ऋग्वेद के ऐतरेय ब्राह्मण में शुन:शेपाख्यान में हरीशचंद्र के पुत्रप्राप्ति का प्रसंग है। निःसंतान हरीशचंद्र ने संतानप्राप्ति के मोह में वरुण देव का आह्वान किया, वरुण देव ने सशर्त संतानप्राप्ति का वरदान दिया और रोहित का जन्म हुआ लेकिन…
लेकिन वरुण की शर्त के अनुसार पुत्र का चेहरा देखने का मोह पूरा कर रोहित को वापस वरुण को सौंप देना आवश्यक था। हरीशचंद्र यह नहीं कर पाए, क्रोधित वरुण ने राजा को उदर-रोग का श्राप दिया। अब रोहित एक पुख्त पुरुष बन चुका था, उसने लोभी अजीर्गत से सौ गायों के बदले पुत्र शुनःशेप मांग लिया।
विप्रों ने रोहित के बदले शुनःशेप की नरबलि देने से मना कर दिया पर लोभांध अजीर्गत पुत्र वध करने के लिए भी तैयार था। स्थितप्रज्ञ शुनःशेप ने बलिवेदी से उषा-प्रार्थना कर देवताओं को प्रसन्न किया और अपनी प्राण रक्षा के साथ राजा हरिश्चंद्र का उदर-रोग का श्राप भी निर्मूल किया! »»
शुनःशेप और रोहिताश्व का बाद में क्या हुआ? क्या यह कथा नरबलि को उचित ठहराती है? इस कथा से क्या बोधपाठ मिलता है? इस चर्चा का अब कोई औचित्य नहीं है क्योंकि हमारे लिए “Tajmahal is overrated” ही अन्तिम सत्य है!
हिंदू मन्दिरों के शिल्प तथा स्थापत्य, हमारी पौराणिक कथाओं के प्रसंग और हमारे पूर्वजों की शौर्य गाथाएँ अपने-आप में जीनव दर्शन के कितने ही रहस्य समेटे हुए हैं। »»
सुबह से लगातार हो रही बारिश अभी थोड़ी थमी थी। यूनिवर्सिटी के साइंस कॉलेज का कैंपस शान्त था। ग्यारह बजने को थे। अब्बास सर का उबाऊ क्लास बन्क कर के मैं बाहर आ गया। सब स्टूडेंट्स क्लास अटेंड कर रहे हों तब इस समय कैंपस में बाहर रह कर प्रोफेसर्स के नजरों से बचे रहना मुश्किल था इसलिए…
रोज़ की तरह मैं ग्राउंड फ्लोर से मैथ्स डिपार्टमेंट और फर्स्ट फ्लोर से बोटनी डिपार्टमेंट की सीढ़ियां चढ़ते हुए दुसरी मंजिल पर जूलॉजी डिपार्टमेंट पहुंच गया। जूलॉजी में विद्यार्थियों की संख्या कम होने के कारण यहां आवाजाही कम रहती थी…
और इसी कारण मैं अब्बास सर का क्लास बन्क कर के हमेशा यहां समय बिताने आ जाता था। हालांकि जूलॉजी डिपार्टमेंट के उपर छत थी लेकिन छत पर जाने वाला गेट हमेशा लॉक्ड रहता था इसलिए मैं कभी उपर नहीं जा पाया था। आश्चर्यजनक रूप से आज छत पर जाने वाला गेट खुला था। »»
पहले इन्होंने हमारे देश को लूटा फिर कांग्रेसी सरकारों ने करोड़ों रुपए का मेकअप लगा कर इन्हीं के मकबरों को चकाचक चमकाया। वाह वाह करने वाले रेस्टोरेशन से पहले मकबरे की तस्वीर भी नहीं पहचान पाएंगे। »»
शस्त्रों की शक्ति बहुत बड़ी होती है। कंबोडिया में कम्यूनिस्टों ने सरहद पार से अवैध शस्त्र किसानों के हाथों में थमा दिए और सशस्त्र संघर्ष से स्वयं सत्ता प्राप्त कर उन्हीं किसानों का शोषण किया। आज भी कंबोडियाई तानाशाह पोल-पोट द्वारा किए गए नरसंहार के प्रमाण ज़मीन में से निकलते हैं।
पोलपोट के कम्यूनिस्ट दिवास्वप्न के अनुसार देश के सभी लोग किसान थे। बंदूक की नोंक पर शहरों को खाली कराया गया और शिक्षित प्रजाजनों को भी खेतों में मजदूरी करने गांवों में भेज दिया गया। इनमें डॉक्टर और प्राध्यापक जैसे लोग भी शामिल थे। विरोध का परिणाम सीने में बुलेट से मिलता था।
जानकारों के मुताबिक अंदाजन दो मिलियन नागरिकों का कत्लेआम किया गया था। बौद्धिकता का मुखौटा पहना मार्क्सवाद जब अनावृत्त होता है तब रक्तपात का नंगा नाच करता है।
कुछ काम से शहर से बाहर जाना पड़ा, घर पहुंचने में देरी हुई। रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे और सूनसान रास्ते पर बाइक बंद हो गई। सोचा कि किसी सेफ जगह पर बाइक पार्क कर पैदल घर चला जाऊंगा। तब तक बाईक खींचने के अलावा कोई चारा नहीं था। फ़रवरी महिने में ठंड कम हो रही थी और…
…और बाईक खींचने के कारण पसीना भी छूट रहा था। इयरफोन में मोहम्मद रफी का गाना चल रहा था तभी पीछे से आवाज आई “बाईक बंद हो गई है क्या?” पीछे मुड़कर देखा तो एक करीबन चालीस साल का आदमी बीड़ी फूंकते हुए बेफिक्र सा आ रहा था। सोचा कि यह भी सही है, बातें करते हुए रास्ता कट जाएगा। लेकिन…
वह कुछ ज्यादा ही बातूनी प्रतीत हो रहा था। उसने कहा कि दो किलोमीटर आगे सरकारी अस्पताल के पास ही रहता है और वहां रात में बाइक पार्क किया जा सकता है। मैं बाईक खींच रहा था और वह थोड़ा पीछे चल रहा था। सामने पुराने सरकारी अस्पताल की इमारत दिख रही थी…
सन 1930 में 384 किलोमीटर की पैदलयात्रा कर गांधीजी दांडी पहुंचे और नमक सत्याग्रह किया यह बात हमें बढ़ा-चढ़ाकर बताई जाती है लेकिन दांडी यात्रा की फलश्रुति क्या है पता है?
अंग्रेजों ने नमक-टैक्स कभी खत्म नहीं किया। 1946 में नेहरू की अंतरिम सरकार बनने तक भारतीय यह टैक्स चुकाते रहे।