श्री मात्रे A seeking soul | Tutor & Researcher of Ancient Sānātān Dhārmā, Itihas, Vedāng, Tāntrā-Jyøtïsh Unsolved Vāidik Mysteries |नमश्चण्डिकायै【࿗】ब्राह्मण 🚩
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Apr 26 • 10 tweets • 4 min read
What do we learn from the 10 avatar of Bhagwan vishnu
1. Matsyavatara - Knowledge about universe revealed. It's theme is submerged Vedas are reclaimed 2. Koormavatara
Elecro magnetic energy, dev - Positive Energy, Asuras - Negative Energy, Birth of Galaxies, Nakshatras Grahas etc
Apr 24 • 9 tweets • 3 min read
🧵 बिना कुंडली देखे - जानिए ग्रहों की स्थिति #Thread
(कृपया थ्रेड को अंत पढ़े)
सूर्य - यदि आप सच बोलते हैं और अपनी बात से पीछे नहीं हटते तो आपका सूर्य अच्छा है।
चंद्र - यदि आपका मन स्थिर है, आपमें दूसरों के लिए प्रेम, करुणा, भावना है, तो आपका चंद्रमा अच्छा है।
Apr 22 • 10 tweets • 4 min read
1. #Thread आइए जानें 9 निधियां कौन-कौन सी हैं।🧵
आपने अष्ट सिद्धियों के बारे में बहुत पढ़ा बहुत जाना आज बात अच्छे से ननव निधियों के बारे होगी …
हनुमान चालीसा में लिखा हैं, “अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता असवर दीन जानकी माता”
हनुमान जी के पास अष्टसिद्धियां तथा नवनिधियां हैं जो प्रसन्न होने पर हनुमानजी अपने भक्तों को प्रदान करते हैं। नवनिधियों के बारे में शास्त्रों के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को उनमें से एक भी प्राप्त हो जाती है, तो उसे जीवन भर कभी किसी चीज की कमी नहीं होती।2. 🔸ये हैं नौ निधियाँ
2.1 पद्म निधि पद्म निधि से संपन्न व्यक्ति में सात्विक गुण होते हैं, इसलिए उसके द्वारा अर्जित धन भी सात्विक होता है। सात्विक तरीके से अर्जित धन से कई पीढ़ियों को कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती। ऐसे भक्त व्यक्ति सोने, चांदी और रत्नों से संपन्न होते हैं एवं उदारता से दान में विशेष रुचि रखते है
Apr 21 • 10 tweets • 3 min read
#Thread (कृपीया थ्रेड अंत तक पढ़े)
बीज मंत्र बहुत ही शक्तिशाली मंत्र होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि किसी भी मंत्र की शक्ति उसके बीज मंत्र में समाहित होती है। इन मंत्रों से अशुभ ग्रहों को शुभ ग्रहों में परिवर्तित किया जा सकता है। ग्रहों की शांति के लिए ये बीज मंत्र अत्यंत ही लाभदायक होते हैं। ग्रहों के बीज मंत्र से जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बुराइयों को दूर किया जा सकता है।1) सूर्य का बीज मंत्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।
विधि - मंत्र को प्रात: काल में 108 बार जपें।
Apr 20 • 14 tweets • 8 min read
🧵 भारतीय वास्तुशास्त्र अनुसार घर में भूलकर भी न रखें ये 15 वस्तुएं
(कृपया अंत तक पढ़े)
1. देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियाँ या फटे हुए चित्र:
देवी-देवताओं की फटी और पुरानी तस्वीरें या टूटी हुई मूर्तियाँ(विग्रह )भी आर्थिक नुकसान का कारण बनती हैं, इसलिए उन्हें किसी पवित्र नदी में विसर्जित कर देना चाहिए।
इसके अलावा घर को सजाने के लिए देवी-देवताओं की तस्वीरों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उनकी तस्वीरों या मूर्तियों की संख्या और स्थान निश्चित होता है। कुछ लोग बहुत सारी मूर्तियाँ इकट्ठा कर लेते हैं। एक ही देवी-देवता की 3 मूर्तियाँ और चित्र होते हैं, जो वास्तु दोष उत्पन्न करते हैं। इसके अलावा आजकल कुछ लोग ऐसे देवी-देवताओं की तस्वीरें लगाते हैं जो पारंपरिक नहीं हैं।2) टूटी हुई चीजें:
घर में टूटे हुए बर्तन, दर्पण, इलेक्ट्रॉनिक सामान, तस्वीरें, फर्नीचर, पलंग, घड़ी, दीपक, झाड़ू, मग, कप आदि नहीं रखना चाहिए। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है और व्यक्ति को मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसा भी माना जाता है कि इससे न केवल वास्तु दोष उत्पन्न होता है बल्कि लक्ष्मी का आगमन भी रुक जाता है।
Apr 19 • 14 tweets • 7 min read
🧵 गरुड़ पुराण के अनुसार पापियों को उनके स्वभाव और पापों की गंभीरता के अनुसार यमधर्म द्वारा विभिन्न नरकों में भेजा जाता है, जिसमें से कुछ प्रमुख नर्क इस #Thread में वर्णित किए गये हैं! कृपया थ्रेड को अंत तक पढ़े !
1)रौरवम (सांपों की यातना)-
यह उन पापियों के लिए नरक है जो किसी दूसरे व्यक्ति की संपत्ति या संसाधनों को हड़प कर उसका उपभोग करते हैं। जब इन लोगों को इस नरक में डाला जाता है, तो जिन लोगों को उन्होंने धोखा दिया है वे एक भयानक सर्प "रुरु" का रूप ले लेते हैं। सांप उन्हें तब तक बुरी तरह से पीड़ा देते हैं जब तक उनका समय पूरा नहीं हो जाता।2) तामिसारा(भारी कोड़े मारना) -
जो लोग दूसरों का धन लूटते हैं, उन्हें यम के सेवक रस्सियों से बांधकर तामिसाराम नामक नरक में फेंक देते हैं। वहाँ उन्हें तब तक पीटा जाता है जब तक कि वे खून से लथपथ होकर बेहोश न हो जाएँ। जब वे होश में आते हैं तो उनकी पिटाई फिर से की जाती है। ऐसा तब तक किया जाता है जब तक कि उनका समय पूरा न हो जाए।
Apr 18 • 13 tweets • 13 min read
आपकी राशि के हिसाब आपकी प्रभावशाली बाते
Comment below what is ur zodiac sign
मेष राशि
स्वामी - मंगल
1. राशि चक्र की सबसे प्रथम राशि मेष है। जिसके स्वामी मंगल है। धातु संज्ञक यह राशि चर (चलित) स्वभाव की होती है।
2. मेष राशि वाले आकर्षक होते हैं। इनका स्वभाव कुछ रुखा हो सकता है। दिखने में सुंदर होते है। यह लोग किसी के दबाव में कार्य करना पसंद नहीं करते। इनका चरित्र साफ-सुथरा एवं आदर्शवादी होता है।
3. बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी होते हैं। समाज में इनका वर्चस्व होता है एवं मान सम्मान की प्राप्ति होती है।
4. निर्णय लेने में जल्दबाजी करते है तथा जिस कार्य को हाथ में लिया है उसको पूरा किए बिना पीछे नहीं हटते।
5. स्वभाव कभी-कभी विरक्ति का भी रहता है। लालच करना इस राशि के लोगों के स्वभाव मे नहीं होता। दूसरों की मदद करना अच्छा लगता है।
6. कल्पना शक्ति की प्रबलता रहती है। सोचते बहुत ज्यादा हैं।
7. जैसा खुद का स्वभाव है, वैसी ही अपेक्षा दूसरों से करते हैं।
8. अग्नितत्व होने के कारण क्रोध अतिशीघ्र आता है। किसी भी चुनौती स्वीकार करने की प्रवृत्ति होती है।
9. अपमान जल्दी भूलते नहीं, मन में दबा के रखते हैं। मौका पडने प्रतिशोध लेने से नहीं चूकते।
10. अपनी जिद पर अड़े रहना, यह भी मेष राशि के स्वभाव में पाया जाता आपके भीतर एक कलाकार छिपा होता है।
11. आप हर कार्य को करने में सक्षम हो सकते हैं। स्वयं को सर्वोपरि समझते
12. अपनी मर्जी के अनुसार ही दूसरों को चलाना चाहते हैं। इससे आप कई दुश्मन खड़े हो जाते हैं।
13. एक ही कार्य को बार-बार करना इस राशि के लोगों को पसंद नहीं होत
14. एक ही जगह ज्यादा दिनों तक रहना भी अच्छा नहीं लगता। नेतृत्व क्षमता अधिक होती है।
15. कम बोलना, हठी, अभिमानी, क्रोधी, प्रेम संबंधों से दुःखी, बुरे कर्मों से बचने वाले, नौकरों एवं महिलाओं से त्रस्त, कर्मठ, प्रतिभाशाली, यांत्रिक कार्यों में सफल होते हैं।
राशि वृष - राशि के लोगों की खास बातें
राशि स्वामी - शुक्र।
1 . इस राशि का चिह्न बैल है। बैल स्वभाव से ही अधिक पारिश्रमी और बहुत अधिक वीर्यवान होता है, साधारणतः वह शांत रहता है, किन्तु क्रोध आने पर वह उग्र रूप धारण कर लेता है।
2 बैल के समान स्वभाव वृष राशि के जातक में भी पाया जाता है। वृष राशि का स्वामी शुक्र ग्रह है।
3 इसके अन्तर्गत कृत्तिका नक्षत्र के तीन चरण, रोहिणी के चारों चरण और मृगशिरा के प्रथम दो चरण आते हैं।
4 इनके जीवन में पिता-पुत्र का कलह रहता है, जातक का मन सरकारी कार्यों की ओर रहता है। सरकारी ठेकेदारी का कार्य करवाने की योग्यता रहती है।
5 पिता के पास जमीनी काम या जमीन के द्वारा जीविकोपार्जन का साधन होता है। जातक अधिकतर तामसी भोजन में अपनी रुचि दिखाता है।
6 गुरु का प्रभाव जातक में ज्ञान के प्रति अहम भाव को पैदा करने वाला होता है, वह जब भी कोई बात करता है तो स्वाभिमान की बात करता है।
7 सरकारी क्षेत्रों की शिक्षा और उनके काम जातक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
8 किसी प्रकार से केतु का बल मिल जाता है तो जातक सरकार का मुख्य सचेतक बनने की योग्यता रखता है। मंगल के प्रभाव से जातक के अंदर मानसिक गर्मी प्रदान करता है।
9 कल-कारखानों, स्वास्थ्य कार्यों और जनता के झगड़े सुलझाने का कार्य जातक कर सकता है, जातक की माता के जीवन में परेशानी ज्यादा होती है।
10 ये अधिक सौन्दर्य प्रेमी और कला प्रिय होते हैं। जातक कला के क्षेत्र में नाम करता है।
11 माता और पति का साथ या माता और पत्नी का साथ घरेलू वातावरण मे सामंजस्यता लाता है, जातक अपने जीवनसाथी के अधीन रहना पसंद करता है।
12 आपके जीवन में व्यापारिक यात्राएं काफी होती हैं, अपने ही बनाए हुए उसूलों पर जीवन चलाता है।
13 हमेशा दिमाग में कोई योजना बनती रहती है। कई बार अपने किए गए षडयंत्रों में खुद ही फंस भी जाते हैं।
Apr 15 • 10 tweets • 7 min read
🧵कौन सा रत्न किस राशि या ग्रह के लिए लाभदायक या किस परिस्थिति में हानिकारक है?
(कृपया #Thread अंत तक पढ़े)
प्राचीन ग्रंथों में 84 से अधिक प्रकार के रत्नों का उल्लेख किया गया है। इनमें से कई अब उपलब्ध नहीं हैं। मुख्य रूप से 9 रत्न ही अधिक प्रचलित हैं !
आइये समझते हैं कि इन 9 रत्नों का व्यक्ति के जीवन में क्या प्रभाव पड़ता हैं !
🔹 1. मूंगा (Coral) - मंगल की राशि मेष और वृश्चिक वाले लोगों को मूंगा पहनने की सलाह दी जाती है। मूंगा पहनने से साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है। पुलिस, सेना, डॉक्टर, प्रॉपर्टी डीलर, हथियार निर्माता, सर्जन, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर इंजीनियर आदि को मूंगा पहनने से विशेष लाभ मिलता है। रक्त संबंधी रोग, मिर्गी और पीलिया में भी इसे लाभकारी माना जाता है।
❗️कौन सी स्थिति में मूंगा पहनने से लाभ नहीं अपितु नुक़सान होगा :-
अगर कुंडली के अनुसार मूंगा नहीं पहना जाए तो यह नुकसान भी पहुंचा सकता है। इससे दुर्घटना भी हो सकती है। कहा जाता है कि इसका भार जीवनसाथी पर रहता है। इससे पारिवारिक विवाद, परिजनों से मनमुटाव और वाणी दोष भी हो सकता है। अगर कहीं भी शनि और मंगल की युति हो तो मूंगा नहीं पहनना चाहिए!
Apr 14 • 8 tweets • 3 min read
#Thread
वास्तु दिनचर्या सूर्य अनुसार
सूर्य की ऊर्जा के प्रभाव को भी वास्तु शास्त्र में महत्वपूर्ण माना जाता है, घर की सही दिशा, जिस तरफ सूर्य की किरणें प्रतिदिन प्रकाशित हों, यह वास्तु शास्त्र को प्रभावित करता है इसलिए जरूरी है कि सूर्य के अनुसार ही हम भवन निर्माण करें तथा अपनी दिनचर्या भी सूर्य के अनुसार ही निर्धारित करें। वास्तु शास्त्र में इसकी मान्यता है क्योंकि सूर्य की किरणें व्यक्ति को उनके घर और कार्यस्थल में समृद्धि, स्वास्थ्य, और शांति के लिए सहायक होती है।
1- सूर्योदय से पहले रात्रि 3 से सुबह 6 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त होता है। इस समय सूर्य घर के उत्तर-पूर्वी भाग में होता है। यह समय चिंतन-मनन व अध्ययन के लिए बेहतर होता है।2- सुबह 6 से 9 बजे तक सूर्य घर के पूर्वी हिस्से में रहता है इसीलिए घर ऐसा बनाएं कि सूर्य की पर्याप्त रौशनी घर में आ सके और उस स्थल पर सूर्योदय की प्रथम किरण आपके मुखाग्र पर पड़े।
Apr 11 • 12 tweets • 3 min read
🧵 बारह राशियों के अभ्युदय मंत्र #Thread
अपनी राशि के मंत्र जप करने से धन, यश, लाभ, कीर्ति, आरोग्य,एवं मन सदा प्रसन्न रहता है। कम से कम दस बार प्रतिदिन जाप करना चाहिए।।
जप मंत्र
१. मेष - ॐ ह्रीं श्री लक्ष्मीनारायणाय नमः ।
२. वृष - ॐ गोपालाय उत्तर ध्वजाय नमः ।
Apr 1 • 5 tweets • 3 min read
Do you Know Practices of kriya yogis ?
1. The Forms of Pranayama 2. Cleaning the Nadis 3. Mental cleaning of nadis
#thread
The Forms of Pranayama
Yogis practice the following forms of pranayama.
1. Bhastrika: quick inhalation and exhalation through both the nostrils, which is said to clear the nasal passage and the subtle channels.
2. Surya bhedana (conquest of the sun): quick inhalation through the right nostril, then retention and exhalation through the left nostril, which is used to calm the mind.
3. Ujjayi (upward restraint): inhalation through both the nostrils and exhalation through the left nostril, which helps to clear all diseases caused by too much phlegm and to strengthen the heart muscles.
4. Shitali (cooling): inhalation through the mouth while cup- ping the tongue and exhalation through both the nostrils, which is said to prolong youth and help digestion.
5. Plavini (swimming): long retention after slow inhalation.
6. Kevala kumbhaka (simple retention): just retention of breath without any special inhalation or exhalation.
7. Bhramari (bee-like): humming during any inhalation is said to clear the throat and the vocal cords.
Mar 31 • 13 tweets • 7 min read
विविध कामनाओं की पूर्ति के लिये विभिन्न पदार्थों के शिवलिंग निर्माण कर उनकी पूजा
#thread
१. गन्ध लिंग
दो भाग कस्तूरी, चार भाग चन्दन तथा तीन भाग कुंकुम को मिला कर जो शिवलिंग बनाया जाता है उसे "गन्ध लिंग" कहा गया है। इस प्रकार के शिवलिंग की पूजा से व्यक्ति स्वयं शिवमय हो जाता है।
२. पुष्प लिंग
विविध प्रकार के सुगन्धित पुष्पों को मिला कर शिवलिंग बनाया जाता है, उसे "पुष्प-लिंग" कहते है, इसमें केतकी के पुष्पों को शामिल नहीं करना चाहिये, इस प्रकार के शिवलिंग का पूजन भूमिपति जा अथवा चुनाव में सफलता प्राप्त करने के लिये किया जाता है ।
३. रजोमय लिंग
यह मिट्टी या बालुका द्वारा बनाया जाता है, । विद्या प्राप्ति और धन सम्पदा प्राप्ति के लिये इस प्रकार के लिंग की पूजा का प्रावधान है।
४. यव, गो, धूम शास्तिज - लिंग
जौ, गेहूं तथा चावल तीनों का आटा समान भाग ले कर शिवलिंग का निर्माण किया जाता है और उसका विधि-विधान के साथ पूजन किया जाता है। इस प्रकार की पूजा लक्ष्मी, स्वास्थ्य और संतान प्राप्ति के लिये की जाती है।
Mar 25 • 13 tweets • 18 min read
त्राटक, त्राटक और कुंडलिनी चक्र, त्राटक और सिद्धि ?
त्राटक का अर्थ - जब साधक किसी वस्तु पर अपनी दृष्टि और मन को बाँधता है, तो वह क्रिया त्र्याटक कहलाती है, त्र्याटक शब्द ही आगे चलकर त्राटक कहा जाता है। किसी पदार्थ को बिना पलक झपकाए टकटकी लगाकर देखते रहना। जब मनुष्य सामान्य अवस्था में संसार में व्यवहार करता है, तब उसकी दृष्टि किसी भी पदार्थ पर मात्र कुछ क्षण ही लगातार पड़ती है, फिर उसकी दृष्टि के सामने दूसरा पदार्थ आ जाता है अर्थात् दूसरा दृश्य देखने लगता है तथा पदार्थ को देखते समय उसकी पलकें रुक कर झपकती रहती है, इसे द्वाटक कहते हैं। जब मनुष्य जाग्रत अवस्था में व्यवहार की दशा में किसी पदार्थ को बिना पलक झपकाए लगातार देखता रहता है, उसे एकटक कहते है।
योग मार्ग में त्राटक का महत्त्व बहुत अधिक है। योग के अभ्यास में मन को संयमित करके अंतर्मुखी करना अति आवश्यक है। जब तक मन एक जगह ठहर कर अंतर्मुखी नहीं होगा, तब तक धारणा, ध्यान और समाधि का अभ्यास नहीं किया जा सकता है। मन एक जगह ठहरता ही नहीं है क्योंकि रजोगुण प्रधान होने के कारण उसके अन्दर चंचलता रहती है, चंचल होने के कारण मन सदैव एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ की ओर भागता रहता है। उसे अगर आप एक जगह पर ठहराना चाहें, तो वह नहीं ठहरेगा। आप मन को एक जगह ठहरा दें या रोक दें, फिर उससे कहो तुम इसी स्थान पर कुछ क्षणों तक ठहरे रहो भागना नहीं। आपको पता ही नहीं चलेगा कि मन कब भाग गया। कुछ समय बाद आपको पता चलेगा कि मन को तो मैंने अमुक जगह पर ठहरने के लिए कहा था, मगर पता नहीं, कब वह बाजार की ओर, कार्यालय की ओर, मित्रों की ओर, रिश्तेदारों की ओर भाग गया। इसी भागते हुए मन को एक जगह ठहराने के लिए त्राटक का अभ्यास किया जाता है।
क्यूँ करे त्राटक ?
त्राटक के अभ्यास के द्वारा जब मन को एक जगह ठहराने का अभ्यास करते है, तब धीरे-धीरे कठोर अभ्यास के द्वारा मन ठहरने लगता है, तथा अभ्यास के द्वारा मन की रजोगुण व तमोगुण की मात्रा घटने लगती है। रजोगुण की मात्रा कम होने से उसकी चंचलता कम होने लगती है तथा तमोगुण की मात्रा कम होने से सत्वगुण का प्रभाव बढ़ने लगता है। आलस्य व नकारात्मक सोच में परिवर्तन आने लगता है। अभ्यासी की सोच बदलने लगती है। मन के अन्दर शुद्धता व व्यापकता आने लगती है। इससे मन सशक्त बनता है, मन के सशक्त व बलवान होने से अभ्यासी के अन्दर निर्भीकता या निडरता वाली सोच आने लगती है।
जब तक मनुष्य त्राटक का अभ्यास नहीं करता है, तब तक उसका मन कमजोर स्वभाव वाला रहता है, उसकी संकल्प शक्ति में किसी प्रकार का बल नहीं रहता है। ऐसा मनुष्य संकल्प शक्ति द्वारा किसी भी प्रकार का कार्य नहीं कर सकता है। त्राटक का अभ्यास करने वाले मनुष्य की संकल्प शक्ति अभ्यासानुसार शक्तिशाली हो जाती है। ऐसी अवस्था में साधक संकल्प के द्वारा ढेरों कार्य कर सकता है, त्राटक शक्ति द्वारा आध्यात्मिक, सूक्ष्म रूप से, स्थूल रूप से ढेरों कार्य कर सकता है। अभ्यासी के अन्दर ऐसी विलक्षणता आ जाती है कि उसके द्वारा किये गये कार्यों को देखकर संसारी मनुष्य आश्चर्यचकित हो जाते है। इसलिए त्राटक के द्वारा आजकल ढेरों प्रकार के कार्य किये जाते हैं। इस प्रकार के कार्यों को करने के लिये किसी प्रकार का धन का खर्च नहीं होता है।
Mar 22 • 5 tweets • 4 min read
क्या आपके घर में दुर्गा सप्तशती है?
हाँ! है तो पाठ क्रम एवं, आहुति, उपासना जानिए
#thread
उपासना क्रमः
उपासना क्रम में पहिले शापोद्धार, उत्कीलन करके कवचादि पाठ करे। "आर्ष पाठक्रम" में सप्तशती के छः अंगों सहित पाठ करने का क्रम लिखा हैं।
पाठ के पूर्व व अंत में सात बार निम्न मंत्र का जाप करें - ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिका देव्यै शापनाशाऽनुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा।
1. सप्तशती के अध्यायों में १३-१, १२-२, ११-३, १०-४, ९-५, ८-६ का पाठ करके सातवें अध्याय को दो बाद पढ़ने से शापोद्धार होता हैं।
2. सप्तशती का पहिले मध्यम चरित्र फिर प्रथम चरित्र तत्पश्चात् उत्तर चरित्र को पाठ करने से उत्कीलन होता हैं।
3. "दुर्गोपासना कल्पद्रुम" में भी कई प्रकार हैं। जो नित्य दुर्गापाठ नहीं कर सकते है वो पहले दिन एक अध्याय, दूसरे दिन दो अध्याय, तीसरे दिन एक अध्याय, चौथे दिन चार अध्याय, पाँचवे दिन दो अध्याय छठे दिन एक अध्याय और सातवे दिन अंतिम दो अध्यायों का पाठ कर तीनों चरित्रों का परायण करें। अथवा प्रथम दिन प्रथम चरित्र, द्वितीय दिन मध्यम चरित्र और तृतीय दिन उत्तर चरित्र का पाठकर परायण करें।
4. वैकृतिक रहस्य में आया है कि यदि " एक ही चरित्र का" पाठ करे तो केवल मध्यम चरित्र का ही पाठ करे प्रथम व उत्तर चरित्र का पाठ नहीं करे। आधे चरित्र का भी पाठ नहीं करे।
Mar 20 • 4 tweets • 2 min read
What gurukul teaches u in back days
VEDAS
1. Rig veda
2. Yajurveda
3. Samaveda
4. Atharvaveda
ITIHASA
1. Ramayana
2. Mahabharata Gita
UPANISAHAD (108)
1. Brihadaranyaka Upanishad
2. Chandogya Upanishad
3. Aitareya Upanishad
4. Taittriya Upanishad
5. Isavasya Upanishad
6. Kena Upanishad
7. Katha Upanishad
8. Prashna Upanishad
9. Mundaka Upanishad
10. Mandukya Upanishad
Mar 17 • 4 tweets • 4 min read
एक मुखो से चौदह मुखी रुद्राक्षों को मन्त्रों से अभिमन्त्रित करने का मन्त्र 🌼
पुराणों में व शास्त्रों में वर्णन है कि रुद्राक्ष को बिना अभिमन्त्रित किये नहीं पहनना चाहिये । क्योंकि बिना अभिमन्त्रित किये रुद्राक्ष पहनना व्यर्थ है उससे किसी कार्य की सिद्धि अथवा कोई मनोकामना पूर्ण नहीं होती।
‘पद्मपुराण' के अनुसार रुद्राक्ष को निम्न प्रकार से अभिमन्त्रित करना चाहिये ।
अर्थात् रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को रुद्राक्ष को अभिमन्त्रित करने से पूर्व स्नान के समय पंचामृत और पंचगव्य का भी प्रयोग करना चाहिए । तथा रुद्राक्ष की प्रतिष्ठा में पंचाक्षर मन्त्र “नमः शिवाय" का पाठ करना चाहिये । तब ॐ त्र्यंबकादि मन्त्र का व्यवहार करना चाहिये ।
इति मन्त्रः ।।
"पद्म पुराण” के अनुसार एक मुखी से चौदह मुखी रुद्राक्ष तक को क्रमवार निम्न मन्त्रों से अभिमन्त्रित करना चाहिये ।
(१) एक मुखी रुद्राक्ष को “ॐ ॐ “दृशं नमः” मन्त्र से प्रतिष्ठित करना चाहिये ।
(२) दो मुखी रुद्राक्ष को "ॐ ॐ नमः” नामक मन्त्र से प्रतिष्ठित करना चाहिये ।
(३) तीन मुखी रुद्राक्ष को "ॐ ॐ नमः” नामक मन्त्र से ही प्रतिष्ठित करना चाहिए ।
(४) चार मुखी रुद्राक्ष को "ॐ ह्रीं नमः” नामक मंत्र से प्रतिष्ठित करना चाहिये ।
(५) पञ्चमुखी रुद्राक्ष को "ॐ हूँ नमः” नामक मन्त्र से अभि- मन्त्रित करना चाहिये ।
(६) छः मुखी रुद्राक्ष को "ॐ हूँ नमः” मन्त्र से प्रतिष्ठित करना चाहिये ।
(७) सात मुखी रुद्राक्ष को "ॐ हुँ नमः” मन्त्र से प्रतिष्ठित करना चाहिये ।
(८) आठ मुखी रुद्राक्ष को "ॐ सः हूँ नमः” मन्त्र से प्रतिष्ठित करना चाहिये ।
(६) नव मुखी रुद्राक्ष को "ॐ हं नमः” मन्त्र से प्रतिष्ठित करन चाहिये ।
(१०) दश मुखी रुद्राक्ष को "ॐ ह्रीं नमः” मन्त्र से प्रतिष्ठि करना चाहिये ।
(११) ग्यारह मुखी रुद्राक्ष को "ॐ श्रीं नमः" मन्त्र से प्रतिष्ठि करना चाहिये ।
(१२) बारह मुखी रुद्राक्ष को "ॐ हूँ ह्रीं नमः" मन्त्र से प्रतिष्ठित करना चाहिये ।
(१३) तेरह मुखी रुद्राक्ष को “ॐ क्षां चों नमः” मन्त्र से प्रतिष्ठि करना चाहिये ।
(१४) चौदह मुखी रुद्राक्ष को "ॐ नमो नमः” मन्त्र से प्रतिष्ठि करना चाहिये ।
Mar 9 • 6 tweets • 6 min read
विश्व की आश्चर्यजनक उपलब्धि है कनकधारा यंत्र की महिमा
शंकराचार्य जी ने कैसे किया कनकधारा यंत्र से ब्राह्मण घर का उद्धार!
आज के अनास्थावादी युग में भी 'कनकधारा यंत्र' अचूक एवं शीघ्र फलदायक होने के कारण यह विश्वास दिलाने में समर्थ है कि अब भी कुछ यंत्र ऐसे हैं, जिनका प्रभाव निश्चित होता है, अचूक होता है और आश्चर्यजनक होता है।
'कनक धारा यंत्र' भारतवर्ष की अमूल्य थाती है इस यंत्र में दरिद्रता विनाश का अद्भुत गुण है यह यत्र जहां भी होता है वहीं अपना प्रभाव बिखेरने लग जाता है, जिस प्रकार अगरबत्ती जहां पर भी जलेगी वहीं सुगन्ध छोड़ेगी, इसी प्रकार यह यंत्र भी जहां रहता है, वहीं स्वर्ण वर्षा सी करने की स्थिति पैदा कर देता है।
प्रसिद्ध मंत्र शास्त्री हरिपाद ब्रह्मचारी ने 'कनकधारा यंत्र रहस्य' शीर्षक ग्रन्थ की रचना की हैं, जो हस्तलिखित दुर्लभ प्रति है जिसके अन्त में निष्कर्ष स्वरूप उन्होंने लिखा है हमारे भारत वर्ष में कनकधारा यंत्र जैसी अद्भुत वस्तु उपलब्ध है
कनकधारा स्तोत्र :
कथा प्रसिद्ध है, कि आचार्य शंकराचार्य एक दिन भिक्षा के लिए एक सद्गृहस्थ के द्वार पर पहुँचे और 'भिक्षां देहि' का घोष किया, वह ब्राह्मण परिवार अत्यन्त दरिद्र था, अपने द्वार पर एक तेजस्वी अतिथि को देखकर गृहिणी लाज से गढ़ गई, क्योंकि उसके घर में भिक्षा में देने के लिए कुछ भी नहीं था, पूरे घर को छानने पर एक सूखा हुमा आंवला उस ब्राह्मणी को मिला, जिसे लेकर वह झर-झर रोती हुई भिक्षा देने के लिए द्वार पर आई, तथा अत्यन्त संकोच के साथ वह उसे अर्पण करने लगी। भगवान शंकर को उसकी दुरावस्था पर तरस आ गया, उन्होंने वहीं बैठकर तत्काल ऐश्चयं की अधिष्ठात्री देवी, वात्सल्यमयी भगवती महालक्ष्मी की स्तुति प्रारंभ की, और उनकी वाणी से अनायास ही करुणापूर्ण ऐसी कोमल कान्त पद्यावली प्रस्फुटित हुई, जिसे सुनकर भगवती महा-लक्ष्मी देखते-देखते आचार्य के सम्मुख अपने त्रिभुवन मोहन रूप में प्रकट हो गई और कोमल शब्दों में पूछा, मुझे कैसे स्मरण किया ? आचार्य शंकर ने सारी कथा कह सुनाई और प्रार्थना की कि उस गरीब ब्राह्मणी की दरिद्रता दूर करें। भगवती लक्ष्मी ने बताया कि उस गृहस्य का प्रारब्ध ऐसा नहीं है कि उसे इस जन्म में धन प्राप्ति हो।
Mar 8 • 32 tweets • 12 min read
Har Har Mahadev
#Thread 🧵
भगवान शिव के विषय में विस्तृत जानकारी कृपया thread को संयम अंतिम ट्वीट तक पढ़े…
((देवाधिदेव भगवान शिव रहस्यम ))
भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।
1. आदिनाथ शिव : -सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ।
#Mahashivratri #महाशिवरात्रि2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : - शिव का धनुष पिनाक, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है।
Mar 7 • 5 tweets • 3 min read
नमः नमो ॐ स्वाहा हूँ फट् मंत्रों में लगाने के भेद ?
नमस्कार युक्तमंत्र में जिन मंत्रों के प्रारंभ में "नमः"" नमो, "ॐ का प्रयोग होता हैं वह संहारात्मक व उग्र नहीं होता है, शांत होता है शनै शनै पुष्टिकारक होता हैं।
तांत्रिक लोग शीघ्र फल चाहते है अत: "ॐ" का प्रयोग माला प्रारंभ के समय पूर्ण होने पर पुनः "ॐ" का प्रयोग करते हैं। बीजाक्षरों के आगे "ॐ" लगाकर मंत्र जप नहीं करते। क्यूँकि वह क्षीग्र फल चाहते है किंतु बिना दीक्षा एवं गुरु आज्ञा से बीज मंत्र ना जपे
नवार्ण मंत्र नौ अक्षरों का होता हैं। "ॐ" लगाने से दशाक्षरी हो जाता है एवं नमस्कार युक्त हो जाने से शीघ्रफलदः नहीं मानते, इसलिये बीजाक्षर युक्त नवार्ण मंत्र ही जपते है। दक्षिण भारत में कई जगह दशाक्षर नवार्णमंत्र का जप किया जाता हैं।
Mar 3 • 6 tweets • 3 min read
भगवान शिव के साधक के लिए शिव मुद्राएँ
१. डमरुमुद्रा - हल्की मुट्ठी बाँधकर मध्यमाओं को थोड़ा ऊपर उठाये। फिर दाहिनी को कान तक उठाये। यह डमरू मुद्रा हैं जो सब विघ्नों का विनाश करती हैं।
२. त्रिशूलमुद्रा - कनिष्ठिकाओं को अँगूठों से बाँधकर शेष उँगलियों को सीधा रक्खें। यह त्रिशूल मुद्रा हैं।मन को एकाग्र करती है
Mar 2 • 5 tweets • 4 min read
जानिए 16 प्रकार मंत्र अंग
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मन्त्र-अंग
साधना में सफलता तभी मिल सकती है, जब हम उसके मर्म को, उसके मूल रहस्य को समझें । साधना का सीधा-सादा मर्म यह है, कि परमात्मा से भाव, भाव से नाम तथा नाम से संसार बना है, अतः विपरीत रूप से चलकर ही अर्थात् विश्व, विश्व से भाव तथा भाव से परमात्मा अर्थात् मन्त्र सिद्धि तक पहुंचा जा सकता है।
भारद्वाज ने मन्त्र योग संहिता में मन्त्र योग के सोलह अंग बताये हैं
भवन्ति मंत्र योगस्य षोडशांगानि निश्चितम् ।
यथा सुधांशो र्जायन्ते कला: षोडश शोभनाः ।।
भक्ति शुद्धिश्चासनं च पंचागस्यापि सेवनम् ।
आचार धारणे द्विव्य देश सेवन मित्यपि ।।
प्राणक्रिया तथा मुद्रा तर्पणं हवनं बलिः ।
यागो जपस्तथा ध्यानं समाधिश्चेति षोडश ।।
(१) भक्ति (२) शुद्धि (३) आसन (४) पंचांग सेवन (५) आचार। ( ६) धारणा। (७) दिव्यदेश सेवन। (८) प्राणक्रिया (६) मुद्रा। (१०) तर्पण (११) हवन (१२) बलि (१३) योग (१४) जप (१५) ध्यान। (१६) समाधि ।
१. भक्ति-साधक को नवधार्भाक्त का पूर्ण ज्ञान और क्रिया विचार, स्पष्ट रूप से होना चाहिए। नवधाभक्ति में निम्न प्रकार से भक्ति की जाती है-