इसको खोजते खोजते हमारा सामना ऐसे स्थिति से होता है, की हम आश्चर्य में पड जाते हैं। पहले हम स्वयं से पूछते हैं, यह कैसे संभव है ..?
डेढ़ हजार वर्ष पहले इतना उन्नत और अत्याधुनिक ज्ञान हम भारतीयों के पास था, इस पर विश्वास ही नहीं होता ..!
बारह ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग है सोमनाथ ..!
इस मंदिर के प्रांगण में एक स्तंभ (खंबा) है,यह #बाणस्तंभ नाम से जाना जाता है,यह स्तंभ कब से वहां पर हैं बता पाना कठिन है लगभग छठी शताब्दी से...,
‘आसमुद्रांत दक्षिण धृव पर्यंत
अबाधित ज्योतिरमार्ग ..’
इसका अर्थ यह हुआ ....
‘इस बिंदु से दक्षिण धृव तक सीधी रेखा में एक भी अवरोध या बाधा नहीं है ...!’ अर्थात ...
‘इस समूची दूरी में जमीन का एक भी टुकड़ा नहीं है ...!
कैसे संभव है ...?
और यदि यह सच हैं, तो कितने समृध्दशाली ज्ञान की वैश्विक धरोहर हम संजोये हैं ....!
(अर्थात उत्तर धृव भी है) यह भी ज्ञान था ..!
यह कैसे संभव हुआ ..?
इसके लिए पृथ्वी का ‘एरिअल व्यू’ लेने का कोई साधन उपलब्ध था ..?
अथवा पृथ्वी का विकसित नक्शा बना था ..?
सोमनाथ मंदिर के निर्माण काल में दक्षिण धृव तक दिशादर्शन, उस समय के भारतियों को था यह निश्चित है,
(आसमुद्रांत दक्षिण धृव पर्यंत,अबाधित ज्योतिरमार्ग..’)
जिसका उल्लेख किया गया है,वह ‘ज्योतिरमार्ग’ क्या है ..?
यह आज भी प्रश्न ही है ..!
क्योंकि सुदूर दक्षिण में जाने वाले मार्ग का उत्तर काल के थपेड़ों में कहीं लुप्त हो गया है ...!