश्लेषा (Ashlesha)
खगोलीय स्थिति: कर्क (16°40' - 30°)
स्वामी: बुध
प्रभाव: यह नक्षत्र रहस्य, चतुराई, और गहरी भावनाओं से जुड़ा है। इस नक्षत्र में जन्मे लोग बुद्धिमान और चालाक होते हैं।
वैदिक महत्व: यह रणनीति और गुप्त कार्यों के लिए उपयुक्त है।

10. मघा (Magha)
खगोलीय स्थिति: सिंह (0° - 13°20')
स्वामी: केतु
प्रभाव: मघा शक्ति, नेतृत्व, और पूर्वजों से संबंध का प्रतीक है। इस नक्षत्र में जन्मे लोग गर्वीले और महत्वाकांक्षी होते हैं।
वैदिक महत्व: यह सम्मान और परंपराओं के लिए महत्वपूर्ण है।
Jul 9 12 tweets 11 min read
योगियों की कुंडलिनी बोलती है, योगी प्राण को पहचान लेता है एवं नाड़ी शुद्धि कर रहता है निरोग … कैसे ? 🧵

🔹 1. प्राण क्या है एवं प्राण का स्थान
🔹 2. प्राणों का वर्ण, श्वास- वायु की लम्बाई
🔹3 . इडा तथा पिंगला, सुषुम्ना
🔹4. कुण्डलिनी
🔹5. नाड़ी-शुद्धि Image प्राण क्या है ?

"जो प्राण को जानता है, वह वेदों को जानता है", श्रुतियों की यह घोषणा है। आप वेदान्त-सूत्र में पायेंगे - "इसी कारण से प्राण ब्रह्म है। " प्राण विश्व में अभिव्यक्त सभी शक्तियों का कुल योग है। यह प्रकृति की सारी शक्तियों का कुल योग है। यह मनुष्य में प्रच्छन्न तथा हमारे चतुर्दिक् सर्वत्र स्थित सभी शक्तियों का कुल योग है। ताप, प्रकाश, विद्युत्, चुम्बकत्व - ये सभी प्राण की ही अभिव्यक्तियाँ हैं। सारी शक्तियाँ, सारे बल तथा यह प्राण एक ही स्रोत 'आत्मा' से उद्भूत है। सारी भौतिक शक्तियाँ, सारी मानसिक शक्तियाँ प्राण की श्रेणी में आती हैं। यह वह शक्ति है जो हमारी सत्ता के उच्चतम से निम्नतम तक प्रत्येक तल में विद्यमान है। जो कुछ भी गतिशील अथवा कार्यशील है अथवा जिसमें जीवन है, वह इसी प्राण की ही अभिव्यक्ति अथवा प्रकटीकरण है। आकाश भी प्राण की ही अभिव्यक्ति है। प्राण का सम्बन्ध मन से तथा मन के द्वारा संकल्प शक्ति से और संकल्प-शक्ति के द्वारा आत्मा से तथा आत्मा के द्वारा परमात्मा से है। यदि आप मन से हो कर कार्य करने वाली प्राण की लघु लहरियों को दमन करना जान लें, तो आपको वैश्व प्राण को वश में करने का रहस्य मालूम हो जायेगा। इस रहस्य को जानने वाले योगी को किसी भी शक्ति से भय नहीं होता; क्योंकि वह विश्व में शक्ति की सभी अभिव्यक्तियों पर अपना आधिपत्य जमा लेता है। साधारणतः जिसे व्यक्तित्व की शक्ति कहते हैं, वह उस व्यक्ति में प्राण पर शासन करने की स्वाभाविक क्षमता के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं है। कुछ व्यक्ति दूसरों की अपेक्षा जीवन में अधिक सफल, अधिक प्रभावशाली तथा अधिक आकर्षक होते हैं। यह इस प्राण की शक्ति के कारण ही है। ऐसे लोग अनजानते ही प्रतिदिन उस प्रभाव से कार्य लेते हैं जिसे योगी जन जानते हुए अपनी संकल्प-शक्ति के द्वारा प्रयोग करते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो संयोगवश इस प्राण को अनजानते ही कुछ अंश में प्राप्त कर लेते हैं तथा मिथ्या नाम से इसे
Jul 6 12 tweets 2 min read
🌿 सावन में करने योग्य 11 विशेष ज्योतिष उपाय 🧵 Image 1. शिवलिंग पर जल चढ़ाना

🔹 रोज़ सुबह बेलपत्र, गंगाजल, दूध और शहद मिलाकर शिवलिंग पर अर्पित करें।

🔹 साथ में “ॐ नमः शिवाय” का जाप 108 बार करें।
Jul 5 20 tweets 5 min read
महाभारत युद्ध का 18 दिनों का घटनाक्रम
जानिए किस दिन क्या हुआ था 🧵

मार्गशीर्ष शुक्ल 14 को महाभारत युद्ध प्रारम्भ हुआ था जो लगातार 18 दिनों तक चला था। यहां जानिए महाभारत युद्ध के 18 दिनों में किस दिन क्या हुआ था… Image पहला दिन

युद्ध के पहले दिन पांडव पक्ष को भारी हानि हुई थी। विराट नरेश के पुत्र उत्तर और श्वेत को शल्य और भीष्म ने मार दिया था। भीष्म ने पांडवों के कई सैनिकों का वध कर दिया था। ये दिन कौरवों के लिए उत्साह बढ़ाने वाला और पांडव के लिए निराशाजनक था।
Jul 5 16 tweets 20 min read
Mega thread

भगवान भैरव, कलयुग के जागृत देव कहे जाते है किंतु इस शब्दों में सत्यता है वेदों की ! कैसे …? 🧵

(भाषा वाणी ज्ञान केवल शास्त्रोक्त है )

🔹 दस वीर भैरव और चौसठ भैरव सरूप क्या है ?
🔹भैरव जी के मंत्र का गूढ़ रहस्य
🔹भैरव तत्व एवं भगवान शंकर कैसे पूर्ण हुए भैरव सरूप में ?
🔹अष्ट भैरव की महिमा क्या है ?
🔹 तंत्र साधना के लिए भैरव के सिद्ध मंदिर ?
🔹कैसे पाये भक्ति भैरव जी की और कैसे करे पूजा ?
🔹भैरव साधना रहस्य, अष्ट भैरव रहस्य?Image भगवान शिव का रौद्र रूप काल भैरव हैं। शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव प्रकट हुए थे। इसलिए इसे काल भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति काल भैरव की पूजा-अर्चना करता है उसके पिछले जन्म और इस जन्म में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। मृत्यु के बाद काल भैरव के भक्तों को भगवान शिव के पास जगह मिलती है। ऐसा भी माना जाता है कि काल भैरव के भक्तों को शिवलोक में विशेष स्थान प्राप्त होता है। जिस व्यक्ति की मृत्यु काशी में होती है उसे यमदूत अपने साथ नहीं ले जाते। क्योंकि वहाँ पर यम का शासन नहीं चलता है।

काल भैरव की पूजा करने वाले व्यक्ति पर कोई भूत, पिशाच हावी नहीं हो सकता। काल अष्टमी के दिन काल भैरव की पूजा करने से वह विशेष प्रसन्न होते हैं।

🔹 दस वीर भैरव और चौंसठ भैरव स्वरूप दर्शन

विश्व के विकास का एकमात्र स्रोत है परब्रह्म। यह वाणी और मन की पहुँच से परे है। द्रव्य, गुण आदि भाव पदार्थों का इसमें सर्वथा अभाव है। इसी का शुद्ध प्रकाश सर्वत्र व्याप्त है। वेदों में इसी का नाम रूद्र है। तन्त्र शास्त्र में यही भैरव के नाम से वर्णित हुआ है। इन्हीं के भय से अग्नि एवं सूर्य का तेज विद्यमान है, इन्हीं के भय से इन्द्र, वायु और मृत्यु देवता अपने-अपने काम में तत्पर हैं। इन्हीं का वर्णन रौद्र तथा सौम्य दोनों स्वरूप में वेद व तन्त्र में उपलब्ध है।

काल की भाँति शोभित होने के कारण यह साक्षात 'कालराज' हैं। भीषण होने के कारण 'भैरव' हैं। इनसे काल भी भयभीत होता है अतः यह 'कालभैरव' हैं। दुष्ट आत्माओं का मर्दन करने के लिए इन्हें 'आमर्दक' कहा गया है।

विश्वेश्वरस्य ये भक्ता न भक्ताः कालभैरवे । ते लभन्ते महादुखं काश्यां चैव विशेषतः ॥

अर्थात् जो मनुष्य शिव भक्त होकर कालभैरव की भक्ति नहीं करते हैं वे महा दुख को प्राप्त करते हैं, यह तथ्य काशी में विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।

'विज्ञान भैरव' और 'तन्त्रालोक' नामक प्राचीन ग्रन्थों में भैरव शब्द की उत्पत्ति 'भी' धातु भयावचक तथा 'अव' धातु से मानी गई है,Image
Jul 3 14 tweets 9 min read
Mantras are Frequencies that can Heal, Kill and Transcend 🧵

Sanskrit is the oldest language that was based on sounds and vibrations.

Please Read the thread till the end Image Every alphabet and its pronounciation have specific meaning

Mantras are frequencies emerging from those sounds.


OM is the first and foremost of all mantras.

OM is the sound of cosmic energy and contains all the sounds in itself. The spiritual efficacy of OM is heard, not by the ears but by the heart. It surcharges the innermost being of man with vibrations of the highest reality.
All galaxies (including ours) are rotating and they sound they make is OM.
Frequency of OM is 7.83 Hz , which in inaudible to us as the human ear with 2 strand DNA human cannot discern sounds of frequency less than 20 hertz.

Birds, Dogs and few other animals can hear it.

OM has been adapted into other religions as AMEN, 786 ( OM symbol shown in mirror), SHALOM, OMKAR/ONKAR etc, but they do NOT work like the original OM.
While OM releases Nitric Oxide, Amen and Shalom only emit a sound.
Jul 2 6 tweets 12 min read
देवी तारा के विभिन्न स्वरूपो का वर्णन 🧵

१. तारा, २. उग्र तारा, ३. महोग्र तारा, ४. वज्र तारा, ५. नील तारा, ६. सरस्वती, ७. कामेश्वरी, ८. भद्र काली-चामुंडा। Image सर्वविघ्नों का नाश करने वाली ‘महाविद्या तारा’, स्वयं भगवान शिव को अपना स्तन दुग्ध पान कराकर हलाहल की पीड़ा से मुक्त करने वाली है।
देवी महा-काली ने हयग्रीव नमक दैत्य के वध हेतु नीला वर्ण धारण किया तथा उनका वह उग्र स्वरूप उग्र तारा के नाम से विख्यात हुआ। ये देवी या शक्ति, प्रकाश बिंदु के रूप में आकाश के तारे के समन विद्यमान हैं, फलस्वरूप देवी तारा नाम से विख्यात हैं। शक्ति का यह स्वरूप सर्वदा मोक्ष प्रदान करने वाली तथा अपने भक्तों को समस्त प्रकार के घोर संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाली हैं। देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध ‘मुक्ति’ से हैं, फिर वह जीवन और मरण रूपी चक्र हो या अन्य किसी प्रकार के संकट मुक्ति हेतु भगवान शिव द्वारा, समुद्र मंथन के समय हलाहल विष का पान करने पर, उनके शारीरिक पीड़ा (जलन) के निवारण हेतु, इन्हीं ‘देवी तारा’ ने माता के स्वरूप में शिव जी को अपना अमृतमय दुग्ध स्तन पान कराया था। जिसके कारण भगवान शिव को समस्त प्रकार के शारीरिक पीड़ा से मुक्ति मिली, देवी, जगत-जननी माता के रूप में और घोर से घोर संकटों कि मुक्ति हेतु प्रसिद्ध हुई। देवी तारा के भैरव, हलाहल विष का पान करने वाले अक्षोभ्य शिव हुए, जिनको उन्होंने अपना दुग्ध स्तन पान कराया। जिस प्रकार इन महा शक्ति ने, भगवान शिव के शारीरिक कष्ट का निवारण किया, वैसे ही देवी अपने उपासकों के घोर कष्टों और संकट का निवारण करने में समर्थ हैं तथा करती हैं।
मुख्यतः देवी की आराधना-साधना मोक्ष प्राप्त करने हेतु, वीरा-चार या तांत्रिक पद्धति से की जाती हैं, परन्तु भक्ति भाव युक्त सधाना ही सर्वोत्तम हैं, देवी, के परम भक्त बामा खेपा ने यह सिद्ध भी किया।
संपूर्ण ब्रह्माण्ड में जो भी ज्ञान इधर उधर फैला हुआ हैं, उनके एकत्रित होने पर इन्हीं देवी के रूप का निर्माण होता हैं तथा वह समस्त ज्ञान इन्हीं देवी का मूल स्वरूप ही हैं, कारणवश इनका एक नाम नील-सरस्वती भी हैं।

देवी का निवास स्थान घोर महा-श्मशान हैं, जहाँ सर्वदा चिता जलती रहती हो तथा ज्वलंत चिता के ऊपर, देवी नग्न अवस्था या बाघाम्बर पहन कर खड़ी हैं। देवी, नर खप्परों तथा हड्डियों के मालाओं से अलंकृत हैं तथा सर्पों को आभूषण के रूप में धारण करती हैं। तीन नेत्रों वाली देवी उग्र तारा स्वरूप से अत्यंत ही भयानक प्रतीत होती हैं।

प्रथम "उग्र तारा" अपने उग्र तथा भयानक रूप हेतु जानी जाती हैं। देवी का यह स्वरूप अत्यंत उग्र तथा भयानक हैं, ज्वलंत चिता के ऊपर, शव रूपी शिव या चेतना हीन शिव के ऊपर, देवी प्रत्यालीढ़ मुद्रा में खड़ी हैं। देवी उग्र तारा, तमो गुण सम्पन्न हैं तथा अपने साधकों-भक्तों के कठिन से कठिन परिस्थितियों में पथ प्रदर्शित तथा छुटकारा पाने में सहायता करती हैं।

द्वितीय "नील सरस्वती" इस स्वरूप में देवी संपूर्ण ब्रह्माण्ड के समस्त ज्ञान कि ज्ञाता हैं। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में जो भी ज्ञान इधर-उधर बिखरा हुआ पड़ा हैं, उन सब को एकत्रित करने पर जिस ज्ञान की उत्पत्ति होती हैं, वे ये देवी नील सरस्वती ही हैं। इस स्वरूप में देवी राजसिक या रजो गुण सम्पन्न हैं। देवी परम ज्ञानी हैं, अपने असाधारण ज्ञान के परिणाम स्वरूप, ज्वलंत चिता के शव को शिव स्वरूप में परिवर्तित करने में समर्थ हैं।

तृतीय "एकजटा" यह देवी का तीसरे स्वरूप या नाम हैं, पिंगल जटा जुट वाली यह देवी सत्व गुण सम्पन्न हैं तथा अपने भक्त को मोक्ष प्रदान करती हैं मोक्ष दात्री हैं। ज्वलंत चिता में सर्वप्रथम देवी, उग्र तारा के रूप में खड़ी हैं, द्वितीय नील सरस्वती, शव को जीवित कर शिव बनाने में सक्षम हैं तथा तीसरे स्वरूप में देवी एकजटा जीवित शिव को अपने पिंगल जटा में धारण करती हैं या मोक्ष प्रदान करती हैं। देवी अपने भक्तों को मृत्युपरांत, अपनी जटाओं में विराजित अक्षोभ्य शिव के साथ स्थान प्रदान करती हैं या कहे तो मोक्ष प्रदान करती हैं।

देवी अन्य आठ स्वरूपों में ‘अष्ट तारा’ समूह का निर्माण करती है तथा विख्यात हैं,

१. तारा, २. उग्र तारा, ३. महोग्र तारा, ४. वज्र तारा, ५. नील तारा, ६. सरस्वती, ७. कामेश्वरी, ८. भद्र काली-चामुंडा।

सभी स्वरूप गुण तथा स्वभाव से भिन्न-भिन्न है तथा भक्तों की समस्त प्रकार के मनोकामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ, सक्षम हैं।

देवी उग्र तारा के स्वरूप का वर्णन

देवी तारा, प्रत्यालीढ़ मुद्रा (जैसे की एक वीर योद्धा, अपने दाहिने पैर आगे किये युद्ध लड़ने हेतु उद्धत हो) धारण कर, शव या चेतना रहित शिव के ऊपर पर आरूढ़ हैं। देवी के मस्तक पंच कपालों से सुसज्जित हैं, नव-यौवन संपन्न हैं, नील कमल के समान तीन नेत्रों से युक्त, उन्नत स्तन मंडल और नूतन मेघ के समान कांति वाली हैं। विकट दन्त पंक्ति तथा घोर अट्टहास
Jul 1 25 tweets 6 min read
कौनसी मुद्रा, किस रोग में औषधि का कार्य करेगी, आज जान लीजिए 🧵

bookmark करते जाए अवश्य सार्थक होगा Image 1. Image
Jul 1 8 tweets 4 min read
Mount Kailas Nuclear Reactor, revealed by Russian Scientists 🧵

The naval of the world, Read the #thread till the end please Image Axis Mundi, the centre of the universe, the navel of the world, the world pillar, Kang Tisé or Kang Rinpoche (the ‘Precious Jewel of Snow’ in Tibetan), Meru (or Sumeru), Swastika Mountain, Mt. Astapada, Mt. Kangrinboge (the Chinese name) – all these names, belong to one of the holiest and most mysterious mountains in the world – Mount Kailas.
Jun 30 11 tweets 4 min read
33 Koti Devata are 33 Bones in Spinal Cord - Thread🧵

🔥 A Must Read Thread 🔥

33 koti devata does not mean 33 crores of gods.

Koti in sanskrit has multiple meanings and one of them is 'type' or 'category'. Image 2 ) 33 main devatas of Svarga Loka are the Aadityas (12), Vasus (8), Rudras (11) and Ashvins (2). Few consider Indra and Prajapati instead of 2 Aswins.

🔹12 Adityas (personified deities) correspond to the 12 Solar months and represent different attributes of social life. The Vedic sages especially venerated the Adityas and Vedas are full of hymns dedicated to Indra, Agni, Surya, Varun and the like.

These are:

1. Indra/Shakra (eldest and the undoubted leader of other Adityas)

2. Ansh (due share),

3. Aryaman (nobility),

4. Bhaag (due inheritance),

5. Dhatri (ritual skill),

6. Tvashtar (skill in crafting),

7. Mitra (friendship),

8. Pushan/Ravi (prosperity),

9. Savitra/Parjanya (power of word),

10. Surya/Vivasvan (social law),

11. Varun (fate),

12. Vaman (cosmic law).Image
Jun 30 9 tweets 6 min read
जन्माष्टमी थी तब कृष्ण की द्वारका को खोजने के लिए समुद्र की तलहटी में गए गोताखोरों को क्या मिला? 🧵

एक ऐसी कहानी जो विज्ञान और भाव दोनों को तृप्त करती है Image द्वारका हिंदुओं के सप्तपुरियों और चार धाम के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है

हिंदू मान्यता और महाभारत के अनुसार इस नगर की स्थापना मूल रूप से भगवान कृष्ण ने की थी और उनके बाद यह पानी में डूब गया था

देवभूमि द्वारका गुजरात के आधुनिक द्वारका ज़िले में अरब सागर के तट पर स्थित है. इसके डूबने का सही समय का अनुमान लगाना एक कठिन काम है कितनी परिस्थितिजन्य ऐसे साक्ष्य मौजूद हैं, जिनके बारे में अनुमान लगाया जा सकता है

भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने द्वारका सागर में शोध एवं उत्खनन कार्य किया है, जिससे कुछ रोचक वस्तुएँ और तथ्य सामने आए हैं

भारत ही नहीं दुनिया के कई दूसरे देशों में प्रलय, जल प्रलय, ज्वालामुखी जैसी घटनाओं, या फिर बाढ़ में शहरों के डूबने की घटनाओं के उदाहरण मिलते है