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#औरंगजेब ने हुक्म दिया कि किसी हिन्दू को राज्य के कार्य में किसी उच्च स्थान पर #नियुक्त न किया जाये तथा हिन्दुओं पर #जजिया कर लगा दिया जाये। उस समय अनेकों कर केवल हिन्दुओं पर #लगाये गये। इस भय से असंख्य हिन्दू मुसलमान #हो गये।
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हिन्दुओं के पूजा #आरती आदि सभी धार्मिक कार्य बंद होने #लगें। मंदिर गिराये गये, मस्जिदें बनवायी गयीं और अनेकों धर्मात्मा #व्यक्ति मरवा दिये गये।
उसी समय #की उक्ति👇 है –
“सवा मन यज्ञोपवीत रोजाना #उतरवा कर औरंगजेब रोटी खाता था।”
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#औरंगज़ेब ने कहा – “सबसे कह दो या तो #इस्लाम धर्म कबूल करें या मौत को #गले लगा लें।”
इस प्रकार की #ज़बर्दस्ती शुरू हो जाने से अन्य धर्म के लोगों #का जीवन कठिन हो गया। हिंदू और ₹सिखों को इस्लाम अपनाने के लिए सभी #उपायों, लोभ लालच, भय दंड से मजबूर #किया गया।
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जब गुरु #तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म स्वीकार करने से मना कर दिया तो उनको औरंगजेब के #हुक्म से गिरफ्तार कर लिया गया था। #गुरुजी के साथ तीन सिख वीर दयाला, भाई मतीदास और सतीदास भी #दिल्ली में कैद थे।
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क्रूर #औरंगजेब चाहता था कि गुरुजी मुसलमान बन जायें, उन्हें डराने के लिए इन #तीनों वीरो को तड़पा तड़पा कर मारा #गया, पर गुरुजी विचलित नहीं हुए।
मतान्ध औरंगजेब ने सबसे 2पहले 9 नवम्बर सन 1675 ई. को भाई #मतिदास को आरे से दो भागों में चीरने को कहा,
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लकड़ी के दो बड़े #तख्तों में जकड़कर उनके सिर पर आरा #चलाया जाने लगा, जब आरा दो तीन इंच तक सिर में धंस गया, तो #काजी ने उनसे कहा –
“मतिदास अब भी #इस्लाम स्वीकार कर ले, शाही जर्राह तेरे घाव #ठीक कर देगा, तुझे दरबार में ऊँचा पद दिया जाएगा और तेरी पाँच #शादियाँ कर दी जायेंगी
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भाई #मतिदास ने व्यंग्यपूर्वक पूछा – “काजी, यदि मैं इस्लाम मान लूँ, तो क्या #मेरी कभी मृत्यु नहीं होगी.” काजी ने कहा #कि – “यह कैसे सम्भव है, जो #धरती पर आया है उसे मरना #तो है ही।”
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भाई #मतिदास ने हँसकर कहा – “यदि तुम्हारा #इस्लाम मजहब मुझे मौत से नहीं बचा सकता, तो फिर मैं अपने #पवित्र हिन्दू धर्म में रहकर ही मृत्यु का वरण क्यों न #करूँ।”उन्होंने जल्लाद से कहा कि – “#अपना आरा तेज चलाओ, जिससे मैं #शीघ्र अपने प्रभु के धाम पहुँच #सकूँ।”
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यह #कहकर वे ठहाका मार कर हँसने लगे, काजी ने कहा कि – “यह मृत्यु के भय से #पागल हो गया है।”
भाई मतिदास ने #कहा – ” मैं डरा नहीं हूँ, मुझे प्रसन्नता है कि मैं धर्म पर #स्थिर हूँ। जो धर्म पर अडिग रहता है, उसके #मुख पर लाली रहती है,
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पर जो धर्म से #विमुख हो जाता है, उसका मुँह काला हो जाता है।”कुछ ही देर में उनके #शरीर के दो टुकड़े हो गये। अगले दिन 10 #नवम्बर को उनके छोटे भाई सतिदास को #रुई में लपेटकर जला दिया गया। भाई दयाला को पानी में उबालकर #मारा गया।
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ग्राम #करयाला, जिला झेलम वर्तमान पाकिस्तान तत्कालीन अविभाजित भारत #निवासी भाई मतिदास एवं सतिदास के #पूर्वजों का सिख इतिहास में विशेष स्थान है। उनके परदादा भाई परागा छठे गुरु #हरगोविन्द के सेनापति थे। उन्होंने #मुगलों के विरुद्ध युद्ध में ही अपने प्राण त्यागे थे।
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उनके समर्पण को #देखकर गुरुओं ने उनके परिवार को ‘भाई’ की #उपाधि दी थी।
भाई #मतिदास के एकमात्र पुत्र मुकुन्द राय का भी चमकौर के युद्ध में बलिदान हुआ था। भाई #मतिदास के भतीजे साहबचन्द और #धर्मचन्द गुरु गोविन्दसिंह के दीवान थे।
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साहबचन्द ने #व्यास नदी पर हुए युद्ध में तथा उनके पुत्र गुरुबख्श सिंह ने अहमदशाह #अब्दाली के अमृतसर में हरमन्दिर #साहिब पर हुए हमले के समय उसकी रक्षार्थ प्राण दिये थे।इसी वंश के क्रान्तिकारी भाई #बालमुकुन्द ने 8 मई सन 1915 ई. को #केवल 26 वर्ष की आयु में फाँसी पायी थी।
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उनकी पत्नी #रामरखी ने पति की फाँसी के समय घर पर ही देह त्याग दी लाहौर में भगतसिंह आदि #सैकड़ों क्रान्तिकारियों को #प्रेरणा देने वाले भाई परमानन्द भी इसी #वंश के थे
किसी ने ठीक ही #कहा है-
सूरा सो पहचानिये, जो लड़े दीन के हेत
पुरजा-पुरजा कट मरे, तऊँ न छाड़त खेत
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#अफ़सोस की बात ये है कि इसके बाद भी इतिहास में भाई मतिदास, भाई #सतिदास तथा भाई दयाला को जगह नहीं दी गई तथा उनके बलिदान की #गौरवगाथा को हिंदुस्तान के लोगों से #छिपाकर रखा गया। बहुत कम लोग होंगे जो #इनके बलिदान तथा त्याग के बारे में जानते #होंगे।
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#हिंदुस्तान में आज जो हिन्दू बचे हैं वे भी ऐसे महापुरुषों के कारण ही है क्योंकि #उन्होंने अपने धर्म के लिए प्राण दिए पर #लालच में आकर धर्मपरिवर्तन नहीं किया, नही तो वे भी बड़ा ऊंचा पद लेकर अपनी #आराम से जिंदगी जी सकते थे
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पर #उन्होंने ऐशो आराम को ठुकरा कर धर्म के लिए शरीर को तड़पाकर प्राण #त्याग दिए इन महापुरुषों के कारण आज हिन्दू धर्म जीवित है।आज जो #लालच में आकर धर्म #परिवर्तन कर लेते है उनको भाई मतिदास से सिख लेनी चाहिए।
ऐसे #महापुरुषों के बलिदान को में शत-शत नमन करता हूं 🙏🙏
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