भगवान #शिव को समर्पित, यह मंदिर कन्दुका पहाड़ी पर, तीन ओर से पानी से घिरा हुआ है।
यह स्तिथ मूर्ति, विश्व की दूसरी सबसे ऊँची शिव मूर्ति है जिसकी ऊँचाई १२३ फीट है।
यहाँ भगवान शिव का आत्म लिंग स्थापित है, जिस की कथा रामायण काल से है।
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छठी शताब्दी में निर्मित,"पंचभूत स्थलम" के पांच पवित्र शिव मंदिरों में से एक,यह #धरती तत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
सहस्त्र स्तंभों के विशाल मंडप से युक्त इस मंदिर का गोपुरम 59 मीटर है।
मंदिर की भीतरी दीवारों पर 1008 शिवलिंग सज्जित हैं।
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सन् १०२६ ई. में सोलंकी वंश के राजा भीमदेव द्वारा चालुक्य शैली में निर्मित, यह सूर्य मन्दिर भारतवर्ष में विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है।
मंदिर परिसर में गुढ़मंड़पा (बरामदा), गर्भगृह, रांगमंडप और एक पवित्र जलाशय हैं।
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सूर्य राजवंश के राजा ललितादित्य द्वारा 7वीं/8वीं शताब्दी में निर्मित, इस मंदिर में 84 स्तंभ हैं जो नियमित अंतराल पर रखे गए हैं।
द्वारमंडप तथा मंदिर के स्तम्भों की वास्तु-शैली रोम की #डोरिक शैली से कुछ अंशों में मिलती-जुलती है।
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मंदिर का निर्माण होयसल साम्राज्य के शासन के दौरान हुआ था।
यहां, उग्र नरसिम्हा, योग नरसिम्हा और वेणु गोपाल के रूप में भगवान् विष्णु के तीन भावों को खूबसूरती से दर्शाया गया है।
मंदिर में एकल नृत्यमंडप-तीनों शिखर को जोड़ता है।
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