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कलम और बंदूक इस योद्धा का हथियार थी..
11 जून 1897 को शाहजहांपुर में जन्म लेने आजादी के इस दीवाने राम प्रसाद बिस्मिल की
बात करते हैं..
रामप्रसाद का बचपन बहुत सामान्य था और वे नियमित रूप से आर्य समाज में जाते थे।
लाला हरदयाल के मित्र स्वामी परमानंद को मिले मृत्युदंड ने उनका परिचय स्वतंत्रता आंदोलन से करवाया।

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क्रोधित हो उन्होंने हिंदी में कविता लिखी, "मेरा जन्म" और परमानन्द के मित्र स्वामी सोमदेव को दिखाई।
स्वामी ने उनका उत्साहवर्धन किया।
इस बीच काँग्रेस ने लखनऊ में अधिवेशन रखा।

रामप्रसाद ने "मातृवेदी" नामक क्रांतिकारी संगठन बनाया व गैंदा लाल दीक्षित नामक एक अध्यापक से संपर्क साधा।
सोमदेव ने औरैया के इस अध्यापक से उन्हें मिलवाया क्योंकि वे जानते थे कि रामप्रसाद अपने अभियान में अधिक सफल होंगे यदि
अनुभवी लोग उनके साथ हों।
दीक्षित ने भी शिवाजी समिति के नाम से एक सशस्त्र संगठन बनाया हुआ था।
28 जनवरी 1918 को उन्होंने एक परचा छापा,
"देशवासियों के नाम संदेश" जो उन्होंने अपनी कविता "मैनपुरी की प्रतिज्ञा" के साथ बाँटा।
पैसों की व्यवस्था के लिए वे मैनपुरी में लूटपाट करने लगे।
एक बार अंग्रेजों ने उन्हें घेर लिया..रामप्रसाद तो भाग निकले किंतु दीक्षित और स्वामी पकड़े गए।
जब मैनपुरी कांड के सारे अभियुक्त जेल से छूट गए तो रामप्रसाद घर लौटे और अधिकारियों के समक्ष क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग न लेने की हामी भरी।
रामप्रसाद का वक्तव्य अदालत में दर्ज किया गया।
1921 में आयोजित काँग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में वे पहली बार अशफ़ाक उल्ला खान से मिले।
इस सत्र में पूर्ण स्वराज की माँग रखी गई जो गाँधी जी को पसंद नहीं आई किंतु सभी सहमति के साथ असहयोग आंदोलन के लिए काम करने लगे।
चौरी चौरा और उसके बाद के विश्वासघात ने सबको चौंका दिया था..
स्वतंत्रता सेनानी गुस्से में थे।
काँग्रेसअध्यक्ष चितरंजन दास ने कांग्रेस छोड़ मोतीलालनेहरू के साथ स्वराज पार्टी की स्थापना की।
लाला हरदयाल की अनुमति से रामप्रसाद ने पार्टी का संविधान लिखा।
इस में सचिंद्रनाथ सान्याल व बंगाल के एक अन्य क्रांतिकारी जादूगोपाल मुखर्जी ने
उनके साथ थे।
संगठन का मूल नाम और उद्धेश्य एक पीले कागज पर टाइप किए गए।
3 अक्टूबर 1924 को कानपुर में सचिंद्र नाथ सान्याल के सभापतित्व में संवेधानिक समिति की बैठक आयोजित की गई जिसमें तय किया गया कि पार्टी का नाम हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) होगा।
#HindustanRepublicanAssociation (HRA).
रामप्रसाद ने सरकारी खजाने वाली रेलगाड़ी को काकोरी में लूटने का सुनियोजित काम किया।
काकोरी उत्तरप्रदेश में लखनऊ के पास स्थित रेलवे स्टेशन है।
9 अगस्त 1925 को हुई यह ऐतिहासिक घटना
काकोरी कांड के नाम से जानी जाती है।
इस लूट में केवल दस जनों ने भाग लिया लेकिन चालीस के करीब क्रांतिकारी पकड़े गए।
18 महीनों के बाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान,रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को फांसी की सजा सुनाई गई।
19/12/1927 को बिस्मिल को गोरखपुर जेल और अशफ़ाक उल्लाह खान को फैजाबाद जेल में फांसी पर चढ़ाया गया।
ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद जेल में जबकि लाहिड़ी को दो दिन पहले ही गौंडा जेल में फांसी दी गई।
जब बलिदान का समय आया तो उनके चेहरे पर छाई दिव्यता देख अधिकारी भी चकित थे।
बिस्मिल #वंदेमातरम् और भारत माता की जय कहते हुए मस्ती से चल रहे थे।

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उन्होंने शांति से प्रार्थना की,"विश्वानी देवा सविताः.. "
बंदूक और कलम के सिपाही ने एक नायक की तरह मृत्यु को गले लगा लिया।
#बिस्मिल का अंतिम संस्कार राप्ती नदी के किनारे किया गया।उस स्थान को अब राजघाट कहा जाता है।
(बिस्मिल के पिता की गोद में उनका शव)
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श्रृंखला का अंतिम किंतु महत्वपूर्ण ट्वीट.
दिए गए लिंक में राम प्रसाद बिस्मिल की क्षमा याचिकाओं और उनके भगत सिंह,चंद्र शेखर आजाद और मदन मोहन मालवीय के साथ हुए पत्रव्यवहार के बारे में बताया गया है।

बस इतना ही।

#वंदेमातरम्
🙏
bhagatsinghstudy.blogspot.com/2013/12/rememb…
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