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Thread: Open Letter from Banker to Modiji

आदरणीय प्रधानसेवक साहब,
सर्वप्रथम राममंदिर निर्माणारंभ के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं। सदियों से लंबित इस मुद्दे को शायद अब तिलांजलि मिल जायेगी। आज के इस पावन अवसर पर मैं आपको देश के बैंकों के बिगड़ते हालात से अवगत कराने की अनुमति चाहता हूं
भारतीय अर्थव्यवस्था में बैंकों और विशेषतः सरकारी बैंकों का महत्व आपसे छुपा नहीं है। आपकी हर आर्थिक योजना बैंकों को केन्द्र में रखकर ही बनाई जाती है। आपकी इच्छा को देश की इच्छा मानते हुए आपकी मनवांछित नीतियों को लागू करने में बैंकों ने भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।
ग्रामीण क्षेत्रों के वित्तीय समावेशन में सरकारी बैंक अग्रणी हैं। गांवों की लगभग 75% बैंक शाखाएं सरकारी बैंकों की है। निजी क्षेत्र गांवों में शाखाएं खोलने से कतराता है क्योंकि वहां मुनाफा शहरी शाखा की तुलना में आधा ही होता है।
प्रधानमंत्री जनधन योजना के तहत 40 करोड़ से भी अधिक खाते खोले गए जिनमें से 38.75 करोड़ खाते (लगभग 97%) सरकारी (RRB सहित) बैंकों ने खोले हैं। निजी बैंक शायद जानते थे कि ज़ीरो बैलेंस खाते उनके मुनाफे के लिए सही नहीं है। क्योंकि सिर्फ पासबुक ही 13 रुपए की पड़ती है बैंक को।
फिर फ्री का ATM, अकाउंट खोलने और maintain करने का खर्चा। सरकारी बैंकों ने अपना पेट काट के जनधन खाते खोले। वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है ये योजना। सिर्फ सरकारी बैंकरों की कर्मठता की वजह से। इसी योजना से जुडे़ हैं जीवन ज्योति योजना और सुरक्षा बीमा योजना। ज्यादातर हुए सरकारी बैंक में।
किसान क्रेडिट कार्ड योजना: देश में कुल 6.75 करोड़ KCC खाते हैं। चूंकि गांवों में ज्यादातर सरकारी बैंक ही पाए जाते हैं इसलिए ज्यादातर KCC भी सरकारी बैंकों में ही होंगे। प्राइवेट बैंकों में KCC का क्या हाल है ये आपको अभी कुछ दिनों पहले HDFC बैंक में हुए KCC फ्रॉड से पता चल जायेगा।
लघु एवं कुटीर उद्योगों को फाइनेंस करने वाली PM Mudra योजना जिसमें की NPA का खतरा सबसे ज्यादा है, सरकारी बैंकों ने बिना डरे किए। 10% से अधिक NPA हैं इसमें। शायद आपको मालूम नहीं लेकिन आज तक एक भी क्लेम का पैसा CGFMU ने नहीं दिया है। सारा NPA हमारी जेब से गया।
नोटबन्दी में दो महीनों में देश की 86% मुद्रा बदल दी गई। बैंकरों को समय भी नहीं मिला कि नोट असली है या नकली ये जांच सकें। बाद में RBI ने तसल्ली से डेढ़ साल बैठ के सारे नोट चैक किए और सारे नकली नोट बैंकों को वापिस भेज दिए। सब बैंकरों ने अपनी जेब से भरे हैं।
आंधी तूफान, बाढ़ चक्रवात सब में सरकारी बैंकों ने अपनी सेवाएं बदस्तूर जारी रखी। यहां तक कि Corona काल में जब कि भारतीय रेल तक के पहिए थम गए बैंकरों ने अपने दरवाजे जान हथेली पर रख के सब के लिए खोले।
लेकिन सर, अब हमें महसूस हो रहा है कि हमारे साथ न्याय नहीं हो रहा। कागजों में तो आप हमें केन्द्रीय सरकारी कर्मचारी के समकक्ष बताते हैं। लेकिन तनख्वाह के नाम पे पक्षपात करते हैं। हमें वेतन वृद्धि के लिए तीन साल तक लड़ाई लड़नी पड़ती है और उसके बाद चंद कौड़ियों में समझौता हो जाता है।
RBI से लेकर DFS तक सभी सप्ताह में 5 दिन खुलते हैं। फिर बैंकों के लिए शनिवार वर्किंग क्यों? वैसे भी डिजिटल बैंकिंग का जमाना है, कस्टमर को सारी सुविधाएं मोबाइल पर उपलब्ध हैं फिर क्यों शनिवार को बैंक खोलकर कैश लेनदेन को बढ़ावा दिया जा रहा है?
आपकी वित्त मंत्री साहिबा देश के सबसे बड़े बैंक के चेयरमैन को सरे आम बेइज्जत करती हैं। किसने दिया उनको ये अधिकार? आपके मुख्य आर्थिक सलाहकार बैंकों को देश की आर्थिक उन्नति में सबसे बड़ा रोड़ा बताते हैं।
आपके तानाशाह सरीखे जिलाध्यक्ष जब चाहे बैंकरों के खिलाफ अरेस्ट वॉरंट निकाल देते हैं। कोरोना काल में भीड़ नियंत्रण की जिम्मेदारी बैंकरों के मत्थे डाल दी गई। अब बैंकर बैंकिंग करे या हाथ में डंडा लेकर लोगों को लाइन में लगाता फिरे। ये काम तो पुलिस का है ना सर।
लेकिन पुलिस वाले तो खुद ही बैंकरों के पीछे हाथ धो के पड़े हुए। आपने सूरत वाला वीडियो तो देखा ही होगा। जहां दो पुलिस वाले महिला बैंकर पर अपनी शक्ति आजमा रहे थे। वित्त मंत्री जी ने तो एक ट्वीट करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली।
महाराष्ट्र में माननीय नेतागण आए दिन बैंकरों को पीटने और मुंह काला करने की धमकी देते दिखाई देते हैं। बोलते हैं आधार कार्ड की गारंटी पे लोन दो। वोट बैंक के चक्कर में बैंकरों की जान लेने पे तुले हैं।
Corona राहत के नाम पे सरकार देशवासियों के खाते में 500 रुपए जमा कराती है। आपको मालूम है इस पैसे को निकालने के लिए इस महामारी के दौर में भी बैंकों में कितनी भीड़ लगी रहती थी। आपके पास कोई भी डाटा है कि कितने बैंकर कोरोना की भेंट चढ गए?
आपको मालूम है कि कोई सरकारी कर्मचारी कोरोना से मरे तो उसे 50 लाख मिलते हैं। मगर बैंकर की जान की कीमत सिर्फ 20 लाख लगाई गई है।
सुना है आपने आजकल नया फरमान निकला है कि NPA वाले कस्टमर को भी लोन दो। सर जिसने पहले ही लोन नहीं चुकाया वो अब क्यों चुकाएगा? सर आप शायद ना मानें मगर आपकी नीतियों से बैंकों का NPA बढ़ रहा है। सरकारी बैंकों का विशेष रूप से।
जब भी सैलरी बढ़ाने की बात करते हैं तो कहा जाता है कि NPA बहुत है। जब नीतियां सरकार की हैं तो उनसे हुए घाटे की भरपाई बैंकर की जेब से क्यों? आजकल सरकार में भी और मीडिया में भी एक पूरा समूह देश की बदहाली के लिए बैंकरों को को जिम्मेदार ठहरा रहा है।
और इसी बिनाह पर सरकारी बैंकों को बेचने की वकालत भी की जा रही है। किसको बेचेंगे? उन पूंजीपतियों को जिन्हें सिर्फ अपने फायदे से मतलब है? भारत अभी भी गांवों का ही देश है सर। और गावों में सरकारी बैंक ही सेवाएं देते हैं।
आपकी उपलब्ध्यिों में सरकारी बैंकों का भी योगदान रहा है। लेकिन अक्सर देखा गया है कि आपकी उपलब्ध्यिों का बखान करने वाले बैंकरों को जान बूझकर अनदेखा कर जाते हैं। हाल ही में DFS ने सब अखबारों में 40 करोड़ जनधन खाते खोलने के लिए आपको बधाई दी थी। बैंकों का जिक्र तक नहीं था उसमें।
प्रशंसा के भूखे नहीं हैं हम मगर ऐसी भी क्या बेरुखी? उपलब्धियां गिनाओ तो सारी आपकी और कमियां दिखाओ तो सारी हमारी। हमारी आपसे कुछ गुज़ारिशें हैं। आशा है आप गौर करेंगे
1. सरकारी बैंकों के निजीकरण का प्रस्ताव नकारा जाए। साथ ही जो भी आपके अधिकारीगण या सलाहकार निजीकरण की पैरवी करते हैं उनके उद्योगपतियों से सम्बन्धों की जांच की जाए।
2. अगर सरकारी बैंकों की संख्या कम करनी है तो बैंकों के विलय तो प्राथमिकता दी जाए।
3. ऋण आवेदक की योग्यता का निर्णय बैंकों पर छोड़ा जाए। या फिर ऐसे सभी मामलों में बैंक को हुए नुकसान की भरपाई सरकार करे।
4. CGTMSE तथा CGFMU के तहत क्लेम सेटलमेंट शीघ्रता से किए जाएं
5. बैंकरों का सैलरी रिवीजन CPC के बेस पर किया जाए। 5 दिवसीय बैंकिंग को लागू किया जाए।
6. बैंकर को कोरोना वॉरियर की श्रेणी में रख कर कॉरोना से क्षति के केस में 50 लाख का बीमा किया जाए।
7. Bankers Protection Act बनाया जाए जिसके तहत बैंकर की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

- आपसे न्याय की आशा रखता हुआ एक प्रताड़ित बैंकर.
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