तहक्षी™ tehxi தக்ஷி Profile picture
| Tutor & Researcher of Ancient Sānātān Dhārmā, Itihas, Vedāng, Tāntrā-Jyøtïsh Unsolved Vāidik Mysteries |नमश्चण्डिकायै【࿗】ब्राह्मण 🚩 https://t.co/JqmXNBlI5G
Chandrakant Profile picture Tejas Kashyap Profile picture Sanjay Laddha Profile picture Vishy Mitra Profile picture ॐआनंदमॐ Profile picture 19 subscribed
Oct 2 11 tweets 7 min read
नवरात्रि में नव दुर्गा का नव भोग जो करेगा मनोकामना पूर्ति🧵

कृपया #thread को अवश्य अंत तक पढ़े और share करे

नवरात्र के नौ दिनों में शैलपुत्री, ब्रह्माचारिणी, चंद्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री का पूजन किया जाता हैं।, नवरात्रे के प्रथम तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों का पूजन किया जाता हैं, अगले तीन दिन माँ लक्ष्मी के स्वरुपों का पूजन किया जाता हैं। और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा की जाती हैं। उसी प्रकार नौ देवीयों को क्रमशः प्रथम दिन शैलपुत्री, द्वितीय दिन ब्रह्माचारिणी, तृतीय दिन चन्द्रघण्टा, चतुर्थ दिन कुष्माण्डा, पंचम् दिन स्कन्द माता, षष्ठम् दिन कात्यायिनी, साप्तम् दिन कालरात्रि, अष्टम् दिन महागौरी और नौवें दिन सिद्धिदात्री के रुप का पूजन किया जाता हैं।

नवरात्रे के नौ दिनों तक भक्त के मन में यह कौतुहल होता हैं, कि वह माता को भोग में क्या चढ़ाये, जिससे माँ शीघ्र प्रसन्न हों जाये, हिन्दू धर्म में प्रसाद अर्पण किये बिना पूजन संपन्न नहीं होता है। नवरात्र के नौ दिन में नौ देवियों को अलग-अलग भोग लगाने का विधान धर्मशास्त्रों में वर्णित हैं।Image • नवरात्र के प्रथम दिन देवी शैलपुत्री

नवरात्र के प्रथम दिन मां के शैलपुत्री स्वरूप का पूजन करने का विधान हैं। पर्वतराज (शैलराज) हिमालय के यहां पार्वती रुप में जन्म लेने से भगवती को शैलपुत्री कहा जाता हैं। इस दिन देवी का षोडशेपचार से पूजन करके नैवेद्य के रूप में देवी को गाय का घृत (घी) अर्पण करना चाहिए। मां को चरणों चढ़ाये गये घृत को ब्राम्हणों में बांटने से रोगों से मुक्ति मिलती है। देवी कृपा से व्यक्ति सदा धन-धान्य से संपन्न रहता हैं। अर्थात उसे जीवन में धन एवं अन्य सुख साधनो को कमी महसुस नहीं होतीं।Image
Oct 1 12 tweets 6 min read
हनुमानजी के पूजन से कार्यसिद्धि 🧵

#thread

🔹 हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का चमत्कार

दुविधा से तो मुक्ति सब पा लेते है किंतु उचित समय पर पा ली जाये तो जीवन मंगल हो जाता है यही मंगलकारी भगवान हनुमान संकट का मोचन करते हैImage हनुमान चालीसा और बजरंग बाण ही क्यु ?

क्योकि वर्तमान युग में श्री हनुमानजी शिवजी के एक अंश है जो अति शीघ्र प्रसन्न होते है जो अपने भक्तो के समस्त दुखो को हरने में समर्थ है। श्री हनुमानजी का नाम स्मरण करने मात्र से ही भक्तो के सारे संकट दूर हो जाते हैं। क्योकि इनकी पूजा-अर्चना अति सरल है, इसी कारण श्री हनुमानजी जन साधारण मे अत्यंत लोकप्रिय है। भक्तों को पहुंचने में अत्याधिक कठिनाई भी नहीं आती है। हनुमानजी को प्रसन्न करना अति सरल है हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के पाठ के माध्यम से साधारण व्यक्ति भी बिना किसी विशेष पूजा अर्चना से अपनी दैनिक दिनचर्या से थोडा सा समय निकाल ले तो उसकी समस्त परेशानी से मुक्ति मिल जाती है।

🔹हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के नियमित पाठ से हनुमान जी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए प्रस्तुत हैं कुछ उपयोगी जानकारी

नियमित रोज सुबह स्नान आदिसे निवृत होकर स्वच्छ कपडे पहन कर ही पाठ का प्रारम्भ करे।

नियमित पाठ में शुद्धता एवं पवित्रता अनिवार्य है।

हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के पाठ करते समय धूप-दीप अवश्य लगाये इस से चमत्कारी एवं शीघ्र प्रभाव प्राप्त होता है।

कुछ विद्वानो के मत से बिना धूप से हनुमान चालीसा और बजरंग बाण के पाठ का प्रभाव कम होता है।

यदि संभव हो तो प्रसाद केवल शुद्ध घी का चढाए अन्य था न चढाए

जहा तक संभव हो हनुमान जी का सिर्फ़ चित्र (फोटो) रखे। यदि घर मे अलग से पूजा घर की व्यवस्था हो तो वास्तुशास्त्र के हिसाब से मूर्ति रखना शुभ होगा। नही तो हनुमान जी का सिर्फ़ चित्र (फोटो) रखे।

यदि मूर्ति हो तो बहुत बढ़ी न हो एवं मिट्टी की बनी नही रखे। मूर्ति रखना चाहे तो बेहतर है सिर्फ़ किसी धातु की बनी मूर्ति रखे।Image
Sep 30 9 tweets 4 min read
हे पार्वती, सुनो “मंत्र” क्या है मैं वो बताता हूँ…🧵Image ऋषि का शिर में, छन्द का मुख में, देवता का हृदय में, बीज का गुह्यस्थान में, तथा शक्ति का पैरों में न्यास कर (वक्ष्यमाण रीति से) अङ्ग न्यास करना चाहिए।

मंत्रों के ऋषि :- जिस व्यक्ति ने सर्वप्रथम शिव जी के मुख से मन्त्र सुनकर विधिवत उसे सिद्ध किया था, वह उस मन्त्र का ऋषि कहलाता है। उस ऋषि को उस मंत्र का आदि गुरु मानकर श्रद्धा सहित उसका मस्तक में न्यास किया जाता है।Image
Sep 30 9 tweets 6 min read
ज्योतिष उपाय जानिए यदि आपके पास भी जन्मकुंडली ना हो/ना बने 🧵

#thread

🔹जब जन्म तिथि ना ज्ञात हो
🔹जन्म स्थल/जन्म समय ज्ञात ना हो
🔹आपको किसी ज्योतिष की सहायता लेने में दुविधा आ रही हो तो क्या करे

थ्रेड को कृपया अंत तक पूरा पढ़े

कुछ लक्षण ऐसे होते हैं जिनका सीधा सम्बन्ध किसी खास योग या ग्रह से होता है।Image जब आपका बुरा समय चल रहा हो तो आपको किसी दैवज्ञ या विद्वान ज्योतिषी की सहायता लेनी पड़ेगी ! कुछ लोगों की जन्म कुंडली नहीं होती, ना ही उन्हें अपने जन्म समय का अच्छी तरह से ज्ञान होता है ! ऐसी दशा में कैसे पता लगाया जाए कि आप पर किस ग्रह का प्रभाव चल रहा है !

1. जैसे कि अगर आपको अचानक धन हानि होने लगे! आपके पैसे खो जाएँ, बरकत न रहे, दमा या सांस की बीमारी हो जाए, त्वचा सम्बन्धी रोग उत्पन्न हों, कर्ज उतर न पाए, किसी पेपर पर गलत दस्तखत से नुक्सान हो तो आप समझिये कि आप पर बुध ग्रह का कुप्रभाव चल रहा है !

🔹इसके लिए बुधवार को किन्नरों को हरे वस्त्र दान करें और गाय को हरा चारा इसी दिन खिलाएं !Image
Sep 29 12 tweets 10 min read
भीष्म पितामह सम्पूर्ण कहानी पूर्वजन्म से मृत्यु तक 🧵
#thread कृपया अंत तक अवश्य पढ़े

🔹 भीष्म पितामह पूर्व जन्म में कौन थे?
🔹किसके श्राप के कारण उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़ा?
🔹उनके गुरु कौन थे और उन्हें क्यों अपने ही गुरु से युद्ध करना पड़ा?
🔹भीष्म पितामह का वास्तविक नाम?
🔹भीष्म पितामह की मृत्यु का रहस्य?
🔹भीष्म पितामह का धर्म ज्ञान?

आज हम आप सब को इस लेख में भीष्म पितामह के पूर्वजन्म से लेकर उनकी इच्छा मृत्यु तक की सम्पूर्ण कथा बताएँगे।Image महाभारत एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें कई नायक हैं। उनमें से एक नायक भीष्म पितामह भी हैं। सभी लोग जानते हैं कि भीष्म पितामह ने महाभारत की लड़ाई में कौरवों की ओर से युद्ध किया था, लेकिन बहुत से लोग उनके जीवन से जुड़ी बड़ी घटनाओं के बारे में नहीं जानते

🔹पूर्व जन्म में वसु थे —- भीष्म महाभारत के आदि पर्व के अनुसार एक बार पृथु आदि वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे। वहां वसिष्ठ ऋषि का आश्रम भी था। एक वसु पत्नी की दृष्टि ऋषि वसिष्ठ के आश्रम में बंधी नंदिनी नामक गाय पर पड़ गई। उसने उसे अपने पति द्यौ नामक वसु को दिखाया तथा कहा कि वह यह गाय अपनी सखियों के लिए चाहती है। पत्नी की बात मानकर द्यौ ने अपने भाइयों के साथ उस गाय का हरण कर लिया। जब महर्षि वसिष्ठ अपने आश्रम आए तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से सारी बात जान ली। वसुओं के इस कार्य से क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। जब सभी वसु ऋषि वसिष्ठ से क्षमा मांगने आए। तब ऋषि ने कहा कि तुम सभी वसुओं को तो शीघ्र ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन इस द्यौ नामक वसु को अपने कर्म भोगने के लिए बहुत दिनों तक पृथ्वीलोक में रहना पड़ेगा। महाभारत के अनुसार द्यौ नामक वसु ने गंगापुत्र भीष्म के रूप में जन्म लिया था। श्राप के प्रभाव से वे लंबे समय तक पृथ्वी पर रहे तथा अंत में इच्छामृत्यु से प्राण त्यागे।Image
Sep 28 8 tweets 7 min read
यदि आप हस्ताक्षर देख किसी व्यक्ति के बारे समझने की गहन विद्या सीखना चाहते है तो अवश्य पढ़े #thread 🧵

🔹 आपके हस्ताक्षर क्या बोलते हैं ?
🔹 जिस व्यक्ति के हस्ताक्षर मे सभी अक्षर एक ही आकार (संतुलित हस्ताक्षर) के हो ?
🔹 जिस व्यक्ति के हस्ताक्षर का प्रथम अक्षर अत्यंत बडा हो ?
🔹 जिस व्यक्ति के हस्ताक्षर में पहला शब्द बडा व बाकी के शब्द सुन्दर-छोटे आकार में होते हैं?
🔹 जिस व्यक्ति के हस्ताक्षर में पहला शब्द बडा व बाकी के शब्द अस्पष्ट व छोटे आकार में होते हैं ?
🔹 जिस व्यक्ति के हस्ताक्षर अस्पष्ट तथा जल्दी-जल्दी मे लिखते हो?
🔹जानिए —बहिर्मुखी व्यक्तित्व, अन्तर्मुखी व्यक्तित्व और मध्यम (अर्थात ना ज्यादा बहिर्मुखी ना अन्तर्मुखी)Image 🔹 हस्ताक्षर के बारे में खास बात है कि आप अपना नाम कैसे लिखते है?

अंक ज्योतिष के अनुशार आप कैसे अपना नाम हस्ताक्षर मे केसे लिखते है यह बहुत महत्वपूर्ण है। हस्ताक्षर का लेखन से आप के बारे में विभिन्न जानकारी देता है। जो बात आपके हस्ताक्षर मे है क्या वह बात किसी और के लेखन या किसी और के हस्ताक्षर में है?

आपके लेखन के अन्य शब्दों की लिखाइ से अंतर नहीं पड़ता जो आपके हस्ताक्षर का नहीं हिस्सा है। आपके हस्ताक्षर आपका व्यक्तित्व और दिल के बारे में दिखाते है जो वास्तविकता मे आप होते हैं। यह आप का वह चेहरा होता है जो आप दुनिया को दिखाना चहते या दिखाते है। यदि आपके हस्ताक्षर दो तरह के हैं, तब आपका एक सार्वजनिक व्यक्तित्व और एक निजी व्यक्तित्व होगा जिसके अंतर का विश्लेषण करना आवश्य होता हैं। कुछ लोगों दिखावे वाले हस्ताक्षर पर जोर डालते है. एसे हस्ताक्षर वाले व्यक्ति अधिकतर नेता, अभिनेता और संगीतकार इत्यादि के रूप में होते है जो एक "दिखावे के कारोबार 'में होते हैं। क्योकि उनके जीवन मे उन्हें निरंतर लोगों की नजरों में बने रहना होता है।

हस्ताक्षर का निश्चय अंक ज्योतिष के अनुसार करना सर्वदा उचित होता है। हस्ताक्षर साक्षर (शिक्षित) व्यक्ति के जीवन मे अहम हिस्सा है जो उसके जीवन की सफ़लता एवं असफ़लता निश्चित करती है। यदि आप के पास उचित जानकारी का अभाव होतो बेहतर होगा किसी परिचित कुशल हस्ताक्षर निरीक्षक कि सलाह ले। यदि यह भी संभव न होतो हम से सम्पर्क कर सकते है। किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर को देखकर जीवन के प्रति उसकी मानसिकता, सफ़लता, कार्य करने के शैली, लोगो से संबंध, पूर्ण विश्वास और चरित्र आदि का अनुमान सरलता से लगाया जा सकता है। हस्ताक्षर व्यक्ति की संपुर्ण मानसिक स्थिति को प्रकट करता है। हस्ताक्षर की जाच करते या करवाते समय अपनी सोच को स्वतन्त्र रखे बिना हिचकिचाए और बिना कुछ सोचे एवं पूरी दृढ़ता से हस्ताक्षर करे, तो वह हस्ताक्षर नमूना अध्ययन की दृष्टि से उचित होता है।Image
Sep 26 5 tweets 4 min read
ऐसा कोई घर नही है जिसमें झाड़ू ना हो, यदि आपके घर में झाड़ू है तो आपको कुछ बाते अवश्य जान लेनी चाहिए

#thread 🧵

झाडू में धन की देवी महालक्ष्मी का वास

जिस घर में झाडू का अपमान होता है वहां धन हानि होती है, क्योंकि झाडू में धन की देवी महालक्ष्मी का वास माना गया है। विद्वानों के अनुसार झाडू पर पैर लगने से महालक्ष्मी का अनादर होता है। झाडू घर का कचरा बाहर करती है और कचरे को दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है।Image जिस घर में पूरी साफ-सफाई रहती है वहां धन, संपत्ति और सुख-शांति रहती है। इसके विपरित जहां गंदगी रहती है वहां दरिद्रता का वास होता है।

ऐसे घरों में रहने वाले सभी सदस्यों को कई प्रकार की आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसी कारण घर को पूरी तरह साफ रखने पर जोर दिया जाता है ताकि घर की दरिद्रता दूर हो सके और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके। घर से दरिद्रता रूपी कचरे को दूर करके झाडू यानि महालक्ष्मी हमें धन-धान्य, सुख-संपत्ति प्रदान करती है।Image
Sep 25 10 tweets 8 min read
Exclusive #Thread 🧵

🔹कब, क्यों और कैसे डूबी द्वारका?

🔹प्राचीन द्वारका नगरी

🔹गांधारी ने दिया था यदुवंश के नाश का श्राप

🔹ऋषियों ने दिया था सांब को श्राप

🔹 समुद्र में डूबे हुए द्वारका नगरी के अवशेष

🔹 अंधकवंशियों के हाथों मारे गए थे प्रद्युम्न

🔹यदुवंशियों के नाश के बाद अर्जुन को बुलवाया था श्रीकृष्ण ने

🔹बलरामजी के स्वधाम गमन के बाद ये किया श्रीकृष्ण ने

🔹अर्जुन अपने साथ ले गए श्रीकृष्ण के परिजनों कोImage 🔹कब, क्यों और कैसे डूबी द्वारका?

श्री कृष्ण की नगरी द्वारिका महाभारत युद्ध के 36 वर्ष पश्चात समुद्र में डूब जाती है। द्वारिका के समुद्र में डूबने से पूर्व श्री कृष्ण सहित सारे यदुवंशी भी मारे जाते है। समस्त यदुवंशियों के मारे जाने और द्वारिका के समुद्र में विलीन होने के पीछे मुख्य रूप से दो घटनाएं जिम्मेदार है। एक माता गांधारी द्वारा श्री कृष्ण को दिया गया श्राप और दूसरा ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण पुत्र सांब को दिया गया श्राप। आइए इस घटना पर विस्तार से जानते है। (1/8)Image
Sep 24 8 tweets 7 min read
🧵हिन्दू धर्म का सामान्य ज्ञान अतिसरल शब्दो में #Thread

🔹हिन्दू धर्म

हिन्दू धर्म , मानव सभ्यता का प्राचीनतम धर्म है, जिसे इसकी प्राचीनता एवं विशालता के कारण 'सनातन धर्म भी कहा जाता है। ईसाई, इस्लाम, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के समान हिन्दू धर्म किसी पैगम्बर या व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित धर्म नहीं है, बल्कि यह प्राचीन काल से चले आ रहे विभिन्न धर्मों, मतमतांतरों, आस्थाओं एवं विश्वासों का समुच्चय है। एक विकासशील धर्म होने के कारण विभिन्न कालों में इसमें नये-नये आयाम जुड़ते गये। वास्तव में हिन्दू धर्म इतने विशाल परिदृश्य वाला धर्म है कि उसमें आदिम ग्राम देवताओं, भूत-पिशाची, स्थानीय देवी-देवताओं, तंत्र-मंत्र से लेकर त्रिदेव एवं अन्य देवताओं तथा निराकार ब्रह्म और अत्यंत गूढ़ दर्शन तक सभी बिना किसी अन्तर्विरोध के समाहित हैं और स्थान एवं व्यक्ति विशेष के अनुसार सभी की आराधना होती है। वास्तव में हिन्दू धर्म लघु एवं महान् परम्पराओं का उत्तम समन्वय दर्शाता है। एक ओर इसमें वैदिक तथा पुराणकालीन देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना होती है, तो दूसरी ओर कापलिक और अवधूतों द्वारा भी अत्यंत भयावह कर्मकांडीय आराधना की जाती है। एक ओर भक्ति रस से सराबोर भक्त हैं, तो दूसरी ओर अनीश्वर-अनात्मवादी और यहाँ तक कि नास्तिक भी दिखाई पड़ जाते हैं। देखा जाय, तो हिन्दू धर्म सर्वथा विरोधी सिद्धान्तों का भी उत्तम एवं सहज समन्वय है। यह हिन्दू धर्मावलम्बियों की उदारता, सर्वधर्मसमभाव, समन्वयशीलता तथा धार्मिक सहिष्णुता की श्रेष्ठ भावना का ही परिणाम और परिचायक है।
(1/8)Image 🔹हिन्दू धर्म के स्रोत

हिन्दू धर्म की परम्पराओं का अध्ययन करने हेतु हज़ारों वर्ष पीछे वैदिक काल पर दृष्टिपात करना होगा। हिन्दू धर्म की परम्पराओं का मूल वेद ही हैं। वैदिक धर्म प्रकृति-पूजक, बहुदेववादी तथा अनुष्वानपरक धर्म था। यद्यपि उस काल में प्रत्येक भौतिक तत्त्व का अपना विशेष अधिष्ठात् देवता या देवी की मान्यता प्रचलित थी, परन्तु देवताओं में वरुण, पूषा, मित्र, सविता, सूर्य, अश्विन, उषा, इन्द्र, रुद्र, पर्जन्य, अग्नि, वृहस्पति, सीम आदि प्रमुख थे। इन देवताओं की आराधना यज्ञ तथा मंत्रोच्चारण के माध्यम से की जाती थी। मंदिर तथा मूर्ति पूजा का अभाव था। उपनिषद काल में हिन्दू धर्म के दार्शनिक पक्ष का विकास हुआ। साथ ही एकेश्वरवाद की अवधारणा बलवती हुई। ईश्वर को अजर-अमर, अनादि, सर्वत्रव्यापी कहा गया। इसी समय योग, सांख्य, वेदांत आदि षड दर्शनों का विकास हुआ। निर्गुण तथा सगुण की भी अवधारणाएं उत्पन्न हुई। नौवीं से चौदहवीं शताब्दी के मध्य विभिन्न पुराणों की रचना हुई।
(2/8)Image
Sep 22 10 tweets 3 min read
🧵 9 ग्रहो को जल द्वारा प्रसन्न करें #Thread

सूर्य ग्रह को प्रसन्न करने के लिए सुबह सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए Image चंद्रमा = चंद्र ग्रह को प्रसन्न करने के लिए महादेव को जल चढ़ाये Image
Sep 22 9 tweets 5 min read
🧵जेलर ने पूछा, सुभाष चंद्र बॉस कहा हैं ?
उसने जवाब दिया मेरे हृदय में !

ग़ुस्से में जेलर ने ब्रेस्ट रिपर से उस बहादुर भारत की बेटी का एक स्तन काट दिया।

यह कहानी हैं भारत की सबसे पहली महिला गुप्तचर (जासूस) नीरा आर्या की !

कृपया #Thread अंत तक पढ़े (1/9) Image 🔹नीरा आर्या को भारत की पहली महिला जासूस कहा जाता है। यह नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में रानी झांसी रेजीमेंट की सिपाही थीं। इन्होंने अंग्रेजों के सामने कई बार जासूसी की और सफल रहीं। देश के स्वतंत्रता के लिए इतनी दृढ़ इच्छाशक्ति थी के उन्होंने वीर स्वतंत्र सेनानी नेताजी बोस को बचाने के लिए स्वयं के पति जो ब्रिटिश सरकार के लिए काम करते थे, उनकी हत्या कर दी । (2/9)Image
Sep 21 10 tweets 11 min read
हठयोग की साधना के बारे मिथ्या लगता है यदि कहा जाये “अजपा जप” मनुष्य को देव बना देता है किंतु सिद्ध करेंगे कैसे ?

#thread 🧵कृपया अवश्य पूरा पढ़े

🔹जप कितनी प्रकार के है
🔹जप क्या निरोग करते है?
🔹जप से कुंडलिनी जागरण संभव है?
🔹अजपा जप क्या है?
🔹अजपा जप के कितने चरण है?
🔹मनुष्य को देव करता है क्या? “अजपा जाप”Image अजपा-जप भारतीय आध्यात्मिक साधना में जप का प्राचीन काल से ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इसका विकास समय-समय पर भारत के महान् सन्तों और योगियों ने विभिन्न युगों में अपने अनुभवों से किया है। जप उतना ही प्राचीन है, जितना भारतीय संस्कृति । उपनिषदों तथा अन्य प्राचीन ग्रंथों में इनका विवरण किसी न किसी रूप में प्राप्त होता है।

जप कोई भी हो नित्य दोषों को दूर कर चित्त शुद्ध करता है। जप अनेक प्रकार के होते हैं। मुख्य जप इस प्रकार हैं-

🔹नित्य जपः - गुरू मंत्र का प्रतिदिन प्रातः सायं जप करना नित्य जप कहलाता है।

🔹वैखरी जपः - मंत्रों का जोर से उच्चारण करते हुए किया जाने वाला जप वैखरी जप कहलाता है।

🔹उपांशु जपः - मंत्रों को बिना जोर से बोले मुंह के अन्दर ही जप करना उपांशु जप कहलाता है। मानस जपः. - मन से मंत्रों का उच्चारण करना मानस जप कहलाता है।

🔹अजपा जपः - श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया पर अपनी चेतना को केन्द्रित करके किया जाने वाला जप अजपा-जप कहलाता है। यह जप सबसे सरल और उच्च कोटि का माना गया है। योग में चित्त शुद्धि की बहुत सी साधनाएं हैं। परन्तु हर साधना का प्रभाव अलग-अलग होता है अर्थात कुछ साधनाएं ऐसी हैं जिन्हें साधारण व्यक्ति नहीं सह सकता, इसलिये प्रत्येक को या चाहे जिसको शक्तिपात नहीं कराया जा सकता, क्योकि मनुष्य की प्रकृति तीन प्रकार की होती है-सात्त्विक, राजसिक और तामसिक । इन तीनों प्रकृतियों के मनुष्यों के लिये आध्यात्मिक क्षेत्र में साधनायें भी अलग-अलग हैं। यदि तामसिक प्रकृति के मनुष्य को सात्विक प्रकृति की साधना करवायी जायेगी या सात्त्विक प्रकृति के मनुष्य को तामसिक प्रकृति की साधनायें करवायी जाय तो वह निश्चित पागल या रोगी हो जायेगा। परतु अजपा एक ऐसी साधना है जो हर प्रकृति के व्यक्ति के लिये उपयुक्त है। यह जप अपने आप में एक पूर्ण साधना है। गोरक्षशतक में महायोगी गुरू गोरक्षनाथ जी ने स्वयं कहा है कि-

हकारेण बर्हिर्याति सकारेण विशेत् पुनः । हंसहंसेत्यमुं मंत्रं जीवो जपति सर्वदा ।।
अजपा नाम गायत्री योगिनां मोक्षदायिनी ।
अस्याः संकल्पमात्रेण सर्वपापैः प्रमुच्यते । कुण्डलिन्यां समुद्भूता गायत्री प्राणधारिणी । प्राणविद्या महाविद्या यस्तां वेत्ति स योगवित् ।।Image
Sep 20 5 tweets 2 min read
🧵 शिव सूत्र

अपने ब्रह्मांडीय नृत्य के अंत में, भगवान शिव, ऋषि सनक और इतने पर आशीर्वाद देने के लिए 14 बार अपने डमरू पर खेले, जिससे 14 सूत्र निकले,जिन्हें शिव सूत्र के रूप में जाना Image 1. अ इ उ ण all वॉवेल्स अच

2-ऋ ऌ क्-Simple vowels = अक्

3- ए ओ ङ्-Diphthongs = एच्

4. ऐ औ च - semi vowels यण

5. ह य व र ट -all consonants

6-लँ ण्-ल्+अँ, No nasal for र्

7-ञ म ङ ण न म्-5th of row = Nasals ञम् (soft consonants) =

8-झ भ ञ्-4th of row = झष् (soft consonants)
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Sep 19 10 tweets 9 min read
🧵कहानी धर्म ग्रंथों में वर्णित 9 महान गुरुओं की
#thread

गुरु का अर्थ है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला आज हम आपको महान 9 गुरुओं के बारे में बता रहे हैं- Image भगवान शिव आदि व अनंत हैं अर्थात न तो कोई उनकी उत्पत्ति के बारे में जानता है और न कोई अंत के बारे में।शिव ही परमपिता परमेश्वर हैं। भगवान शिव ने भी गुरु बनकर अपने शिष्यों को परम ज्ञान प्रदान किया है। यदि कहा जाए कि भगवान शिव सृष्टि के प्रथम गुरु हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। भगवान विष्णु के अवतार परशुराम को अस्त्र शिक्षा शिव ने ही दी थी। शिव के द्वारा दिए गए परशु से ही परशुराम ने अनेक बार धरती को क्षत्रिय विहीन कर दिया था। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार नागों की बहन जरत्कारु (मनसा) के गुरु भी भगवान शिव ही हैं। शुक्राचार्य को दी मृत संजीवनी विद्या शिव ने दानवों के गुरु शुक्राचार्य को मृत संजीवनी विद्या सिखाई थी। एक बार देवता व दानवों में भीषण युद्ध हुआ। देवता जितने भी राक्षसों का वध करते, शुक्राचार्य मृत संजीवनी विद्या से उन्हें पुनः जीवित कर देते। यह देख भगवान शिव ने शुक्राचार्य को निगल लिया तथा युद्ध समाप्त के बाद पुनः बाहर निकाल दिया। शिव के द्वारा पुनः उत्पन्न होने से ही माता पार्वती ने शुक्राचार्य को अपना पुत्र माना।Image
Sep 18 7 tweets 5 min read
महाराणा प्रताप का इत्तिहास (कहानी शौर्य की) 🧵#thread

मुग़लों पर ग्रहण लगा था लगाने वाले सूर्य का नाम महाराणा प्रताप 🔥 Image महाराणा प्रताप जन्म -9 मे, 1540 ,जन्मस्थान कुम्भलगढ़ में हुआ दुर्ग उनके पिता राणा उदय सिंह और माता महाराणी जयवंता कँवर था , बचपन से ही महाराणा प्रताप साहसी, वीर, स्वाभिमानी एवं स्वतंत्रताप्रिय थे. सन 1572 में मेवाड़ के सिंहासन पर बैठते ही उन्हें अभूतपूर्व संकोटो का सामना करना पड़ा, किंतु धैर्य और साहस के साथ उन्होंने हर विपत्ति का सामना किया,मुगलों की विराट सेना से हल्दी घाटी में उनका भरी युद्ध हुआ,वहा उन्होंने जो पराक्रम दिखाया, वह भारतीय इतिहास में अद्वितीय है, उन्होंने अपने पूर्वजों की मान मर्यादा की रक्षा की और प्रण किया की जब तक अपने राज्य को मुक्त नहीं करवा लेंगे, तब तक राज्य सुख का उपभोग नहीं करेंगे, तब से वह भूमी पर सोने लगे, वह अरावली के जंगलो में कष्ट सहते हुए भटकते रहे, परन्तु उन्होंने मुग़ल सम्राट की अधीनता स्वीकार नहीं की, उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना जीवन होम कर दिया.Image
Sep 16 12 tweets 15 min read
🧵 कृपया #thread को पूर्ण पढ़े एवं bookmark करले

🔹पितृदोष क्या है?
🔹श्राद्ध कर्म क्या है?
🔹श्राद्ध विधान क्या है ?
🔹श्राद्ध में क्या करे?
🔹श्राद्ध में क्या ना करे?
🔹श्राद्ध कब ना करे ?
🔹श्राद्ध तर्पण का महत्व/काल/अधिकारी कौन है ?
🔹श्राद्ध का ज्योतिष आधार क्या है?
🔹श्राद्ध का फल क्या होता है ?
🔹श्राद्ध का संक्षेप वर्णनImage श्रद्धया दीयते यत्रः तर्च्छाद्ध परिचक्षते ।।

अर्थात्ः- मृत पित्तरों की आत्मिक शान्ति व उनकी आत्मिक तृप्ति के लिए जो पुत्र अपने प्रिय भोज्य पदार्थ किसी विप्र आदि को श्रद्धापूर्वक भेंट करते है, ब्राह्मण को सेवन कराते है, उसी अनुष्ठान को 'श्राद्ध' कहा जाता है। यही पित्तरों की तृप्ति का एक मात्र साधना (मार्ग) है।

एक अन्य ग्रंथ 'काव्यायन स्मृति' में भी एक जगह आया है- 'श्राद्ध वा पितृयज्ञ स्यात्'

अर्थात्ः- पितृयज्ञ का ही एक अन्य नाम 'श्रद्ध' कर्म है।

जीवन से संबन्धित उपरोक्त कुछ ऐसी समस्याएं है, जिनका समुचित उत्तर दे पाना सहज रूप में संभव नही होता। ऐसे व्यक्तियों को अपने जीवन में द्वन्द्व भरा आचरण निभाना पडता है। यद्यपि इस प्रकार की प्रतिकूल घटनाओं और उन समस्याओं के 'सूत्र' कुछ उनकी जन्म कुंडलियों में देखे जा सकते है। उनके ऐसे दुःख-दुर्भाग्य के सूत्र उनके प्रारब्ध में, उनके पूर्व जीवन से संबंधित रहते है। क्योंकि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में निर्मित हुई ग्रह स्थितियां एक तरह से उसके प्रार्रब्ध व पूर्व कर्मों को ही प्रकट करने का कार्य करते है। ऐसी समस्त घटनाओं व उनके संयोग के पीछे व्यक्ति के पूर्व जीवन के संचित कर्मों को ही जिम्मेदार माना जाता है। वैदिक जीवन में इसे ही 'पितृदोष' या 'पितृश्राप' के रूप में देखा गया है। जीवन से संबन्धित ऐसी समस्त समस्याओं, जीवन की ऐसी परेशानियों और पीडाओं के लिए हमारे प्राचीन ऋषि- मुनियों और ज्योतिष मर्मज्ञों ने व्यक्ति के पूर्व जीवन के संचित कर्मों, पूर्व जीवन के किसी श्राप से ग्रस्त रहने (पितृश्राप पीडित रहने) को एक प्रमुख कारण के रूप में स्वींकार किया है।Image
Sep 14 5 tweets 3 min read
बालकों में ज्ञान चेतना, स्मरण शक्ति अभिवृद्धि हेतु अचूक उपाय

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यदि आपको पढ़ा हुआ स्मरण नही रहता,और आपका बच्चा पढ़ने में इतना तीव्र नही है तो करे ये उपाय Image बालकों में सीखने समझने की क्षमता विशेष रूप से होती है इसलिए बालकों को सरस्वती-साधना अवश्य करनी चाहिए। यह केवल उनका ही नहीं, उनके माता-पिता का भी कर्तव्य है कि बालक सरस्वती-वन्दना नियमित रूप से अवश्य करें। कुछ व्यक्ति अपने भीतर तो ज्ञान बहुत समेटे होते हैं किंतु जब उन्हें बोलने को कहा जाता है, तो वाणी जैसे लड़खडाने लग जाती है, कहना कुछ चाहते है, और बोलते कुछ और ही हैं। इसी प्रकार नौकरी के इंटरव्यू में जो असफल रहते है, उसका कारण अपने आप को, अपने ज्ञान को सही रूप से प्रस्तुत करने की कमी होती है और यह दोष उनके जीवन को साधारण बना देता है, ऐसे व्यक्ति सफल नहीं हो पाते।

विधि — प्रातः काल साधक जल्दी साधक जल्दी उठ जाय और स्नान आदि से निवृत्त हो कर वसन्ती वस्त्र धारण करें, या पीले वस्त्र पहने, फिर घर के किसी स्वच्छ कमरे में या पूजा स्थान में अपने परिवार के साथ बैठ जाए, यदि संभव हो तो सामने सरस्वती का चित्र स्थापित कर दें। इसके बाद एक थाली में, "सरस्वती यंत्र" का स्थापित करें।Image
Sep 13 15 tweets 6 min read
आपका भाग्योदय वर्ष क्या है ?
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जीवन में समय के अनुसार सुख-दुख, पैसे की कमी, आर्थिक प्रबलता, नौकरी की सफलता, ये सब का आना जाना लगा रहता है मेरा भाग्योदय कब होगा ..?

जन्मकुंडली में लग्न के आधार पर ये जाना जा सकता है कि मेरा भाग्योदय कब होगा .......?

जन्मकुंडली में 12 भाव होते हैं, इन सभी भावों में 12 राशियों के नंबर होते हैं, ये 12 राशियां हैं मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन। जन्मकुंडली में पहला भाव जिस राशि/नंबर का होता है, उसी राशि के अनुसार कुंडली का लग्न तय किया जाता है।Image 1. मेष - जन्मकुंडली मेष लग्न की है तो उनका भाग्योदय 16 वर्ष की उम्र में या 22 वर्ष की उम्र, 28 वर्ष की उम्र, 32 वर्ष की उम्र या 36 वर्ष की उम्र में हो सकता है। Image
Sep 12 20 tweets 19 min read
संपूर्ण महाभारत कथा के 18 पर्व केवल एक #thread 🧵में

Exclusive Mahabharat series

महाभारत हमारी संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है। शास्त्रों में इसे पांचवां वेद भी कहा गया है। इसके रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास हैं। महर्षि वेदव्यास ने इस ग्रंथ के बारे में स्वयं कहा है- यन्नेहास्ति न कुत्रचित्। अर्थात जिस विषय की चर्चा इस ग्रंथ में नहीं की गई है, उसकी चर्चा अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है। श्रीमद्भागवतगीता जैसा अमूल्य रत्न भी इसी महासागर की देन है।

महाभारत की रचना महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने की है, लेकिन इसका लेखन भगवान श्रीगणेश ने किया है। इस ग्रंथ में चंद्रवंश का वर्णन है। महाभारत में न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, ज्योतिष, युद्धनीति, योगशास्त्र, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, कामशास्त्र, खगोलविद्या तथा धर्मशास्त्र का भी विस्तार से वर्णन किया गया हैं। यह महाकाव्य 'जय', 'भारत' और 'महाभारत' इन तीन नामों से प्रसिद्ध है।Image 1. आदिपर्व

चंद्रवंश में शांतनु नाम के प्रतापी राजा हुए। शांतनु का विवाह देवी गंगा से हुआ। शांतनु व गंगा के पुत्र देवव्रत (भीष्म) हुए। अपने पिता की प्रसन्नता के लिए देवव्रत ने उनका विवाह सत्यवती से करवा दिया और स्वयं आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा कर ली। देवव्रत की इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही उन्हें भीष्म कहा गया। शांतनु को सत्यवती से दो पुत्र हुए- चित्रांगद व विचित्रवीर्य। राजा शांतनु की मृत्यु के बाद चित्रांगद राजा बने। चित्रांगद के बाद विचित्रवीर्य गद्दी पर बैठे। विचित्रवीर्य का विवाह अंबिका एवं अंबालिका से हुआ। अंबिका से धृतराष्ट्र तथा अंबालिका से पांडु पैदा हुए। धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे, इसलिए पांडु को राजगद्दी पर बिठाया गया।

धृतराष्ट्र का विवाह गांधारी से तथा पांडु का विवाह कुंती व माद्री से हुआ। धृतराष्ट्र से गांधारी को सौ पुत्र हुए। इनमें सबसे बड़ा दुर्योधन था। पांडु को कुंती से युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन तथा माद्री से नकुल व सहदेव नामक पुत्र हुए। असमय पांडु की मृत्यु होने पर धृतराष्ट्र को राजा बनाया गया। कौरव (धृतराष्ट्र के पुत्र) तथा पांडव (पांडु के पुत्र) को द्रोणाचार्य ने शस्त्र विद्या सिखाई। एक बार जब सभी राजकुमार शस्त्र विद्या का प्रदर्शन कर रहे थे, तब कर्ण (यह कुंती का सबसे बड़ा पुत्र था, जिसे कुंती ने पैदा होते ही नदी में बहा दिया था।) ने अर्जुन से प्रतिस्पर्धा करनी चाही, लेकिन सूतपुत्र होने के कारण उसे मौका नहीं दिया गया। तब दुर्योधन ने उसे अंगदेश का राजा बना दिया।

एक बार दुर्योधन ने पांडवों को समाप्त करने के उद्देश्य से लाक्षागृह का निर्माण करवाया। दुर्योधन ने षड्यंत्रपूर्वक पांडवों को वहां भेज दिया। रात के समय दुर्योधन ने लाक्षागृह में आग लगवा दी, लेकिन पांडव वहां से बच निकले। जब पांडव जंगल में आराम कर रहे थे, तब हिंडिब नामक राक्षस उन्हें खाने के लिए आया, लेकिन भीम ने उसका वध कर दिया। हिंडिब की बहन हिडिंबा भीम पर मोहित हो गई। भीम ने उसके साथ विवाह किया। हिडिंबा को भीम से घटोत्कच नामक पुत्र हुआ। एक बार पांडव घूमते-घूमते पांचाल देश के राजा द्रुपद की पुत्री द्रौपदी के स्वयंवर में गए। यहां अर्जुन ने स्वयंवर जीत कर द्रौपदी का वरण किया। जब अर्जुन द्रौपदी को अपनी माता कुंती के पास ले गए तो उन्होंने बिना देखे ही कह दिया कि पांचों भाई आपस में बांट लो। तब श्रीकृष्ण ने कहने पर पांचों भाइयों ने द्रौपदी से विवाह किया।

जब भीष्म, विदुर आदि को पता चला कि पांडव जीवित हैं तो उन्हें वापस हस्तिनापुर बुलाया गया। यहां आकर पांडवों ने अपना अलग राज्य बसाया, जिसका नाम इंद्रप्रस्थ रखा। एक बार नियम भंग होने के कारण अर्जुन को 12 वर्ष के वनवास पर जाना पड़ा।

वनवास के दौरान अर्जुन ने नागकन्या उलूपी, मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा व श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा से विवाह किया। अर्जुन को सुभद्रा से अभिमन्यु तथा द्रौपदी से पांडवों को पांच पुत्र हुए। वनवास पूर्ण कर अर्जुन जब पुनः इंद्रप्रस्थ पहुंचे तो सभी बहुत प्रसन्न हुए। अर्जुन व श्रीकृष्ण के कहने पर ही मयासुर नामक दैत्य ने इंद्रप्रस्थ में एक सुंदर सभा भवन का निर्माण किया !Image
Sep 11 32 tweets 14 min read
🧵 Mahabharat Series

महाभारत के 30 तथ्य, कुछ तो आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे तो कुछ आश्चर्यचकित कर देंगे #Thread

1- महाभारत ग्रंथ की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी किंतु इसका लेखन भगवान श्रीगणेश ने किया था। भगवान श्रीगणेश ने इस शर्त पर महाभारत का लेखन किया था कि महर्षि वेदव्यास बिना रुके ही लगातार इस ग्रंथ के श्लोक बोलते रहे। तब महर्षि वेदव्यास ने भी एक निश्चय किया कि मैं भले ही बिना सोचे-समझे बोलूं किंतु आप किसी भी श्लोक को बिना समझे लिखे नहीं। बीच-बीच में महर्षि वेदव्यास ने कुछ ऐसे श्लोक बोले जिन्हें समझने में श्रीगणेश को थोड़ा समय लगा और इस दौरान महर्षि वेदव्यास अन्य श्लोकों की रचना कर लेते थे।Image 2- महाभारत ग्रंथ का वाचन सबसे पहले महर्षि वेदव्यास के शिष्य वैशम्पायन ने राजा जनमेजय की सभा में किया था। राजा जनमेजय अभिमन्यु के पौत्र तथा परीक्षित के पुत्र थे। इन्होंने ने ही अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्पयज्ञ करवाया था। Image
Sep 10 16 tweets 17 min read
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महाभारत के 18 प्रमुख पात्र तथा उनसे जुड़े रोचक तथ्य
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1. 1. भीष्म पितामह (Bhishma pitamah)

भीष्म पितामह को महाभारत का सबसे प्रमुख पात्र कहा जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि भीष्म ही महाभारत के एकमात्र ऐसे पात्र थे, जो प्रारंभ से अंत तक इसमें बने रहे। भीष्म के पिता राजा शांतनु व माता देवनदी गंगा थीं। भीष्म का मूल नाम देवव्रत था। राजा शांतनु जब सत्यवती पर मोहित हुए तब अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए देवव्रत ने सारी उम्र ब्रह्मचारी रह कर हस्तिनापुर की रक्षा करने की प्रतिज्ञा ली और सत्यवती को ले जाकर अपने पिता को सौंप दिया। पिता शांतनु ने देवव्रत को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। देवव्रत की इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही उनका नाम भीष्म प्रसिद्ध हुआ।

🔹पांडवों को बताया था अपनी मृत्यु का रहस्य

युद्ध में जब पांडव भीष्म को पराजित नहीं कर पाए तो उन्होंने जाकर भीष्म से ही इसका उपाय पूछा। तब भीष्म पितामह ने बताया कि तुम्हारी सेना में जो शिखंडी है, वह पहले एक स्त्री था, बाद में पुरुष बना। अर्जुन शिखंडी को आगे करके मुझ पर बाणों का प्रहार करे। वह जब मेरे सामने होगा तो मैं बाण नहीं चलाऊंगा। इस मौके का फायदा उठाकर अर्जुन मुझे बाणों से घायल कर दे। पांडवों ने यही युक्ति अपनाई और भीष्म पितामह पर विजय प्राप्त की। युद्ध समाप्त होने के 58 दिन बाद जब सूर्यदेव उत्तरायण हो गए तब भीष्म ने अपनी इच्छा से प्राण त्यागे।Image 2. गुरु द्रोणाचार्य (Guru Dronacharya)

कौरवों व पांडवों को अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा गुरु द्रोणाचार्य ने ही दी थी। द्रोणाचार्य महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे। महाभारत के अनुसार एक बार महर्षि भरद्वाज जब सुबह गंगा स्नान करने गए, वहां उन्होंने घृताची नामक अप्सरा को जल से निकलते देखा। यह देखकर उनके मन में विकार आ गया और उनका वीर्य स्खलित होने लगा। यह देखकर उन्होंने अपने वीर्य को द्रोण नामक एक बर्तन में संग्रहित कर लिया। उसी में से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ था।

जब द्रोणाचार्य शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब उन्हें पता चला कि भगवान परशुराम ब्राह्मणों को अपना सर्वस्व दान कर रहे हैं। द्रोणाचार्य भी उनके पास गए और अपना परिचय दिया। द्रोणाचार्य ने भगवान परशुराम से उनके सभी दिव्य अस्त्र-शस्त्र मांग लिए और उनके प्रयोग की विधि भी सीख ली। द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ था।

🔹छल से हुआ था वध

कौरव-पांडवों के युद्ध में द्रोणाचार्य कौरवों की ओर थे। जब पांडव किसी भी तरह उन्हें हरा नहीं पाए तो उन्होंने गुरु द्रोणाचार्य के वध की योजना बनाई। उस योजना के अनुसार भीम ने अपनी ही सेना के अश्वत्थामा नामक हाथी को मार डाला और द्रोणाचार्य के सामने जाकर जोर-जोर से चिल्लाने लगे कि अश्वत्थामा मारा गया। अपने पुत्र की मृत्यु को सच मानकर गुरु द्रोण ने अपने अस्त्र नीचे रख दिए और अपने रथ के पिछले भाग में बैठकर ध्यान करने लगे। अवसर देखकर धृष्टद्युम्न ने तलवार से गुरु द्रोण का वध कर दिया।Image