एक समय था जब सूचनाओं के प्रसारण का एकमात्र माध्यम समाचार पत्र हुआ करते थे. पत्रकारों पर एक नैतिक जिम्मेदारी होती थी अपने पाठकों तक सिर्फ सच पहुंचाने की...
लेकिन अब दौर बदल चुका है, लोगो के पास सूचनाओं की प्राप्ति के अनंत माध्यम हो चुके है
अब पत्रकार भी सच्चाई के बजाय रोचकता खोजते है... तथ्यों को घुमा-फिरा, मोड़-तोड़ के इस तरह की शक्ल दी जाती है कि पढ़ने-सुनने वाले को चटपटा लगे...
इस मिर्च मसाले के चक्कर में देश का कितना नुकसान हो रहा है कोई अंदाजा भी नही लगा सकता...
इन खबरों से हमारे मन मे नफरत भरी जा रही है
मसलन किसी चोर को किसी ने पीट दिया ये तो आम खबर हो गई... इसको कोई नही पढ़ेगा...
लेकिन अगर हम चोर का धर्म/जाति और पीटने वाले का धर्म/जाति लिख दे और चोरी वाली बात को गायब कर दे, सिर्फ पीटने वाली बात पर फोकस करे तो बन गई मसालेदार खबर...
जल्द ही ये एक राजनीतिक मुद्दा बन जायेगा
जैसे कोई व्यक्ति किसी के घर की बहन बेटी के साथ दुर्व्यवहार करे और वो उससे झगड़ा कर ले तो इसको भी प्रेम-संबंध और जाति/धर्म से जोड़ दिया जाएगा...
महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपा कर खबर कितनी खतरनाक बन जाती है इसका प्रसिद्ध उदाहरण महाभारत के युद्ध के समय का है.
गुरु द्रोण का मनोबल तोड़ने के लिए उन्हें उनके पुत्र के निधन की मिथ्या सूचना दी जाती है... उनके विश्वास नही करने पर अश्वथामा नामक हाथी को मारा जाता है और यही सूचना युधिष्ठिर से उनको दिलवाई जाती है
गुरु द्रोण के पूछे जाने पर युधिष्ठिर कहते है -
अश्वत्थामा हतः इति नरो वा कुंजरो वा
अर्थात अश्वथामा मारा गया, "मनुष्य नही हाथी"...
और इस नरो वा कुंजारा शब्द को ढोल नगाड़ों से इस तरह से दबा दिया जाता है की गुरु द्रोण अपने पुत्र को मृत मानकर युद्ध छोड़ देते है.
हमारा व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी वाला समाज भी यही करता है... हम महत्वपूर्ण तथ्यों को छुपा कर सूचना देते है..
कई बार मीडिया जल्दबाजी में किसी ऐसे व्यक्ति को हीरो बना देता है जो बाद में जाकर विलेन साबित होता है...
हमारी आंखों पर इस मिथ्या सूचना की पट्टी बांध दी गई है...
अब हमारी आंखे सत्य देखने की आदि नही रही, हमारे कान तथ्यात्मक और मजेदार में से हमेशा मजेदार को चुनते है...
हम इतने आलसी होते जा रहे है कि 30 सेकंड के लिए भी हम तथ्य की जांच करने की जहमत नही उठाते...
ये नरो वा कुंजरा हमारे समाज मे नफरत फैला रहा है...
हम किसी भी भाषण में से 30 सेकंड की क्लिप निकालते है और बिना उसका संदर्भ समझे उसे वायरल कर देते है..!
राहुल गांधी जी के आलू से सोना निकलने वाली बात हो या मोदीजी के खाते में 15 लाख आने वाली बात
दोनो ही बातो को हम जब संदर्भ के साथ सुने तो उनका कुछ और ही अर्थ निकलता है, लेकिन हमें तो मसाला फैलाना है. हमे तो नरो वा कुंजरा को दबाना है. यही क्रियाविधि झूटी खबर फैलाने में काम ली जाती है
राहुल गांधी किस संदर्भ में मशीन की बात कर रहे है या मोदीजी किस संदर्भ में 15 लाख की बात कर रहे है उससे हमे क्या...?
हमको तो बस मनोरजंन चाहिए...
मैं सभी से आग्रह करना चाहता हूं कि मित्रो, इस दुनिया मे कोई भी पूरी तरह गलत या पूरी तरह सही नही होता... नजरिया महत्वपूर्ण होता है..
हम एक लोकतंत्र में जी रहे है तो हमे इस बात को मान लेना चाहिए कि सामने वाले के विचार भी आदरणीय है... मिथ्या खबरों के झांसे में आकर ही हम एक दूसरे से नफरत करते है
किसी भी झूटी खबर को अपने मस्तिष्क को नियंत्रित न करने दे..
अगली बार आपको कोई भी फॉरवर्ड आये तो कृपया उसका सन्दर्भ जांचे
अगर एक भी व्यक्ति मेरे इस थ्रेड को पढ़कर खबर की सत्यता और संदर्भ की जांच करना शुरू कर देगा तो मेरी इतना सब टाइप करने की मेहनत को मैं सफल मानूंगा...!!
जय हिंद... जय भारत..!!
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पिछले कुछ समय से लगातार व्यस्तता के चलते पर्याप्त समय नही निकाल पा रहा हूँ... पेशेवर जीवन के साथ साथ व्यक्तिगत जीवन मे भी लगातर चल रही उठापटक की वजह से संतुलित होकर कुछ सोच पाना और कुछ कर पाना बहुत मुश्किल लगने लगा है...
लेकिन चूंकि अब सवाल अस्तित्व का है...
तो अब चुप बैठना कायरता होगी... हालांकि मानसिक उठापटक के इस दौर में भी में भी मैं चुप तो नही बैठा....
जंहा भी मौका मिला, जैसा भी मौका मिला बैंकर्स को संगठित करने का, उनका स्वर समवेत बनाने का प्रयास किया...
मेरी सबसे बड़ी समस्या ये है कि मेरे आस पास बैठ कर काम करने वाले लोग इस दिवास्वप्न में है कि निजीकरण हमे तो चिमटी से भी नही छू सकता, तो हम क्यों परेशान हो...?
और मुझे उनके ये विचार सुन कर आश्चर्य होता है, की हम इतने स्वार्थी क्यों हो गए?
आजकल हमारे देश का एक धड़ा बहुत खुश है, इतना ज्यादा कि खुशी छुपाए नही छुप रही, उनकी खुशी एकदम फुदक फुदक कर बाहर जंहा देखो ज्ञान के रूप में गिर रही है...
उनकी इस खुशी का कारण है "अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा"
"देखो तालिबान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की है"
"देखो बिना खून बहाए पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया"
"देखो तालिबान ने दुनिया की सारी शक्तियों के कब्रगाह बना दिये"
"तालिबान तो इस सरकार से कई गुना अच्छा है"
अरे अक्ल के दुश्मनों, या तो तुम इतने मूर्ख हो कि तालिबान के बारे में कुछ जानते नही और या फिर तुम इतने दुष्ट हो कि तुम्हे आतंकवाद प्रिय लग रहा है...
आपको तालिबान सिर्फ इसलिए अच्छा लगता है कि इसकी विचारधारा इस सरकार की विचारधारा की विरोधी विचारधारा है तो आप महामूर्ख हो...
हर मनुष्य के साथ ऐसा होता है कि जब वो शवयात्रा को देखता है तो कुछ क्षणों के लिए संसार से अरुचि या विरक्ति हो जाती है... जीवन की वास्तविकता का हमे अंदाजा उन कुछ क्षणों के लिए लग जाता है कि जीवन क्षणभंगुर है... लेकिन कुछ ही समय मे हम सब भूलकर सामान्य हो जाते है..
रोज अपने आस पास, सोशल मीडिया पर और समाचारों में इतने लोगो को मरते हुए देख कर मेरे साथ वो श्मशान वैराग्य वाली स्थिति स्थायी जैसी हो गई है... जीवन अब असार सा लगने लगा है... क्या फायदा किसी के साथ लगाव रखने का जब वो आपको किसी भी क्षण छोड़कर जा सकता है...?
"मैं क्या कर रहा हूँ"
"क्यों कर रहा हूँ"
जैसे सवाल बार बार मन मे आते है... जीवन मे कितनी ही सफलता अर्जित करे, मृत्यु एक वास्तविकता है, एक अटल सत्य है...
इसके सामने मेने बहुत गुरुर से भरे लोगो को भी गिड़गिड़ाते हुए देखा है...
भारत और चीन के रिश्तों में कड़वाहटों के बीच भारत ने चीन के कई app प्रतिबंधित कर दिए... लेकिन चीन से आया हुआ एक ऐसा उत्पाद है जो भारत मे कोई भी प्रतिबंधित नही कर सकता वो है
"चाय"
चाय के शौकीन लोगो के लिए चाय शब्द ही ताजगी से भरने के लिए पर्याप्त है... मसलन ब्रांच में काम करते समय चाय वाले को कप में अपने लिए चाय भरते हुए देखने के वो क्षण इतना आनंद देते है जितना अपनी दुल्हन का पहली बार घूंघट उठाने वाले क्षण भी नही देते होंगे 🤐
चाय वाले को अपने लिए चाय भरते हुए देखना चाय प्रेमियों के लिए दुनिया का सबसे सुंदर दृश्य होता है...
लेकिन सर्दियों में सुबह अपने लिए खुद चाय बनाना उसी अनुपात में पीड़ादायी भी होता है.. मैं आपको समझाता हूँ कैसे...
किसी भी आंदोलन की शुरुआत एक असंतोष से होती है... उस असंतोष को धीरे धीरे बाकी लोगो तक पहुंचाना और फिर एक कारवां बनता जाना आंदोलन के उदय का चरण है...
एक टीम बनने के बाद उस टीम को "बनाये रखना" बहुत ज्यादा चुनोतिपूर्ण होता है
आप जिसके खिलाफ संघर्ष कर रहे है उसके विरुद्ध कार्ययोजना बनाने के साथ साथ ही आपकी अपनी टीम में समन्वय बिठाने की भी जिम्मेदारी होती है...
टीम भी कई तरीके से बनाई जा सकती है...
एक तो जैसेकि झुंड... उसमे किसी भी सदस्य का कोई व्यक्तिगत विचार नही होता... सब सदैव एकमत रहते है
एक होती है भीड़... जिसमे कोई भी जो मर्जी कर रहा है, अनुशासन हीनता और हुड़दंग भीड़ की निशानी है....
लेकिन आंदोलन को सफलता न तो झुंड के साथ मिल सकती है और न ही भीड़ के साथ...