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May 30, 2020 8 tweets 5 min read Read on X
मन बड़ा दुःखी होता है जब लोगो के मुँह से हमारे #941Days से लंबित वेतन समझौते को लेकर बैंकर्स पर लालची होने का आरोप सुनता हूँ। मेरा उन सभी लोगो से कहना है कि ये #941Days दिन के हिसाब से देखने पर भले ही आप को कम समय लगे पर जब यही #941Days जब ढाई साल से अधिक बनता है तो बैंकर्स का
खून जलता है। आप की जानकारी के लिए बता दूं कि एक वेतन समझौते की अवधि 5 साल या 1826 दिन होती है पर ये समझौता अपनी निर्धारित तिथि से आज तक #941Days लंबित है। मेरा आप सभी से ये प्रश्न है कि क्या विश्व मे या भारत देश मे ये महामारी की स्थिति पिछले #941Days से है यदि नही तो सरकार ने
हमारी जायज़ माँगो को #941Days से लटका क्यूँ रखा हैं? इतने समय के बाद भी ये नही पता कि उस इंतज़ार का अंत कब होगा? आप को ये भी बताना चाहूंगा कि अगला वेतन समझौता 1 नवंबर 2022 से प्रस्तावित है परंतु जब 1 नवंबर 2017 से होने वाला वेतन समझौता #941Days में नही हुआ तो 2022 के बारे में बात
करना तो खुली आँखों से सपना देखने जैसा होगा।
अगर अपने हक की लड़ाई लड़ने को आप लालच कहते है तो हाँ हम है लालची पर किसी के कहने से हम अपने हक की लड़ाई नही छोड़ेंगे नही तो ये समझौता #941Days से लटका है और अगले समझौते को तो ये मिटा ही देंगे। वेतन समझौता महँगाई दर से हिसाब से वेतन में
वृद्धि करने के लिए होता है कोई खैरात नही देता। जिस प्रकार निजी क्षेत्र में सालाना अप्रैज़ल होता है ना यहाँ 5 साल में होता है किन्तु ये 5 साल कागज में ही होते है वास्तिवकता में तो 5 साल बाद IBA ओर UFBU जागते है और हर बार 800 से अधिक दिन की देरी होती है जैसे इस बार #941Days
प्रभावी रूप से लागू होने में तो 7 साल से अधिक लग जाते है और वो भी महंगाई दर के अनुरुप नही होता। 7%/वर्ष भी महंगाई दर मान ले तो 5 साल में 35 % साधारण रूप से और चक्रवृद्धि दर करीब 40% होती है परंतु 5 साल की अवधि के बाद प्रारंभ हुई वार्ता जो #941Days के बाद भी 14% तक पहुँची हैं
कहने को तो बहुत कुछ है किन्तु अगर सब कुछ लिखू तो पूरी रात लिखता रहूँ ओर ट्विटर की थ्रेड की सीमा खत्म हो जाये। अंत मे इतना ही कहूंगा कि 60 दिन में लोग सब लोग तड़प उठे और हम तो #941Days से अपने उचित वेतनमान के लिए लड़ रहे है और ना जाने आगे कब तक लड़ेंगे लेकिन इतना तय हैं ये लड़ाई
अब #941Days जैसे किसी विलंब से नही हारेगी
अब बैंकर्स लड़ कर भी लेगा

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Aug 12, 2021
साहब क्या करते है किसी को समझना नही है बस हाथ बांध के खड़े हो जाना और उनके आदेश को ब्रह्म वाक्य मान पूर करना है चाहे उस से राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान ही क्यूं ना हो...
अब साहब ने राष्ट्रगान रिकॉर्ड करके अपलोड करने का टास्क दिया है और उसका टारगेट पूरा करने के लिए बकायदा बैंको और
अन्य सरकारी संस्थानों को बकायदा आदेश दिया है कि सभी कर्मचारियो को राष्ट्रगान रिकॉर्ड करना है और सर्टिफिकेट की कॉपी head office के जरिए साहब तक भेजनी है लेकिन साहब ब्रांडिंग के चक्कर ये भूल गए की आप की वेबसाइट में जिस पर राष्ट्र गान रिकॉर्ड करना है उस में फ्रंट कैमरा ही प्रयोग हो
सकता है और फ्रंट कैमरा इस्तेमाल करने पर आप सावधान की मुद्रा में खड़े नही हो सकते है। अब या तो राष्ट्रगान सावधान की मुद्रा में नही गाया जायेगा या हमे अपने head office का आदेश ना मानने की स्तिथि में जवाब देना पड़ेगा।
अब नौकरी देश भक्ति से उपर निकल गई और हमने भी रिकॉर्ड कर लिया
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Feb 3, 2021
प्रधानमंत्री जी के नाम एक जागरूक नागरिक के नाम खुला पत्र,

माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी,

विषय: सरकारी संस्थानों के निजीकरण के दूरगामी प्रभावों की ओर ध्यानआकर्षण

जैसा की आम बजट में वित्त मंत्री जी ने एक बार फिर सम्पूर्ण निजीकरण की ओर कदम बढ़ाते हुए 2 सरकारी बैंकों
और 1 सरकारी सामान्य बीमा कंपनी के निजीकरण की घोषणा की जिस से बैंकिंग और बीमा के क्षेत्र में कार्यरत लोगो को अपना भविष्य अंधेरे में दिख रहा है।
जैसा कि आपने अपने कार्यकाल में कई सरकारी संस्थानों में विनिवेश और विदेशी निवेश के जरिए निजी भागीदारी को बढ़ावा दिया है।
मै इस देश का एक जागरूक नागरिक होने के कारण आप का ध्यान निम्नलिखित बिंदुओं की ओर आकृष्ट करना चाहता हू.

1. आखिर क्यूं आज तक सर्वश्रेष्ठ शिक्षा संस्थान IIT और IIM है जबकि कोई निजी संस्थान नहीं?
2. आखिर क्यूं इस देश का सर्वश्रेष्ठ अस्पताल आज भी AIIMS है नाकी कोई निजी हस्पताल?
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Sep 28, 2020
आज बैंक में अफसर बने हुए 5 साल हो गए, जब बैंक भर्ती हुए तो एक बात समझी थी कि बैंक के लिए काम करना है और जनता की सेवा करनी है लेकिन आज 5 साल बाद इतना तो समझ आ गया कि जनता सेवा नहीं चाहती है वो तो केवल अपना काम चाहती है चाहे नियम विरूद्ध ही क्यो ना हो और हमे बैंक के लिए नहीं सरकार
के लिए काम करना है चाहे बैंक के लिए हानिकारक ही क्यों ना हो वो काम। सरकार ने हम से अपने वोट बैंक की राजनीति सधवानी है और पब्लिक कि नजर में तो हम मुफ्तखोर है ये अलग बात है कि हम सब से कम पारिश्रमिक पाने वाले लोग है और सब से ज्यादा पब्लिक की सीधी सेवा करने वाले भी। हम दुर्गम से
दुर्गम क्षेत्र में भी जनता को सेवा देते है। आज आप को एक राज़ की बात बताता हूं क्यूं जनता हमे मुफ्त की तनख्वाह लेने वाले और घूसखोर समझती है। एक लड़का जो 100 सीसी की बाइक चलाता था बैंक ज्वाइन करने के कुछ समय बाद एक बुलेट या पल्सर के लेता है क्यो की 100 सीसी की बाइक तो पापा के नाम
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Sep 25, 2020
मेरा सभी से निवेदन है कि पोस्ट पूरा पढ़े। ज्यादातर लोग बड़े बड़े पोस्ट पढ़ते ही नहीं है या तो नजरअंदाज कर देते है या बिना पड़े लाइक कर के चले जाते है।निजीकरण ये एक ऐसा शब्द है जिसने आज भारत को दो भागो में बांट दिया है एक वो जो इसका समर्थन करते है और दूसरे वो जो इसका विरोध करते है
किसी का समर्थन या विरोध करना आपकी अभिव्यक्ति की स्वन्त्रता है लेकिन ये तार्किक होना चाहिए ना कि अंधा विरोध या समर्थन।परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है तो परिवर्तन तो होंगे लेकिन किसी भी वर्तमान व्यवस्था में होने वाले परिवर्तन यह देख कर होने चाहिए की वर्तमान व्यवस्था आखिर क्यों लागू की
गई थी? उसका आधार क्या था?हवाई यात्रा का विकल्प तो कब से है लेकिन इसमें केवल आरक्षित श्रेणी में यात्रा करने का ही विकल्प है और वो भी कितना महंगा है ये आप और हम सब जानते ही है। ये सच है कि आज बहुत से लोग हवाई यात्रा करते है लेकिन उन भारतीयों का क्या होगा
Read 10 tweets
Sep 20, 2020
सरकारी संस्थानों का निजीकरण सही है या गलत?
आज नगर निगम का दफ्तर इतना सजा हुआ था जैसे या तो किसी वरिष्ठ अधिकारी का दौरा हो या किसी वरिष्ठ अधिकारी की सेवानिवृत्ति कार्यक्रम. मन नहीं माना तो मैंने जाकर खुद ही पूछ लिया एक नगर निगम के एक कर्मचारी से
" भाई ये नगर निगम कार्यालय इतना सजाया क्यूं गया है? क्या कोई अधिकारी या नेता दौरे पर है या कोई वरिष्ठ अधिकारी की सेवानिवृत्ति का कार्यक्रम है?" उस व्यक्ति ने जो उत्तर दिया उस उत्तर को सुनकर में सन्न रह गया। उसने कहा, " आज एक महिला सफाई कर्मी का सेवानिवृति कार्यक्रम है
ये उत्तर सुनकर लगा आखिर उस सफाईकर्मी की ऐसी क्या उपलब्धि है जो पूरा नगर निगम कार्यालय सजाया गया है क्योंकि हर महीने कोई ना कोई सेवानिवृत होता ही है.
तभी 3 गाड़ियां आकार वहाँ आकार रुकी जिसमें एक नीली बत्ती वाली गाड़ी भी थी जो कि डीएम सीवान की थी और बाकी 2 गाड़ियों से एक डॉक्टर
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Sep 18, 2020
साभार एक फेसबुक मित्र की कलम से

#सरकारी बनाम #निजीकरण। (विचारों का तारतम्य न खोजे, जो महसूस किया वैसा लिख रहा हूँ।)

भारत में व्यक्ति पूजा एवं उनका #महिमामंडन भी खूब होता है तथा साथ ही कुछ काले धब्बों को दिखाकर एक अच्छी-खासी #संस्था का #मानमर्दन भी खूब होता है
जैसाकि वर्तमान में सरकारी संस्थाओं के बारे में किया जा रहा है।

बहुसंख्यक अपने दुख से दुखी नहीं होता है अपितु दूसरों को सुखी देखकर ज्यादे दुखी होता है और जनता की इसी दुर्बलता भरी भावना का लाभ उठाते हुए सरकारें अपनी गलत नीतियों को enforce कराती हैं
क्योंकि बहुसंख्यक गलत होता हुआ देखते हुए भी सरकार के गलत नीतियों के समर्थन या मौन समर्थन में होता है।
नोटबंदी से अधिकतर इस बात से खुश थें कि हमारा क्या जायेगा?, जिसके पास है वही तो बर्बाद होगा।
#पेंशन बंद होने से बहुसंख्यक इस बात से खुश हैं कि कौन सी हमको मिल रही थी?
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