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आज एक गाँधी की बात करते हैं..
राष्ट्रपिता नहीं उनके पुत्र हरिलाल गाँधी की..
नाम तो सुना होगा आपने..?
@Sheshapatangi
हरिलाल गाँधी की दुख भरी कहानी..
गाँधी जी के ज्येष्ठ पुत्र हरिलाल का जन्म 23 अगस्त 1888 को हुआ..
उन्होनें अपने पिता द्वारा त्याग दिए जाने से पहले 1908 और 1911 के बीच के समय मे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया और 6 बार जेल गए।
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वे छोटे गाँधी के रूप में जाने जाने लगे।
पिता पुत्र के बीच विवाद तब शुरू हुआ जब
गाँधी जी ने कानून की पढ़ाई के लिए उन्हें इंग्लैंड जाने से रोक दिया।
कहा कि पाश्चात्य शिक्षा स्वतंत्रता संग्राम में काम नहीं आएगी।
गाँधी जी के इस रवैये पर हरिलाल ने सारे पारिवारिक संबंध तोड़ दिए और घर छोड़ कर चले गए।
1918 में उनकी पत्नी गुलाब की मृत्यु इंफ्ल्यूएंजा से हुई।
बाद में जब हरिलाल ने गुलाब की विधवा बहन कुमी से विवाह करना चाहा तो गाँधी जी ने अनुमति नहीं दी।
दुखी हो कर हरिलाल अत्यधिक शराब पीने लगे।
पिता पुत्र संबंधों की दरार और गहरी हो गई जब
गाँधी जी हरिलाल और उनके पुत्र कांतिलाल के बीच आ गए..
हरिलाल अपने पुत्र को अच्छी शिक्षा देना चाहते थे। उन्होंने अपने पुत्र को पत्र लिखकर कहा कि वह उनका अनुसरण ना करे और बेहतर शिक्षा प्राप्त करे।
हरिलाल अपने पुत्र से मिलना चाहते थे किंतु गाँधी जी ने अपने पत्र में कान्तिलाल को ऐसा करने से मना कर दिया,कहा कि हरिलाल एक शराबी और नाकारा व्यक्ति है।अंततः कांतिलाल ने पिता से मिलने से मना कर दिया।
1935 में गाँधी जी ने कांतिलाल को लिखे पत्रों में हरिलाल पर झूठे आरोप लगाए।
कि हरिलाल एक शराबी और व्याभिचारी थे जिन्होंने उनकी पुत्री मनु के साथ बलात्कार किया।(गाँधी परिवार का कहना है कि गुजराती में लिखे इस पत्र का अनुवाद ठीक से नहीं हुआ।)
गाँधी जी से अलग होने के बाद भी हरिलाल ने अपने जीवन को सुधारने की कोशिश नहीं की
बल्कि और गिरते चले गए।
कर्ज़ बढ़ता गया..ऐसे में कुछ विधर्मी नेताओं ने गाँधी जी को नीचा दिखाने के लिए मौका ताड़ा और हरिलाल से कहा कि सारा कर्ज़ वे चुका देंगे अगर हरिलाल इस्लाम ग्रहण कर लें।
अपने पिता के खिलाफती मित्रों के दबाव में आ कर हरिलाल ने इस्लाम अपना लिया और अपना नाम रखा अब्दुल्ला गाँधी।
इसके बाद उन्हें मुस्लिम वेशभूषा में भारत भर में जगह जगह ले जाया जाता और पाकिस्तान की मांग करते हुए उनके सामने गाँधी जी को गालियाँ दी जाती।
1936 में अपनी माँ कस्तूरबा गाँधी के प्रयासों से उन्होंने आर्य समाज के माध्यम से घर वापसी की
और अपना नाम रखा हीरालाल..
उनका उद्देश्य हीन जीवन ऐसे ही चलता रहा और गाँधी जी के अंतिम संस्कार में भी किसी ने रोते हुए हीरालाल को नहीं पहचाना।
अपने पिता की मृत्यु के लगभग छः माह बाद आज ही के दिन 1948 हीरालाल की मृत्यु हो गई।
उनकी मृत देह कमाठीपुरा में पाई गईं।चिकित्सकों ने उनकी मृत्यु का कारण लीवर सिरोसिस और संभवतया सिफलिस बताया।
उनकी जेब में मिले एक नंबर पर फोन करने से पता चला कि वे कौन थे।
तो ये थी कहानी एक तथाकथित महात्मा के ज्येष्ठ पुत्र की जिसने सब कुछ अपने पिता की शिक्षाओं के विरुद्ध किया और एक भिखारी की मौत मारा गया।

बस इतना ही..🙏
हरिलाल को लिखा एक पत्र महात्मा गाँधी की हस्तलिपी में..@_radheshyam_ के सौजन्य से.. Image
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