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भारत मे वेदों का इतिहास-:

वेदों का रचनाकाल इतना प्राचीन है कि इसके बारे में सही-सही किसी को ज्ञात नहीं है। पाश्चात्य विद्वान वेदों के सबसे प्राचीन मिले पांडुलिपियों के हिसाब से वेदों के रचनाकाल के बारे में अनुमान लगाते हैं,जो अत्यंत हास्यास्पद है,
क्योंकि वेद लिखे जाने से पहले हजारों सालों तक पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाए जाते थे,इसीलिए वेदों को "श्रुति" भी कहा जाता है,उस काल में भोजपत्रों पर लिखा जाता था अत: यदि उस कालखण्ड में वेदों को हस्तलिखित भी किया गया होगा तब भी आज हजारों साल बाद उन भोजपत्रों का मिलना असम्भव है,
फिर भी वेदों पर सबसे अधिक शोध करने वाले स्वामी दयानंद जी ने अपने ग्रंथों में ईश्वर द्वारा वेदों की उत्पत्ति का विस्तार से वर्णन किया हैं.
ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के पुरुष सूक्त
(ऋग्वेद१०.९०,यजुर्वेद ३१,अथर्ववेद १९.६) में सृष्टी उत्पत्ति का वर्णन है कि परम पुरुष परमात्मा ने भूमि उत्पन्न की, चंद्रमा और सूर्य उत्पन्न किये, भूमि पर भांति भांति के अन्न उत्पन्न किये,पशु पक्षी आदि उत्पन्न किये,
उन्ही अनंत शक्तिशाली परम पुरुष ने मनुष्यों को उत्पन्न किया और उनके कल्याण के लिए वेदों का उपदेश दिया।
उन्होंने शतपथ ब्राह्मण से एक उद्धरण दिया और बताया
अग्नेर्वा ऋग्वेदो जायते वायोर्यजुर्वेदः सूर्यात्सामवेदः।।शत.।। प्रथम सृष्टि की आदि में परमात्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा इन तीनों ऋषियों की आत्मा में एक एक वेद का प्रकाश किया,
(सत्यार्थप्रकाश, सप्तमसमुल्लास, पृष्ठ 135)इसलिए वेदों की उत्पत्ति का काल मनुष्य जाति की उत्पत्ति के साथ ही माना जाता है,स्वामी दयानंद की इस मान्यता का समर्थन ऋषि मनु और ऋषि वेदव्यास भी करते हैं।
परमात्मा ने सृष्टी के आरंभ में वेदों के शब्दों से ही सबवस्तुओं और प्राणियों के नाम और कर्म तथा लौकिकव्यवस्थाओं की रचना की हैं.
(मनुस्मृति १.२१)स्वयंभू परमात्मा ने सृष्टी के आरंभ में वेद रूप नित्य दिव्यवाणी का प्रकाश किया जिससे मनुष्यों के सब व्यवहार सिद्ध होते हैं,
(वेद व्यास,महाभारत शांति पर्व २३२/२४)कुल मिलाकर वेदों, सनातन धर्म एवं सनातनी परम्परा की शुरूआत कब हुई। ये अभी भी एक शोध का विषय है,इसका मतलब कि हजारों वर्ष ईसा पूर्व भारत में एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी,और यहाँ के लोग पढ़ना-लिखना भी जानते थे,
इसके बाद भारतीय संस्कृति का प्रकाश धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैलने लगा। तब भारत का ‘धर्म’ ‍दुनियाभर में अलग-अलग नामों से प्रचलित था,अरब और अफ्रीका में जहां सामी, सबाईन, मुशरिक,यजीदी, अश्शूर,तुर्क,हित्ती,कुर्द,पैगन आदि इस धर्म के मानने वाले समाज थे,तो...
तो रोम रूस,चीन व यूनान के प्राचीन समाज के लोग सभी किसी न किसी रूप में हिन्दू धर्म का पालन करते थे,फिर ईसाई और बाद में दुनियाँ की कई सभ्यताओं एवं संस्कृतियों को नष्ट करने वाले धर्म इस्लाम ने इन्हें विलुप्त सा कर दिया,
मैक्सिको में ऐसे हजारों प्रमाण मिलते हैं जिनसे यह सिद्ध होता है,जीसस क्राइस्ट्स से बहुत पहले वहां पर हिन्दू धर्म प्रचलित था,
अफ्रीका में 6,000 वर्ष पुराना एक शिव मंदिर पाया गया और चीन,इंडोनेशिया, मलेशिया,लाओस, जापान में हजारों वर्ष पुरानी विष्णु,राम और हनुमान की प्रतिमाएं मिलना इस बात का सबूत है कि हिन्दू धर्म संपूर्ण धरती पर था,
उदाहरण के तौर पर एरिक वॉन अपनी बेस्ट सेलरपुस्तक ‘चैरियट्स ऑफ गॉड्स’ में लिखते हैं,
‘‘विश्व की सबसे प्राचीन सुमेरियन सभ्यता
(2300 B.C.)से भी प्राचीन लगभग 5,000 वर्ष पुराने महाभारत के तत्कालीन कालखंड में उन्नत सामाजिक व्यवस्था, उन्नत शासन प्रणाली, उन्नत भाषा आदि का विस्तारित विवरण एवं उक्त कालखंड के योद्धाओं द्वारा...
आज के अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्रों के समान ही अनेक शस्त्रों का प्रयोग केवल कल्पना मात्र नहीं हो सकता,वे किसी ऐसे अस्त्र के बारे में कैसे जानते थे जिसे चलाने से 12 साल तक उस धरती पर सूखा पड़ जाता,
ऐसा कोई अस्त्र जो इतना शक्तिशाली हो कि वह माताओं के गर्भ में पलने वाले शिशु को भी मार सके इसका अर्थ है कि ऐसा कुछ न कुछ तो था जिसका ज्ञान आगे नहीं बढ़ाया गया अथवा लिपिबद्ध नहीं हुआ और गुम हो गया ’‘प्राचीन भारत बहुत ही समृद्ध और सभ्य देश था,जहां हर तरह के हथियार इस्तेमाल किये जाते
तो वहीं मानव के मनोरंजन के भरपूर साधन भी थे ऐसा कोई खेल या मनोरंजन का साधन नहीं है जिसका आविष्कारभारत में न हुआ हो।
आज शेष विश्व में जितनी भी संस्कृतियाँ, सामाजिक व्यवस्थाएँ एवं धार्मिक मान्यताएँ प्रचलित हैं; प्राचीन भारतीय ग्रंथों का गहन अध्ययन करने से ये प्रमाणित हो जाता है कि ये सभी भारत में प्रचलित हिन्दू धर्म एवं संस्कृति से पूरी तरह प्रभावित हैं,
कई विश्व विख्यात विद्वानों एवं वैज्ञानिक शोधों ने ये प्रमाणित भी किया है।संस्कृत और अन्य भाषाओं के ग्रंथों में इस बात के कई प्रमाण मिलते हैं कि भारतीय लोग समुद्र में जहाज द्वारा अरब और अन्य देशों की यात्रा करते थे और सनातन धर्म एवं सभ्यता का परिचय कराते थे,
वहीं किसी भी ग्रंथ एवं उल्लेखों में अपने धर्म एवं सभ्यता को प्रचारित करने में किसी भी देश या मानव समूहों में किसी भी प्रकार की जबरदस्ती एवं बलप्रयोग का उल्लेख नहीं मिलता,
प्राचीन भारतायों का लम्बी यात्राएं कर विश्व के विभिन्न स्थानों पर जाना केवलमात्र शेष विश्व को सभ्यता से परिचय कराना था।विमानों से यात्रा करने की कई कहानियां भारतीय ग्रंथों में भरी पड़ी हैं जो इतनी अधिक बार उल्लेखित हुई हैं कि इसे असत्य नहीं माना जा सकता,
यहीं नहीं,कई ऐसे ऋषि और मुनि भी थे,जो योगबल से अंतरिक्ष में दूसरे ग्रहों पर जाकर पुन: धरती पर लौट आते थे।
"भारतवर्ष के वेदों का यशस्वी इतिहास"
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