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बीते 5 जून को 1985-88 के बीच दिल्ली पुलिस के कमिश्नर रहे वेद प्रकाश मारवाह का 87 वर्ष की आयु में गोवा में निधन हो गया है। वेद मारवाह हमेशा देश के बेहतरीन पुलिस अधिकारियों में गिने जाएंगे। उनके जीवन के कुछ प्रसंगों की रेहान भाई चर्चा करते हैं।
अप्रैल 1985 में दिल्ली के पुलिस कमिश्नर का पद संभालने के कुछ महीनों के अंदर ही उन्होंने गृह सचिव सी.जी. सोमैया से मिलने का समय माँगा।
सोमैया से मिलने पर उन्होंने शिकायत की कि वो गृह मंत्री बूटा सिंह से परेशान हैं।
क्योंकि वो अपने कुछ लोगों को दिल्ली के महत्वपूर्ण थानों में पोस्टिंग के लिए ज़ोर डालते रहते हैं. ये वो लोग हैं जिन्हें पुलिस महकमे में ईमानदार नहीं माना जाता। सोमैया भी अपनी ईमानदारी के लिए मशहूर थे।
उन्होंने मारवाह को सलाह दी कि वो ऐसे किसी दबाव को नहीं माने और गृह मंत्री बूटा सिंह से साफ़ कह दें कि वो राजनीतिक रूप से संवेदनशील दिल्ली की क़ानून और व्यवस्था के लिए ज़िम्मेदार हैं और उन्हें सुनिश्चित करना है कि महत्वपूर्ण थानों पर अच्छे अफ़सर ही तैनात किए जाएं।
सोमैया अपनी आत्मकथा 'द ऑनेस्ट ऑलवेज़ स्टैंड अलोन' में लिखते हैं,"इसके तीन महीने बाद गृह मंत्री ने मुझसे अचानक कहा कि अच्छा हो आप मारवाह का तबादला कर दें। उनकी जगह पंजाब कैडर के किसी IPS अफ़सर को लाइए ताकि आतंकवाद विरोधी काम में दिल्ली और पंजाब पुलिस के बीच बेहतर समन्वय हो सके।"
"मैंने उनसे कहा कि वेद मारवाह देश के बेहतरीन पुलिस अफ़सरों में से एक हैं और उन्होंने पहले से ही दिल्ली में आतंकवाद विरोधी सेल बना रखा है और उसका पंजाब में बने सेल से अच्छा तालमेल भी चल रहा है।"
"गृह मंत्री मेरे जवाब से ख़ुश नहीं दिखाई दिए और उन्होंने ये कह-कहकर बातचीत समाप्त कर दी कि इस पर वो फिर बात करेंगे।"
इस घटना के कुछ महीनों बाद बूटा सिंह ने ये मामला फिर उठाया। हुआ ये कि सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव भारत की सरकारी यात्रा पर आए।
राजीव गाँधी और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों ने पालम हवाई अड्डे पर उनका ज़ोरशोर से स्वागत किया।
तय किया गया कि उनकी मोटरों का काफ़िला पहले इंडिया गेट पहुंचेगा और वहाँ से राजपथ और रायसीना हिल होता हुआ राष्ट्रपति भवन जाएगा जहाँ गोर्बाचेव के ठहरने की व्यवस्था की गई थी।
राजीव गाँधी गोर्बाचेव के साथ उन्हीं की कार में बैठ कर आए।
वेद मारवाह ने विदेश राज्य मंत्री नटवर सिंह को अपनी कार में लिफ़्ट दी। मारवाह हवाई अड्डे पर सारी सुरक्षा व्यवस्था देख रहे थे। तभी उन्हें वहाँ विदेश राज्य मंत्री नटवर सिंह दिखाई दिए।
वेद मारवाह ने वो क़िस्सा सुनाते हुए बताया, "नटवर सिंह ने मुझसे कहा कि इस भीड़ में उनकी सरकारी कार नहीं दिख रही है। क्या आप मुझे अपनी कार में लिफ़्ट देकर साउथ ब्लॉक छोड़ सकते हैं क्योंकि मुझे गोर्बाचेव की यात्रा के सिलसिले में कुछ ज़रूरी काम करने हैं। मैं इसके लिए राज़ी हो गया।"
"मैंने नटवर सिंह को अपनी कार में बैठाया और अपने ड्राइवर और एस्कॉर्ट कार के ड्राइवर से कहा कि मुझे आईटीओ भवन के पास पुलिस मुख्यालय ले चलने से पहले नटवरजी को साउथ ब्लॉक छोड़ दो।"
बरसों बाद ये क़िस्सा याद करते हुए नटवर सिंह ने इंडिया टुडे में 'द रॉन्ग रोड' शीर्षक से एक लेख लिखा,
"मैं मारवाह को सेंट स्टीफ़न्स के दिनों से जानता था। उन्होंने मुझे कॉलेज यूनियन का अध्यक्ष बनवाने में बहुत मेहनत की थी। मैं उनसे लिफ़्ट इसलिए ली कि साउथ ब्लॉक तक तेज़ी से उनकी कार से ही पहुंचा जा सकता था क्योंकि आमतौर से पुलिस कमिश्नर की कार को ट्रैफ़िक लाइट पर रोका नहीं जाता है।"
साउथ ब्लॉक के जंक्शन पर तैनात पुलिसवालों ने पहले मारवाह की कार रोक दी लेकिन जब उन्होंने देखा कि ख़ुद वेद मारवाह कार में बैठे हुए हैं तो उन्होंने कार को आगे जाने दिया।
जब वो दाहिने मुड़े तो वो ये देखकर दंग रह गए साउथ ब्लॉक की तरफ़ से गोर्बाचेव की मोटरों का क़ाफ़िला चला आ रहा है।
मारवाह ने तुरंत अपनी कार रुकवा दी और उनके पीछे चल रही एस्कॉर्ट कार भी रुक गई। मारवाह ने अपने ड्राइवर से कार को रिवर्स करने के लिए कहा। लेकिन उनके ठीक पीछे भजन लाल की कार चल रही थी।
जब भजन लाल की कार को रिवर्स करने के लिए कहा गया तो उनके सुरक्षा गार्डों ने तुरंत उतर कर उनकी कार को अपने घेरे में ले लिया। उधर जब गोर्बाचेव के साथ चल रहे रूसी सुरक्षा गार्डों ने देखा कि आगे खड़े दो वाहन उनका रास्ता ब्लॉक कर रहे हैं तो वो हरकत में आ गए।
और उन्होंने किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए अपने हथियार निकाल लिए। इन तीन कारों के रुक जाने की वजह से गोर्बाचेव की कार का क़ाफ़िला धीमा पड़ गया।
वेद मारवाह ने मुझे बताया,"जब इन कारों का क़ाफ़िला मेरे पास से गुज़रा राजीव गांधी ने मुझे पहचान लिया। उन्होंने ग़ुस्से में मेरी तरफ़ इशारा किया और वो राष्ट्रपति भवन की तरफ़ बढ़ गए। मैंने नटवर सिंह को साउथ ब्लॉक में उनके दफ़्तर पर उतारा और अपने दफ़्तर चला गया।"
दोपहर के आसपास गृह सचिव सोमैया के पास गृहमंत्री बूटा सिंह का फ़ोन आया।
उन्होंने उन्हें आदेश दिया कि प्रधानमंत्री ने आदेश दिया है कि वेद मारवाह को तुरंत प्रभाव से सस्पेंड कर दिया जाए।
सी.जी. सोमैया अपनी आत्मकथा 'द ऑनेस्ट ऑलवेज़ स्टैंड अलोन' में लिखते हैं,"मैंने बूटा सिंह से पूछा कि वेद का कसूर क्या है तो उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया लेकिन उन्होंने कहा मैं मारवाह के सस्पेंशन ऑर्डर के मसौदे के साथ संसद भवन पहुंच जाऊं ताकि वो उस पर अपने दस्तख़त कर दें।"
"मैंने इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक एच.ए बरारी से फ़ोन कर पूछा कि माजरा क्या है? उन्होंने मुझे बताया कि साउथ ब्लॉक के पास तैनात इंस्पेक्टर ने उन्हें फ़ोन कर बताया है कि पुलिस कमिश्नर के वाहन से वीआईपी मोटरकेड के मूवमेंट में बाधा आई है।"
सौमेया ने तुरंत वेद को संदेश भेजा कि वो उनसे संपर्क स्थापित करें। आधे घंटे में वेद उनके पास पहुंच गए और उन्हें सारी कहानी सुना डाली। उन्होंने कहा कि अगर नटवर सिंह न होते तो वो इस सीन में कहीं नहीं आते। सोमैया ने नटवर सिंह को फ़ोन किया और उन्होंने भी इस कहानी की पुष्टि कर दी।
जब बूटा सिंह ने फिर दो बजे संसद भवन से सोमैया को फ़ोन कर पूछा कि वो मारवाह का सस्पेंशन लेटर लेकर उनके पास क्यों नहीं पहुंचे तो सोमैया ने सारी कहानी बताई और कहा कि इसमें वेद मारवाह की कोई ग़लती नहीं है।
ये सुनते ही बूटा सिंह सोमैया पर चिल्लाए और उन्हें धमकी दी कि अगर वो आधे घंटे में मारवाह का निलंबन आदेश लेकर उनके पास नहीं पहुंचे तो उन्हें प्रधानमंत्री ओर उनके आदेश न मानने के परिणामों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। ये कहकर उन्होंने फ़ोन का रिसीवर पटक दिया।
सोमैया लिखते हैं,"मैंने मारवाह को फ़ोन कर सलाह दी कि वो अगले दिन दफ़्तर न जाएं और एक दिन की कैजुअल लीव ले लें। इस बीच मैं प्रधानमंत्री से मिल कर उन्हें समझाने की कोशिश करता हूँ। मैं पूरी कोशिश के बावजूद प्रधानमंत्री से न मिल पाया क्योंकि वो गोर्बाचेव की यात्रा में बहुत वयस्त थे।
उसी दिन राष्ट्रपति गोर्बाचेव के सम्मान में दिन का भोज दे रहे थे।"
"मुझे पता था कि प्रधानमंत्री, कैबिनेट सचिव बी.डी देशमुख और प्रधानमंत्री की प्रधान सचिव सरला ग्रेवाल उस भोज में उपस्थित रहेंगे।
मैंने उन दोनों को फ़ोन कर सारी कहानी बताई और उनसे अनुरोध किया कि वो इस बारे में प्रधानमंत्री को बता दें और ये भी कह दें कि अगले दिन मैं ख़ुद उन्हें इस बारे में ब्रीफ़ करूँगा।"
उस भोज में नटवर सिंह भी थे. नटवर लिखते हैं,"प्रधानमंत्री ने मुझको देखते ही कहा आप इतना मासूम बनने की कोशिश मत करिए। सुरक्षा मानक तोड़ने के लिए रूसी कमांडो आपको गोली मार सकते थे। मैं सफ़ाई देना चाहता था लेकिन प्रधानमंत्री के ग़ुस्से को देखते हुए चुप हो गया।"
"मुझे बहुत कोफ़्त हुई कि मैंने बिना वजह वेद को मुश्किल में डाल दिया। बाद में जब PM का ग़ुस्सा शाँत हो गया तो मैंने उनसे कहा, अगर किसी को सज़ा मिलनी चाहिए तो मुझे मिलनी चाहिए। वेद का इसमें कोई कसूर नहीं है, इस बीच मैं लगातार वेद के संपर्क में रहा और उनसे बार-बार माफ़ी माँगता रहा।"
प्रधानमंत्री राजीव गाँधी तक गृह सचिव सोमैया का संदेश पहुंच गया और अगले दिन सोमैया ने ख़ुद जाकर उन्हें सारी बात बताई।
अगले दिन प्रधानमंत्री ने वेद मारवाह को बुलाकर उनका स्पष्टीकरण माँगा और उनकी बात सुनने के बाद उनको सस्पेंड करने का मौखिक आदेश रद्द कर दिया।
उसके बाद पुलिस में कई वर्षों तक अपनी सेवाएं देने के बाद वेद मारवाह 1990 में नेशनल सिक्योरिटी गार्ड के महानिदेशक पद से रिटायर हुए। बाद में उन्हें पहले मिज़ोरम और बाद में झारखंड का राज्यपाल बनाया गया।
इसके बाद जब भी नटवर सिंह की वेद मारवाह से मुलाक़ात हुई दोनों इस क़िस्से को याद कर कई बार हँसे लेकिन 1987 में ये हँसी की बात नहीं थी।
[समाप्त]
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