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एक बार की बात है।
आदि शंकराचार्यजी महाराज भ्रमण कर रहे थे।घुमते घुमते वो आज की जो वैष्णोदेवी की पीठ है उस तरफ आ पहुंचते है और तभी उनका स्वास्थ्य बिगडता है। इसलिए वैष्णोदेवी की गिरी कंदराओं में आराम करने के लिए रुकते है।
उसी समय बारिश चालु हो जाती है।
पंद्रह दिन तक शंकराचार्यजी अपने शिष्य के साथ वहां रहते है।एक तरफ खराब स्वास्थ्य और दूसरी तरफ बारिश की वजह से पंद्रह दिन से खाने के लिए अन्न का दाना भी नहीं मिला।शंकराचार्य का शरीर कमजोर हो जाता है,खडा होने की शक्ति भी नहीं रहती।उसी वक्त वहां से एक ग्वालन गोरस बेचने के लिए आती है।
उस ग्वालन की आवाज सुनकर शंकराचार्य अपने शिष्य से ग्वालन से थोडा गौरस लाने को कहते है।शिष्य जाता है और ग्वालन से कहता है कि मेरे गुरूजी के लिए गौरस लेने आया हूं।
ग्वालन कहती है कि मैं तो जिसे जरुर हो वो खुद लेने आए तो ही गौरस देती हूं, तेरे गुरु को बोल खुद आकर गौरस ले जाए।
शिष्य शंकराचार्य के पास जाकर ये बात बताता है। शंकराचार्य शिष्य से कहते है कि जा उसे विनती कर कि मेरे गुरु बिमारी की वजह से खुद नहीं आ सकते और गौरस देने की विनती की है। शिष्य ग्वालन के पास जाकर गुरु की न आने की वजह बताता है और गौरस देने की विनती करता है।
यह सुनकर ग्वालन हंसने लगती है और कहती है कि तेरे गुरु को बोल कि वो कहां किसी शक्ति में मानते है?
वे तो एकेश्वरवाद का सिद्धांत लेकर दुनिया को उपदेश देने निकले है।
शिष्य शंकराचार्य जी के पास जाकर बताता है कि ग्वालन कहती है कि तेरा गुरु कहां शक्ति में मानता है?
यह सुनते ही शंकराचार्य तुरंत खडे होकर दौड़ते है कि यह कोई ग्वालन नहीं बल्कि ये तो मैं जिसका विरोध करता हूं वह अखिल ब्रह्माण्ड की जननी ही है। शंकराचार्य ग्वालन के पैर में गिर जाते है और कहते है,
हे मां...
न जानामि दानं न च ध्यानयोगं,
न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम्।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगम्
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।

हे मां मैं अज्ञानी हूं और कुछ नहीं जानता हूं।
मां अब तो आप ही मेरी गति हो।
मां मैं अब आपकी शरण में हूं।
शंकराचार्य जी महाराज मां की अभ्यर्थना में भवान्यष्टकम् कहते है और उसके बाद देव्यपराध क्षमापन स्तोत्र की रचना करते है।
अद्वेतवाद के जनक शंकराचार्य को भी शक्ति को स्वीकार करना पड़ा है, तो हमारी-आपकी तो औकात ही क्या है?

हे मां आप ही सर्वस्व है..
विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे,
जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि,
गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि॥

जय मां आध्याशक्ति🙏

मां शक्ति की उपासना के पर्व नवरात्रि की आप सभी को शुभकामनाएं 🙏🙏🙏
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