आज उसका जन्मदिन है जो हम सभी भारतीयों के ह्रदय में देशप्रेम का प्रतीक रही है..
जो जगाती आई है बच्चे-बच्चे के मन में मातृभूमि के प्रति समर्पण की उत्कंठा ..
जो सशरीर नहीं होते हुए भी सजीव रही है,
संपूर्ण भारत की आत्मा में रची बसी है..
जेल में जन्मी थी तो स्वतंत्रता की चाह तो अवश्यंभावी रही होगी..
आजादी के दीवानों की ही नहीं यह हम सब की भी प्रिय है..आज भी..
"पुष्प की अभिलाषा" की..
जो आज से ठीक सौ साल पहले महान राष्ट्र भक्त कवि पं. माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा युवाओं में आजादी की अलख जगाने के लिए लिखी गई।
चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ ..
हिमतंरगिणी और समय के पाँव के रचियता पंडित जी का जन्म 4अप्रैल 1889 को हुआ।
एक निर्भीक पत्रकार, कवि, रचनाकार के रूप में आपके अविस्मरणीय योगदान के लिए आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अलख जगाते थे और अपनी ओज भरी वाणी से
रोम रोम गुंजित कर देते थे।
असहयोग आंदोलन का दौर था।
बिलासपुर के शनीचरी मंच से जून 1921 में आजादी के मतवालों को संबोधित किया।
देश सेवा के साथ साहित्य सेवा भी साथ साथ चलती रही।
आप 'प्रभा' मासिक पत्रिका के संपादक रहे।
1920 में "कर्मवीर" से जुड़े, फिर 1923 में "प्रताप" का संपादन आरंभ किया।
मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के रायपुर अधिवेशन के आप सभापति थे।
हिंदी साहित्य में अनन्य योगदान के लिए आपको मध्य प्रदेश शासन द्वारा 1966 में सम्मान अभिनंदन ग्रंथ समर्पित किया गया।
शत शत नमन।
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