तिरछी टोपी वाले उस आजादी के मतवाले की छवि पूरे देश में जानी है.
अन्य क्रांतिकारियों के बारे में कितना कम जानते हैं हम?
आज बात करते हैं मां भारती के ऐसे ही दो सपूतों सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु की.
@Sheshapatangi
*HRSA - हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
उनका जन्म 15 मई 1908 को लुधियाना में हुआ।
23 मार्च 1931 को फांसी के कुछ दिन पहले गाँधी जी को अपने पत्र में सुखदेव ने लिखा।
25 आरोपियों में भगत सिंह 12वें और राजगुरु 20वें नंबर पर थे।
फैसले का शीर्षक था..
लाहौर ट्रिब्यूनल
(अध्यादेश संख्या III,वर्ष 1930 के अन्तर्गत गठित)
सत्ता(क्राउन)-शिकायतकर्ता
बनाम
सुखदेव एवं अन्य अभियुक्त गण।
tribuneindia.com/2007/20070513/…
लाहौर कांड का फैसला उन्हें एक नई ऊँचाई प्रदान करता है।
फैसला मामले में सुखदेव की भूमिका को रेखांकित करता है जिसके अनुसार सुखदेव इस घटना का दिमाग कहे जा सकते हैं।
हत्या के बाद वहाँ से भागना हमारी योजना में नहीं था।
हमारे कार्य सदैव लोगों के दुख का प्रतिकार करने के लिए थे।हम लोगों में क्रांतिकारी सोच जगाना चाहते थे और ऐसी सोच का प्रदर्शन अधिक महान लगता यदि उसे कोई फांसी पर चढ़ने वाला कहता।
गाँधी जी को लिखा सुखदेव का पत्र उनके आदर्शों का उचित प्रतिबिम्ब था।
"क्रांतिकारियों का ध्येय समाजवादी गणतंत्र की स्थापना है।"
मैं आपको बताना चाहता हूँ कि सच इसके ठीक विपरीत है।वे अपना उत्तरदायित्व जानते हैं और रचनात्मक आदर्श रखते हैं।
बहरहाल गाँधी जी ने इरविन के साथ समझौता किया और इन लोगों के लिए क्षमा दान की माँग नहीं की।
gandhiheritageportal.org/gandhi-irwin-p…
![Image](https://pbs.twimg.com/media/EYJSOYeU8AAfN3g.jpg)
यह लिंक इन क्रांतिकारियों के बचाव में गाँधी जी की उदासीनता बताता है।
गाँधी इरविन समझौते के बिंदु सं.4 को दो बार पढ़ें।
हाँ @nytimes में जरूर छपा।
#वंदेमातरम
nytimes.com/1931/03/26/arc…
![Image](https://pbs.twimg.com/media/EYJR0YtU8AEWbD4.jpg)