मस्तक पर तिलक अथवा कुमकुम क्यों लगाते हैं?
हिंदू सनातन विज्ञान के अनुसार इंसान के माथे पर, दो भौहों के बीच, एक ऐसा स्थान है जो प्राचीन काल से मानव शरीर में एक प्रमुख तंत्रिका बिंदु माना जाता है।
माना जाता है कि तिलक मानव शरीर में "ऊर्जा" के ह्रास को रोकता है। +
ऐसा कहा जाता है कि मस्तक पर भौहों के बीच वाले स्थान पर लाल ‘कुमकुम’ मानव शरीर में ऊर्जा को बनाए रखता है, मानव मस्तिष्क में एकाग्रता के विभिन्न स्तरों को नियंत्रित करता है और व्यक्ति की समझ को भी बढ़ाता है।
कुमकुम लगाते समय मध्य भौंह क्षेत्र पर ‘आज्ञा-चक्र’ स्वतः दब जाते हैं। +
तिलक लगाने से चेहरे की मांसपेशियों को रक्त की आपूर्ति भी सुगमता से होती है।
यह केवल सौंदर्य नहीं है। पूजा से पहले कुमकुम का तिलक लगाने से देवों/मंत्रों/जप आदि पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है।
हम घर पर हल्दी, चूना/सोडा और पानी से कुमकुम दिए गए चित्र के अनुसार बना सकते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कल्प पुरुष की कुंडली में मेष राशि का भाव माथे पर होता है। मेष राशि का स्वामी मंगल है और इसका रंग लाल है।
लाल चंदन, कुमकुम और सिंदूर को माथे पर तिलक स्वरूप लगाने के पीछे यह भी एक कारण है।
किंतु कुछ दशकों से ‘स्टिकर बिंदी’ ने कुमकुम का स्थान ले लिया है। +
जबकि वह मात्र प्लास्टिक व कागज के गोल टुकड़ों से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं, जिनके पीछे चिपकने वाला पदार्थ लगा होता है। ऐसी बिंदी का कोई उपयोग नहीं है। वे बस मानव मस्तक पर ‘आज्ञा चक्र’ को अवरुद्ध करते हैं और त्वचा के लिए भी हानिकारक होते हैं।
साभार - @Sanatan_Science
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