श्रुति बोलती है कि एक अखंड अद्वैत चेतन (ब्रह्म/आत्मा) ही ब्रह्मा, विष्णु, और शिव बन के बैठा हुआ है.

स्वयं ब्रह्मा स्वयं विष्णुः स्वयमिन्द्रः स्वयं शिवः ।
स्वयं विश्वमिदं सर्वं स्वस्मादन्यन्न किंचन ॥ ~अध्यात्मोपनिषत् (२०)
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स ब्रह्मा स शिवः सेन्द्रः सोऽक्षरः परमः स्वराट् ।
स एव विष्णुः स प्राणः स कालोऽग्निः स चन्द्रमाः ॥~ कैवल्योपनिषत् (८)
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शिवागमेषु चाद्वैतं बभाषे परमेश्वर:।
तथाऽपि परमाद्वैतं नैव वाञ्छन्ति मानवा॥
नारायणोऽपि चाद्वैतं बभाषे स्वागमेषु च।
तथाऽपि परमाद्वैतं नैव वाञ्छन्ति मानवा॥
~ सूत संहिता ४।९।४१-४२
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अर्थात, भगवान शिव और भगवान नारायण ने भी अपने अपने आगमों-शास्त्रों में "चाद्वैतं बभाषे" यानी एक अखंड अद्वैत चेतन तत्व (ब्रह्म) का ही प्रतिपादन किया है.
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लेकिन फिरभी कुछ यवन-ऋषि प्रेमी आगम शास्त्री ये समझते हैं कि भूतचैतन्यवाद (जो ब्रह्मतत्व के अस्तित्व को नही मानता और उसका खंडन करता है) और आगमशास्त्र एक दूसरे के अनुरुप हैं.
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उससे भी आश्चर्य की बात ये है कि वह अपने को वैदिक कहते हैं और अपने को वेदों के विशेषज्ञ के रुप में प्रचारित करते हैं.

6/8
श्रुति ऐसे ही ठग या मूर्ख वेद पंडितों के बारे में कहती है.

"अधीत्य चतुरो वेदान्सर्वशास्त्राण्यनेकशः ।
ब्रह्मतत्त्वं न जानाति दर्वी पाकरसं यथा ॥" ~ मुक्तिकोपनिषत् (२।६५)
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"चारो वेदों एवं अनेकों शास्त्रों का अध्ययन करके भी जो आत्मस्वरुप ब्रह्मतत्व को नहीं जानता, वह परमानन्द से उसी प्रकार वञ्चित रहता है जिस प्रकार कर्छली नाना प्रकार के व्यञ्जनों में रहती हुई भी उनके रस के आस्वादन से वञ्चित रहती है।"
8/8
Again, a clarification. I write such tweets to defend Vedas against Padre/Indologist pollution/distortion. Not as a Brahmin/teacher of Vedas. I am not a Brahmin.

Neither it's my job nor I am interested in being Vedacharya or Vedanta Guru.
And how many of these "Shaiva , Vaishnava , Shakta sects who has their own take on the vaidika dharma" consider their Vishnu, Shiva, or Devi (Creator of creation) to be dead as dodo like inert matter which Bhutchaitanyavadis (Charvaks) do?

1/2

Get the point. If you consider consciousness(चेतना) born out of matter you are violating Vedas. Devi/Devta, even Ishwara, ये सब ज्ञान के बाद में ही आते है.
2/2
Does he say Vishnu as source and basis of the whole creation is जड़ like matter?

Tweets like these give me the impression that some people conflate my जड़वाद (materialism) vs चेतनवाद/अध्यात्मवाद point with Dvaita Vs Advaita.

Let me remind that Dvaita Vs Advaita is an intra-Vedic debate.
1/4
But जड़वाद (materialism) vs चेतनवाद/अध्यात्मवाद is not the same as Dvaita Vs Advaita. Dvaita doesn't violate the अपौरुषेयत्व of ज्ञान. Look at the concept of ब्रह्म in Dvaita Vedanta. I am quoting BNK Sharma.2/4
"There is nothing anthropomorphic about Madhva's conception of God as a Person, everything about whom is non-material"

This non-material ब्रह्म is the basis of creation.
"The Supreme Brahman itself is ultimately behind all these activities and of each and every one of them"3/4
Even Purva Mimansa, which doesn't concern with any anthropomorphic form of God, doesn't violate अपौरुषेयत्व of ज्ञान principle of Vedas. Hence it's considered Aastik (Vedic).
4/4
ज्ञान (Consciousness) को बनाने वाला कोई नही है और ज्ञान स्वयं है, यह किसी की रचना नही है अर्थात अपौरूषेय है इस बात को कहने वाला केवल और केवल वेद है. वेद-बाह्य और कोई धर्म,दर्शन, संप्रदाय या मत इस बात को नही कहता.यह वेद की विलक्षणता या निरालापन है.
1/9
इसी सत्य को प्रकट करनेके लिये वेदको अपौरुषेय कहते हैं. वेद का यह सिद्धांत (ज्ञान अपौरूषेय है) सारे वैदिक मतों, दर्शनों, और संप्रदायों के परमसत्य में निहित है. इसको माने बिना कोई वैदिक मत,दर्शन, अथवा संप्रदाय वैदिक हो ही नही सकता.
2/9
इसी अपौरुषेय ज्ञान को वेदांत के सारे संप्रदाय (अद्वैत, द्वैत, विशिष्टाद्वैत इत्यादि) अपने-अपने मतानुसार ब्रह्म के रुप में वर्णन करते हैं। इसी अपौरुषेय ज्ञान को उपासक विष्णु, शिव, देवी, गणेश, या सूर्य के रुप में अपना इष्ट मानकर उपासना करते हैं।
3/9
यही न्याय और वैशेषिक दर्शन में सृष्टि का निमित्तकारण ईश्वर है. यही सांख्य और योग में प्रकृति का प्रेरक पुरूष है.
4/9
अगर इस अपौरुषेय ज्ञान का आधार नही होता तो पूर्वमीमांसा में वर्णित अपुर्व की, जिससे जीव मृत्यु के बाद स्वर्ग सुख का उपभोग करता है, शरीर के नष्ट होने पर कोई स्थिति ही नही होती और वह चार्वाक दर्शन की आत्मा की तरह नष्ट हो जाता.
5/9
ब्रह्मा सृष्टिके समय पूर्व-पूर्व कल्पके वेदका ही यथा पूर्व उच्चारण करते हैं. इसलिये पुर्वमीमांसा का मत कि वेद शब्दराशि हैं और अपरिवर्तित रहते हैं (किसी की रचना नही हैं) अर्थात शब्दानुपूर्वी की नित्यता आत्मा/ज्ञानकी नित्यताका ही रुप है।
6/9
तो अगर कोई "एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति" के न्याय से जड़वाद (ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न होता है) को भी अगर वेद के एक मत के रुप में मानता है तो वह ज्ञान की अपौरुषेयता (वेद की अपौरुषेयता) को नही मानता और वह वेद विरोधी है.
7/9
चार्वाक मत (जो ज्ञान को जड़ पदार्थ से उत्पन्न मानता है) तो छोडो़, जैन और बौद्ध मत जो ज्ञान को क्रमश: देश और काल से उत्पन्न मानते हैं उनको भी वैदिक नही माना जाता. इसीलिये वो नास्तिक दर्शन कहे जाते हैं.
8/9
जिसने जड़ता से ज्ञान की उत्पत्ति मानी वह वैदिक नही हो सकता वह वेद की हत्या करने वाला अर्थात ज्ञान अपौरूषेय है वेद के इस मत का खंडन करने वाला "पाखंडी" है.

राइटविंग हैज नो आइडिया व्हाट काइंड ओफ सैक्रिलेज इट इज टू बी ए भूतचैतन्यवादी

"ग्यान अखंड एक सीताबर।" ~Tulsidas 😊
9/9
This tweet series as the English translation of my abv tweet series in Hindi.

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