सुबह की शुरुआत करते हैं एक महान व्यक्तित्व के साथ जिन्होंने करोड़ों भारतीयों के जीवन को प्रभावित किया..
बात करते हैं केशव बलिराम हेडगेवार की..
आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर..
और 5/8/1921 को लिखित बयान पढ़ा जिसे सुनने के बाद जस्टिस स्मेली ने कहा,"इनका यह वक्तव्य इनके भाषणों से अधिक विद्रोही है।"
19/8 के अपने निर्णय में न्यायधीश ने उन्हें लिखित में वचन देने को कहा कि-
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तुरंत उत्तर मिला- मुझे विश्वास है कि मैं बिल्कुल निर्दोष हूँ। दमनकारी नीति आग में घी डालने का काम करेगी।
हेडगेवार कोर्ट से बाहर आए और वहाँ एकत्रित लोगों से कहा,"जैसा कि आप जानते हैं मैंने राजद्रोह के इस मामले में अपनी पैरवी स्वयं की है।फिर भी ऐसा दर्शाया जा रहा है कि ऐसा कर मैंने राष्ट्रीय आंदोलन के साथ विश्वासघात किया है। ..+
विदेशी शासकों की दुष्टता सारे संसार को बताना हमारा कर्तव्य है और देशभक्ति भी।
और स्वयं का बचाव नहीं करना आत्मघाती सिद्ध होता।"
देशभक्ति के धर्म निर्वाह में यदि हमें जेल जाना पड़े,अंडमान भेजा जाए या फाँसी पर लटका दिया जाए तो हमें उसके लिए सहर्ष तैयार रहना चाहिए। +
हेडगेवार को जुलाई 1922 में रिहा किया गया
और उनके स्वागत हेतु आयोजित समारोह को
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल नेहरू और हकीम अजमल खां ने संबोधित किया।
वे कांग्रेस के स्वयंसेवी संगठन हिन्दुस्तानी सेवा दल के सदस्य भी रहे।
1923 में खिलाफत आंदोलन के चलते हुए सांप्रदायिक दंगों ने उनकी सोच एकदम बदल दी।
प्लेग से अपने माता पिता दोनों को खो देने के बाद हेडगेवार की शिक्षा-दीक्षा उनके संबंधियों और मित्रों की सहायता से हुई थी।
हेडगेवार बड़ी तेजी से संगठन में आगे बढ़े और जल्दी ही समिति के एक प्रमुख सदस्य बन गए।
उनके मुख्य कामों में एक था देश के अन्य भागों को क्रांतिकारी साहित्य और हथियारों का गुप्त वितरण सुनिश्चित करना।
इसमें उनके मित्र वाहक का काम करते थे।
उनका गुप्त नाम "कोकन" था।
1916 में पढ़ाई पूरी करने के बाद वे नागपुर लौट आए।
बैंकॉक की मोटी तनख्वाह वाली नौकरी ठुकरा कर उन्होंने नागपुर के ही भाऊ जी कर्वे के सहयोग से "क्रांति दल" बनाया।
लोकमान्यतिलक के अनुयायी हुसैन ने "स्वदेशी" की शपथ ली थी।वे स्वदेशी कुबेर वस्तु भंडार भी चलाते थे।
गंभीर बीमारी में हेडगेवार ने उनकी दो महीने तक सेवा की।
17/4/1926 को 26 स्वयंसेवकों की उपस्थिति में गहन चर्चा के बाद तीन नामों पर सहमति बनी वे थे,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,जारीपताका मंडल एवं भेद्रातोद्धारक मंडल।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चुना गया।
संगठन तेजी से नागपुर और उसके आसपास के जिलों के साथ साथ अन्य हिस्सों में भी फैलने लगा।
धीरे धीरे उनके सहयोगी उन्हें "डाॅक्टर जी" कहने लगे।
उनके आग्रह पर स्वयंसेवक काशी , लखनऊ जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षा के लिए गए और वहाँ संघ की शाखाएं शुरू की।
अप्रैल 1930 में जब गाँधी जी ने नमक सत्याग्रह के लिए दांडी यात्रा की शुरुआत की तो..+
बाद के वर्षों में डाॅक्टर जी का स्वास्थ्य गिरने लगा और वे अक्सर पीठ दर्द के शिकार रहने लगे।
उन्होंने अपने उत्तरदायित्व गोलवलकर जी को सौंपने लगे जो आगे जाकर उनके उत्तराधिकारी RSS के सरसंघचालक बने।
"मैं अपने समक्ष एक लघु हिंदू राष्ट्र देख रहा हूँ।"
उनका अंतिम संस्कार रेशम बाग, नागपुर में किया गया जिसे भविष्य में हेडगेवार स्मृति मंदिर के रूप में विकसित किया गया।
@vijayvaani
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व्याकरणिक त्रुटियों के लिए क्षमा।
🙏
वंदेमातरम।