1/ 18: "अरे वो तो अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका की CIA हथियार भेजती थी। राजनेता चाहते ही नहीं थे कि जम्मू-कश्मीर में चीजें ठीक हों। हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे को सॉरी बोलें और आगे बढ़ें।"
2/ ये पंक्तियाँ याद हैं आपको? मुस्लिम अभिनेता और मुस्लिम अभिनेत्री को लीड रोल देकर कश्मीरी पंडितों की मुस्लिमों द्वारा नरसंहार को 'शिकारा' के माध्यम से पर्दे पर उतारने का दावा करने वाले विधु विनोद चोपड़ा के शब्द हैं ये। अमेरिका दोषी है, CIA दोषी है, राजनेता दोषी हैं,...
3/ ...फलाँ दोषी है...ऐसे प्रबुद्ध जनों की नज़र में सब दोषी हैं, सिवाए स्थानीय मुसलमानों के। क्या अमेरिका मुझे हथियार भेज देगा तो मैं पड़ोसियों को मार डालूँगा? अगर सॉरी ही बोलना है तो बलात्कारी और पीड़िता भी एक-दूसरे को सॉरी बोल कर निकल लेंगे इस हिसाब से। ये कैसा न्याय है?
4/ जम्मू और कश्मीर की आज ये स्थिति है कि कश्मीर में एक भी हिन्दू जनप्रतिनिधि नहीं है। एक सरपंच अजय पंडिता थे, उन्हें मार डाला गया। कॉन्ग्रेस के नेता थे। इससे पता चलता है कि आप उनकी नज़र में काफ़िर हो तो हो। आप कॉन्ग्रेस में हो या किसी भी पार्टी में, अगर आप हिन्दू हैं...
5/ ...तो उन्हें आपका कत्ल करने में कोई हिचक नहीं होगी। यही एक कारण पर्यापत है। बाकी सारी चीजें गौण हैं। उनके बूढ़े पिता ने कहा है कि अजय जनता के लिए काम करता था, बहादुर था- इसीलिए उसे आतंकियों ने पीठ पर गोली मारी, वो डरते थे उनके बेटे से। हिंदुओं को वो 'वाजिबुल कत्ल'...
6/ ...मानते हैं, अर्थात जिनकी हत्या की ही जानी चाहिए।
7/ उनका लक्ष्य पूरा हुआ। कश्मीर में कल को कोई भी हिन्दू नेता बनने से पहले 100 बार सोचेगा। इसमें ग़लती केंद्र सरकार और वहाँ के उप-राज्यपाल की भी है। पूरे कश्मीर में एक अकेला सरपंच था, वो सुरक्षा की माँग कर रहा था तो फिर इसमें देरी क्यों की गई? नया आतंकी संगठन अस्तित्व...
8/ ...में आ गया है। उसने ही जिम्मेदारी ली है। उसने कहा है कि किसी भी काफ़िर को बख्शा नहीं जाएगा। अजय पंडिता की लाश और उनकी ख़ून से लथपथ जनेऊ दिलोंदिमाग को सुन्न कर देने वाला दृश्य है।
9/ वो कहते हैं फलाँ को तुमने थप्पड़ मार दिया तो आतंकवादी बन गया। फलाँ को तुमने डरा दिया तो उसने हथियार उठा लिया। 30 साल पहले कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम मचा कर, महिलाओं के साथ बलात्कार कर के और उनकी संपत्ति हड़प कर भगा दिया गया। 30 साल से अपने ही देश में शरणार्थी की तरह...
10/ ...जी रहे बेघर कश्मीरी पंडितों में से कितने आतंकवादी बन गए? इसीलिए ये फर्जी बातें हैं कि सरकार ने ये किया, समाज ने ये किया, शिक्षा नहीं मिली, ये नहीं हुआ...तो आतंकवादी बन गए। शांतिपूर्ण प्रदर्शन 30 साल से कर रहे, कुछ नहीं मिला। हथियार न उठाने का ये घाटा भी है।
11/ अजय तो मुस्लिमों की ही सेवा कर रहे थे। हिन्दू तो अल्पसंख्यक हैं वहाँ। मुसलमानों के वोट्स से ही सरपंच बने थे। फिर भी मार दिया। क्योंकि हिन्दू थे। जैसा कि मैंने कहा कि यही मायने रखता है बस, बाकी चीजों का महत्व नहीं। असल में कश्मीरियत कुछ होता ही नहीं है। कश्मीरियत...
12/ ...का एक ही अर्थ है- वहाँ से हिंदुओं का समूल नाश। या तो आप जम्मू भागिए या फिर यहाँ रह कर मरिए। 1990 में भी सब कुछ काफी योजनाबद्ध तरीके से तैयार किया गया था। मस्जिदों से अनाउंसमेंट से लेकर हथियारों के जुटान और पंडितों की पहचान तक। जिन पड़ोसियों के साथ वो...
13/ ...हँसते-बैठते थे, उन्हीं पड़ोसियों, यहाँ तक कि महिलाओं ने भी इस नरसंहार में पूरा किरदार निभाया।
14/ ऐसा नहीं है कि सेना चुप बैठी है। 14 दिनों में 24 आतंकियों को मार गिराया गया है लेकिन समस्या आतंकी कम हैं और कश्मीरी नागरिक ज्यादा। एक-एक मुस्लिम नागरिक वहाँ का गद्दार है जो भारत का खा कर सेना को गाली देता है, अपने घर की लड़कियों तक से पत्थरबाजी कराता है, आतंकियों...
15/ ...को शरण देता है और हिंदुओं को मारने में उनकी मदद करता है।
16/ लेकिन ये भी सच्चाई है कि जिस कश्मीर से आज पंडितों को साफ कर दिया गया है, वो पंडितों का ही है। भगाने वालों के बाप का नहीं। कश्यप ऋषि के नाम पर कैस्पियन सागर और कश्मीर का नामकरण हुआ। उनके वंशजों ने वहाँ राज किया। भारत के सबसे प्राचीन जनपदों में से एक में बाहरी लोग...
17/ ...आ कर बस गए हैं और वहाँ के मूल निवासियों का नरसंहार कर के भगा रहे हैं। शायद कभी वो दिन आएगा जब कश्मीर में फिर से शंख फूँकते, झीलों के किनारे ध्यान करते और मंदिरों में आरती उतारते ब्राह्मण दिखेंगे। शायद...!! कश्मीर ब्राह्मणों का है।
18/ नोट: सफूरा जरगर वाले पोस्ट पर शांतिदूतों द्वारा गालियों की बौछाड और तगड़ी रिपोर्टिंग के बाद इसे 'माइक टेस्टिंग पोस्ट' समझें और उपस्थिति ज़रूर दर्ज कराएँ।
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If You Want to Be Reborn, You’ll Need China’s Permission!
It doesn’t really matter who the next Dalai Lama is. The real issue is that both Buddhism and India have already lost the battle for Tibet. Today, it’s all China—unchallenged and dominant.
In Tibetan Buddhism, the concept of “Tulku” refers to the reincarnation of lamas. After the death of a great or traditional lama, their reincarnation is identified, and thus the lineage continues. However, there is also the concept of “Ma-dhey Tulku”, which means a lama recognizing their own reincarnation while still alive.
The 14th and current Dalai Lama (spiritual name: Tenzin Gyatso) wants to identify his reincarnation during his own lifetime. That individual would become the 15th Dalai Lama. His aim is to complete this process while alive so that China doesn’t interfere after his death.
But here’s the twist: China will appoint a separate 15th Dalai Lama. China understands that the 90-year-old spiritual leader is a powerful symbol of unity for the Tibetan Buddhist community.
While China has full control over Tibet now, as long as the current Dalai Lama lives, resentment will persist among Buddhists.
China already has a plan.
Whether the Dalai Lama selects his successor during his lifetime or the process takes place after his death, China is determined to appoint its own Dalai Lama. This tactic may well succeed in fracturing the Tibetan Buddhist tradition.
The aging Dalai Lama has entrusted this task to his organization, the Ganden Phodrang Trust. In the past, he has shifted his stance on various issues—even going so far as to suggest dissolving the institution of the Dalai Lama altogether.
his trust will now consult with all sects within Tibetan Buddhism. But factionalism is inevitable.
There was already chaos in the 1990s over the selection of the Karmapa Lama.
The current Karmapa Lama, Ogyen Trinley Dorje (OTD), is seen as a puppet of China and lives in the U.S.
Our intelligence agencies have already issued warnings about him. Despite this, the Dalai Lama continues to recognize him.
On the other hand, Trinley Thaye Dorje also claims to be the 17th Karmapa and resides in India. For now, India is merely a spectator.
तेज प्रताप यादव बार-बार बृन्दावन क्यों जाते थे? इंस्टाग्राम पर वो मात्र 12 हैंडलों को ही फॉलो करते हैं, उनमें से एक ये है - 'ब्रज बेवरेजेस'।
ये अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर ताज़ा दूध, मिनरल वॉटर और फलों के जूस उपलब्ध कराने का दावा करता है। लेकिन, हम इस कंपनी की बात क्यों कर रहे हैं?
आइए, बताता हूँ।
सितंबर 2024 को ये कंपनी रजिस्टर की गई थी।
ये वही तेज प्रताप यादव हैं, पता भी देख लीजिए ताकि कोई शंका न हो।
ऐसा हो ही नहीं सकता है कि लालू यादव के परिवार में किसी को पता न हो कि मथुरा में तेज प्रताप यादव बिजनेस चला रहे हैं। सबकी मिलीभगत है, आज पोल खुल गई तो घर से निकालने का नाटक कर दिया।
लेकिन, असली चीज तो अब देखिए...
इस कंपनी में 2 डायरेक्टर हैं - एक तेज प्रताप यादव और दूसरी निशु सिंह।
वही निशु सिंह, जिनके साथ तेज प्रताप यादव के रिश्तों को लेकर अनुष्का ख़फ़ा हैं। वही अनुष्का यादव, जिनसे तेज प्रताप ने दूसरी शादी की, जिनके लिए चन्द्रिका राय की बेटी ऐश्वर्या राय को मारपीटकर घर से निकाल बाहर किया गया।
तेज प्रताप यादव और निशु सिंह मिलकर बृन्दावन में Braj Beverages नाम से आउटलेट चला रहे थे। क्या इसीलिए बार-बार तेज प्रताप यादव बृन्दावन जाते थे? क्या बाँसुरी बजाना और राधे-राधे करना इन चीजों को छिपाने के लिए एक बहाना भर था?
चूँकि राजदीप सरदेसाई और सागरिका घोष को मेरे साथ FIR-FIR खेलना है, इसीलिए ये बताना आवश्यक है कि इनके कारनामे ऐसे हैं कि इनपर अबतक सौ FIR हो चुकी होती और दोनों जेल की चक्की पीस रहे होते।
दोनों बड़े खानदान से आते हैं। एक के पिता बड़े क्रिकेटर थे और उनके नाम पर घरेलू ट्रॉफी खेली जाती है, दूसरे के पिता दूरदर्शन के सर्वेसर्वा थे। ऐसे में आप समझ सकते हैं कि Nepotism वाली इंडस्ट्री में ये लोग कैसे आगे बढ़े होंगे।
बाद में इन्होंने पत्रकारिता को क्या बनाकर रख दिया, ये किसी से छिपा नहीं है। तो चलिए, शुरू करते हैं...
हाल ही में राजदीप सरदेसाई ने PoK को पाकिस्तान को देने की वकालत की!
किसी अन्य देश में अपने देश के अभिन्न अंग को दुश्मन देश को सौंपने की बात करना देशद्रोह में आता और ये जेल में होता।
लेकिन, ये भारत है। इससे संस्थान स्पष्टीकरण तक नहीं माँगता। मजे ही मजे!
सागरिका घोष को देश की संस्थाओं पर भरोसा नहीं है।
'दीदी' को ख़ुश करने के लिए इन्होंने अनुमति न मिलने के बावजूद ECI के दफ़्तर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया। हाल ही में दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने सागरिका घोष को बेल बॉन्ड भरने का आदेश दिया है। ये न्यायपालिका का कितना सम्मान करते हैं, इसे इसी बात से समझ लीजिए कि ये कोर्ट में भी पेश नहीं हुईं।
सागरिका घोष, चुनाव आयोग पर तुम्हें अगर विश्वास नहीं है तो उसी प्रक्रिया से राज्यसभा सांसद क्यों बनी? इस्तीफा दो।
पत्रकार: The Wire का उमर राशिद (The Hindu और Outlook में भी काम कर चुका है)
पीड़िता का आरोप: 'प्रगतिशील पत्रकारिता' की आड़ में महिलाओं को फँसाकर यौन हिंसा करना उसका धंधा है
पीड़िता ने खुलासा किया है कि ये उसका पैटर्न है, जिसके तहत वो कई महिलाओं को अपना शिकार बना चुका है। पीड़िता ने लिखा, "ये लिखते हुए मैं काँप रही हूँ और रो रही हूँ। वो एक सीरियल यौन शोषक और बलात्कारी है। वो ख़ुद को जानवरों से प्यार करने वाला बताता है।"
अपनी मरी हुई माँ का सहारा लेकर भी वो महिलाओं को भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है। जब पीड़िता की इससे पहली बार बात हुई तो 'प्रगतिशील राजनीति' पर जमकर चर्चा हुई। इस गिरोह की नज़र में 'प्रगतिशील राजनीति' क्या है, समझ जाइए - मोदी को गाली देना, रोहिंग्या घुसपैठियों की पैरवी और राम मंदिर का विरोध। साथ ही 'साहित्य में रोमांस' पर भी चर्चा हुई।
पीड़िता को ऐसा लगा कि उमर राशिद उसे 'दिल्ली के प्रगतिशील सर्कल' में आगे बढ़ने में मदद करेगा।
"वो अपने खेल की शुरुआत महिलाओं को लोधी गार्डन में टहलने के लिए बुलाकर करता है।"
"वो प्रेस क्लब की बैठकों में मुझे बतौर 'ट्रॉफी फ्रेंड' ले जाता था। मैं शहर में नई थी, उससे बहुत छोटी थी - मुझे लगाए वो मुझे आगे बढ़ाएगा।"
"मुझे बार-बार शारीरिक रूप से धक्का दिया गया, मारा गया, थप्पड़ मारा गया, गला दबाकर लगभग मार ही डाला गया, और ऐसे तरीकों से शोषण किया गया जिन्हें शब्दों में बयान करना मुश्किल है। शारीरिक और यौन - दोनों ही स्तर पर। मुझे बार-बार असुरक्षित और जबरन सेक्स के लिए मजबूर किया गया।"
"उम्र राशिद ने मेरे साथ बार-बार रेप किया — एक बार नहीं, दो बार नहीं, बल्कि उस पूरे समय में जब मैं उसके साथ थी।"
"मुझे आज भी याद है कि मैं बार-बार सेक्स से इनकार करती थी, उसे साफ़-साफ़ 'ना' कहती थी, उससे भीख माँगती थी कि वह न करे, क्योंकि मैं हमेशा उसकी गुस्से की प्रतिक्रिया से डरी हुई थी। मैं बार-बार सोचती और इस चिंता में जीती रही कि कहीं वह फिर से मुझे पीट न दे, और वह बार-बार ऐसा करता भी था।"
"कई बार उसने मुझे जबरदस्ती सेक्स के लिए मजबूर किया, और उस दौरान मैं बीमार और पूरी तरह से अनिच्छुक होती थी। हर बार ओमर मुझे माफ़ी माँगने के लिए मजबूर करता था, जबकि वह सामने बैठकर हँसता और खाना खाता, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। और इसी बीच वह अपने फ़ोन पर दूसरी लड़कियों से चैट करता रहता था। हर बार वह जानबूझकर कंडोम का इस्तेमाल नहीं करता था ताकि मुझ पर अपना दबदबा दिखा सके। इसके चलते मुझे कई बार अनचाही प्रेगनेंसी का डर सताता रहा, और मुझे चोरी-छिपे गायनेकोलॉजिस्ट के पास जाना पड़ता था क्योंकि वह मुझे इलाज के लिए जाने नहीं देता था।"
"प्रेगनेंसी के डर से अलग, वह लगातार दूसरी महिलाओं के साथ सोता था (जबकि वह कहता था कि हम रिलेशनशिप में नहीं हैं), और मुझे हमेशा एसटीडी (STD) का डर बना रहता था। मेरे शरीर में रैशेज, यीस्ट इन्फेक्शन और हार्मोनल असंतुलन हो गए थे क्योंकि मैं नियमित रूप से i-pill लेती रहती थी। मुझे अपने स्वास्थ्य के लिए चुपचाप डॉक्टरों के पास जाना पड़ता था, क्योंकि उमर राशिद मुझे यही यकीन दिलाता रहता था कि मेरी सारी प्रेगनेंसी और एसटीडी की चिंताएँ सिर्फ़ एक भ्रम हैं।"
"सबसे बुरा और क्रूर वाकया तब होता था जब वह मुझे बुरी तरह पीटता था और उसी वक्त वह अपना फोन निकालकर मेरे अस्त-व्यस्त कपड़े और बाल रिकॉर्ड करता था, ताकि वह मुझे 'पागल औरत' साबित कर सके। इस पूरे समय वह मेरी जासूसी करता रहता था - मैं कहाँ जाती हूँ, किससे बात करती हूँ, मेरे सोशल मीडिया को सेंसर करता, मेरी ज़िंदगी और खाने-पीने तक पर कंट्रोल रखता था, और हर वक्त मुझे बताता रहता था कि मैं कितनी 'भयानक' दिखती हूँ।"
वह मेरी ज़िंदगी के हर पहलू को नियंत्रित करता था मुझे नीचा दिखाने के लिए। उसे मेरी डाइट से, मैं क्या खाती हूँ और क्या नहीं - हर चीज़ से दिक्कत थी। वह मुझे जबरदस्ती बीफ खाने के लिए मजबूर करता था - जैसे किसी 'सेक्युलरिज़्म' की अजीब सी परीक्षा हो। हर बार जब मुझे बीफ खाने के लिए मजबूर किया जाता था, मैं उल्टी कर देती थी और उसे इस पर मज़ा आता था। उसे इस बात में भी मज़ा आता था कि मैं उसके पैरों पर गिरकर उससे माफ़ी माँगूँ, ताकि वह मुझे यह धमकी न दे कि वह मेरी माँ के साथ सेक्स की कल्पना करेगा।"
वह मुझे बार-बार यह कल्पना करने के लिए मजबूर करता था कि मैं अपने पुरुष दोस्तों और सहकर्मियों (खासकर उम्रदराज़ लोगों) के साथ सेक्स कर रही हूँ। यह और भी भयावह था, क्योंकि वे पुरुष मेरे दादा की उम्र के थे। उसने मेरी सबसे कीमती चीज़ें तोड़ीं, जिनमें से कुछ मेरे पिता और क़रीबी दोस्तों द्वारा दिए गए उपहार थे, यह जानते हुए कि मैं बेहद सीमित साधनों में, मुश्किल से जी रही थी।"
स्वामी रामभद्राचार्य को ज्ञानपीठ अवॉर्ड क्यों? जो ये सवाल कर रहे हैं उनमें से अधिकतर हिन्दू विरोधी हैं, उन्हें जूतों मर भरकर जवाब मारना ज़रूरी है।
वो 22 भाषाओं के विद्वान हैं। भोजपुरी और अवधी जैसी आमजनों की स्थानीय भाषाओं के अलावा संस्कृत में भी लिख चुके हैं। उन्होंने 240 से अधिक पुस्तकें और 50+ रिसर्च पेपर लिखे हैं। अब जिनका पढ़ने-लिखने से कोई वास्ता ही नहीं है, वो भला क्या जानें ये सब होता क्या है!
विशेषकर गोस्वामी तुलसीदास की रचनाओं के अध्ययन एवं मीमांसा के मामले में उनका कोई जोड़ नहीं है, कोई तोड़ नहीं है। रामचरितमानस और हनुमान चालीसा को समझना है तो रामभद्राचार्य को पढ़िए।
9000 पृष्ठ, 50000 श्लोक और 9 खंड... पाणिनि द्वारा रचित संस्कृत व्याकरण 'अष्टाध्यायी' पर उन्होंने जो महाभाष्य लिखा है वैसा आजतक नहीं लिखा गया। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका अनावरण किया। 'अष्टाध्यायी' साधारण पुस्तक नहीं है, पतंजलि ने इसे 'सर्ववेद-परिषद्-शास्त्र' कहकर संबोधित किया है।
ब्रह्मसूत्र, भगवद्गीता और 11 उपनिषदों पर आधारित 'श्रीराघवकृपाभाष्यम्' भी उनकी एक अप्रतिम रचना है। जो लोग आज #Rambhadracharya जी पर निशाना साध रहे हैं उनमें से अधिकतर आज से 27 वर्ष पूर्व या तो पैदा भी नहीं हुए होंगे या डायपर में खेल रहे होंगे, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी इस पुस्तक को लॉन्च कर रहे थे। ब्रह्मसूत्र, उपनिषद और गीता को मिलाकर 'प्रस्थानत्रयी' कहते हैं, 500 वर्षों से इनपर कोई संस्कृत भाष्य नहीं लिखा गया था, ये कार्य @JagadguruJi ने किया।
रामकथा के माध्यम से कई दशकों से वो समाज को ऐतिहासिक व आध्यात्मिक ज्ञान से लाभान्वित कर रहे हैं, ये योगदान भी कम है क्या? और हाँ, ये सब उन्होंने प्रज्ञाचक्षु होने के बावजूद किया है। नेत्र चले गए, लेकिन दृष्टि उन्होंने श्रम व साधना से अर्जित की। 1991 में उन्होंने PhD की और 1998 में DLitt - उनको गाली देने वाले अधिकतर अबतक टैक्स के पैसों से ही पल रहे हैं। और हाँ, पोस्ट डॉक्टरेट की डिग्री उन्हें भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति KR नारायणन के हाथों मिली थी, जो दलित थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट में श्रीराम जन्मभूमि मामले के अंतिम जजमेंट में उनकी गवाही और उनके द्वारा दिए गए साक्ष्यों का जिक्र हुआ। दिव्यांग छात्र-छात्राओं के लिए उन्होंने एक पूरी की पूरी यूनिवर्सिटी खोल की। अध्यात्म व समाज की सेवा के लिए 'तुलसी पीठ' की स्थापना की। भारत क्या, पूरी दुनिया में दिव्यांगों के लिए कोई विश्वविद्यालय नहीं था। 'विकलांग सेवा संघ' के जरिए उन्होंने दिव्यांग पुरुषों-महिलाओं के कल्याण के लिए कई कार्यक्रम शुरू करवाए।
मेरा मुख्य उद्देश्य स्वामी रामभद्राचार्य जी का गुणगान करना नहीं, केवल और केवल ये बताना है कि कैसे उन्हें 'ज्ञानपीठ अवॉर्ड' मिलना इस अवॉर्ड का सम्मान बढ़ाता है।
ये लीजिए उनके द्वारा रचित लघुकाव्यों, गीतकाव्यों, महाकाव्यों और रीतिकाव्यों की सूची:
स्वामी रामभद्राचार्य द्वारा रचित संस्कृत लघुकाव्य एवं खंडकाव्य:
न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) ने सैटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं, जो चीख-चीख कर बता रही हैं कि भारत का हमला कितना सटीक था, कितना अचूक था और कितना भीतर था!
NYT चूँकि अपने लेखों के लिए पैसे माँगता है, इसीलिए मैं एक-एक कर उन 'Before And After' वाली सैटेलाइट तस्वीरों को इस थ्रेड में डालता हूँ और साथ ही समझाता हूँ कि कैसे 'ऑपरेशन सिंदूर' सफल रहा।
ये दिखाता है कि हम जब जहाँ चाहें पाकिस्तान में उसी क्षण वार कर सकते हैं। आइए...
भोलारी एयरबेस:
ये सारी की सारी HD सैटेलाइट तस्वीरें हैं। ये पाकिस्तान की सबसे बड़ी पोर्ट सिटी कराची से 100 मील की दूरी पर स्थित है। यहाँ भारत ने एक एयरक्राफ्ट हैंगर को उड़ा दिया। ये वो इमारत थी जहाँ एयरक्राफ्ट को रखा और मेंटेन किया जाता है। अंदर रखे एयरक्राफ्ट्स का क्या हुआ होगा, समझ जाइए।
भारत ने अपनी क्षमता का प्रदर्शन किया है!
आइए, अब चलते हैं नूर खान एयरबेस की तरफ:
ये पाकिस्तान के सबसे संवेदनशील इलाक़ों में से एक है। पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय और वहाँ के प्रधानमंत्री का दफ्तर से ये कुछ ही दूरी पर स्थित है। साथ ही यहाँ से कुछ ही दूरी पर पाकिस्तान का परमाणु जखीरा है, उसकी देखभाल करने वाली यूनिट है।
यहाँ की एक महत्वपूर्ण इमारत को भी भारत ने एकदम सटीक निशाना बनाकर तबाह कर दिया।