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शुभ प्रभात मित्रों..
सुबह की शुरुआत करते हैं एक महान व्यक्तित्व के साथ जिन्होंने करोड़ों भारतीयों के जीवन को प्रभावित किया..
बात करते हैं केशव बलिराम हेडगेवार की..
आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर..
मई 1921 में हेडगेवार को महाराष्ट्र में राजद्रोह और आपत्तिजनक भाषणों के लिए गिरफ्तार किया गया।
मामले की सुनवाई 14 जून,1921 को आरंभ हुई।

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कुछ आरंभिक सुनवाईयों के बाद उन्होंने इस मामले में स्वयं ही पैरवी करने का निर्णय लिया
और 5/8/1921 को लिखित बयान पढ़ा जिसे सुनने के बाद जस्टिस स्मेली ने कहा,"इनका यह वक्तव्य इनके भाषणों से अधिक विद्रोही है।"
19/8 के अपने निर्णय में न्यायधीश ने उन्हें लिखित में वचन देने को कहा कि-
+
वे अगले एक वर्ष तक सरकार के विरुद्ध कोई भाषण नहीं देंगे और 3000 रुपये का जमानत पत्र भी जमा करवाएं।
तुरंत उत्तर मिला- मुझे विश्वास है कि मैं बिल्कुल निर्दोष हूँ। दमनकारी नीति आग में घी डालने का काम करेगी।
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मुझे विश्वास है कि वह दिन दूर नहीं जब फ़िरंगी सरकार को अपने दुष्कर्मों का फल मिलेगा।
सर्वव्यापी ईश्वर के न्याय पर मुझे विश्वास है।
इसलिए मैं जमानत के लिए इस आदेश की अनुपालना से इंकार करता हूँ।
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उन्हें एक वर्ष के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई।
हेडगेवार कोर्ट से बाहर आए और वहाँ एकत्रित लोगों से कहा,"जैसा कि आप जानते हैं मैंने राजद्रोह के इस मामले में अपनी पैरवी स्वयं की है।फिर भी ऐसा दर्शाया जा रहा है कि ऐसा कर मैंने राष्ट्रीय आंदोलन के साथ विश्वासघात किया है। ..+
किंतु मुझे लगता है कि जबरदस्ती लादे गए मुकदमे में किसी कीड़े की तरह कुचल दिया जाना बहुत बड़ी नासमझी है।
विदेशी शासकों की दुष्टता सारे संसार को बताना हमारा कर्तव्य है और देशभक्ति भी।
और स्वयं का बचाव नहीं करना आत्मघाती सिद्ध होता।"
यदि आप स्वयं का बचाव न करना चाहें तो ना करें किंतु ईश्वर के लिए अपने से असहमत होने वालों की देशभक्ति को कम न समझें।
देशभक्ति के धर्म निर्वाह में यदि हमें जेल जाना पड़े,अंडमान भेजा जाए या फाँसी पर लटका दिया जाए तो हमें उसके लिए सहर्ष तैयार रहना चाहिए। +
इस वहम में न रहें कि जेल जाना ही स्वतंत्रता प्राप्ति का एकमात्र मार्ग है।जेल के बाहर भी राष्ट्र सेवा की अनेक संभावनाएं हैं।
मैं एक साल बाद मिलूँगा,तब तक आंदोलन से दूर रहूँगा किंतु मुझे विश्वास है कि "पूर्ण स्वराज" तब तक पूरी तरह सक्रिय हो चुका होगा। +
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भारत को विदेशी शासन द्वारा गुलाम बनाए रखना अब संभव नहीं है। मैं आप सभी का आभार व्यक्त करता हूँ। शुभकामनाएं।"

हेडगेवार को जुलाई 1922 में रिहा किया गया
और उनके स्वागत हेतु आयोजित समारोह को
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल नेहरू और हकीम अजमल खां ने संबोधित किया।
हेडगेवार को 1922 में प्रावधायी कांग्रेस का संयुक्त सचिव नियुक्त किया गया।
वे कांग्रेस के स्वयंसेवी संगठन हिन्दुस्तानी सेवा दल के सदस्य भी रहे।

1923 में खिलाफत आंदोलन के चलते हुए सांप्रदायिक दंगों ने उनकी सोच एकदम बदल दी।
हेडगेवार को लगा कि कांग्रेस नेतृत्व हिंदुओं की आशंकाओं को दूर करने में असफल रहा है और समय आ गया है कि हिन्दुओं को संगठित करने के लिए एक संगठन बनाया जाए।
प्लेग से अपने माता पिता दोनों को खो देने के बाद हेडगेवार की शिक्षा-दीक्षा उनके संबंधियों और मित्रों की सहायता से हुई थी।
उन सभी ने शिक्षा और देश के प्रति उनका समर्पण देखते हुए उन्हें अध्ययन के लिए कलकत्ता के नेशनल मेडिकल कालेज भेजा।
कलकत्ता भेजने का एक मुख्य उद्देश्य यह भी था कि वे शीर्ष क्रांतिकारी नेता पुलिन बिहारी दास की देखरेख में प्रशिक्षण ले सकें।

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पुलिन बाबू अनुशीलन समिति के अग्रणी नेता थे।
हेडगेवार बड़ी तेजी से संगठन में आगे बढ़े और जल्दी ही समिति के एक प्रमुख सदस्य बन गए।
उनके मुख्य कामों में एक था देश के अन्य भागों को क्रांतिकारी साहित्य और हथियारों का गुप्त वितरण सुनिश्चित करना।
इसमें उनके मित्र वाहक का काम करते थे।
वे स्वयं जब नागपुर जाते थे तो वहां के क्रांतिकारियों के लिए रिवाल्वर ले कर जाते थे।
उनका गुप्त नाम "कोकन" था।

1916 में पढ़ाई पूरी करने के बाद वे नागपुर लौट आए।
बैंकॉक की मोटी तनख्वाह वाली नौकरी ठुकरा कर उन्होंने नागपुर के ही भाऊ जी कर्वे के सहयोग से "क्रांति दल" बनाया।
हेडगेवार बंगाल के प्रमुख राष्ट्रवादियों के प्रिय थे किंतु श्यामसुंदर चक्रवर्ती और मौलवी लियाकतहुसैन से उन्हें विशेष स्नेह था.
लोकमान्यतिलक के अनुयायी हुसैन ने "स्वदेशी" की शपथ ली थी।वे स्वदेशी कुबेर वस्तु भंडार भी चलाते थे।
गंभीर बीमारी में हेडगेवार ने उनकी दो महीने तक सेवा की।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में विजयदशमी के दिन हुई लेकिन नाम बाद में चुना गया।
17/4/1926 को 26 स्वयंसेवकों की उपस्थिति में गहन चर्चा के बाद तीन नामों पर सहमति बनी वे थे,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,जारीपताका मंडल एवं भेद्रातोद्धारक मंडल।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चुना गया।
उनके पहले अनुयायियों में से कुछ के नाम इस प्रकार हैं- भैया जी दानी, बाबा साहब आपटे,एम.एस. गोलवलकर, बाला साहब देवरस और मधुकर राव भागवत।
संगठन तेजी से नागपुर और उसके आसपास के जिलों के साथ साथ अन्य हिस्सों में भी फैलने लगा।
हेडगेवार ने युवाओं को संघ से जुड़ने के लिए प्रेरित किया।
धीरे धीरे उनके सहयोगी उन्हें "डाॅक्टर जी" कहने लगे।
उनके आग्रह पर स्वयंसेवक काशी , लखनऊ जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षा के लिए गए और वहाँ संघ की शाखाएं शुरू की।
In April 1930, when Gandhi gave a call for '#Satyagraha' against the British Government. Gandhi himself launched the Salt Satyagraha undertaking his Dandi Yatra. Dr. Hedgewar decided to
अप्रैल 1930 में जब गाँधी जी ने नमक सत्याग्रह के लिए दांडी यात्रा की शुरुआत की तो..+
हेडगेवार ने निजी तौर पर इसमें शामिल होते हुए भी सब को सूचित किया कि संघ एक संगठन के रूप में सम्मिलित नहीं होगा।
अन्य सदस्यों से भी उन्होंने कहा कि वे व्यक्तिगत रूप से डांडी यात्रा से जुड़ सकते हैं।
इसके पीछे उनका मंतव्य यही था कि संघ राजनीति से अलग रहे।
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वे RSS को राजनैतिक अखाड़े से परे रखना चाहते थे।
बाद के वर्षों में डाॅक्टर जी का स्वास्थ्य गिरने लगा और वे अक्सर पीठ दर्द के शिकार रहने लगे।
उन्होंने अपने उत्तरदायित्व गोलवलकर जी को सौंपने लगे जो आगे जाकर उनके उत्तराधिकारी RSS के सरसंघचालक बने।
1940 में वार्षिक संघ शिक्षा वर्ग में अंतिम बार उन्होंने स्वयंसेवकों को संबोधित किया और कहा कि,
"मैं अपने समक्ष एक लघु हिंदू राष्ट्र देख रहा हूँ।"
आज ही के दिन यानि 21 जून 1940 को उन्होंने सदगति प्राप्त की।
उनका अंतिम संस्कार रेशम बाग, नागपुर में किया गया जिसे भविष्य में हेडगेवार स्मृति मंदिर के रूप में विकसित किया गया।
@vijayvaani

#Vandemataram

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hindustantimes.com/analysis/it-is… Image
बस इतना ही..
व्याकरणिक त्रुटियों के लिए क्षमा।
🙏
वंदेमातरम।
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