एक मुख्यमंत्री, एक हत्यारा.. या एक हत्यारा मुख्यमंत्री..?
आइए बात करते हैं ज्योति बासु की..आज उनके जन्मदिन पर..
एक कम्युनिस्ट आतंकी जो अपने कार्यकाल में हर रोज कम से कम
5 हत्याओं के लिए उत्तरदायी रहे.. लोगों की और उद्योगों की..
1970 से जब उन्होंने बर्धवान के सेन परिवार से सम्बंधित कांग्रेस के दो प्रमुख नेताओं का वध किया।
परिणाम यह हुआ कि मां ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया और दस साल बाद मृत्यु पर्यंत ठीक नहीं हो पाई।
जांच के नाम पर हजारों मरिचझाफी हरिजनों का वध हो या आनन्दमार्गी सन्यासियों की हत्या या यूनिसेफ़कर्मी का बलात्कार और हत्या सब पर ज्योति बासु की छाप थी।
ऐसा ही दबदबा था उनका..
और फिर हुआ सुचापुर हत्याकांड जिस में 11 मुसलमानों को बर्बरता से केवल इसलिए मार डाला गया क्योंकि उन्होंने न्यूनतम वेतन की मांग की थी।
1997 में विधानसभा में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में बुद्ध देव भट्टाचार्य ने कहा कि 1977 और 1996 के बीच 28000 राजनीतिक हत्याएं की गईं।
प्रतिदिन चार कम से कम..!
19 सालों तक हर छ: घंटे में एक हत्या..
1977-2000 तक इन 55,408 हत्याओं में एक भी हत्यारे पर कोई कार्रवाई नहीं हुई..!
ज्योति बासु के नेतृत्व में बंगाल उद्योगों का श्मशान बन गया था।
ज्योति बसु ने एक बार एक उद्योगपति से कहा था कि सारे पूंजीपति
घोर शत्रु हैं और उन्हें किसी सहानुभुति की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
"आमार बाड़ी, तोमार बाड़ी नक्सलबाड़ी.." का शोर पूरे बंगाल में छाया हुआ था।
शहरों और कस्बों में व्यापारियों को दुश्मन की तरह देखा जाता था और ये दुश्मनी उग्रवादी ट्रेड यूनियनों में बदल गई।
अक्सर व्यापारी ही मारे जाते थे।
दोनों ही रक्त के प्यासे थे।
यही वो समय था जब अधिकांशतः रेलवे पर निर्भर बंगाल के इंजीनियरिंग उद्योग को बड़ा झटका लगा क्योंकि बहुत से आर्डर कम हो गए।
उद्योगों का पतन शुरू हो गया।
इंदिरा गाँधी ने मौके का फायदा उठाया और बहुत सी कम्पनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया।
सैकड़ों उद्यमी बंगाल छोड़ कर चले गए।
यद्यपि संयुक्त मोर्चे की सरकार ने नक्सल आंदोलन पर काबू पाने की कोशिश की लेकिन मजदूरों की समस्या से कन्नी काट कर निकल गई।
चुनावी वादा जो था..
ब्रुक बाॅन्ड इंडिया से आई सी आई इंडिया, शाट वाॅलेस, बाटा , बिड़ला और फिलिप्स इंडिया सब के सब कलकत्ता में जन्मे होने के बावजूद अन्यत्र चले गए।
दामोदर नदी घाटी कार्पोरेशन के चेयरमैन लूथर पर घातक हमला हुआ।
ज्योति बासुदेव ने इस हमले पर मुँह तो बनाया पर बिगड़ैल गुंडों पर काबू के लिए कुछ नहीं किया।
अपने शीर्ष प्रबंधकों पर दबाव, गुंडागर्दी और हमलों के चलते कंपनियां बंगाल से अपने मुख्यालय कहीं और ले जाने पर बाध्य हो गईं।
बात ये थी कि बागी ट्रेड यूनियनों पर अपने शासन की शुरुआत में ही नकेल नहीं डाल पाने के कारण उनसे उपजी अराजकता पर काबू नहीं कर पाए।
indiatoday.in/india/story/am…
हमें यह स्वीकार करना होगा। जब नीतियां बदलनी चाहिए थी तब लोगों ने सरकार बदली।
मुझे लगता है कि वामपंथी दलों की सोच में ही कुछ गड़बड़ है।"
अब जागे तो जानें..
बस इतना ही।
🙏