“अरे बुढिया तू यहाँ न आया कर, तेरा बेटा तो चोर-डाकू था, इसलिए #गोरों ने उसे मार दिया“
जंगल में लकड़ी बीन रही एक मैली सी धोती में लिपटी बुजुर्ग महिला से वहां खड़े भील ने हंसते हुए कहा.
“नहीं, #चंदू ने आजादी के लिए कुर्बानी दी है।“ बुजुर्ग औरत ने गर्व से कहा।
उस बुजुर्ग औरत का नाम #जगरानी_देवी था और इन्होंने पांच बेटों को जन्म दिया था, जिसमें आखरी बेटा कुछ दिन पहले ही शहीद हुआ था।
उस बेटे को ये माँ प्यार से #चंदू कहती थी और दुनियां उसे “ #आजाद “ जी हाँ ! #चंद्रशेखर_आजाद के नाम से जानती है।
हिंदुस्तान आजाद हो चुका था, आजाद के मित्र #सदाशिव_राव एक दिन आजाद के माँ-पिता जी की खोज करते हुए उनके गाँव पहुंचे।

आजादी तो मिल गयी थी लेकिन बहुत कुछ खत्म हो चुका था। चंद्रशेखर आज़ाद की शहादत के कुछ वर्षों बाद उनके पिता जी की भी मृत्यु हो गयी थी।
आज़ाद के भाई की मृत्यु भी इससे पहले ही हो चुकी थी।अत्यंत निर्धनावस्था में हुई उनके पिता की मृत्यु के पश्चात आज़ाद की निर्धन निराश्रित वृद्ध माताश्री उस वृद्धावस्था में भी किसी के आगे हाथ फ़ैलाने के बजाय जंगलों में जाकर लकड़ी और गोबर बीनकर लाती थी
जुलूस पर पुलिस ने #लाठी_चार्ज कर दिया।
सैकड़ों लोग घायल हुए, दर्जनों लोग जीवन भर के लिए अपंग हुए और कुछ लोगों की मौत भी हुई।
(हालांकि मौत की पुष्टि नहीं हुई।)
चंद्रशेखर आज़ादकी माताश्रीकी मूर्ति स्थापित नहीं हो सकी।आजाद हम आपको कौनसे मुंहसे आपको श्रद्धांजलिदें,जब हम आपकी माताश्रीकी 2-3 फुटकी मूर्तिके लिए उस देशमें 5 फुट जमीनभी न दे सके?जिस देशके लिए आपने अपने प्राणोंका बलिदान दे दिया उसी देशने आप सभी क्रांतिकारियों का अपमान किया है।

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More from @drjayashukla

Aug 6, 2022
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग+त्रेतायुग+ द्वापरयुग+कलियुग=1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )
सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।
Read 20 tweets
Aug 3, 2022
उपभोक्तावाद की हकीकत
1.सर में भयंकर दर्द था सो अपने परिचित केमिस्ट की दुकान से सर दर्द की गोली लेने रुका।
दुकान पर नौकर था, उसने मुझे गोली का पत्ता दिया,
तो उससे मैंने पूछा गोयल साहब कहाँ गए हैं,
तो उसने कहा साहब के सर में दर्द था,
*सो सामने वाली दुकान में कॉफी पीने गये हैं।*
अभी आते होंगे!

मैं अपने हाथ मे लिए उस दवाई के पत्ते को देखने लगा.?
🤔🤔
2.माँ का ब्लड प्रेशर और शुगर बढ़ा हुआ था,सो सवेरे सवेरे उन्हें लेकर उनके पुराने डॉक्टर के पास गया।
क्लिनिक से बाहर उनके गार्डन का नज़ारा दिख रहा था ,
जहां डॉक्टर साहब योग और व्यायाम कर रहे थे।
मुझे करीब 45 मिनिट इंतज़ार करना पड़ा।
Read 15 tweets
Sep 29, 2020
प्रेम रस में उलाहना या रूठ जाना जायज सी बात है।पर प्रेम में उलाहना एक गहन अवस्था है,इसमें आंतरिक पीड़ा है जिससे अपने प्राणों से प्रिय वह प्रियतम,जिनके लिये किसी अन्य के द्वारा कुछ सुनते ना बने,उनसे ही मान करना कुछ उलाहना देना भी सहज भाव नही,प्रेम है तो सहज नही,
वैसे तो हम सब किसी न किसी की निंदा स्तुति करते ही है न, पर प्रियतम की निंदा स्तुति दोनों ही असहज है । फिर भी उलाहना का यह अर्थ नही कि रोष में प्रकट दोष उनमें है ही , उलाहना इसलिये प्रेमी देते है क्योंकि उसमें पीड़ा है , मिलन तो हो गया अब इसमें गाढ़ता हेतु रस विच्छेद हो ,
जिससे अन्तः वेदना बढ़े कि मैंने ऐसा क्यों किया और प्रेम रस की वृद्धि हो ।
यह मिलन में वियोग की भावना सा ही उद्दीपन देता है । अतः मान और उलाहना प्रेम वर्धक है ।
वास्तव में प्रेमी स्तुति ही नही कर पाता ,
Read 5 tweets
Sep 26, 2020
में अपने बचपन का
ढूँढ रहा गाँव।।
माटी का घर,
गाँव का शहर
कच्ची पगडंडी,
नाला नहर
खपड़ा की छत,
छप्पर दालान
बैंठक में बाबूजी,
बाँट रहे ज्ञान
स्वागत में आगत के,
थिरक रहे पाँव।।1
बौर लगे आम,
आँधी की रात
भोर भये चुनना,
फूल की बारात(भर परात)
बांसों के झुरमुट,
बबूलों के वन
निर्गन्ध सेमर,
महकाये मन
तन मन में मौज भरे,
कागज की नाव।।2
डाल पर पंछी,
करते हैं रास
रात चुवे महुवा,
टप टप बिन्दास
जामुन भी गोरी से,
खाकर के मार
अँचरा में बन गई,
एक उपहार
कौवों की पाँतें,
करें जहाँ कांव।।3
Read 10 tweets
Sep 23, 2020
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है.!
जन्मदिन / रामधारी सिंह 'दिनकर' (23 सितंबर)
दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को सिमरिया, मुंगेर में हुआ ।इनके पिता रवि सिंह किसान थे । दिनकर जब दो बर्ष के थे तो इनके पिता का देहवसान हो गया ।
गाँव के प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिकशिक्षा व मोकामाघाट से हाई स्कूल करके 1928 में उन्होने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में बी. ए. ऑनर्स किया।अगले ही वर्ष एक स्कूल में यह 'प्रधानाध्यापक' नियुक्त हुए,1934 में बिहार सरकार के अधीन इन्होंने 'सब-रजिस्ट्रार' का पद स्वीकार कर लिया।
लगभग नौ वर्षों तक वह इस पद पर रहे ,स्वाधीनता के बाद वे एलएस कालेज के हिन्दी विभाग में विभागाध्यक्ष नियुक्त होकर मुज़फ़्फ़रपुर आए । 1952 में उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए।
Read 11 tweets
Sep 12, 2020
जिस जगत में हम रहा करते है उसे हम लौकिक जगत के नाम से संबोधन देते है..
इसी प्रकार भाव से ओत प्रोत भावी (भक्त) का भी अपना एक विलक्षण (बहुत ही अलग) भाव जगत है..
वह भाव जगत जिस में वह अपने प्रेमास्पद (जिसके प्रति वह भाव रखता है) जो की श्री कृष्ण या अन्य भगवान् है..
उन अविनाशी से वह कुछ चरणों (स्टेज) में प्रेम करने लगता है..

जो है..

1-प्रेम..
2-आसक्ति..
3-व्यसन..

वस्तुतः प्रेम, प्रेमी और प्रेमास्पद यह तीनों एक ही रस के तीन खंड है..

1-प्रेम--
इस चरण में प्रेमी प्रेमास्पद से प्रेम के आनंद का अनुभव करते हुए संसार से भी जुड़ा हुआ रहता है..
2-आसक्ति--
यह वह दशा है जिसमे प्रेमी किसी भी कार्य को प्रेमास्पद "से" जोड़ कर ही कार्य को करने में रूचि रखता है..

3-व्यसन---
इस अवस्था के आते ही प्रेमी का सब कुछ जैसे स्वतः ही छूटने लगता है..
उसे केवल ध्यान रह जाता है तो बस अपने प्रेमास्पद का..
Read 8 tweets

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