पश्चिमी देशों में कच्चा खाना (raw food या uncooked food) उसे कहते हैं जो पकाया न गया हो. किंतु भारतीय भोजन में कच्चा खाना क्या है? दोनों में जमीन आसमान का अंतर है. पढ़िए ये रोचक श्रंखला!
2. वो खाना जिसे पहले उबाला जाता है और उसमें बाद में तड़का लगता है उसे कच्चा खाना कहते हैं. या फिर वो खाना जिसमे घी तेल न हो उसे भी कच्चा खाना कहा जाता है. दाल, चावल और रोटी खासतौर पर कच्चे खाने के हिस्से हैं.
3. ८०-९० के दशक में भारत में ज्यादातर घरों में सुबह के खाने में ही यह कच्चा खाना बनता था.
खिचड़ी कच्चे खाने का हिस्सा है क्योकि खिचड़ी में दाल चावल को पहले उबाला जाता है और तड़का बाद में लगता है. जबकि पुलाव पक्के खाने का हिस्स्सा है क्योंकि इसमें घी/तेल पहले डाला जाता है.
4. रोटी कच्चा खाना है जबकि परांठा पक्का खाना है.
पूड़ी, कचौड़ी आदि सभी पक्के खाने का हिस्सा हैं. लेकिन उड़द की दाल जब पिस गयी और कचौड़ी बनी तो दाल की कचौड़ी हो गयी पक्के खाने का हिस्सा.
5. मैं संयुक्त परिवार में जन्मीं और पली बढ़ी. हमारे घर मे हमारी दो दादी रहती थीं एक मेरे पापा की माँ और एक चाची यानि हमारी चाची दद्दा. हमारे घर में दो तरह के खाने बनते थे. एक था कच्चा खाना जो आमतौर पर रोजाना में सुबह बनता था और दूसरा पक्का खाना जो शाम को बनता था.
6. कच्चा खाना हमारी दोनों दादी बनाती थीं और उस वक्त किसी को भी चौके (जिसे हम अब रसोई कहते हैं) में जाने की इजाजत नही थी. हमारी दादी लोग नहा धोकर सूती साड़ी में चौके में काम करती थीं. उनके अलावा किचन में और किसी को भी घुसने की इजाजत नही होती थी.
7. सभी लोग चौके में नंगे पाँव ही जाते थे और जाड़े के दिनों में केवल लकड़ी की खड़ाऊ जो ख़ास तौर पर रसोई के इस्तेमाल के लिए आती थीं का प्रयोग किया जा सकता था. (यह खड़ाऊ वैसी ही होती थीं जैसी हम दूरदर्शन में रामायण में देखते थे.
8. राम जी की खड़ाऊ को गद्दी पर रखकर ही भरत जी ने 14 वर्ष राज-पाठ संभाला था.) यहाँ गौरतलब यह भी है कि इस बीच अगर कभी हमारी दादी को खाना बनाते बनाते बाथरूम जाने की जरूरत पड़ जाती थी तो वह दुबारा से नहाती थीं, फिर धुली सूती साड़ी बदलती थीं और वापस चौके में आती थीं.
9. जब एक बार हमारी दादी चौके में आ गयीं तो उसके बाद वो सारा खाना बनाकर सबको खिला कर और उसके बाद खुद खाकर ही चौके से बाहर निकलती थीं. यहाँ यह भी गौर करें कि हमारा लगभग 20 लोगों का परिवार था और 3-4 मेहमान तो बने ही रहते थे.
10. मुझे आज भी याद है खाना बनाना शुरू करने से पहले वो सब सामान प्लेट में निकाल लेती थीं, इसका मतलब यह हैं कि पूरा मसालदान आदि चूल्हे के पास नहीं जाता था बल्कि नमक हल्दी आदि सब पहले एक प्लेट में निकाले जाते थे.
11. खाना बनाने की सभी सामग्री जरूरत के हिसाब से निकाली जाती थी जिससे कि यह बचे नहीं. यह सब खाली सुबह के खाने के वक्त ही होता था जब कच्चा खाना बनना होता था. यह नियम शाम के खाने (पक्के खाने) के लिए नही था.
12. अब हम आपको यह भी बता दें कि कच्चे खाने के साथ इतना भेद भाव क्यों है? यह सब किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचने के लिए है. जब एक बार नहा कर केवल एक ही इंसान चौके के अन्दर गया तो बाहर से किसी भी बैक्टीरिया के चौके के अन्दर जाने की गुंजाईश कम हो जाती है.
13. किसी को भी चौके से अन्दर बाहर करने की इजाजत नहीं है. कपड़े भी सूती पहने हैं. चौके की दिशा ऐसी होती थी कि उसमें सूरज की किरणें आयें. और संक्रमण से बचाने के लिए ही कच्चा खाना हमेशा दोपहर का खाना होता है. परम्परानुसार कच्चा खाना शाम को नहीं बनाया जाता था.
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कई पाठक पूछते हैं #बिरयानी और #पुलाव में क्या अंतर है ?
आइए देखते हैं। थोड़ा लम्बा thread है।
१ बिरयानी को ज्यादा विधि पूर्वक बनाया जाता है, इसे बनाने में ज्यादा समय लगता है और इसे बनाना जटिल है. जबकि पुलाव को बनाना थोडा आसान है, और यह जल्दी बनता है.
२ बिरयानी को दो अलग बर्तनों में पकाया जाता है। मांस / सब्जी को अलग से आधा पकाते हैं और चावल को आधा अलग पकाते हैं. फिर दोनों को साथ में पकाते हैं. पुलाव ज्यादातर एक ही बर्तन में बनाया जाता है; मांस/सब्जी को घी/तेल में भून, फिर उसमें चावल डाल कर उसी बर्तन में पुलाव पकाया जाता है
३ बिरयानी अपने आप में सम्पूर्ण व्यंजन है जिसका साथ देता है रायता. जबकि पुलाव को सब्जी, करी आदि के साथ परोसा जाता है.
४ बिरयानी में ज्यादा मसाले इस्तेमाल किये जाते हैं जबकि पुलाव हल्के मसालों से बनता है. पहले के चित्र में देखिये हलके मसालों के साथ बना पनीर पुलाव.