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#StopPrivatizationOfBanks
निजीकरण क्या है?
ये एक अवधारणा है शक्ति के केंद्रीयकरण की।

सरकारी संस्थान और निजीसंस्थान दोनों के सोच में मूलभूत अंतर है जो आज के नए नए बने बुद्धिजीवियों को शायद पता नहीं है या वो जानबूझकर अंजान बने हुए है।
#StopPrivatizationOfBanks
किसी भी दल का या सरकार का समर्थन करना या विरोध करना आप की विचारशीलता पर होना चाहिए ना की केवल सुनी सुनाई बातों पर।

सरकारी संस्थानों के नितिपरक निर्णय एक चुना हुआ दल लेता है जबकि निजी संस्थानों के नीतिपरक निर्णय एक व्यक्ति द्वारा आदेशित बोर्ड लेता है।
#StopPrivatizationOfBanks
सरकारी संस्थानों की स्थापना देश के निचले और पिछड़े वर्ग को देश की मुख्यधारा में लाने के लिए किया गया था किन्तु आज सरकार की ओर से किए जा रहे निजीकरण के प्रयास देश के उस निचले और पिछड़े वर्ग को किस और लेकर जाएगा ये तो अभी खुद उस वर्ग को भी नहीं पता है
#StopPrivatizationOfBanks
परन्तुजब तक उस वर्ग के लोगों को पता चलेगा तब तक उस वर्ग को पछताने के अतिरिक्त कुछ नहीं रहेगा।

राजशाही को हटाकर लोकतन्त्र की स्थापना केवल दो ही कारणों से हुई थी।
पहला कारण रियासतों को मिलाकर एक अखंड भारत का निर्माण
#StopPrivatizatioOfBanks
और दूसरा कारण आम जनता के लिए आम जनता का आम जनता द्वारा प्रशासन करना ताकि आम आदमी की समस्या को आसानी से समझा जा सके।

किन्तु निजीकरण की मूल अवधारणा इन दोनों ही कारणो का समर्थन नहीं करती क्योंकि व्यवसाय की मूल प्राथमिकता केवल लाभ कमाने के होती है
#StopPrivatizationOfBanks बाकी देशभक्ति और किसी गरीब य पिछड़े वर्ग की सेवा या उसका उत्थान नहीं।

देशभक्ति अगर व्यवसाय की प्राथमिकता होती तो कोई भी चीनी समान भारत में नहीं बिकता परंतु व्यवसाय की मूल अवधारणा देशभक्ति है ही नहीं और दूसरा उदाहरण किसी भी आपदा के समय लाभ कमाने के लिए
#StopPrivatizationOfBanks
आवश्यक वस्तुओं का दाम बाद जाना है जैसे केदारनाथ आपदा के समय एक बिसलेरी कि बॉटल का ₹600 तक बिकना।

अगर किसी को लगता है कि निजीकरण होने से देश में तरक्की होगी तो आप के ज्ञान के लिए बता दे
#StopPrivatizationOfBanks
आज भी कई विकसित देशों में शिक्षा, ट्रांसपोर्ट, स्वास्थ्य सेवाए, प्रशासन और कई मूलभूत सुविधाएं केवल सरकारी नियंत्रण में है।

भारत वैसे भी विविधताओं से भरा हुआ देश है। भारत के कई हिस्सों की आर्थिक, भौगोलिक, सामाजिक संरचना और स्थिति बड़ी विचित्र है
#StopPrivatizationOfBanks
किन्तु वहां के लोगो को भी मूलभूत सुविधाओं का हक है किन्तु उन क्षेत्रों में कोई भी निजी संस्थान सेवा देने को तत्पर नहीं है क्योंकि उन जगहों पर लाभ कमाना तो दूर, लागत तक नहीं निकलेगी।

ऐसे स्थानों पर केवल सरकारी संस्थान ही सेवा देते है
#StopPrivatizationOfBanks
क्योंकी उनकी मूलभूत अवधारणा ही जनसेवा है किन्तु घाटा होने पर हम उस संस्थान के कर्मचारियों की क्षमता और योग्यता पर प्रश्नचिन्ह कैसे लगा सकते है।

खुद बैंकर होने के कारण, मैंने बैंको की कई ऐसी शाखाओं को देखा है
#StopPrivatizationOfBanks
जो बैंक ने केवल वित्तीय समावेशन या फाइनेंशियल इन्क्लूजन के लिए खोली गई है परन्तु य कभी लाभ नहीं देंगी कारण इनका भौगोलिक और आर्थिक परिवेश है परंतु इसका अर्थ ये तो नहीं है कि उन शाखाओं में कार्य करने वाले लोग अक्षम है।
#StopPrivatizationOfBanks
ऐसी ही एक शाखा है हमारी रेकोंगपियो शाखा। ये शाखा जिला किन्नौर, हिमाचल राज्य में है जहा से चीन की सीमा बहुत ही नजदीक है आधे समय इस शाखा को दूसरी शाखा से चलाना पड़ता है कारण उस क्षेत्र में बर्फ जमी रहती है नलो में पानी जम जाता है
#StopPrivatizationOfBanks
अब आप उस क्षेत्र में सेवा करने वाले लोगों हिम्मत समझ सकते हो।

क्या कभी इस प्रकार की कोई शाखा आप ने ऐसे किसी क्षेत्र में देखी है?
क्या आप ने ग्रामीण भारत में कितने निजी बैंक देखे है?
कितने निजी संस्थान आदिवासी इलाकों में देखे है?
#StopPrivatizationOfBanks
कितने निजी संस्थान आपने पहाड़ी इलाकों में देखे है?

निजी संस्थानों की ग्रामीण भारत जोकि भारत का असल स्वरूप है, पर कितनी पकड़ है?

आप का उत्तर क्या है ये आप स्वयं जानते है।

निजी संस्थान केवल अपनी बैलेंस शीट के लिए उत्तरदायी होते है वहां की जनता के लिए।
#StopPrivatizationOfBanks
मेरे द्वारा किए गए सभी प्रश्नों का विरोध करने के लिए कुछेक बुद्धिजीवी श्री रतन टाटा जी का उदाहरण देंगे किन्तु मेरे भाईयो वो केवल अपवाद है उनके जैसा ना कोई और था और ना कोई होगा।
शायद उनके बाद टाटा ग्रुप भी उतनी सेवा ना करे
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