रक्षाबंधन दरअसल यह श्रावणी उत्सव है जिसका जिक्र हमारे धर्म ग्रंथों में भी मिलता है।
इस दिन कलाई में रक्षासूत्र बांधन की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है।
गुरु शिष्य परंपरा में शिष्य इस दिन अपने गुरुओं को रक्षासूत्र बांधा करते थे।
इसके पीछे यह उद्देश्य माना जाता था कि राजा और वरिष्ठजन समाज, धर्म, यज्ञ एवं पुरोहितों की रक्षा करेंगे।
इस परंपरा की शुरुआत देवासुर संग्राम से हुई थी ऐसा माना जाता है।
उसने अपने साहस और पराक्रम के बलबूते देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।
वृत्रासुर को यह वरदान था कि वह किसी भी अस्त्र-शस्त्र से पराजित नहीं होगा।
जिस दिन कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था
देवराज विजयी हुए और वरदान दिया कि इस दिन जो भी रक्षासूत्र बांधेगा,वह दीघार्यु और विजयी होगा
चीर हरण के समय भगवान ने इसी वचन को निभाया।
कहते हैं कि जब धर्मराज युधिष्ठिर कौरवों से युद्ध के लिए जा रहे थे तब श्री कृष्ण ने उन्हें सभी सैनिकों को रक्षासूत्र बांधने की बात कही।
उन्होंने कहा कि इस रक्षासूत्र से व्यक्ति हर परेशानी से मुक्ति पा सकता है।
राजा बलि समझ गए कि भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं।
तीसरे पग के लिए उन्होंने भगवान का पग अपने सिर पर रखवा लिया।
भगवान ने भक्त की बात मान ली और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए।
बलि ने कहा मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं,इस पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गईं और बोलीं कि आपके पास तो साक्षात भगवान हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं
देवी लक्ष्मी ने मुंहबोले भाई बलि को राखी बांधकर विष्णु भगवान को मुक्त कराया था।
इसी दिन से राखी भाई बहन का त्योहार बन गया।