आदि शंकराचार्यजी महाराज भ्रमण कर रहे थे।घुमते घुमते वो आज की जो वैष्णोदेवी की पीठ है उस तरफ आ पहुंचते है और तभी उनका स्वास्थ्य बिगडता है। इसलिए वैष्णोदेवी की गिरी कंदराओं में आराम करने के लिए रुकते है।
उसी समय बारिश चालु हो जाती है।
ग्वालन कहती है कि मैं तो जिसे जरुर हो वो खुद लेने आए तो ही गौरस देती हूं, तेरे गुरु को बोल खुद आकर गौरस ले जाए।
वे तो एकेश्वरवाद का सिद्धांत लेकर दुनिया को उपदेश देने निकले है।
शिष्य शंकराचार्य जी के पास जाकर बताता है कि ग्वालन कहती है कि तेरा गुरु कहां शक्ति में मानता है?
न जानामि दानं न च ध्यानयोगं,
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।
हे मां मैं अज्ञानी हूं और कुछ नहीं जानता हूं।
मां अब तो आप ही मेरी गति हो।
मां मैं अब आपकी शरण में हूं।
अद्वेतवाद के जनक शंकराचार्य को भी शक्ति को स्वीकार करना पड़ा है, तो हमारी-आपकी तो औकात ही क्या है?
हे मां आप ही सर्वस्व है..
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि,
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥
जय मां आध्याशक्ति🙏
मां शक्ति की उपासना के पर्व नवरात्रि की आप सभी को शुभकामनाएं 🙏🙏🙏