My Authors
Read all threads
क्या कहें उन्हें ?
एक मुख्यमंत्री, एक हत्यारा.. या एक हत्यारा मुख्यमंत्री..?

आइए बात करते हैं ज्योति बासु की..आज उनके जन्मदिन पर..
ज्योति बासु ने पूरे 23 साल, 4 महीने और 17 दिन पश्चिम बंगाल पर एकछत्र राज किया 1977 से 2000 तक मुख्यमंत्री के रूप में..
एक कम्युनिस्ट आतंकी जो अपने कार्यकाल में हर रोज कम से कम
5 हत्याओं के लिए उत्तरदायी रहे.. लोगों की और उद्योगों की..
1977 में सत्ता में आने से बहुत पहले ही मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने हत्या को राजनैतिक अस्त्र की तरह काम में लेना शुरू कर दिया था।
1970 से जब उन्होंने बर्धवान के सेन परिवार से सम्बंधित कांग्रेस के दो प्रमुख नेताओं का वध किया।
उनकी पाशविकता का अनुमान हम इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने दोनों भाई यों की मां को अपने मृत पुत्रों के रक्त से सने चावल खाने को बाध्य किया।
परिणाम यह हुआ कि मां ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया और दस साल बाद मृत्यु पर्यंत ठीक नहीं हो पाई।
विचारधारा के अभाव और हिंसा में विश्वास के चलते बासु सरकार ने हत्या का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के रूप में नियोजित रूप से किया।
जांच के नाम पर हजारों मरिचझाफी हरिजनों का वध हो या आनन्दमार्गी सन्यासियों की हत्या या यूनिसेफ़कर्मी का बलात्कार और हत्या सब पर ज्योति बासु की छाप थी।
यहां तक कि एक बार उन्होंने स्वयं मीडिया से कहा था,"ऐसी घटनाएं तो होती रहती हैं,नहीं होती हैं क्या?"
ऐसा ही दबदबा था उनका..
और फिर हुआ सुचापुर हत्याकांड जिस में 11 मुसलमानों को बर्बरता से केवल इसलिए मार डाला गया क्योंकि उन्होंने न्यूनतम वेतन की मांग की थी।
ज्योति बासु ने सभी इलाकों में हत्या, बलात्कार, षड्यंत्र और लूट से अपने राजनीतिक विरोधियों का सफाया कर दिया था..
1997 में विधानसभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में बुद्ध देव भट्टाचार्य ने कहा कि 1977 और 1996 के बीच 28000 राजनीतिक हत्याएं की गईं।
यानि औसतन एक महीने में 125 हत्याएं!
प्रतिदिन चार कम से कम..!
19 सालों तक हर छ: घंटे में एक हत्या..
1977-2000 तक इन 55,408 हत्याओं में एक भी हत्यारे पर कोई कार्रवाई नहीं हुई..!
अब आते हैं उद्योगों पर..
ज्योति बासु के नेतृत्व में बंगाल उद्योगों का श्मशान बन गया था।
ज्योति बसु ने एक बार एक उद्योगपति से कहा था कि सारे पूंजीपति
घोर शत्रु हैं और उन्हें किसी सहानुभुति की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
"आमार नाम, तोमार नाम वियतनाम"
"आमार बाड़ी, तोमार बाड़ी नक्सलबाड़ी.." का शोर पूरे बंगाल में छाया हुआ था।
शहरों और कस्बों में व्यापारियों को दुश्मन की तरह देखा जाता था और ये दुश्मनी उग्रवादी ट्रेड यूनियनों में बदल गई।
अक्सर व्यापारी ही मारे जाते थे।
अब तक कम्युनिस्ट मार्क्सवादियों और नक्सलियों में बँट चुके थे हालांकि नक्सलियों और मार्क्सवादियों में ज्यादा फर्क नहीं था।
दोनों ही रक्त के प्यासे थे।
यही वो समय था जब अधिकांशतः रेलवे पर निर्भर बंगाल के इंजीनियरिंग उद्योग को बड़ा झटका लगा क्योंकि बहुत से आर्डर कम हो गए।
इसके बाद अनेकों कम्पनियों में मजदूरों के झगड़े और हड़तालें शुरू हो गईं जो साल भर से भी ज्यादा चलीं।
उद्योगों का पतन शुरू हो गया।
इंदिरा गाँधी ने मौके का फायदा उठाया और बहुत सी कम्पनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया।
सैकड़ों उद्यमी बंगाल छोड़ कर चले गए।
आर्थिक पतन के साथ बढ़ी बेरोजगारी की समस्या ने कोढ़ में खाज का काम किया।
यद्यपि संयुक्त मोर्चे की सरकार ने नक्सल आंदोलन पर काबू पाने की कोशिश की लेकिन मजदूरों की समस्या से कन्नी काट कर निकल गई।
चुनावी वादा जो था..
एक और वादा था पुलिस बल को दोबारा गठित करना ताकि वो लोकतांत्रिक आंदोलनों यानि श्रमिक विवादों में हस्तक्षेप ना कर सके।

ब्रुक बाॅन्ड इंडिया से आई सी आई इंडिया, शाट वाॅलेस, बाटा , बिड़ला और फिलिप्स इंडिया सब के सब कलकत्ता में जन्मे होने के बावजूद अन्यत्र चले गए।
कम्यूनिस्टों ने मध्यमवर्गीय बंगालियों की सोच को जकड़ लिया था। इन भद्रजनों और दिमागी रूप से विक्षिप्त आतंकियों की सोच में विशेष फर्क नजर नहीं रहा।
दामोदर नदी घाटी कार्पोरेशन के चेयरमैन लूथर पर घातक हमला हुआ।
ये पहली बार एक बड़ी कंपनी के अधिकारी पर हमला हुआ था।(1980)
ज्योति बासुदेव ने इस हमले पर मुँह तो बनाया पर बिगड़ैल गुंडों पर काबू के लिए कुछ नहीं किया।
अपने शीर्ष प्रबंधकों पर दबाव, गुंडागर्दी और हमलों के चलते कंपनियां बंगाल से अपने मुख्यालय कहीं और ले जाने पर बाध्य हो गईं।
ज्योति बसु की दागदार विरासत की सबसे दुखद
बात ये थी कि बागी ट्रेड यूनियनों पर अपने शासन की शुरुआत में ही नकेल नहीं डाल पाने के कारण उनसे उपजी अराजकता पर काबू नहीं कर पाए।
देखा जाए तो 1960 तक बंगाल देश का दूसरा सबसे अधिक औद्योगिक राज्य था और उद्योग-रोजगार की संख्या में मुंबई गुजरात से भी आगे था।
indiatoday.in/india/story/am…
अमर्त्य सेन के अनुसार,"बंगाल में उद्योगों को नष्ट करने में वामपंथियों का बड़ा हाथ रहा।
हमें यह स्वीकार करना होगा। जब नीतियां बदलनी चाहिए थी तब लोगों ने सरकार बदली।
मुझे लगता है कि वामपंथी दलों की सोच में ही कुछ गड़बड़ है।"
सेन ने यह भी कहा कि वामपंथी शासन में ही राज्य में निवेश समाप्त हुआ, कृषि संबंधित विकास नकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ और बंगाल बर्बाद हो गया।

अब जागे तो जानें..

बस इतना ही।
🙏
*शाॅ वाॅलेस
Missing some Tweet in this thread? You can try to force a refresh.

Keep Current with अक्षिणी.. 🇮🇳

Profile picture

Stay in touch and get notified when new unrolls are available from this author!

Read all threads

This Thread may be Removed Anytime!

Twitter may remove this content at anytime, convert it as a PDF, save and print for later use!

Try unrolling a thread yourself!

how to unroll video

1) Follow Thread Reader App on Twitter so you can easily mention us!

2) Go to a Twitter thread (series of Tweets by the same owner) and mention us with a keyword "unroll" @threadreaderapp unroll

You can practice here first or read more on our help page!

Follow Us on Twitter!

Did Thread Reader help you today?

Support us! We are indie developers!


This site is made by just two indie developers on a laptop doing marketing, support and development! Read more about the story.

Become a Premium Member ($3.00/month or $30.00/year) and get exclusive features!

Become Premium

Too expensive? Make a small donation by buying us coffee ($5) or help with server cost ($10)

Donate via Paypal Become our Patreon

Thank you for your support!